शाम को तीन बजे सेना के जवानों पर कायराना हमला होता है और लगभग एक घंटे में खबर पूरे देश में फैल जाती है। और यह बात कंफर्म कर दी जाती है कि लगभग लगभग तीस जवानों की मौत हुई है । उसी समय पांच बजे प्रधानमंत्री रुद्रपुर में एक रैली संबोधित करते हैं । शाम को पीयूष गोयल तमिलनाडु जाकर गठबंधन की एक मीटिंग को अटेंड करते हैं । अमित शाह कर्नाटक में एक रैली करते हैं। और वहां के लोगों को राम मंदिर बनाने का आश्वासन देते हैं। योगी आदित्यनाथ केरल में एक रैली करते हैं। जो कथित निष्पक्ष लोग दूसरों को इन लोगो को नौटंकियों पर सवाल उठाने को राजनीति बता रहे थे, वो लोग इन लोगो के पैरों में अपनी आत्मा तक बेच चुके है। ऐसे लोगो की संवेदनशीलता मर चुकी है।

रैलियों में घूम-घूमकर पुलवामा के गुनहगारों को सबक़ सिखाने वाली बात कहना, जमीन पर कोई एक्शन न लेना, सिर्फ जनता के सामने बड़ी बड़ी हांकना, " जो आग आपके दिल मे है वही आग मेरे दिल मे भी है " कह कर लोगो से दुबारा और ज्यादा आशीर्वाद मांगना , शहादत को राजनीतिक रंग देना नहीं है क्या? असम की एक रैली में अमित शाह ने कहा कि इस बार जवानों की कुर्बानी बेकार नहीं जाएगी, क्योंकि केंद्र में कांग्रेस की नहीं बीजेपी की सरकार है। क्या ये शहादत पर राजनीति नही हुई ?

नरेंद्र मोदी जी सरकार में हैं। देश के प्रधानमंत्री हैं।  सेना को आदेश बंद कमरे में दिया जाता है। सेना को दिए गए आदेश का ढोल नहीं पीटा जाता है। लेकिन आप ऐसा कर रहे हैं। क्या ये राजनीति नही है ?  और जिस फ्री हैंड की बात आप कर रहे है ना वो फ्री हैंड सेना को आर्म्ड स्पेशल फ़ोर्स पावर एक्ट 1991 के माध्यम से दे दिया गया।  हमारी सेना विवेकशील और धैर्यवान है । उसे अच्छे से पता है कि कब क्या करना है। लेकिन सेना के साथ को गयी वार्ता का ढोल और नगाड़ा पीटना क्या राजनीति करना नही है ?

अब अगर इसके जवाब में विपक्षी पार्टियाँ आपके झूट आपके स्टंटबाजी और आपके प्रोपेगेंडा के खिलाफ बोलना शुरू करेंगे , और आप को बेनकाब  करना शुरू करेंगी तो , आप कहेंगे की "ये राजनीति कर रहे हैं । ये दलगत सोच से उबर नही पा रहे ही। इनको देश से कोई लेना देना नहीं है"।  दरअसल आप सेना और शहादत की आड़ लेकर विपक्ष के सवालों और देश के असली मुद्दों से अब बचना चाह रहे हैं।

हां ये भी बात पूरी तरह सच है की शहादत का बदला आप से नहीं लिया जा सकता।  यकीन ना हो तो अपने रेल मंत्री का ट्वीट पर पढ़ लीजिये जिसमें वह लिखते हैं कि "बंदे भारत एक्सप्रेस का उद्घाटन करना ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आतंकवादियों को करारा जवाब है"।

14 फरवरी के दिन शाम को 3:15 पर पुलवामा में सीआरपीएफ के 74 ट्रकों का है एक काफिला गुजर रहा था।  जो 2500 जवानों को लेकर उनकी ट्रक नई पोस्ट पर जा रही थी।  इसी बीच एक कार ने ट्रक को ओवरटेक करते हुए विस्फोट किया और उस ट्रक में सवार सभी 40 जवान शहादत को प्राप्त हो गए।  और शहादत इतनी भयावह थी कि जवानों के शरीर भी सही सलामत नहीं बचे ।

