बातें नही करके मुझसे वो कुछ संवर गई थी
बातें नही करके मुझसे वो कुछ संवर गई थी
सखियों में रहने लगी थी,कुछ निखर गई थी।
उसकी आंखों में बसने की मजाल नही मेरी
फिर भी कल नजरे मिली तो वो ठहर गई थी।
मैं एक यात्री सा सामान लिए खड़ा रह गया
वो मुसाफिरों को लिए रेल सी गुजर गई थी।
मैं ही उससे रूठ कर आवारा नही फिरता हूं
नाराज़ होकर वो भी कब अपने घर गई थी
नजरे उसकी एक शिकायती लहजे में तो थी
पर अपनी गुमान ए बुलंदी से वो उतर गई थी
मेरी महफिल में कहा कोई ठहरता इलाही
रिंदो की टोली आज अल्लाह के घर गई थी।
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