आज विकास दुबे को जिस तरह हीरो बनाया जा रहा है वह लाजमी है , क्योंकि इसके पहले फूलन देवी जी के हत्यारे को भी हीरो बनाया गया। सरेआम शेर सिंह राणा नामक हत्यारा अपनी जाति के नाम पर हीरो बनता रहा। जेल से फरार होने के बाद भी स्वजातीय सभाओं में भाषण देता रहा। पृथ्वीराज चौहान के अस्थियों को लाने के ढोंग का प्रपंच रचने वाले शेर सिंह राणा के ऊपर अगर अब फिल्म बनने जा रही है , तो फिर विकास दुबे का हीरो बनना लाजमी है । क्योंकि हम और आप लोग जाति के नाम पर इन हत्यारों और आतंकवादियों को हीरो बना देते हैं।
जिन माँओ के लाल चले गए उन माँओ के आंसू पोछने तक के बराबर की हैसियत नहीं बची है यूपी पुलिस की ,जिन औरतों के सुहाग उजड़ गए उस सुहाग को सम्मान देने तक की हैसियत नहीं बची यूपी पुलिस में । आठ शहीदों की लाशों को सिर्फ राष्ट्रीय झंडे के साथ सलामी दे करके जला देना या दफना देना ही सम्मान नहीं होता है । यह बात यूपी पुलिस को समझनी होगी , की शहीद जवानों का असली सम्मान तो तब होगा जब यूपी पुलिस के जवान उस खतरनाक आतंकवादी विकास दुबे को सरेआम सड़क पर घसीट लाये, उसे और उसके साथियों को सरेआम गोली मारकर अपने शहीद हुए आठ जवान भाइयों की मौत का बदला ले। लेकिन यूपी पुलिस को ऐसा करने के लिए नवनीत सिकेरा जैसे जांबाज ऑफिसर की जरूरत है, जो प्रदेश के पुलिस की कमान संभाले और ऐसे अपराधियों को साफ कर एक बार पुनः पुलिस का इकबाल बुलंद करें।
उत्तर प्रदेश पुलिस के आठ जवानों को सरेआम एक अपराधी गोलियों से भून कर शहीद कर देता है , और 15 से ज्यादा जवानों को घायल कर देता है । पुलिस को घेर कर मारने की इतनी सॉलिड प्लानिंग करने वाला आतंकवादी विकास दुबे किस राजनीतिक रसूख के तहत अपने आपको बचाता आया है यह बात सबके संज्ञान में होते हुए भी अनजान बनी हुई है। इस इनकाउंटर के तीन- चार घंटे बाद ही कुछ तथाकथित राष्ट्रवादी पत्रकार आईटी सेल द्वारा बनाए गए समाजवादी पार्टी के पोस्टर पर विकास दुबे और उसकी बीवी के फोटो को वायरल कर के चलाना शुरु कर दिए । थोड़ी जांच हुई तो पता चला कि वह पोस्टर असल में बहुजन समाज पार्टी का था। जिसे एडिट करके सपा का बनाया गया । और प्रस्तुत किया गया। पोस्टर को अगर ध्यान से देखा जाए तो वह नगर पंचायत या जिला पंचायत चुनाव का पोस्टर लग रहा था, जो दीवार पर चिपका हुआ था ।
मजे की बात यह है कि उत्तर प्रदेश में नगर पंचायत चुनाव 2017 नवंबर में हुए थे तो तब से लेकर अब तक एक पोस्टर दीवार पर चिपका रह गया है,और खराब भी नहीं हुआ है ना कमाल ? अब सवाल यह आता है कि अगर बसपा का था तो उसे सपा का क्यों प्रस्तुत किया गया ।तो उसका सीधा जवाब यह है कि पिछले एक महीने से परम आदरणीय सुश्री बहन जी का कथित राष्ट्रवादी पार्टी को लेकर जो रवैया और जो बयानबाजी रही है, उससे यह साफ संकेत है कि मिलन की घड़ी आने वाली है । तो जब जिससे मिलन की घड़ी आने वाली है भला उसके ऊपर कोई दोष क्यों मढ़े । दोष तो उसके ऊपर मढ़ा जा सकता है ,जो दुश्मन हो या जो रास्ते का कांटा हो ।
खैर मैं यहां पर यह बताने नहीं आया हूं कि उस आतंकवादी विकास दुबे का संबंध सपा से था या नहीं था । वह पोस्टर गलत था या नहीं था । मैं जो जानकारी देना चाह रहा था , उस जानकारी के लिए उस पोस्टर का और समाजवादी पार्टी से उसके संबंध की सच्चाई जानना जरूरी है । क्योंकि इस पोस्टर को दिखाकर और समाजवादी पार्टी से संबंध को दिखाकर असली में जिससे उस आतंकवादी का संबंध है जिस नेता से उसको सपोर्ट मिल रहा है उसको बचाने की कोशिश इन दलाल पत्रकारों द्वारा की जा रही है। समाजवादी पार्टी के नाम के छपे हुए पोस्टर को जब कुछ दलाल पत्रकारों ने फैलाना शुरू किया, तो यह बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी की विकास दुबे समाजवादी पार्टी का नेता था। और इन दलाल पत्रकारों ने विकास दुबे को "विकास यादव" तक कह दिया