यह बेहद मार्मिक और दिल को दहला देने वाली घटना थी। सारा देश रो रहा है,  इस घटना के ऊपर। जवानों की शरीर क्षत-विक्षत अवस्था में उनके घर पहुंच रही है । जरा सोचिए की जितनी तकलीफ घर वालों को जवान की शहादत की खबर सुनकर नहीं हुई होगी उससे कहीं ज्यादा तकलीफ घर वालों को उस जवान के शव की स्थिति को देखकर हुई होगी।

जब किसी भी को अपने किसी के मरने की खबर मिलती है तो वह बहुत रोता है ।  लेकिन जरा सोचिए कि उसके ऊपर क्या बीतेगी जिसको रोने भी रखने के लिए उस अपने की लाश भी नसीब ना हो।  यही हुआ सीआरपीएफ हमले में ।पूरा देश शहीदों की गम में डूब गया और हर तरफ से बदला और दोषियों को सजा देने की मांग होने लगी।

मैंने भी कुछ इसी तरह का मांग करने की कोशिश की।  मैंने भी हमले में शामिल लोगों और हमले के लिए जिम्मेदार लोगों और लापरवाही बरतने वाले लोगों और शहादत को छोड़ कर रैलिया करने वाले लोगों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए , तो मेरे कुछ तथाकथित दोस्त जो शायद मुझे बचपन से जानते हैं उन्होंने मेरी देश भक्ति और मेरी मंशा पर सवाल उठाने लगे।  मुझे इस बात का अफसोस नहीं है । आपको जो उठाना है जो लगता है आपको करिए । लेकिन यह याद रखिये की इस देश के संबिधान की वजह से जो अधिकार आपके पास है,  वही अधिकार मेरे पास भी है । और मैं इतना दावा करता हूं कि जितना इस्तेमाल आप अपने अधिकारों का कर सकते हैं ,उससे कहीं ज्यादा मैं अपने अधिकारों का इस्तेमाल करना जानता हूं।

मेरी भी कुछ चेतना उस हिसाब से उतना काम किया। मुझे भी जो लगा कि जो दोषी है या जो जिम्मेदार है उनके ऊपर कार्यवाही होनी चाहिए। लेकिन क्या कार्यवाही सिर्फ दोषियों के ऊपर और जिम्मेदारों के ऊपर होनी चाहिए ?  क्या कार्यवाही उन लोगों को पर नहीं होनी चाहिए जो इस मौके का राजनीतिक फायदा उठा रहे हैं।  या जो इस मौके को अपने वोट बैंक के लिए बनाने की कोशिश कर रहे है।  मैंने सरकार के साथ-साथ उन लोगों को भी जिम्मेदार ठहराया । जो हमले का इनपुट होने के बाद भी सुरक्षा नहीं बढ़ाये। और लापरवाही से काम किए । यह एक सीधा सटीक इंटेलिजेंस फेल्योर रहा है।

और इसमें सीधी सीधी गलती किसी और की नहीं बल्कि अपने जमाने के कथित पाकिस्तान में रह कर आए हुए जासूस अजीत डोभाल की है । क्या कभी किसी ने अजीत डोभाल से पूछने की कोशिश की कि जब इंटेलिजेंस की रिपोर्ट थी कि किसी भी तरह के डिप्लॉयमैंट से पहले एरिया को सेंसीटॉयज करना जरूरी है।  तो आपने उसे लिए कोई ऐसी डाइस क्यों नहीं करवाया ?

कैसे एक कार काफी देर से बीच में लगातार ओवरटेक करती हुई आ रही थी?  उस कार के ड्राइवर को कैसे मालूम था कि काफिले में जो चंद से ब्लड प्रूफ नहीं है उनमें से वह पांचवें नंबर की बस है ?

अजीत डोभाल के बेटे शौर्य डोभाल जो कि जेमिनी फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड में एक पार्टनर है । क्या आपको पता है की उस कंपनी में दूसरा पार्टनर कौन है  ? अगर नहीं पता तो मैं आपको बता दूं उस कंपनी में जो दूसरा पार्टनर है शौर्य डोभाल का वह है सैयद अली अब्बास । जो कि पाकिस्तानी बिजनेसमैन है।  क्या आपको यह बात गवारा नहीं लगती कि भारत की नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर जो कि भारत की सारी इंटेलिजेंस का हेड है,  उसका बेटा का बिजनेस पार्टनर पाकिस्तानी है  ?  क्या कभी किसी ने अजीत डोभाल से पूछने की कोशिश की की क्या अजीत डोभाल को नहीं लगा कि उनके बेटे का फायदा पाकिस्तानी एजेंसियां उठा सकती है ? या उठा रही होंगी ?  कैसे इतनी सटीक जानकारी आतंकियों के पास पहुंची ? क्या इन सवालो का जवाब अजीत डोभाल से नही लेना चाहिए ?

