जेबो में आशाएं
बंद हाथो में है कुछ सपने, हौसले भी सीने में भर आये है
जीत चमकती है आंखों से,भरी इन जेबों में अब आशाएं है
मंजिले चलकर राह दिखाती,जुनूनी मैंने ये जिगर पाए है
मायूषी सा कोई पौधा नही,मेरे उम्मीदो की फैली शाखाये है
चमक रहा मैं अपनी सिद्धि से मुझे दीपक तुम क्या दिखाओगे
सूरज सा जलते इस तेज़ को आंधियो से तुम क्या बुझाओगे
गुलिस्तां का नन्हा कोई फूल नही,मुझे इन अंगारो ने सींचा है
विजय तिलक जो चमक रही,माथे पर उसको हांथो से खींचा है,
ठोकर खा खा कर खड़ा हुआ अब गिरने का कोई शौक नही
खुद के हांथो बनाया मैने ,अब किस्मत के मिटने का खौफ नही,
जलते लोहे जैसे हिम्मत को इन अंगारों से तुम क्या जलाओगे
सूरज सा जलते इस तेज़ को आंधियो से तुम क्या बुझाओगे
ऊंचा उड़ने की फिदरत , गिर का उठने की मुझमे ताकत है
झूठो को बस्ती में हो खड़ा सच्चाई कहने की मुझमे आदत है
बढ़ता कर्मपथ पर,मुश्किलो की जंजीरों से मुझको कैसे रोकोगे
जीत आया मैं जिसको, उस पराजय में मुझको कैसे झोकोगे
सुनेगा जहाँ मेरी जीत को,नाकामियो के किस्से तुम क्या सुनाओगे
सूरज सा जलते इस तेज़ को आंधियो से तुम क्या बुझाओगे
मद्धम इन सांसो से पतवार बना,भवर से मैं निकल आऊंगा,
दिखा पराजय मैं तुमको मंजिल तक अपने अविरल जाऊंगा
बिखर कर जुड़ते है कैसे, अब मैं सारी दुनियां को बताऊंगा
मुस्किलो के पैरों में जंजीरे बांध, विजयी जश्न खूब मनाऊंगा
बनाई खुद की किस्मत मैंने, इसे माथे से तुम क्या मिटाओगे
सूरज सा जलते इस तेज़ को आंधियो से तुम क्या बुझाओगे
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