बनारस सा इश्क़


नफा नुकसान दोनों ही  बराबर के हिसाब में आये थे
कांटे जितने थे सब छुप कर किसी गुलाब में आये थे

ये हवा  जो आना  तो उनकी  कुछ खबर लेते आना
कल  रात ना  जाने  क्यों वो हमारे ख्वाब में आये थे

पढ़ने वाला भी उनके दीदार का तलबगार बन गया
इतनी दफा वो ग़ज़ल बनके मेरी किताब में आये थे

सुख़नवरों  की  क़लम  भी हरफ़-ए- माज़ूर  हो गई
कल चौंधवी की रात थी और वो शबाब  में आये थे

नज़रे सजदे में थी और होश  भी ख्वाब में आये थे
वो बनारस  सा इश्क़ लिए  मेरी  शराब  में आये थे

हमने सोचा था की कुछ तो शिकायत होगी उनसे
पर शेर सारे उनकी सिफरिश के जवाब में आए थे

शाम-ए-तन्हाई में भी हम जलाते रहे चराग़े-वफ़ा,
और वो हर बार नए नए रंग-ओ-शबाब में आए थे

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