प्रधानमंत्री जो कि 2014 से पहले सेनाओं को लेकर के बड़े-बड़े बयान देते रहे।  घुसपैठ से लेकर के आतंकवादी हमले पर प्रधानमंत्री ने बड़े-बड़े बयान दिए । तो क्या प्रधानमंत्री से सवाल पूछना नहीं बनता है कि,  आपने जो बयान दिए थे अब वह बयान का क्या  हुआ ?  जो प्रधानमंत्री खुद को देश के चौकीदार कहते हैं  ,तो क्या चौकीदार से सवाल पूछना नहीं बनता है अगर देश में कुछ नुकसान हुआ,  देश को किसी बात से क्षति पहुंची तो क्या प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी नहीं बनती है ?

जो मेरे दोस्त मेरे इन सवालों को पूछने पर मुझे राजनीति न करने की सलाह देने लगे , उनसे मैं बस यही पूछना चाहता हूं कि इस हमले की जिम्मेदारी मांगे तो किससे मांगे ? इंटेलिजेंस की रिपोर्ट को दरकिनार किया गया।  सीआरपीएफ ने जवानों को एयरलिफ्ट करके शिफ्ट करने की रिक्वेस्ट की थी । गृह मंत्रालय द्वारा उसे भी मना कर दिया गया ।

एक बात समझ में नहीं आती कि क्या गिरी मंत्री और अजीत डोभाल इस चीज का इंतजार कर रहे थे ? और यह सवाल पूछने पर मेरे दोस्तों ने मुझे राजनीति न करने की सलाह दे दी । मेरे उन दोस्तों ने भी जो मुझे बचपन से जानते हैं , और मेरी राजनीति में आने पर मेरा काफी हौसला अफजाई भी किया था, आज वही मंशा पर सवाल उठा रहे है।  हालांकि उनकी सोच वही है,  जो एक साधारण बीजेपी कार्यकर्ता की है।

मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि आखिर में इस मुद्दे पर राजनीतिक कर कौन रहा है ?  आपको समझ में नहीं आता है मुद्दे पर राजनीति कौन कर रहा है? हमले के दिन की बात बताता हूं मैं , 3:15 पर हमला होता है और लगभग 1 घंटे में खबर पूरे देश में फैल जाती है।  और यह बात कंफर्म कर दी जाती है कि लगभग लगभग 30 जवानों की मौत हुई है । उसी समय 5:00 बजे प्रधानमंत्री रुद्रपुर में एक रैली संबोधित करते हैं । शाम को पीयूष गोयल तमिलनाडु जाकर गठबंधन की एक मीटिंग को अटेंड करते हैं । अमित शाह कर्नाटक में एक रैली करते हैं। और वहां के लोगों को राम मंदिर बनाने का आश्वासन देते हैं।  योगी आदित्यनाथ केरल में एक रैली करते हैं।

क्या इन लोगों की संवेदनशीलता मर गई थी ?  या यह लोग राजनीति नहीं कर रहे थे ? और सबसे बड़ी बात "रिंकिया के पापा" दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी इलाहाबाद में रात भर रवि किशन के साथ मिलकर ठुमके लगा रहे थे । जी हां उसी रात की बात है,  जब पूरा देश शोक से रो रहा था,  कि उनके देश के 40 जवान शहीद हो गए ।मनोज तिवारी और रवि किशन दोनों मिलकर के रात में त्रिवेणी में ठुमके लगा रहे थे । इन लोगों को जरा भी शर्म नहीं आई करते हुए, या लोगों के सामने यह दिखाते हुए ।

