किरदार

कहानी तो एक ही थी तुमने सिर्फ किरदार न समझा
धुन तो फिर वही बजी तुमने उसकी झंकार न समझा
वफ़ा जफ़ा मोहब्बत तिजारत सब है मेरी इस किताब में
खुली है जिंदगी तेरे लिए, तूने बस अधिकार न समझा


क्या खोये अब इस महफ़िल में,हाँथो मे कुछ बचा ही नही
किन रंगों के संग यारी कर लूं,इनका रंग मुझे रचा ही नही
बा हैसियत किया खूब किया रंगों का सौदा भरे बाजार में
वो कारोबारी मुनाफा  मेरे गुल्लक में  कभी सजा ही नही 



कोई उमर नही होती जज्बातों की, ये तो बस बनते है बिखर जाते है
जैसे साखों पर पत्ते निकलते है, पतझड़ मे टहनियों से झर जाते है
खुसबू ए गुलशन बडी नासाज सी लगती है जब से भरम टूटा है
खुद ही गुलिस्ता बसाते है,मुरझाए गुलो संग खुद ही सवंर जाते है


रिश्तों का फूल यतीम सा है ,इन बागानों से कोई वसीला नही 
मकान तो है अपना, लेकिन यहां अपनो का कोई कबीला नही
अकेले से रहते है इस भरी भरी सी दुनिया के शोर शराबे में
तनहाईयों के दौर में जश्न ए महफ़िल से ज्यादा कोई जहरीला नही


तेरे ख्वाबी वादों का इस हकीकत संग कोई रिश्ता नही निकला
कसौटी के इस बाजार में इन वादों सा कोई सस्ता नही निकला
जन्नत के ख्वाब दिखाने वाले जहन्नम के रास्ते पर ले ही गए
दुनियादारी की लहरो में कूदे तो, पर इनका पस्ता नही निकला


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