पर्वत की दीवार कभी क्या रोक सकी तूफानों को? क्या बंदूकें रोक सकेंगी बढ़ते हुए नौजवानों को? चूर-चूर हो गई वह शक्ति जो हमसे टकराई है… आज चलेगा कौन देश से भ्रष्टाचार मिटाने को. बर्बरता से लोहा लेने सत्ता से टकराने को आज देख ले कौन रचाता मौत के संग सगाई को… अखिलेश यादव का बिगुल बजा तो जाग उठी तरुणाई है। तिलक लगाने तुम्हें नौजवानों अखिलेश क्रान्ति द्वार पर आई है॥’ छात्र नेता नेहा यादव के फ़ेसबुक वाल से ली गयी ये चंद लाइने ये दिखाती है कि समाजवादी छात्रसभा के छात्रों में संघर्ष किस कदर भरा हुआ है।
12 फरवरी 2019 की शाम, इलाहाबाद के बालसन चौराहे से लेकर विश्वविद्यालय तक जगह जगह सड़को पर सिर्फ खून के धब्बे दिख रहे थे। ये खून थे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों का। पुलिसिया और सरकार बर्बरता के उस स्तर और उतारू हो चुके थे जहाँ से वो बालसन को दूसरा जलियावाला बाग बनाने पर तुले हुए थे।
सड़को पर खून के धब्बे, छात्रसभा की लाल टोपी और समाजवादी पार्टी के झंडे बिखरे हुए थे। 2018 के वरिष्ठ सांसद समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव , इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र नेता ऋचा सिंह, नेहा यादव, योगेंद्र सिंह ,अवनीश यादव, उदय यादव और न जाने कितने छात्र पुलिसिया बर्बरता के शिकार हो कर अस्पतालों में पड़े हुए थे। पुलिसिया बर्बरता इस कदर थी कि ऋचा सिंह के सिर पर लाठियों से मारा गया तो नेहा यादव के घुटने को लाठियों से मार कर तोड़ने की कोसिस की गई।
एक साधारण विरोध प्रदर्शन को अराजकता का नाम देकर , और भीड़ में अपने गुंडे घुसवा कर तोड़ फोड़ आगजनी और अभद्रता करवाने वाली बीजेपी सरकार किसी भी तरह से छात्रों के इस आंदोलन को बदनाम करके दबाना चाह रही थी। बालसन चौराहे से लेकर विश्वविद्यालय को जलियावाला बाग बनाने पर तुली हुई सरकार ने एक वरिष्ठ सांसद को भी नही छोड़ा। सपा सांसद धर्मेंद्र यादव के सिर से बहते हुए खून ने दुनिया को ये बता दिया कि सरकार आंदोलन को दबाने के लिए कुछ भी करने पर उतारू थी।
छात्रसभा के सभी छात्र लाठियों खाते रहे। पुलिस वालों के लात और हाथ पैर लगातार उनपे पड़ते रहे। कभी कभी ज्यादा मार पड़ जाने और खीझ कर पुलिस वालों को धक्का दिया। तो कभी असहनीय दर्द होने पर सड़क पर लेट गए। घाव का दर्द बर्दास्त न होने पर कभी कभी चिल्लाते हुए दिखाई दिए। तो कभी दूसरे साथी के ऊपर लाठिया बरसती देख कर उसको बचाने का प्रयास तो कभी साथी के ऊपर पड़ने वाली लाठी खुद के ऊपर ले लेना। पूरे लाठीचार्ज के दौरान छात्र यही करते नज़र आया। कभी खुद को बचाते तो कभी साथी को बचाते।
ऋचा सिंह के सिर पर लाठियों से मारा गया तो, नेहा यादव के घुटनो को लाठियों से तोड़ने का प्रयास किया गया। योगेंद्र यादव के हाथ को तोड़ा गया तो उदय यादव को मार मार कर बेहोश किया गया। सुषमा भारती, मंजू यादव, रमा यादव और न जाने कितने छात्रों को और समाजवादी अनुनानियो को मार कर तोड़ने की कोसिस की गई। एक फोटो वायरल हुआ जिसमें साफ तौर पर दिखाया जा रहा है कि एक पुलिस वाला सीधे ऋचा सिंह के सिर पर लाठिया मार रहा है जबकि वो पहले से ही घायल होकर जमीन पर पड़ी हुई है। नेहा यादव ने अपने लगी चोटो की फ़ोटो को जब सार्वजनिक किया तो आंखों से आंसू आ गई। जिसको मैं छोटी बहन बोलता हूं उसको किस कदर मार कर घायल करने की कोसिस किया गया।