और अगले दिन मनोज तिवारी ट्वीट करते हैं कि "मैं स्तब्ध हूं"।  ऐसा दोगलापन शायद पहले कभी किसी ने नहीं देखा होगा । और इतना ही नहीं यह लोग इससे भी ज्यादा आगे निकले हम जितना सोच सकते हैं, यह उससे भी नीचे स्तर पर गिरकर अपने काम को कर सकते हैं।  शहादत को 24 घंटे भी नहीं बीते और प्रधानमंत्री झांसी में जाकर रैली कर रहे थे।  ठीक है मैं यह मान सकता हूं कि वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाने की जरूरत थी । लेकिन उस मुद्दे का राजनीतिकरण किया गया। पीयूष गोयल का ट्वीट आता है कि " वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाना ही प्रधानमंत्री का आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब है"।

क्या यह वोट लेने की कोशिश नहीं है ? अगर नहीं है । तो मैं आगे बताता हूं झांसी की रैली में प्रधान मंत्री लोगों से कहते हैं कि "भाइयों और बहनों मुझे आशा है कि अबकी बार आप मुझे और ज्यादा मजबूती से आशीर्वाद देंगे "। आशीर्वाद का मतलब लोग समझ नहीं पाए ? प्रधानमंत्री शहादत के 24 घंटे भी नहीं बीते और लोगों से आशीर्वाद के नाम पर वोट मांग रहे थे । प्रधानमंत्री की गंभीरता का अंदाजा इस बात बात से लगाया जा सकता है कि एक आपातकालीन सर्वदलीय बैठक बुलाई गयी इस मुद्दे पर।जिसमें प्रधानमंत्री को रहना बनता था।

लेकिन उसी समय प्रधानमंत्री को याद आया कि उनकी महाराष्ट्र में रैली है।  और आतंकी घटना पर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में हिस्सा लेने की जगह प्रधानमंत्री मोदी महाराष्ट्र में रैली कर रहे थे। क्या यह प्रधानमंत्री के जवानों के प्रति सीरियसनेस का अंदाजा नहीं था  ? इससे भी आगे इस मुद्दे पर इन लोगों ने वोट लेने की कितनी भरसक कोशिश की है । यह देश के कई जगहों पर दिखाई दिया । व्हाट्सएप पर मैसेज आ रहे हैं कि "पाकिस्तान को धूल चटाना है तो भाजपा को जिताना है"।  कुछ हिंदूवादी संगठन भी इसी तरह के मैसेज डाल रहे हैं की "यही सही मौका है हिंदुओं को एकत्रित होने का।  क्योंकि देश के लोग भी कुछ नहीं बोलेंगे । हिंदुओं को एक साथ होकर के मुसलमानों को जला देना चाहिए ।उनकी मस्जिदों को तोड़-फोड़ कर गिरा देना चाहिए"।

इससे भी आगे एक शहीद की अंतिम यात्रा निकल रही थी । और बीजेपी के सांसद साक्षी महाराज उस शहीद की अंतिम यात्रा वाली ट्रक पर खड़े थे। यकीन मानो अगर मैं आपको यह ना बताऊं कि यह शहीद की अंतिम यात्रा है ,  तो साक्षी महाराज के हाव भाव देखकर आपको बिल्कुल नहीं अंदाजा होगा कि यह शहीद की अंतिम यात्रा है । बल्कि आप को यह लगेगा कि साक्षी महाराज अपने चुनावी रथ पर सवार रोड शो कर रहे हैं। मुस्कुराते हुए साक्षी महाराज लगातार लोगों का अभिवादन स्वीकार करते हुए हाथ जोड़कर आगे बढ़ते रहे।  जिस बेशर्मी के साथ साक्षी महाराज मुस्कुरा रहे थे , उससे यह समझ में आ रहा था कि भारतीय जनता पार्टी के लोग शहीदों के लाश के ऊपर सियासत को किस कदर भुनाना चाहते हैं।

दो दिन पहले ही की तस्वीर है,  प्रधानमंत्री  और नीतीश कुमार की दोनों स्टेज पर बैठकर ठहाके मारते हुए नजर आए । इन दोनों को देखकर कोई भी नहीं कह सकता कि इन दोनों को देश के शहीदों का थोड़ा भी गम है । खुद मेरे व्हाट्सएप पर कई सारे मैसेजेस आए की "सर्जिकल स्ट्राइक टू करना है तो बीजेपी को वोट दीजिए"।  सूरत में शहीदों की याद में एक कैंडल मार्च निकाला गया। जिसमें बहुत सारे लड़के लड़कियां शामिल थे। अब आप कहेंगे कि इसमें राजनीति कहां से आ गयी ?