पुलिसिया खौफ को अपने जूते पर रखकर आठ जवानों को शहीद करने वाले विकास दुबे के लिंक को बढ़ा चढ़ा कर पत्रकारों ने सिर्फ और सिर्फ समाजवादी पार्टी के साथ ही दिखाया । लेकिन जब असलियत आनी शुरू हुई तो टीवी चैनलों से मुद्दा ही गायब हो गया। दोगले और दलाल पत्रकारों ने विकास दुबे का नाम ही लेना बंद कर दिया। जैसे-जैसे यह मामला खुलता गया। विकास दुबे का भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के साथ सानिध्य सर्वजनिक होता गया।यूपी के शिक्षा मंत्री से लेकर के राजस्व विभाग के कई बड़े अधिकारी इसके मेहमान नवाजी में आते रहे हैं ।
प्रोपेगेंडा दिखाने के लिए विकास दुबे के जिस घर को तोड़ा गया वह उसका पुश्तैनी मकान था।जिसमें वह कुछ ही दिनों के लिए रहने आया था । उस की कुल संपत्ति में उस पुश्तैनी मकान की हैसियत नाखून के बराबर भी नहीं रही है । सरकार जो मकान गिरा कर के विकास दुबे के खिलाफ कार्यवाही का दम भर रही है ,वह उसकी अथाह संपत्ति का एक बहुत ही छोटा सा हिस्सा है। और कोई ये भी बताए कि सरकार क्या साबित करना चाहती है कि आठ सिपाहियों की मौत के बदले एक मकान गिरा कर इंसाफ ले लिया गया है ?
पुलिस को लेकर पुलिस के ही आला अधिकारी इतने बड़े लापरवाह हुए जिसकी कोई सीमा ही नहीं है। डीएसपी रैंक के अधिकारी तक शहीद हो गए , लेकिन यूपी पुलिस के कान पर जूं तक नहीं रेंगी है। इसी बीच दो बड़े खुलासे भी हुए एक तो यह कि विकास दुबे को 2017 में पकड़ लिया गया था , लेकिन कुछ ही समय बाद उसे छोड़ दिया गया। और उत्तर प्रदेश सरकार ने उसके केस को हायर कोर्ट में ले जाने की भी तकलीफ नहीं उठाई।उस समय विकास दुबे के बयान को अगर देखा जाए तो वह सीधे-सीधे भाजपा विधायक और भाजपा के नेताओं का नाम लेता है। और बताता है कि यह नेता और विधायक कैसे उसके रहनुमा बने हुए हैं । और कैसे उसके हर एक काम में उसका समर्थन कर रहे हैं।
एक थानेदार को थाने में चप्पल से पीटने और उसकी सर्विस रिवाल्वर उसी के मुंह में डालने वाले विकास दुबे पर तब भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। यह सवाल उठता है कि आखिर पुलिस महकमा विकास दुबे पर इतना मेहरबान कैसे है। बिल्लौर के शहीद क्षेत्राधिकारी पुलिस देवेंद्र मिश्रा ने उस समय भी कानपुर के सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस को पत्र लिखकर बताया था कि एसएचओ विनय मिश्रा किस तरह से विकास दुबे की खातिरदारी में लगा हुआ है । और वह किस तरह से विकास दुबे के केस को कमजोर करने के लिए धाराओं में हेरफेर कर रहा है।
देवेंद्र मिश्रा ने पत्र में यहां तक कहा था कि एसएचओ विनय मिश्रा खुले तौर पर विकास दुबे का रक्षण कर रहा है । और यह आने वाले समय में बहुत ही खतरनाक और भी बीभत्स हो सकता है। हो सकता है कि यह पुलिस के लिए एक बड़ी मुसीबत भी बन जाए । तब के के लिखे पत्र को यूपी पुलिस के महकमे ने शायद गंभीरता से नहीं लिया, या उन्हें गंभीरता से लेने नहीं दिया गया। विकास दुबे अपनी मनमानी करता रहा, और विनय मिश्रा उसकी सेवा में लगा रहा। शहीद देवेंद्र मिश्रा की बात को अब सही साबित होना पड़ा जब उनके सहित आठ पुलिस वालों की शहादत हुई।
