मैं अब क़ज़ा के पास हूँ
तेरा होना हकीकत है, मैं बस एक एहसास हूँ
तू बहार ए गुलज़ार है मैं अब क़ज़ा के पास हूँ
तू जैसे फरिश्तो की पूरी हुई ख्वाहिश सी
और मैं काफिरों की बस एक अधूरी आस हूँ
तू आसमां की रोशनी सी, मैं ढलती हुई शाम हूँ
तू दुआओं का दौर है, मैं टूटती एक फरियाद हूँ
तेरे बिना वीरान है ये मेरी ज़िन्दगी की राहें
तू कारवां की रौनक, मैं बिखरा हुआ इक प्यास हूँ
तेरी हँसी जैसे मिसरे हो हर्फ़ ए ग़ज़ल के
मैं दर्द-ए-हिज्र में डूबी हुई इक उदास साँस हूँ
तू चाँदनी सा नूर है, चाँद तारो को रोशन कर
मैं अंधियारे सफर में खोया हुआ एक अल्फ़ाज़ हूँ
तेरी हकीकत रोशनी, मैं ढलती हुई रात हूँ
तू सजी महफिलों का नूर, मैं तन्हा कोई बात हूँ
तू सहर की ताजगी, मैं धूप में जला साया
तू करम की बारिशें, मैं सूखा हुआ ज़ज़्बात हूँ
तेरा हर लफ्ज़ नग़मा है, मैं टूटी हुई तान हूँ
तू बहारों की नज़ाकत, मैं पतझड़ की सौगात हूँ
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