जी हां इसमें राजनीति थी क्योंकि उस कैंडल मार्च में लड़के लड़कियों को जो टी-शर्ट पहनने के लिए दिया गया था, उस टीशर्ट पर "नमो ओन्ली" लिखा हुआ था। जी हां शहीदों की आत्मा की शांति के लिए निकाले हुए कैंडल मार्च में आये हुए लोगों को "नमो ओनली" के टीशर्ट पहनाए गए।

मेरे जो मित्र मेरी सवाल को मेरा राजनीति का नाम दे रहे थे , वह चाहे तो मैं उनको सारी बातो का सबूत भेज सकता हूं, जितनी भी बातें मैंने अभी तक की है । मेरे दोस्तों ने और कुछ कथित निष्पक्ष लोगों ने मेरी मंशा पर सवाल उठा दिए। जवानों की मौत होते हुए देख मैं देश के अंदरूनी जिम्मेदार लोगों को खोजना, क्या यह मेरी गलती थी ?

या यह मेरी गलती थी कि जो लोग दोषी हैं, जिन लोगों ने लापरवाही की उनका चेहरा सबके सामने लाना जाए?  क्या सेना के प्रति इस देश के संसाधनों की लापरवाही को बताना राजनीति है ?
क्या जो लोग सेना के नाम अपना वोट बैंक चमकाते आए हैं , उन लोगों को एक्सपोज़ करना राजनीति है ? अगर मैं राजनीति कर रहा हूं।  तो फिर वह लोग क्या कर रहे हैं जो नमो ओन्ली के टीशर्ट पहन के कैंडल मार्च निकाल रहे हैं?  कैंडल मार्च हमने भी निकाला है । हमने भी बैनर बनवाया था।  वह अभी भी रेणुकूट पुलिस चौकी चौराहे पर  लगा हुआ है। चाहे कोई देख ले क्या मैंने अपना नाम या अपनी संगठन का नाम या कहीं पर किसी का कोई नाम डाला है ?

उन लोगों को क्या कहेंगे जो शहादत होने के 4 घंटे बाद ही आतंकी अहमद डार की फोटो शॉप की फोटो राहुल गांधी के साथ पोस्ट करने लगे ? उन लोगों को क्या कहेंगे जिन लोगों ने राहुल गांधी की फोटो शॉप करके मोबाइल चलाते हुए फोटो वायरल कर दी । प्रियंका गांधी को मुस्कुराते भी दिखा दिया । क्या ये शहादत से लाभ लेने के तरीके नहीं थे ? 

उन लोगों को क्या कहेंगे जो व्हाट्सएप पर मैसेज भेज रहे हैं कि बदला लेना है तो भारतीय जनता पार्टी को वोट करो?  क्या उन लोगों को बोलने के लिए आपके पास मत नहीं है ?क्या आपकी संवेदनशीलता इतनी ज्यादा हीन हो चुकी है कि आपको समझ में नहीं आ रहा है ? क्या आप भारतीय जनता पार्टी या उससे जुड़े हुए संगठनों और लोगों के प्रति इतने कर्मठ और कर्तव्य परायण हो चुके हैं कि आपको दूसरे के द्वारा किए गए काम गलत लग रहे हैं , और उनके द्वारा किए गए गलत काम अच्छे लग रहे हैं ? 

ये बेहद ही हैरान करने वाली बात है कि कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी संगठन जैश -ए -मुहम्मद द्वारा कायरतापूर्ण आतंकी हमले में 40 जवानों की मौत का गुस्सा अभी शांत भी नहीं हुआ था कि आतंक के ख़िलाफ़ लड़ने का दावा करने वाली मोदी सरकार रैलियों में व्यस्त होती दिखाई देने लगी।

पुलवामा हमले के बाद हुई रैलियों में प्रधानमंत्री मोदी दावा करते हैं कि इस हमले का बदला लिया जाएगा, सुरक्षाबलों को पूरी छूट दे दी गई है, लेकिन क्या बातें सिर्फ़ यही रुक गई हैं? पिछले 5 सालों में क्या हम मोदी सरकार को लगातार यह कहते नहीं सुन रहे हैं कि यह नई सरकार है और जवानों को पूरी छूट दी गई है। तो कौन सा दावा गलत था, पहले वाला या जो अब किया जा रहा है?

