तानाशाही वजीर
जो हो पाए मुमकिन तो सामने मेरे मुझसे नज़रे मिला कर चल
जो दामन तेरा भीगा हो खून से तो इन नज़रो को झुका कर चल
गर लड़ सकता है जुल्मो के खिलाफ तो ही कारवां से जुड़ना
जो तू भी कुन रियाज़ी है तो अपने जमीर को सुला कर चल
बंदिशे तेरी ये मेरे हौसलो की राह को यू ही अब मोड़ नही पाएंगी
नफरते तेरी मेरे मोहब्बत के असियां को यू ही अब तोड़ नही पाएंगी
तेरी ये ताकत सिर्फ रोक सकती है मेरी सांसो की दौड़ को
मेरी खुद्दारी मेरे इन जज्बातो की इमारत को छोड़ नही पाएंगी।
चल कर देख क्या हश्र हुआ तेरे किये हुए गुलाबी वादों का
तेरे चुनावी जुमलो और हवा में इतराती रंग बिरंगी यादों का
दुनिया का अहिंसा का संदेश देकर तूने खूब नाम कमाया यहाँ
हश्र देख ले आकर तेरे तख्त के नीचे वाले खून के बांधो का।
पीठ वाला खंजर नही मैं सीने वाली तलवार लाया मेरी हैसियत की
बेनकाब हो गया तू इस दुनिया में,क्या बात करें तेरी असलियत की
वजीर बना, तुझे तख्त पर बैठाया करने वतन की रखवाली को
अब मैं खड़ा देख रहा बर्बादी वतन में रूहदार मेरी कैफियत की।
तेरे महंगे महंगे गुम्बद, ये तेरी अमीरी की नुमाइश बहुत देखी
खुद की गरीबी को बेचने की तेरी जोर आजमाइश
बहुत देखी
तेरी खामियों का टोकरा ढोते भी जिसकी चमक फीकी न हुई
वो पहला वजीर बनने वाली तेरी अतरंगी फरमाइश
बहुत देखी
बेशक ही तुझे अपने तख्त पर खुद से ही ज्यादा गुरूर है
फिर भी तेरी चाह वाली मंजिल अभी तुझसे बहुत दूर है।
नासमझ समझ कर ही हर बार अनदेखा किया तेरी बेईमानी को
वरना तुझको ईमानदारी समझाने का माद्दा भी हम में भरपूर है।
जो तू वजीर है इस मुल्क का तो अब सब कुछ सच सच बता दे
कहाँ छुपाई तूने इसकी खुशियाँ उस मिल्कियत का भी पता दे
जम्हूरियत के उस मंदिर का भी तुझको अब कोई लिहाज़ नही
जो खाई तूने मंचो से सरेआम,उन कसमो का कोई फ़र्ज़ चुका दे।
रखवाली तेरी चौकीदारों वाली है, फिर भी क्यो उजड़ रहा है वतन।
भाईचारे वाले फूल से महकने वाला क्यो वीरान पड़ा है ये चमन।
नज़रे तुझसे जो पूछती है सिर्फ मुझको उन सवालों का जवाब दे।
क्यो मस्जिदे कब्र खोद रही, क्यो मंदिरों में बिक रहे है कफन।
तुझसे टकराकर बेशक घोंसला मेरा तिनका तिनका बिखर जायेगा
मगर हैवानो की जमात में तेरा चेहरा साफ साफ निखर आएगा
ज्यादा गुरूर न करना अपनी इस पल दो पल की वजीरियत पर
तवानायी का जो एहसास आज तुझमे है ,कल वो घूम कर इधर आएगा
आवाम की हमदर्दी खत्म करने का एक तुगलकी फरमान आया वजीर का
सरेआम जो बेचता अपनी फुफलिसी, आदेश है आया उसी फकीर का
आंखे बंद चल रहे हैं सब अब तो उसी जुमलो को फिज़ाओ में
क्या उम्मीद करें किसी से सच की ,क्या भरोसा करें बिक चुके जमीर का
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