भारत माँ का अनकहा दर्द
मतवाला रहे जो अपनी धुन में,मैं वो ही कबीर हूँ
दाम न हो जिसके बिकने का मैं वो ही जागीर हूँ
जिसको नकारा गया सदियों से ही लूटा गया
उस बिलखते इंसानियत की मैं बेबस सी तस्वीर हूँ
मेरी अस्मत की नीलामी सियासत तो करती रही
बैठ कोने में सिसकियां माँ भारती भी भरती रही
मेरे हर एक ख्वाब को तोड़ा गया यूँ मरोड़ा गया
मेरी खुद्दारी भी आहे भरती पल पल में मरती रही
ऐसे घावों से घायल मैं भाईचारे का एक शरीर हूँ
उस बिलखते इंसानियत की मैं बेबस सी तस्वीर हूँ
मेरे आशियाने को उजाड़ा एक चूक से
मेरे अपने मारते है अपनो को बंदूक से
हाल पर मेरे हँसता जहाँ ये बस यूँ ही
मैं तड़पता रहा चैनों सुकून वाली भूख से
सियासत का निवाला बना मैं नया वाला फकीर हूँ
उस बिलखते इंसानियत की मैं बेबस सी तस्वीर हूँ
मैं तो बस वादों पर जीता रहा यकीन करता रहा
बात भाईचारे की थी मैं अपनो से ही लड़ता रहा
इस कदर दूर तलक थी फैली ये मेरी नादानियां
प्रेम के इस दौर में नफरत ही नफरत मैं करता रहा
जिसकी जन्नत लूट चुकी मैं वही अभागा कश्मीर हूँ
उस बिलखते इंसानियत की मैं बेबस सी तस्वीर हूँ
मर रहे अपनो का किस्सा,दंगो की एक मैं कहानी हूँ
समर में जो बिखर जाए वो टूटी हुई मैं जवानी हूँ
लकीरो में रह कर जो बन्द हांथो से फिसल जाता है
हा वही खारे समुन्दर का मैं बहता हुआ सा पानी हूँ
खुद गल रहे इस शाह का मैं खामोस एक वजीर हूँ
उस बिलखते इंसानियत की मैं बेबस सी तस्वीर हूँ
चमक मेरी धूमिल किया बुतो के इन नवाबो ने
कहानी भी मिटाया है भाटो की इन किताबो ने
शख्शियत भी मेरी बदल डाली तेरे चुने वजीर ने
मेरे चेहरे का नूर ढक रखा है काले इन हिजाबो ने
खिंच न सकी इस पशाने पे वही अधूरी लकीर हूँ
उस बिलखते इंसानियत की मैं बेबस सी तस्वीर हूँ
मेरी मिट्टी को गंदा किया तूने मेरी फसलें जलाई
जलाया उस इबादत को जिसने मोहब्बत जगाई। आजर्दाह सा कर दिया मेरे सुनहरे से इतिहास को, बीज नफरत का बोया दिलो में है खाई बनाई। हा उसी अधूरे सपन की मैं अधूरी सी ताबीर हूँ। उस बिलखते इंसानियत की मैं बेबस सी तस्वीर हूँ
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