आतंकी हमले के अगले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन का उद्घाटन करने पहुँचे, हालाँकि इसी उद्घाटन कार्यक्रम में भाषण के दौरान उन्होंने पुलवामा हमले का कड़ा जवाब देने का आश्वासन भी दिया लेकिन उसके बाद प्रधानमंत्री ने रेल मंत्रालय, सरकार की तारीफ़ में कसीदे पढ़ने से गुरेज़ नहीं किया।

पुलवामा हमले के बाद बीजेपी द्वारा यह संदेश दिया गया कि पार्टी और सरकार जवानों की शहादत के शोक में सभी राजनीतिक कार्यक्रम फिलहाल रद्द करती है। लेकिन अगले ही दिन  प्रधानमंत्री झांसी में फिर रैली करते नज़र आए, हालाँकि कहने को वह विकास कार्यक्रमों के उद्घाटन का मौक़ा था।

जैसा कि मैंने पहले भी बताया पुलवामा आतंकी हमले के बाद भी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कर्नाटक में राजनीतिक कार्यक्रम में भाषण देते रहे, दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी प्रयागराज में सांस्कृतिक कार्यक्रम करते नज़र आए , योगी  बाबा केरल में रैली कर रहे थे। और कैबिनेट की सुरक्षा कमेटी के सदस्य और रेल मंत्री पीयूष गोयल तमिलनाडु में राजनीतिक गतिविधियों में मशगूल थे।

और सबसे बड़ा सवाल मीडिया पर भी उठ रहे है। सिर्फ एक दो चैंनल को छोड़कर कोई भी पत्रकार सवाल उठाने से डरता रहा है। पुलवामा हमले के बाद कई सवाल उठ रहे हैं । लेकिन लोकतंत्र का चौथा खंभा यानी देश का मीडिया उन सवालों पर चुप है । या शायद उसे पता है कि अगर सवाल उठे तो सवालों की आँच मोदी सरकार तक जाएगी। और बीजेपी और मोदी सरकार को उस आग की आँच से बचाने के लिए मीडिया यह कोशिश करती दिखती है कि उस आँच को कहीं भी मोड़ दिया जाय।

क्या किसी पत्रकार या किसी चैंनल ने ये पूछने की कोसिस किया कि इतनी एजेंसियाँ और तंत्र होने के बावजूद सरकार को यह क्यों नहीं पता चला कि कश्मीर में आतंकी हमले के लिए इतनी बड़ी मात्रा में सामग्री जुटाई जा रही है? सरकार ने यह ध्यान क्यों नहीं दिया कि उनकी एजेंसियाँ आतंकियों की ग्रेड सी श्रेणी तक नहीं पहुँच पा रही है? वो कागज किसी चैंनल पर क्यों नही दिखाया गया ?
सीआरपीएफ के वो रिक्वेस्ट लैटर क्यों किसी चैंनल पर नही दिखाया गया , जिसमे जवानों के ऊपर से हमले के खतरे के मद्देनजर एयरलिफ्ट करने की बात थी ?

नोटबंदी के दौरान सरकार ने दावा किया था कि इससे पत्थरबाज़ी और आतंकी घटनाएँ रुक जाएँगी। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी यह दावा किया गया कि इससे पाकिस्तान को कड़ा संदेश जाएगा और उसकी कमर टूट जाएगी। लेकिन सरकार के यह सारे दावे हवा-हवाई क्यों हो रहे हैं? आख़िर सरकार क्यों कड़े सवालों से भाग रही है?

