अखबार

देखो ये लकीरी कीड़ा अब बिना लकीर के चलता है
फकीरी का करोबार भी बिना फकीर के चलता है
अखबार में छपी इन सुर्खियों का बुरा मत मान, 
ये तो वो धंधा है जो अब बिना जमीर के चलता है


दंगो की कहानी अखबारों की हिस्सेदार लगती है
ये सुर्खिया साहेब के महलो की किरायदार लगती है
कौन कहता है मुल्क जलाया सिर्फ सियासतदारों ने
गौर से देखो खबरें भी बराबर की जिम्मेदार लगती है 


उछाल के पगड़िया सबकी अपनी बाजार चलाते है
रोजगारी का ये धंधा घरों में बैठे बेरोजगार चलाते है
अपनी रूह भी गिरवी रख आकाओ की थाली में
ये चोर लुटेरे उचक्के कपटी यहाँ अखबार चलाते है


पन्ने पन्ने पर इसके अब नफरतो का पैगाम रहता है
इन सुर्खियों का इरादा फसादी कत्लेआम रहता है
सहाफियों की बुजदिली बनी जमात जल्लादो की 
होंठो पर इनके जहरों का जखीरा सरेआम रहता है


तेरी ये सियासी जुबान हमें जानी पहचानी लगती है
खबरों के बाजार मेंतेरी दुकान बड़ी पुरानी लगती है
मत ढोल पीट तू अपनी चवाँन्नी सी ईमानदारी का
तेरे अखबारों की सुर्खियां अब हमे बेमानी लगती है


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