इसके बाद जैसे ही वह पत्र सार्वजनिक हुआ। देवेंद्र मिश्रा के लिखे हुए पत्र का हो हल्ला शुरू होते ही कमाल हुआ।अपराधी विकास दुबे के साथ पुलिस की गलबहियों को लेकर शुरू हुए विवाद की आग पर पुलिसवालों ने ही राख डालना शुरू कर दिया । पुलिस कर्मचारियों की संलिप्तता पर जो चिट्ठी क्षेत्र के सीओ देवेंद्र मिश्र ने लिखी थी, वह पत्र और उससे जुडी फाइल ही गायब हो गयी । कानपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक दिनेश कुमार ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा है कि पत्र के गायब होने के मामले की जांच की जाएगी। एसपी साहब लगे हाथ यह भी बता देते कि विकास की खातिरदारी में और क्या-क्या कदम आपकी पुलिस उठाने वाली है। पुलिस की आंखों का पानी इतना मर चुका है कि अपने साथियों की शहादत पर भी उनकी आंखें नम नहीं हो रही है। बल्कि वह उस उसके हत्यारे की सेवा और उसको बचाने में अभी भी लगे हुए हैं।
देवेंद्र मिश्र ने विकास दुबे पर कड़ी लगाम लगाने का अभियान छेड़ दिया था। पड़ताल में पता चला था कि विकास दुबे को शरण और संरक्षण देने के मामले में चौबेपुर थाना का प्रभारी विनय तिवारी की भूमिका काफी संदिग्ध थी। लेकिन पूरा का पूरा थाना इस मामले में पूरी संदिग्ध हालत में दिख रहा है। देवेंद्र मिश्र ने कानपुर के तब के एसएसपी अनंत देव तिवारी को एक पत्र लिखा था। इस पत्र में पुलिस कर्मियों की भूमिका और उनकी आपराधिक हरकतों पर संज्ञान नहीं लिये जाने से होने वाली दिक्कतों पर चर्चा की गयी थी। इशारा साफ था कि पुलिस को इस तरह के पत्र पर किसी भी तरह की कार्यवाही करने से साफ साफ मना किया गया था। या तो कार्यवाई की मनाही एस पी साहब की तरफ से नीचे के लोगों के लिए थी , या ऊपर के लोगों की तरफ से ये मनाही एसपी साहब के लिए थी । यह तो उस समय के तत्कालीन एसपी और सरकार के कुछ नेता मंत्री भी ही बता सकते हैं।
लेकिन जब बिकारु हत्याकांड के मामले की परतें खुलने लगीं, तो चौबेपुर एसओ के खिलाफ किये गए उस पत्राचार की फाइल ही गायब है। फाइल न सीओ दफ्तर में है और न ही एसपी ग्रामीण और एसएसपी कार्यालय में। इसकी जानकारी होने के बाद कई और गंभीर सवाल उठने लगे हैं कि आखिर पत्राचार की फाइल गायब कैसे हुई? किसने की? और क्यों की? बहरहाल, अब इस मामले में एसएसपी ने जांच के आदेश दिये हैं। लेकिन यह जांच अब कौन करेगा, यह मामला गफलत में है। इसके बीच अब तो यह पक्का हो गया है कि ना रहेगी बांस ना बजेगी बांसुरी। यानी जब फाइल ही नहीं रहेगी तो अपराधी के ऊपर मुकदमे कैसे हो सकता हो , कि कल को पुलिस यह बोल दे कि पुलिस गफलत में विकास दुबे को पकड़ने गई थी और खुद का ही इन काउंटर कर बैठी।
हैरत की बात है कि कानपुर के एसएसपी दिनेश कुमार का कहना है कि यह पत्र उनके अथवा उनके किसी भी अधीनस्थ कार्यालय में मौजूद ही नहीं है। एसएसपी बताते हैं कि मारे गये सीओ का पत्र सीओ कार्यालय ही नहीं, एसपी ग्रामीण और एसएसपी कार्यालय में नहीं मिला है। दिनेश कुमार का कहना है कि अभी यह भी तय होना है कि यह पत्र सही है या गलत। इसकी गहनता से छानबीन की जा रही है। जो तथ्य सामने आएंगे, उस आधार पर कार्रवाई की जाएगी।
शहीद बिल्हौर सीओ देवेंद्र मिश्र ने मार्च में चौबेपुर एसओ विनय तिवारी के खिलाफ तत्कालीन एसएसपी अनंत देव को पत्र लिखा था। जिसमें बताया गया था कि रंगदारी के केस से एसओ ने विवेचक से दहशतगर्द विकास दुबे का नाम बाहर करवा दिया है। अनंत देव तिवारी वर्तमान में एफटीएफ में डीआईजी के पद पर तैनात हैं।
सूत्र बताते हैं कि विकास दुबे के मामले में एसएसपी आनंद देव तिवारी को लिखा गया सीओ के पत्र की फोटो दिवंगत सीओ के मोबाइल में था। उनकी बेटी ने सोमवार को ये पत्र मीडियाकर्मियों को जारी किया था।