इस बात पर सबसे बड़ा सवाल तो मोदी जी से ही बनेगा ,की जिस नोटबन्दी को उन्होंने आतंकवादियों का कमर तोड़ने वाला बताया था, उसका असर कहा है ? इसका जवाब तो उन्हें देना ही होगा क्योकि मोदी सरकार कहती है कि 2014 के बाद से देश में कोई आतंकी हमला नहीं हुआ लेकिन इस दिनदहाड़े झूठ के पीछे क्या पठानकोट जैसे बड़े आतंकी हमले का सच छुपाया जा सकता है? क्या नगरोटा में जवानों पर हुए हमले को झुठलाया जा सकता है? क्या उरी में सेना कैंप पर हुआ हमला भुलाया जा सकता है या फिर पुलवामा में 40 बहादुर जवानों पर आतंकी हमले को यह सरकार झुठला सकती है?

इस सरकार में एक दर्जन बड़े हमले हो चुके हैं। अब तक कुछ नहीं हुआ। ये गैंडे राफेल लूट खाने, देश मे दंगा कराने, दलितों पिछड़ों का हक लूटने, जाती के नाम और लड़ाने, अनाप सनाप बकने, भगवान की जाति बताने , जहर भरने  के अलावा कर क्या रहे हैं?

2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले के लिए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया था। सीमा पर समस्या, आतंकी हमले और जवानों की शहादत के लिए नरेंद्र मोदी हमेशा दिल्ली को ज़िम्मेदार ठहराते थे मोदी जी ने 2014 के पहले जवानों के ऊपर हुए हमलों का आंकड़ा खूब बताया ।

अब अगर उनके शासन में हुए हमलों पर नज़र डालें तो , जम्मू एवं कश्मीर के पुलवामा में अवन्तीपुरा के गोरीपुरा इलाके में सीआरपीएफ  काफिले पर  हमला- हमले में CRPF के अब तक 41 जवान शहीद हो चुके है। आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने हमले की जिम्मेदारी ली और इसे आत्मघाती बताया।

उड़ी मोहरा हमला- दिसंबर 2014
बारामूला के उरी सेक्टर के मोहरा में सैन्य रेजीमेंट पर आतंकियों ने कायराना तरीके से हमला किया था। 12 जवान शहीद हुए थे। इस घटना के जवाब में भारतीय सेना ने 6 आतंकियों को मार गिराया था।

मणिपुर में हमला- जून 2015
4 जून 2015 को मणिपुर के चंदेल में आतंकियों ने भारतीय सेना के काफिले पर बारूदी सुरंग बिछा कर हमला कर दिया था। इस आतंकी कार्रवाई में देश के 18 जवान शहीद हुए थे।

गुरुदासपुर में हमला- जुलाई 2015
पंजाब के गुरुदासपुर में आर्मी ड्रेस पहने आतंकियों ने दीनानगर पुलिस स्टेशन पर धावा बोल दिया था। इस हमले में 4 जवान शहीद हो गए थे. इसके अलावा 3 सिविलियन भी मारे गए थे।

पठानकोट हमला- जनवरी 2016
जैश ए मोहम्मद के आतंकियों ने पठानकोट एयरबेस पर हमला किया। यह ऑपरेशन 6 दिनों तक चला. जिसमें कुल 7 जवान शहीद हो गए थे।

अनंतनाग हमला- जून 2016
अनंतनाग के चेकपोस्ट पर आतंकियों ने हमला किया था जिसमें 2 जवान शहीद हुए थे। एक दिन पहले भी बीएसएफ के काफिल पर हमला किया था. जिसमें 3 जवानों की जान चली गई थी।

पंपोर हमला- जून 2016
पंपोर के पास श्रीनगर- जम्मू हाइवे पर सीआरपीएफ के काफिले पर हमला हुआ था, जिसमें 8 जवान शहीद हो गए थे जबकि दो दर्जन जवान जख्मी भी हुए थे।

ख्वाजा बाग हमला- अगस्त 2016
श्नीनगर बारामूला हाइवे पर सैन्य काफिले पर हमला कर दिया था। यह हमला हिजबुल ने किया था। इसमें 8 जवान शहीद हुए थे।

पुंछ आतंकी हमला- सितंबर 2016
पठानकोट एयरबेस पर आतंकवादियों ने आतंकी हमला कर दिया था। ये मुठभेड़ 3 दिनों तक चली थी। इस आतंकी हमले में 6 जवान शहीद हुए थे। सैनिकों की जवाबी कार्रवाई में 4 आतंकी भी मारे गए थे।