दरअसल छात्रों का ये आंदोलन समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी को एयरपोर्ट पर रोके जाने और एक अधिकारी द्वारा उनके साथ अभद्रता करने की कोसीस के विरोध में था। उन्है एक अधिकारी द्वारा इलाहाबाद आने वाली प्लेन पर चढ़ने से रोका गया। वो भी अधिकारी उस प्लेन की सीढ़ियों पर खड़ा होकर उनको रोक रहा था। जो कि एयरपोर्ट के अंदर था जो कि पुलिस के अधिकार क्षेत्र से बाहर था और, सीआईएसफ के अंतर्गत आता हैं ।
जब अखिलेश यादव का फ्लीट एयरपोर्ट के बाहर रुका और वो उतरे तब उस अधिकारी ने उनको हाथ लगा कर उनको रोकने की कोसिस किया। अखिलेश यादव ने उस वक़्त उस अधिकारी से दो बातें कही । पहली थी " हाथ मत लगाओ" । और दूसरा बात एक सवाल था कि " कहाँ तक पढ़े हो ?"। अखिलेश यादव ने पहले बात उस अधिकारी को बचाने के लिए बोला । क्योकि अखिलेश यादव जेड प्लस सिक्योरिटी में रहते है। एनएसजी की गार्ड उनकी सुरक्षा में तैनात रहते है। जो किसी भी अनजान व्यक्ति को उनके पास फटकने भी नही देते। और उनके पास ये भी अधिकार है कि अगर को जबरजस्ती उनके पास आने की कोसिस करे तो वो उसको उचित सबक दे सकते है। और फिर उस अधिकारी ने तो उनको धक्का देने की एक नाकाम कोसिस किया।
यदि अखिलेश यादव उसे मना नही करते तो शायद वो उनके और पास आने की कोसिस करता। जिसपे एनएसजी एक्शन लेते हुए कुछ भी कर सकती थी। अखिलेश यादव के मना करने और एनएसजी के गार्ड ने उस अधिकारी को सिर्फ धक्का देकर पीछे किया। क्योंकि वो अधिकारी एयरपोर्ट के बाहर बिना प्रोटोकाल के और बिना आईकार्ड के खड़ा था। जिससे उसकी कोई पहचान नही थी। किसी को पता नही चल सकता था कि सामने वाला व्यक्ति कौन है।
जरा सोचियो एक जेड सिक्योरिटी वाले व्यक्ति के पास एक अनजान आदमी , जिसकी कोई पहचान नही, किसी को पता नही की वो कौन है, न तो एनएसजी के गार्ड को और न तो जेड प्लस सिक्योरिटी वाले व्यक्ति को, वो तेज़ी से चल कर आये और उसे वो जेड प्लस सिक्योरिटी वाले धक्का देने की या पता नही क्या करने की कोसिस कर रहा हो, तो उस पर एनएसजी और अखिलेश यादव जी का क्या रिएक्शन होगा ।
उस अधिकारी को इस बात के लिए अखिलेश जी का धन्यवाद देना चाहिए कि उनके एनएसजी के गार्डो ने उस अधिकारी को सिर्फ धक्का दिया। अमूमन ऐसे मामलों में गॉर्ड सीधा रायफल की बट्ट से सामने वाले पर तेज़ी से वार करते है। और वो लगातार तब तक मरते है जब तक कि वो दूर नही हट जाता। और ज्यादा जबरजस्ती करने पर एनएसजी के पास सारे अधिकार होते है की जिस व्यक्ति की सुरक्षा की जिम्मेदारी उनको मिली है उसकी सुरक्षा के लिए वो किसी भी हद तक जा सकती है। लखनऊ के एडीएम साहब को इस बात का शुक्र मनाना चाहिए कि बिना पहचान के और बिना आईकार्ड के जाने के बावजूद भी एनएसजी ने सिर्फ उनको पकड़ कर पीछे किया।
और दूसरा सवाल जो अखिलेश यादव जी ने उस अधिकारी से पूछा वो था कि " कहा तक पढ़े लिखे हो? "। ये भी एक जायज सवाल था क्योंकि अखिलेश जी ने उस अधिकारी को पूछा कि "वो पेपर कहा है जिसपे मुझे मना किया गया है।" अखिलेश ने आगे कहा कि देखो मैंने भी मेरे परमिशन का कागज साथ रखा है। यह कहते हुए उन्होंने उस अधिकारी को अपने परमिशन की कॉपी दिखाई और उस परमिशन के कैंसिलेशन की कॉपी उससे मांगी, जो कि उस अधिकारी के पास नही थी। उस पर अखिलेश यादव ने उस अधिकारी को समझाते हुए कहा कि ' सरकार पेपर से चलती है। जुबानी नही " ।
अगर कोई एक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और एक पूर्व मुख्यमंत्री को रोकने के आने वाला अधिकारी बिना आईकार्ड , बिना प्रोटोकाल और बिना पेपर के रोकने जाने वाले कि पढ़ाई और शिक्षा पर तो सवाल उठाना लाज़मी है। कोई भी व्यक्ति ये आसानी से पूछ सकता था कि "अरे भाई कितना पढ़े लिखे हो ? क्या पढ़ाई किया है ? जाहिलो और अनपढों जैसी हरकत क्यों कर रहे हो ?