देवेंद्र मिश्रा के इस हौसले और उनकी बेटी के इस जज्बे को सभी लोगों की तरफ से नमन है । जो उन्होंने भरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में यूपी पुलिस की नाकामी और उनकी गुंडों से मिलीभगत का भंडाफोड़ किया और इसी प्रेस कांफ्रेंस के बाद से ही मीडिया ने इसे वायरल किया था। जिसके बाद से तत्कालीन एसएसपी अनंत देव पर कई सवाल उठने लगे हैं। इस पर जब बवाल शुरू हुआ तो पुलिस महानिदेशक कार्यालय ने मामले का संज्ञान लिया और कानपुर जोन के एडीजी जेएन सिंह को मामले की जांच दी गई है।
गौरतलब है कि इस मामले में प्रदेश के एक मंत्री ब्रजेश पाठक की फोटो दुर्दान्त अपराधी विकास दुबे के साथ वायरल होने के बाद से अब इस पत्र का लापता हो जाना अपने आप में एक आश्चर्यजनक घटना है। इससे साबित होने लगा है कि विकास दुबे और राजनीति के साथ ही साथ पुलिस के आला अफसरों के रिश्ते कितने गहरे और घनिष्ठ हैं। और यह तब और भी ज्यादा मजबूत हो जाता है जब विकास दुबे के घर से उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग की सफेद अंबेसडर निकलती है । और नंबर जांचने पर पता चलता है कि वह गाड़ी सरकारी है, और राजस्व विभाग की है । इसके अलावा और भी कई गाड़ियां बरामद की गई लेकिन सारी गाड़ियों के नंबर प्लेट हटा दिए गए ताकि गाड़ियों की सच्चाई लोगों के सामने ना आ सके।
हो सकता हो कि कुछ दिनों में डीएसपी देवेंद्र मिश्रा द्वारा लिखे गए पत्र को फर्जी घोषित कर दिया जाए या। विकास दुबे को राष्ट्रीय हीरो बनाकर घोषित किया जाए , यह मुमकिन भी हो सकता है क्योंकि पहले की सरकार में हर बात पर जाति-जाति एंगल खोजने वाली मीडिया और तथाकथित ढोंगी साधु अब अपनी आंखें बंद कर धूनी रमाने बैठ चुके हैं। इस बात को कहने में कोई हिचक नहीं है कि उस समय शंकराचार्य ने यह कहा था कि यादव यादव के कारण मथुरा में रामवृक्ष नाम के गुंडे ने पुलिस क्यों को मारा। और आज जब विकास दुबे नाम के अपराधी ने सरेआम इतना बड़ा अपराध कर दिया तब किसी को जाती एंगल नहीं दिख रहा है ।
खैर कोई जातीय एंगेल दिखना भी नहीं चाहिए, यह लोकतंत्र के लिए बड़ी बेहतरीन चीज है। लेकिन एक जगह दिखा और एक जगह नहीं दिखा इसका मतलब कि सामने वाला अंधा बहरा गूंगा और लंगड़ा है । अगर अब भी यूपी पुलिस और उनके आला अफसरों की आंखों में थोड़ा भी पानी बचा है तो सबसे पहले उनको विकास दुबे के समर्थन करने वाले भाजपा विधायक भगवती शरण से लेकर के वहां के स्थानीय भाजपा नेताओं और नगर पंचायत जिला पंचायत अध्यक्षों को पकड़कर हवालात में डालना चाहिए ।
लेकिन इस पुलिस की इतनी कूवत नहीं है जो पुलिस बनारस में एक पुलिस वाले द्वारा भाजपा नेता को मास्क पहनने की सलाह पर पीटे जाने के बाद पुलिस वाले को ही लाइन हाजिर कर देती है। वह पुलिस किस मुंह से एक हत्यारे के समर्थक को पकड़ेगी ?
यूपी पुलिस का इकबाल अब एक कुएं में जा चुका है ,यूपी पुलिस के खौफ की कहानियां इतिहास बन चुकी है । यूपी पुलिस में अब सिर्फ बेगुनाहों को मारने की कूवत बची है। इनकाउंटर के नाम पर सिर्फ जितेंद्र यादव पुष्पेंद्र यादव और न जाने कितने यादवो का ही इनकाउंटर किया जा सकता है । जिनकी कोई भी आपराधिक इतिहास नहीं रहा है । इसकी जगह यूपी पुलिस अपने घर के ही भीवीषणो की वजह से अपने आठ आठ जवानों को खो देती है । उसके बाद भी उसे इस बात की जरा भी चिंता नहीं रहती, कि अब यूपी पुलिस के इकबाल का क्या होगा।
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