ग़ज़ल बनाने आएंगे
ताक़ ए शमशीर की ज़द में अब ये जमाने आएंगे
मीर ग़ालिब फिर से इन पर ग़ज़ल बनाने आएंगे
है इतनी महंगी उनके होंठो की मुस्कुराहट इलाही
बस एक दो खरीदी में मेरे पुरखो के खजाने जाएंगे
खुदा भी बेसुध हुआ पड़ा है हुस्न ए दीदार के बाद
अब घायल फरिश्ते किसे अपना हाल सुनाने जाएंगे
उसने कहो जरा अपनी खिड़की खोलके रखें बावरें
हम चांदनी रात में इन होंठो की लाली चुराने आएंगे
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