हालांकि अखिलेश जी ने इंसानियत मर्यादा को निभाते हुए सिर्फ यही पूछा कि " कहाँ तक पढ़े हो ? "।
अखिलेश यादव को इलाहाबाद जाना था । वहाँ पर उनके दो कार्यक्रम थे। एक था इलाहाबाद विश्वविद्यालय के नव निर्वाचित अध्यक्ष उदय यादव के शपथ ग्रहण शमारोह में शामिल होना। और दूसरा कार्यक्रम अखिलेश भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष आचार्य नरेंद्र गिरी जी की ओर से , जिसमे वो अखिलेश जी को सम्मानित करना चाहते थे।
और ये दोनों प्रोग्राम प्रदेश के योगी को पसंद नही थी। क्योंकि विश्वविद्यलय में चुनाव के दौरान जी भर कर बेईमानी और मनमानी करने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीत नही पाई। और ये बात उनको खलती रही । यहां तक कि जीते हुए समाजवादी छात्र सभा के उदय यादव का कमरा और बाइक तक जला दिया गया। और 10 फरवरी को छात्रसंघ के भवन पर बम तक फेंके गए।
और दूसरा प्रोग्राम अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का भी योगी जी को पसंद नही। क्योकि हिन्दू धर्म को अपनी जागीर समझने वाले भाजपाइयों को ये कैसे पसंद की कोई और व्यक्ति को हिंदुत्व का कोई संस्था सम्मानीय करे। क्योकि फिर इससे बीजेपी द्वारा खोली गई फ़र्ज़ी हिंदुत्व की दूकान बन्द हो जाएगी। हिंदुत्व के नाम पर वोट चुराने की इनकी तकनीक काम करना बंद हो जाएगी। और ये देश के लोगो को हिंदुत्व के नाम पर बेवकूफ नही बना पाएंगे।
खैर इसी बहाने योगी की को अपनी बर्बरता दिखाने का पूरा मौका मिला। उन्होंने इलाहाबाद के छात्रों पर लाठियों का पूरा प्रयोग किया। कई कई जगह तो ऐसी तस्वीरे भी सामने आई जिसमे भीड़ के आगे पुलिस वाले बंदूके ताने खड़े थे। ये नज़ारा भारत की आवाम को 1947 के पहले ले जाते है। जहाँ पर ऐसे ही अंग्रेज भीड़ को बंदूकों से भून डालते थे। खुलेआम नरसंहार का जो ट्रेनिंग अंग्रेजो से उनके चेलो को मिले,वही उनके चेले आज फिर से ट्राय कर रहे है।
पूरी पूरी कोशिश की गई कि छात्र आंदोलन को किसी तरह दबाया जाए चाहे वह भले ही जनरल डायर के पैटर्न पर चल कर ही क्यों ना हो।
और जब मुख्यमंत्री से यह पूछा गया कि आप ने अखिलेश यादव को वहां जाने से क्यों रोका तो उनका जवाब ऐसा था जिसे सिर्फ एक मुहावरे "उल्टा चोर कोतवाल को डांटे" से समझा जा सकता है। उन्होंने यह कहा कि "अखिलेश यादव वहाँ जाकर अराजकता मचाते इसलिए उनको इलाहाबाद जाने से रोका गया "।
खैर प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव ने योगी के इस बयान का मुंहतोड़ जवाब देते हुए चैलेन्ज किया कि "आप मेरे ऊपर किसी भी एक मुकदमे की कोई एक धारा दिखा दो । इसके साथ ही अखिलेश यादव ने दो तख्तियां लोगों के सामने रखी । जिसमें योगी आदित्यनाथ के ऊपर मुकदमों की सारी जानकारी थी । योगी आदित्यनाथ के ऊपर उस तख्ती में जो मुकदमे लिखे हुए थे, वह उनके इलेक्शन हलफनामे का एक हिस्सा था । जो उन्हें इलेक्शन लड़ते समय इलेक्शन कमिशन को भर कर देना होता है।
यानी कि यह जानकारियां खुद योगी आदित्यनाथ ने लिखकर इलेक्शन कमिशन को दिया था। खैर उनके ऊपर लगे हुए धाराओं में धारा 506, 307, 147, 148, 297, 336, 504, 295, 153A, 302/ 120 B/ 153 A/ 188/ 47/ 148/ 153/ 153 A/ 352/ 188/ 323/ 504/ 506/ 147/ 295 A/ 153/ 420/ 467/ 465/ 171/ 188/ 147/ 352/ 323/ 504/ 506/ 392/ 153A/ 353/ 186/ 504/ 147/ 332/ 147/ 332/ 504/ 332/ 353/ 506/ 380/ 147/ 148/ 332/ 336/ 186/ 427 143/ 353/ 341 और 435 जैसी धाराएं शामिल है।
इसके उलट अखिलेश यादव के ऊपर एक भी एफ़आईआर , चाजर्शीट और कोई धारा कुछ भी नही है।
अगर बात करे मुख्यमंत्री योगी की तो आपराधिक मामले भी उनके खिलाफ दर्ज हैं। जिनमें हत्या के प्रयास जैसे संगीन मामले भी शामिल हैं। उनके खिलाफ गोरखपुर और महाराजगंज में लगभग एक दर्जन मामले दर्ज हैं। जिनका जिक्र उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान अपने हलफनामे में किया था।
योगी के खिलाफ धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और सद्भाव बिगाड़ने के मामले में आईपीसी की धारा 153 ए के तहत दो मामले दर्ज हैं। इसके अलावा उनके खिलाफ वर्ग और धर्म विशेष के धार्मिक स्थान को अपमानित करने के आरोप में आईपीसी की धारा 295 के दो मामले दर्ज हैं।