उड़ी हमला- सितंबर 2016
सेना के सोते हुए जवानों पर हमला कर दिया था। जिसमें 19 जवान शहीद हो गए थे।

अमरनाथ यात्रियों पर हमला जुलाई 2017
अमरनाथ जा रही बस पर आतंकियों ने हमला कर लिया था. 7 श्रद्धालुओं की मौत हुई थी।

सीआरपीएफ कैंप पर हमला- दिसंबर 2017 सीआरपीएफ के ट्रेनिंग कैंप की 185वीं बटालियन पर आतंकियों ने हमला कर दिया था। जिसमें 5 जवान शहीद हुए थे जबकि 2 आतंकी मारे गए थे।

2014 तक देश की आंतरिक समस्याओं के लिए अगर केंद्र सरकार ज़िम्मेदार थी तो 2014 से 2019 के बीच हो रही इन घटनाओं के लिए कौन ज़िम्मेदार है? जिस दिन यह सवाल उठने लगे, उस दिन सरकार के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक जाएगी। दरअसल जवानों की शहादत राजनीति ना करने की सलाह देना या चेतावनी देने के बहाने यह लोग अपनी जवाबदेही देने से बच रहे है। जवाब देने से डर रहे हैं । क्योंकि उन्हें पता है कि इनके पास जवाब देने के लिए कुछ नहीं है ।

और जैसे ही जवाब देने के बिना मुंह खोलेंगे एक्सपोज हो जाएंगे।  उनके पास कोई जवाब नहीं है, जिससे कि यह लोगों को संतुष्ट कर सके ।इसीलिए यह चाहते हैं कि कोई सवाल न पूछे। और सवाल से बचने के लिए ही यह जवानों की शहादत पर पूछे गए सवाल को राजनीति बताने का सहारा ले रहे हैं । और इन से भी बढ़कर हैं इनके मूर्ख चमचे। जो अपने गलत फैसलों और अपने बॉस को डिफेंड करने के लिए खड़े है। जो भी सवाल पूछ रहा है उसको ट्रोल कर रहे हैं और गालियां दे रहे हैं।

सुनो बे मूर्ख भक्तो और चमचो। जवानों की बिना युद्ध के शहादत पर सरकार से सवाल पूछना अगर राजनीति है तो है कर रहा हु राजनीति।जवानों के लिए सरकार की कायरता, लापरवाही और निरंकुशता पर सवाल उठाना अगर राजनीति है तो है मैं कर रहा हु राजनीति।

शहादत पर शोक मनाने की जगह रैलिया करने वालो की और नाच गाना करने वालो की सच्चाई सामने लाना अगर राजनीति है तो हा मैं कर रहा हु राजनीति। जवानों की शहादत की बाद अपना प्रोपेगेंडा चलाने वालों को नंगा करना अगर राजनीति है तो हा मैं कर रहा हु राजनीति।

तुम सब लोग एक इंसान की भक्तई में अपना जमीर तक बेच चुके हो। वो इंसान जिसने शहादत को हमेशा राजनीतिक नज़र से तौला है।
तुम लोग अंधे हो सकते हो मैं नही।
और जो लोग इस शहादत का नाम लेकर के शहादत के बदले का नाम ले कर के अपना वोट जुगाड़ ने के लिए टीशर्ट पहन वाकर के कैंडल मार्च निकलवा रहे हैं या व्हाट्सएप ग्रुप में मैसेजेस के माध्यम से अपनी पार्टी को वोट देने की अपील कर रहे हो ऐसे लोगो को मारते दम तक नंगा करता रहूँगा और ऐसे ही उनको जनता के बीच मे घसीटता रहूंगा। मैं तो ऐसे पाखंडियो की छाती पर चढ़ कर जवाब लेना जनता हु।

हा ये राजनीति तुम लोगो को उस दिन समझ आएगी जिस दिन तुम्हारा अपना कोई ऐसी घटना का शिकार बनेगा। तब देखूंगा कितनी राजनीति करते हो तुम लोग बेशर्मो। एक इंसान के पीछे अपना सब कुछ बेच चुके भाटो तुम लोगो को आइना देखने मे भी शायद शर्म नही आती है। तुम लोगो ने अपने वजूद को इतना खोखला कर दिया है की तुममे और एक तबाही मचाने वाली मशीन में कोई फर्क नही है।

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