हवा आज तुम उसकी खुशबू लिए बह रही हो क्या

उसका हाल ए दिल तुम आज भी कह रही हो क्या
उसके घर , उसी सिद्दत से अब भी रह रही हो क्या

आज खिड़कियों  से उसकी सदाएं वापस आयी है
हवा आज तुम उसकी खुशबू लिए बह रही हो क्या

एक तेरे  छत पर आने से ये आईने  देखने लगते है
तुम इन चांद तारों पर कहर बनके ढह रही हो क्या

एक दीदार ए आस मे तेरी खिड़की देखता रहता हूँ
तुम   चोरी  से अब भी इस दिल मे रह रही हो क्या

यूं तो एक अरसा हो गया , उनसे बिछड़े हुए इलाही
धड़कने तुम अब भी उनके सितम सह रही हो क्या

एक तुम्हारे जाने के बाद किसी के लिए खुला नही
मेरे   दिल मे  तुम  काफिरो   की तरह रही हो क्या







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