उसकी तस्वीर
जो नामुमकिन सा है उसकी कोसिस सौ बार करता हूँ
अपने पर्स में रखी उसकी तस्वीर का दीदार करता हूँ
कभी न कभी तो दिखेगी वो अपने घर की बालकनी पे
बस इसी उम्मीद में उसकी गली से मैं हरबार गुजरता हूं
उससे कुछ भी कहने को हमारे लफ्ज ही नही निकलते
बस उसकी तस्वीर से ही मोहब्बत का इज़हार करता हूँ
वो सोचती है कि वक्त ने सारे एहसास खत्म कर दिए
उस बुद्धू को क्या पता अब भी मैं उसी से प्यार करता हूँ
उसने अपनी तिजोरी मेरे दुआओ की दौलत से सजाई
मैं आज भी अपने गुल्लक उसके दिए गम से भरता हूँ
कोई उस नादान को बताओ जहां छोड़के गई थी मुझे
उस हाशिये पर मैं आज भी उसका इन्तेजार करता हूँ
शायद भूल गयी होगी वो मुझको दिल्ली में रह कर
पर उसकी यादो में खुद को अक्सर बेकरार करता हूँ
देखता हूँ मैं उसकी तस्वीरें फेसबुक और इंस्टा पर भी
मैसेंजर पे उसे hi का मैसेज भी कभी कभार करता हूँ
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