मेरी औकात क्या है
तेरे फसाने, तेरी मर्जी, फिर मेरे रोकने की बात क्या है
जहाँ चाहे दिल लगाए, रोकने की मेरी औकात क्या है
मै बुरा ही सही, विश्वास तुम्हारा कभी गिराया नही है
बस औरो के जैसा तुम्हारा भरोसा मैने कमाया नही है
बस एक खिलौने की तरह तेरा मन बहलाया था हमने
तेरी कहानी मे बस यही ही किरदार निभाया था हमने
कहती हो की नफरत हो चुकी तुम्हे है मेरी आवाज से
चलो ऐसी बदनसीबी नही सुनने को मिलेगी आज से
बेगैरत हू मै, जो गलत जगह जाने से टोका था मैने
खुदा ही जाने मेरा क्या सोच कर तुम्हे रोका था मैने
खुदगर्ज हो तुम,बस अम्ल ए खुदगर्जी किया है तुमने
रास्ता कितना बुरा हो,बस अपनी मर्जी किया है तुमने
मत सोचना की तुम पर कभी हुकुम चलाया था मैने
बदले मे किसी जरूरत के एहसान गिनाया था मैने
तू कहती थी की बात बात पर तुझे रुलाया है मैने
तेरी आजादी, तेरी बेबाकी पर पहरे बिठाया है मैने
ना कोई जिस्मानी सुकून, न कोई पारशायी चाही है
अपनी खुशियों के बदले सिर्फ तेरी भलाई चाही है
बस यही बात हैँ जो कम्बख्त हर बार भूल जाता हूँ
तुम्हारी जिंदगी मे दखलंदाजी की माफ़ी चाहता हूँ
अब कहने सुनने को शायद बाकी कुछ बचा नही
जो रिश्ता था हम दोनो का,अब शायद वो रहा नही
मेरे सिवा जहाँ मे कई और होंगे तुम्हे हसाने वाले
नये बाग़ मे नई खुशियों की कलियाँ खिलाने वाले
तोल मोल के नही,दिल से मैने ये व्यापार किया था
गुरूर है मुझे , जो तुमको पूजा,तुम्हे प्यार किया था
पर अब उन यादों की घड़ियाँ हम पीछे ले जाये क्यूँ
जनाजे पे चैन से सोने वाला उठ के वापस आये क्यूँ
न सोचा न समझा सब कुछ तुम पे निसार किया था
हा ये सच है की मैने तुमसे टूट कर प्यार किया था
पहला शेर लिखा " अंजूरी" मे,सामने था तेरा चेहरा
पर अब टूटी कलम पे लग गया तेरी नफ़रत का पहरा
तेरे ना चाहने पर भी तुझे एक आखिरी पैगाम लिखता हूँ
टूटी कलम के आखिरी शेर से आखिरी सलाम लिखता हूँ
Comments
Post a Comment