बातें जो हुई ही नही
बाते जो कभी हुई ही नही वो भी बतानी पड़ती है,
उसके वफ़ा की कहानियां कुछ ऐसे सुनानी पड़ती है
उसकी याद की तलब ही इतनी गहरी है
जब भी आती है, हमे दो चार सिगरेट जलानी पड़ती है।
दो कश अंदर फिर बाहर बादलों का हुजूम,
कलेजे की आग हमे कुछ ऐसे भी बुझानी पड़ती है
कभी मैखाने का रुख, तो कभी धुएं से यारी,
क्या बताएं किस कदर उसकी बातें भुलानी पड़ती है
सुनो मुझसे कोई राज-ए-गुफ्तगू ना करना कभी
वो हँस कर पूछे तो फिर मुझे सारी बातें बतानी पड़ती है
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