उनके खिलाफ कृषि योग्य भूमि को विस्फोटक पदार्थ का इस्तेमाल करके नुकसान पहुंचाने के इरादे से कार्य करने आदि का एक मामला भी दर्ज है। यही नहीं उनके खिलाफ आपराधिक धमकी का एक मामला आईपीसी की धारा 506 के तहत दर्ज है। उनके विरुद्ध आईपीसी की धारा 307 के तहत हत्या के प्रयास का एक संगीन मामला भी चल रहा है।
आईपीसी की धारा 147 के तहत दंगे के मामले में सजा से संबंधित 3 आरोप भी उन पर हैं। आईपीसी के खंड 148 के तहत उन पर घातक हथियारों से लैस दंगों से संबंधित होने के दो आरोप दर्ज हैं। उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 297 के तहत कब्रिस्तान जबरन घुसने के दो मामले हैं।
आईपीसी की धारा 336 के तहत उन पर दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा और जीवन को खतरे में डालने से संबंधित 1 मामला है। जबकि आईपीसी की धारा 149 का एक मामला और उनके खिलाफ चल रहा है। आईपीसी की धारा 504 के तहत उन पर जानबूझकर शांति का उल्लंघन करने का एक आरोप दर्ज है। इसके अलावा आईपीसी के खंड 427 का एक मामला भी उनके खिलाफ दर्ज है।
दंगों के दौरान एक युवक के मारे जाने के बाद बिना प्रशासन की अनुमति के योगी ने शहर के मध्य श्रद्धान्जली सभा आयोजित की थी और कानून का उल्लंघन किया था। इसके बाद उन्होंने अपने हजारों समर्थकों के साथ गिरफ़्तारी दी थी। उस वक्त आदित्यनाथ को सीआरपीसी की धारा 151A, 146, 147, 279, 506 के तहत जेल भेजा गया था।
इसी दौरान उनके संगठन हिन्दू युवा वाहिनी के सदस्यों ने मुंबई-गोरखपुर गोदान एक्सप्रेस के कुछ डिब्बों में आग लगा दी थी। जिसमें कई यात्री बाल बाल बच गए थे। उनकी वजह से पूर्वी उत्तर प्रदेश के छह जिलों और तीन मंडलों में भी फ़ैल गए थे।
इस मुख्यमंत्री पर 2017 महाराजगंज जिले में आईपीसी की धारा 147 (दंगे के लिए दंड), 148 (घातक हथियार से दंगे), 295 (किसी समुदाय के पूजा स्थल का अपमान करना), 297 (कब्रिस्तानों पर अतिक्रमण), 153A (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 307 (हत्या का प्रयास) और 506 (आपराधिक धमकी के लिए दंड) के मामले दर्ज हुए थे। पुलिस ने इन मामलों में क्लोजर रिपोर्ट तो साल 2000 में ही दाखिल कर दी थी, लेकिन स्थानीय अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।
साल 1999 का भी मामला महाराजगंज का ही है, जहां उन पर धारा 302 (मौत की सजा) के तहत मामला दर्ज किया गया था। इसके अलावा 307 (हत्या का प्रयास) 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) और 427 (पचास रुपये की राशि को नुकसान पहुंचाते हुए शरारत) के तहत भी उन पर मामला दर्ज हुआ था। पुलिस ने 2000 में ही क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर दी थी, लेकिन फैसला आना बाकी है।
इसी साल महाराजगंज में उन पर आईपीसी की धारा 147 (दंगे के लिए दंड), 148 (घातक हथियार से दंगे), 149, 307, 336 (दूसरों के जीवन को खतरे में डालना), 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) और 427 (पचास रुपये की राशि को नुकसान पहुंचाते हुए शरारत) के तहत मामले दर्ज किए गए। एफिडेविट के मुताबिक पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी, लेकिन फैसला आना बाकी है।
साल 2006 में गोरखपुर में उन पर आईपीसी की धारा 147, 148, 133A (उपद्रव को हटाने के लिए सशर्त आदेश), 285 (आग या दहनशील पदार्थ के संबंध में लापरवाही), 297 (कब्रिस्तानों पर अतिक्रमण) के तहत मामला दर्ज किया गया था। यहां भी पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी, लेकिन फैसला अभी नहीं आया।
साल 2007 गोरखपुर के एक अन्य मामले में वह जमानत पर रिहा हैं। यहां उन्हें धारा 147, 133A, 295, 297, 435 (100 रुपये की राशि को नुकसान पहुंचाने के इरादे से आग या विस्फोटक द्रव्य द्वारा शरारत) और 506 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
और इन सब के बाद अगर वो अखिलेश के ऊपर अराजकता और हिंसा दंगा भड़काने का आरोप लगाएं, तो यह अपने आप में एक बहुत ही हास्यास्पद और मजाकिया लगता है यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा कि एक चोर किसी जज पर चोरी का आरोप लगाया । हालांकि मैं मुख्यमंत्री की तुलना चोर से तो नहीं कर रहा ,लेकिन अखिलेश यादव की तुलना जज से जरूर कर रहा हूं। दावा सिर्फ अखिलेश यादव का ही नहीं, बल्कि सभी लोगों का है की पूरी भाजपा टीम मिलकर भी अगर अखिलेश यादव के खिलाफ एक भी धारा या एक भी चार्जशीट खोल दें तो मानने की सोचा जाए कि योगी आदित्यनाथ की बातों में कुछ सच्चाई रही होगी ,या उनको इस बात का भय हो सकता हो।
