मेरे कान्हा जी

कृष्ण  हर  काया में है,  कृष्ण ही हर माया में है
गोकुल के रज रज में तो बस कृष्ण ही समाते है
राधा के त्याग में है और रुक्मणी के सुहाग में है
मीरा को भी तो  सिर्फ केवल कृष्ण ही सुहाते है

काल के अकाल  नंदलाल  की  चाल है कमाल
बांस की बाँसुरी बजा  विश्व को बावरा बनाते है
छछिया भर छाछ की खातिर छम छम नाच के
अहीर की छोरियों  संग सारे विश्व को नचाते है

कृष्ण के कर कमलों के कण काश मिल  जाये
कीचड़ की इस काया के सारे कष्ट कट जाते है
गोकुल की गायो के ग्वाले है गिरधरगोपाल जी
पाठ नीती सरलता का ब्रम्हा को भी सिखाते है

प्रेम के भी सार है ये प्रेमियों के भी संसार है ये
राधा को रास में रंगाये रंगों से रास ये रचाते है
सुंदरता के श्रुंगार है ये विष्णु  के अवतार है ये
मुरली की मोहक तान मोहन होंठो से सुनाते है

नटवर  नंदलाल  के नैन को निहारती है राधा
नित्य नवनीत के नयन में कान्हा ही समाते है 
देख देख दोनों  की मन  मोहनी  सी छवि को
सुर नर मुनि गंधर्व सारे के  सारे  ही  हर्षाते है






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