शराफत नही आती
एक उसके सिवा किसी और की इबादत नही आती
उसे भूल जाने की भी दिल से इजाजत नहीं आती
बस यही फलसफा है, सब ए आरजू तेरी कुर्वत का
उन्हे मोहब्बत नही आती,हमे शिकायत नहीं आती
अब वो मेरी आगोश में आए और मैं बहक न जाऊं
छोड़ो यार मुझको इतनी भी शराफत नही आती
चाहूं तो तुम्हारी तरह मैं भी शिकायते करता फिरूं
पर क्या करू मुझे मोहब्बत में बगावत नही आती
तुम्हे खुदा ने जरूर फलक से भेजा है हमारे लिए
वरना जमीं के वाशिंदों में ऐसी नजाकत नही आती
बादशाह मैं भी बन सकता था इस गद्दी का हासिद
पर मुझे तेरी तरह नफरत की सियासत नही आती
सारे शहर ने मनाई है ईद उसे छत पे देखने के बाद
इस पर भी ना जाने क्यों कोई कयामत नही आती
उसकी चाहत में तो कुछ ऐसे गिरफ्त हुए है इलाही
नींद तो बहुत आती है पर सुकूं ए तरावत नही आती
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