खैर इतने जुल्म के बाद भी जब सिर पर पट्टी बंधे हुए धर्मेंद्र यादव मुस्कुराते हुए, घायलों को देखने गए तो उन्होंने अपनी इस मुस्कुराहट के साथ सरकार की हनक, तानाशाही रवैया हिटलरशाही के गाल पर एक जोरदार तमाचा मारा। धर्मेंद्र यादव , ऋचा सिंह, नेहा यादव , अवनीश , उदय यादव इन सभी छात्रों ने दिखा दिया कि वो कोई नागपुरिया विचारधारा के अनुनायी नही है , जिनकी लाठी देखने से हालात खराब हो जाएं बल्कि वो तो उस समाजवादी विचाधारा के अनुनायी है ।
संघर्ष और आंदोलन ही समाजवादियों का ताकत है। योगी सरकार की इस तानाशाही ने इस ताकत को 200 गुना ज्यादा बढ़ा दिया है। बड़े दिनों बाद समाजवादियों का खून सड़को पर बहा है। और इतिहास गवाह है को जब समाजवादियों का खून सड़को पर बहा, समाजवादियों ने सरकार उखाड़ फेकी , और शांति की स्थापना कर समाजवादी ध्वज लहराया है। चाहे वो लेनिन की क्रांति हो, या कार्लमार्क्स के विचारो का आंदोलन।
समाजवादी जननायक भगत सिंह को कौन भूल सकता है। समाजवादी विचारधारा से लबरेज भगत सिंह और लोहिया ने सरकारों को उनकी असली जगह जनता के पैरों में लाकर गिराया है।
सुनो हिटलर के वंशजो , सुनो अंग्रेजो के चेलो, सुनो नागपुरिया कानून के पलको। ये संघर्ष , लाठिया खाना, आंदोलन बनाना , सच्चाई के लिए लड़ जाना, सही के लिए मरने की भी परवाह न करना, तानाशाहों को उनकी औकात पर लाना और आधुनिक हिटलरो का विरोध करना ही समाजवादियों की ताकत है , तुम हमारा जितना खून बहाओगे हमारा आंदोलन उतना मजबूत होगा। तुम जितना मरोगे हम उतनी आवाज के साथ तुम्हारा विरोध करेंगे। तुम जितना दबाओगे हम उतना बड़ा आंदोलन करेंगे। और ये आंदोलन तक चलेगा जब तक तुमको उखाड़ न फेके, और समाजवादी शांतिमय सरकार की स्थापना न करे।
ऋचा सिंह, नेहा यादव, निधि यादव, रमा यादव , सुषमा भारती जैसी समाजवादी सोच से लबरेज नारी शक्ति को मेरा आदर सम्मान और शत शत नमन।
सड़को पर खून के धब्बे, छात्रसभा की लाल टोपी और समाजवादी पार्टी के झंडे बिखरे हुए थे। 2018 के वरिष्ठ सांसद समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव , इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र नेता ऋचा सिंह, नेहा यादव, योगेंद्र सिंह ,अवनीश यादव, उदय यादव और न जाने कितने छात्र पुलिसिया बर्बरता के शिकार हो कर अस्पतालों में पड़े हुए थे। पुलिसिया बर्बरता इस कदर थी कि ऋचा सिंह के सिर पर लाठियों से मारा गया तो नेहा यादव के घुटने को लाठियों से मार कर तोड़ने की कोसिस की गई।
एक साधारण विरोध प्रदर्शन को अराजकता का नाम देकर , और भीड़ में अपने गुंडे घुसवा कर तोड़ फोड़ आगजनी और अभद्रता करवाने वाली बीजेपी सरकार किसी भी तरह से छात्रों के इस आंदोलन को बदनाम करके दबाना चाह रही थी। बालसन चौराहे से लेकर विश्वविद्यालय को जलियावाला बाग बनाने पर तुली हुई सरकार ने एक वरिष्ठ सांसद को भी नही छोड़ा। सपा सांसद धर्मेंद्र यादव के सिर से बहते हुए खून ने दुनिया को ये बता दिया कि सरकार आंदोलन को दबाने के लिए कुछ भी करने पर उतारू थी।
छात्रसभा के सभी छात्र लाठियों खाते रहे। पुलिस वालों के लात और हाथ पैर लगातार उनपे पड़ते रहे। कभी कभी ज्यादा मार पड़ जाने और खीझ कर पुलिस वालों को धक्का दिया। तो कभी असहनीय दर्द होने पर सड़क पर लेट गए। घाव का दर्द बर्दास्त न होने पर कभी कभी चिल्लाते हुए दिखाई दिए। तो कभी दूसरे साथी के ऊपर लाठिया बरसती देख कर उसको बचाने का प्रयास तो कभी साथी के ऊपर पड़ने वाली लाठी खुद के ऊपर ले लेना। पूरे लाठीचार्ज के दौरान छात्र यही करते नज़र आया। कभी खुद को बचाते तो कभी साथी को बचाते।
