खोई काशिश

कहा गयी वो कशिश जो तेरी आँखों मे थी
कहा गयी वो फिकर जो तेरी बातो में थी
हम जरा सा बेगाने क्या हुए इस दुनियादारी से
कहा गयी वादों की वो डोर जो तेरे हाथों में थी।


बरामदे वाली शाम रोज एक नया पाशा बिछाती है
सूरज की लालिमा इसे मेरे पैमाने से मिलाती है
नाम काम ईमान सब डूब गया मेरा गिलास में
ढलती रोशनी भी अपने साथ हमे इसी में डुबाती है


ताउम्र ना किया तुझसे इन जफ़ाओं का कोई गिला
मेरी वफाओ का भी न मिला तुझसे कोई भी गिला
इस दर्द से टूट से रही है यूँ कतरा कतरा मेरी सांसे
जिंदगी खड़ा हूँ तेरे दर पर अब सुना दे कोई फैसला


दहलीज मेरी ख़ुशामदीदी के तेरे काबिल न हुई
एहसासों के बाजार में भी खुशियां हासिल न हुई
क्या गम मनाए ख्वाबो के बिखर जाने का हम
इनकी छाया भी माथे की लकीरो में शामिल न हुई


बामौसम इस बारिस ने भी मन को राहत ना दिया
यहाँ से चले गए वो चुपके से,कोई आहट ना किया
लुटा दिया जिन लोगो पर मैने ख्वाहिशो का सैलाब 
उनलोगों ने सैलाब से कतरा भर भी चाहत ना दिया


मन की प्यास बुझाई जो दरिया कोई ऐसा न मिला
जो रंग बिखेरे हवाओ में, फूल कोई ऐसा न खिला
हटा दिया जिसने मेरे जींवन की परछाई जमीन से
ऐसी रोशनी से भी मैं कर ना पाया कोई गिला।


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