ऋचा सिंह के सिर पर लाठियों से मारा गया तो, नेहा यादव के घुटनो को लाठियों से तोड़ने का प्रयास किया गया। योगेंद्र यादव के हाथ को तोड़ा गया तो उदय यादव को मार मार कर बेहोश किया गया। सुषमा भारती, मंजू यादव, रमा यादव और न जाने कितने छात्रों को और समाजवादी अनुनानियो को मार कर तोड़ने की कोसिस की गई। एक फोटो वायरल हुआ जिसमें साफ तौर पर दिखाया जा रहा है कि एक पुलिस वाला सीधे ऋचा सिंह के सिर पर लाठिया मार रहा है जबकि वो पहले से ही घायल होकर जमीन पर पड़ी हुई है। नेहा यादव ने अपने लगी चोटो की फ़ोटो को जब सार्वजनिक किया तो आंखों से आंसू आ गई। जिसको मैं छोटी बहन बोलता हूं उसको किस कदर मार कर घायल करने की कोसिस किया गया।
दरअसल छात्रों का ये आंदोलन समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी को एयरपोर्ट पर रोके जाने और एक अधिकारी द्वारा उनके साथ अभद्रता करने की कोसीस के विरोध में था। उन्है एक अधिकारी द्वारा इलाहाबाद आने वाली प्लेन पर चढ़ने से रोका गया। वो भी अधिकारी उस प्लेन की सीढ़ियों पर खड़ा होकर उनको रोक रहा था। जो कि एयरपोर्ट के अंदर था जो कि पुलिस के अधिकार क्षेत्र से बाहर था और, सीआईएसफ के अंतर्गत आता हैं ।
जब अखिलेश यादव का फ्लीट एयरपोर्ट के बाहर रुका और वो उतरे तब उस अधिकारी ने उनको हाथ लगा कर उनको रोकने की कोसिस किया। अखिलेश यादव ने उस वक़्त उस अधिकारी से दो बातें कही । पहली थी " हाथ मत लगाओ" । और दूसरा बात एक सवाल था कि " कहाँ तक पढ़े हो ?"। अखिलेश यादव ने पहले बात उस अधिकारी को बचाने के लिए बोला । क्योकि अखिलेश यादव जेड प्लस सिक्योरिटी में रहते है। एनएसजी की गार्ड उनकी सुरक्षा में तैनात रहते है। जो किसी भी अनजान व्यक्ति को उनके पास फटकने भी नही देते। और उनके पास ये भी अधिकार है कि अगर को जबरजस्ती उनके पास आने की कोसिस करे तो वो उसको उचित सबक दे सकते है। और फिर उस अधिकारी ने तो उनको धक्का देने की एक नाकाम कोसिस किया।
यदि अखिलेश यादव उसे मना नही करते तो शायद वो उनके और पास आने की कोसिस करता। जिसपे एनएसजी एक्शन लेते हुए कुछ भी कर सकती थी। अखिलेश यादव के मना करने और एनएसजी के गार्ड ने उस अधिकारी को सिर्फ धक्का देकर पीछे किया। क्योंकि वो अधिकारी एयरपोर्ट के बाहर बिना प्रोटोकाल के और बिना आईकार्ड के खड़ा था। जिससे उसकी कोई पहचान नही थी। किसी को पता नही चल सकता था कि सामने वाला व्यक्ति कौन है।
जरा सोचियो एक जेड सिक्योरिटी वाले व्यक्ति के पास एक अनजान आदमी , जिसकी कोई पहचान नही, किसी को पता नही की वो कौन है, न तो एनएसजी के गार्ड को और न तो जेड प्लस सिक्योरिटी वाले व्यक्ति को, वो तेज़ी से चल कर आये और उसे वो जेड प्लस सिक्योरिटी वाले धक्का देने की या पता नही क्या करने की कोसिस कर रहा हो, तो उस पर एनएसजी और अखिलेश यादव जी का क्या रिएक्शन होगा ।
उस अधिकारी को इस बात के लिए अखिलेश जी का धन्यवाद देना चाहिए कि उनके एनएसजी के गार्डो ने उस अधिकारी को सिर्फ धक्का दिया। अमूमन ऐसे मामलों में गॉर्ड सीधा रायफल की बट्ट से सामने वाले पर तेज़ी से वार करते है। और वो लगातार तब तक मरते है जब तक कि वो दूर नही हट जाता। और ज्यादा जबरजस्ती करने पर एनएसजी के पास सारे अधिकार होते है की जिस व्यक्ति की सुरक्षा की जिम्मेदारी उनको मिली है उसकी सुरक्षा के लिए वो किसी भी हद तक जा सकती है। लखनऊ के एडीएम साहब को इस बात का शुक्र मनाना चाहिए कि बिना पहचान के और बिना आईकार्ड के जाने के बावजूद भी एनएसजी ने सिर्फ उनको पकड़ कर पीछे किया।
और दूसरा सवाल जो अखिलेश यादव जी ने उस अधिकारी से पूछा वो था कि " कहा तक पढ़े लिखे हो? "। ये भी एक जायज सवाल था क्योंकि अखिलेश जी ने उस अधिकारी को पूछा कि "वो पेपर कहा है जिसपे मुझे मना किया गया है।" अखिलेश ने आगे कहा कि देखो मैंने भी मेरे परमिशन का कागज साथ रखा है। यह कहते हुए उन्होंने उस अधिकारी को अपने परमिशन की कॉपी दिखाई और उस परमिशन के कैंसिलेशन की कॉपी उससे मांगी, जो कि उस अधिकारी के पास नही थी। उस पर अखिलेश यादव ने उस अधिकारी को समझाते हुए कहा कि ' सरकार पेपर से चलती है। जुबानी नही " ।
अगर कोई एक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और एक पूर्व मुख्यमंत्री को रोकने के आने वाला अधिकारी बिना आईकार्ड , बिना प्रोटोकाल और बिना पेपर के रोकने जाने वाले कि पढ़ाई और शिक्षा पर तो सवाल उठाना लाज़मी है। कोई भी व्यक्ति ये आसानी से पूछ सकता था कि "अरे भाई कितना पढ़े लिखे हो ? क्या पढ़ाई किया है ? जाहिलो और अनपढों जैसी हरकत क्यों कर रहे हो ?
हालांकि अखिलेश जी ने इंसानियत मर्यादा को निभाते हुए सिर्फ यही पूछा कि " कहाँ तक पढ़े हो ? "।
अखिलेश यादव को इलाहाबाद जाना था । वहाँ पर उनके दो कार्यक्रम थे। एक था इलाहाबाद विश्वविद्यालय के नव निर्वाचित अध्यक्ष उदय यादव के शपथ ग्रहण शमारोह में शामिल होना। और दूसरा कार्यक्रम अखिलेश भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष आचार्य नरेंद्र गिरी जी की ओर से , जिसमे वो अखिलेश जी को सम्मानित करना चाहते थे।
और ये दोनों प्रोग्राम प्रदेश के योगी को पसंद नही थी। क्योंकि विश्वविद्यलय में चुनाव के दौरान जी भर कर बेईमानी और मनमानी करने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीत नही पाई। और ये बात उनको खलती रही । यहां तक कि जीते हुए समाजवादी छात्र सभा के उदय यादव का कमरा और बाइक तक जला दिया गया। और 10 फरवरी को छात्रसंघ के भवन पर बम तक फेंके गए।
और दूसरा प्रोग्राम अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का भी योगी जी को पसंद नही। क्योकि हिन्दू धर्म को अपनी जागीर समझने वाले भाजपाइयों को ये कैसे पसंद की कोई और व्यक्ति को हिंदुत्व का कोई संस्था सम्मानीय करे। क्योकि फिर इससे बीजेपी द्वारा खोली गई फ़र्ज़ी हिंदुत्व की दूकान बन्द हो जाएगी। हिंदुत्व के नाम पर वोट चुराने की इनकी तकनीक काम करना बंद हो जाएगी। और ये देश के लोगो को हिंदुत्व के नाम पर बेवकूफ नही बना पाएंगे।
खैर इसी बहाने योगी की को अपनी बर्बरता दिखाने का पूरा मौका मिला। उन्होंने इलाहाबाद के छात्रों पर लाठियों का पूरा प्रयोग किया। कई कई जगह तो ऐसी तस्वीरे भी सामने आई जिसमे भीड़ के आगे पुलिस वाले बंदूके ताने खड़े थे। ये नज़ारा भारत की आवाम को 1947 के पहले ले जाते है। जहाँ पर ऐसे ही अंग्रेज भीड़ को बंदूकों से भून डालते थे। खुलेआम नरसंहार का जो ट्रेनिंग अंग्रेजो से उनके चेलो को मिले,वही उनके चेले आज फिर से ट्राय कर रहे है।
पूरी पूरी कोशिश की गई कि छात्र आंदोलन को किसी तरह दबाया जाए चाहे वह भले ही जनरल डायर के पैटर्न पर चल कर ही क्यों ना हो।
और जब मुख्यमंत्री से यह पूछा गया कि आप ने अखिलेश यादव को वहां जाने से क्यों रोका तो उनका जवाब ऐसा था जिसे सिर्फ एक मुहावरे "उल्टा चोर कोतवाल को डांटे" से समझा जा सकता है। उन्होंने यह कहा कि "अखिलेश यादव वहाँ जाकर अराजकता मचाते इसलिए उनको इलाहाबाद जाने से रोका गया "।
खैर प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव ने योगी के इस बयान का मुंहतोड़ जवाब देते हुए चैलेन्ज किया कि "आप मेरे ऊपर किसी भी एक मुकदमे की कोई एक धारा दिखा दो । इसके साथ ही अखिलेश यादव ने दो तख्तियां लोगों के सामने रखी । जिसमें योगी आदित्यनाथ के ऊपर मुकदमों की सारी जानकारी थी । योगी आदित्यनाथ के ऊपर उस तख्ती में जो मुकदमे लिखे हुए थे, वह उनके इलेक्शन हलफनामे का एक हिस्सा था । जो उन्हें इलेक्शन लड़ते समय इलेक्शन कमिशन को भर कर देना होता है।
यानी कि यह जानकारियां खुद योगी आदित्यनाथ ने लिखकर इलेक्शन कमिशन को दिया था। खैर उनके ऊपर लगे हुए धाराओं में धारा 506, 307, 147, 148, 297, 336, 504, 295, 153A, 302/ 120 B/ 153 A/ 188/ 47/ 148/ 153/ 153 A/ 352/ 188/ 323/ 504/ 506/ 147/ 295 A/ 153/ 420/ 467/ 465/ 171/ 188/ 147/ 352/ 323/ 504/ 506/ 392/ 153A/ 353/ 186/ 504/ 147/ 332/ 147/ 332/ 504/ 332/ 353/ 506/ 380/ 147/ 148/ 332/ 336/ 186/ 427 143/ 353/ 341 और 435 जैसी धाराएं शामिल है।
इसके उलट अखिलेश यादव के ऊपर एक भी एफ़आईआर , चाजर्शीट और कोई धारा कुछ भी नही है।
अगर बात करे मुख्यमंत्री योगी की तो आपराधिक मामले भी उनके खिलाफ दर्ज हैं। जिनमें हत्या के प्रयास जैसे संगीन मामले भी शामिल हैं। उनके खिलाफ गोरखपुर और महाराजगंज में लगभग एक दर्जन मामले दर्ज हैं। जिनका जिक्र उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान अपने हलफनामे में किया था।
योगी के खिलाफ धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और सद्भाव बिगाड़ने के मामले में आईपीसी की धारा 153 ए के तहत दो मामले दर्ज हैं। इसके अलावा उनके खिलाफ वर्ग और धर्म विशेष के धार्मिक स्थान को अपमानित करने के आरोप में आईपीसी की धारा 295 के दो मामले दर्ज हैं।
उनके खिलाफ कृषि योग्य भूमि को विस्फोटक पदार्थ का इस्तेमाल करके नुकसान पहुंचाने के इरादे से कार्य करने आदि का एक मामला भी दर्ज है। यही नहीं उनके खिलाफ आपराधिक धमकी का एक मामला आईपीसी की धारा 506 के तहत दर्ज है। उनके विरुद्ध आईपीसी की धारा 307 के तहत हत्या के प्रयास का एक संगीन मामला भी चल रहा है।
आईपीसी की धारा 147 के तहत दंगे के मामले में सजा से संबंधित 3 आरोप भी उन पर हैं। आईपीसी के खंड 148 के तहत उन पर घातक हथियारों से लैस दंगों से संबंधित होने के दो आरोप दर्ज हैं। उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 297 के तहत कब्रिस्तान जबरन घुसने के दो मामले हैं।
आईपीसी की धारा 336 के तहत उन पर दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा और जीवन को खतरे में डालने से संबंधित 1 मामला है। जबकि आईपीसी की धारा 149 का एक मामला और उनके खिलाफ चल रहा है। आईपीसी की धारा 504 के तहत उन पर जानबूझकर शांति का उल्लंघन करने का एक आरोप दर्ज है। इसके अलावा आईपीसी के खंड 427 का एक मामला भी उनके खिलाफ दर्ज है।
दंगों के दौरान एक युवक के मारे जाने के बाद बिना प्रशासन की अनुमति के योगी ने शहर के मध्य श्रद्धान्जली सभा आयोजित की थी और कानून का उल्लंघन किया था। इसके बाद उन्होंने अपने हजारों समर्थकों के साथ गिरफ़्तारी दी थी। उस वक्त आदित्यनाथ को सीआरपीसी की धारा 151A, 146, 147, 279, 506 के तहत जेल भेजा गया था।
इसी दौरान उनके संगठन हिन्दू युवा वाहिनी के सदस्यों ने मुंबई-गोरखपुर गोदान एक्सप्रेस के कुछ डिब्बों में आग लगा दी थी। जिसमें कई यात्री बाल बाल बच गए थे। उनकी वजह से पूर्वी उत्तर प्रदेश के छह जिलों और तीन मंडलों में भी फ़ैल गए थे।
इस मुख्यमंत्री पर 2017 महाराजगंज जिले में आईपीसी की धारा 147 (दंगे के लिए दंड), 148 (घातक हथियार से दंगे), 295 (किसी समुदाय के पूजा स्थल का अपमान करना), 297 (कब्रिस्तानों पर अतिक्रमण), 153A (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 307 (हत्या का प्रयास) और 506 (आपराधिक धमकी के लिए दंड) के मामले दर्ज हुए थे। पुलिस ने इन मामलों में क्लोजर रिपोर्ट तो साल 2000 में ही दाखिल कर दी थी, लेकिन स्थानीय अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।
साल 1999 का भी मामला महाराजगंज का ही है, जहां उन पर धारा 302 (मौत की सजा) के तहत मामला दर्ज किया गया था। इसके अलावा 307 (हत्या का प्रयास) 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) और 427 (पचास रुपये की राशि को नुकसान पहुंचाते हुए शरारत) के तहत भी उन पर मामला दर्ज हुआ था। पुलिस ने 2000 में ही क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर दी थी, लेकिन फैसला आना बाकी है।
इसी साल महाराजगंज में उन पर आईपीसी की धारा 147 (दंगे के लिए दंड), 148 (घातक हथियार से दंगे), 149, 307, 336 (दूसरों के जीवन को खतरे में डालना), 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) और 427 (पचास रुपये की राशि को नुकसान पहुंचाते हुए शरारत) के तहत मामले दर्ज किए गए। एफिडेविट के मुताबिक पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी, लेकिन फैसला आना बाकी है।
साल 2006 में गोरखपुर में उन पर आईपीसी की धारा 147, 148, 133A (उपद्रव को हटाने के लिए सशर्त आदेश), 285 (आग या दहनशील पदार्थ के संबंध में लापरवाही), 297 (कब्रिस्तानों पर अतिक्रमण) के तहत मामला दर्ज किया गया था। यहां भी पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी, लेकिन फैसला अभी नहीं आया।
साल 2007 गोरखपुर के एक अन्य मामले में वह जमानत पर रिहा हैं। यहां उन्हें धारा 147, 133A, 295, 297, 435 (100 रुपये की राशि को नुकसान पहुंचाने के इरादे से आग या विस्फोटक द्रव्य द्वारा शरारत) और 506 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
और इन सब के बाद अगर वो अखिलेश के ऊपर अराजकता और हिंसा दंगा भड़काने का आरोप लगाएं, तो यह अपने आप में एक बहुत ही हास्यास्पद और मजाकिया लगता है यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा कि एक चोर किसी जज पर चोरी का आरोप लगाया । हालांकि मैं मुख्यमंत्री की तुलना चोर से तो नहीं कर रहा ,लेकिन अखिलेश यादव की तुलना जज से जरूर कर रहा हूं। दावा सिर्फ अखिलेश यादव का ही नहीं, बल्कि सभी लोगों का है की पूरी भाजपा टीम मिलकर भी अगर अखिलेश यादव के खिलाफ एक भी धारा या एक भी चार्जशीट खोल दें तो मानने की सोचा जाए कि योगी आदित्यनाथ की बातों में कुछ सच्चाई रही होगी ,या उनको इस बात का भय हो सकता हो।
खैर इतने जुल्म के बाद भी जब सिर पर पट्टी बंधे हुए धर्मेंद्र यादव मुस्कुराते हुए, घायलों को देखने गए तो उन्होंने अपनी इस मुस्कुराहट के साथ सरकार की हनक, तानाशाही रवैया हिटलरशाही के गाल पर एक जोरदार तमाचा मारा। धर्मेंद्र यादव , ऋचा सिंह, नेहा यादव , अवनीश , उदय यादव इन सभी छात्रों ने दिखा दिया कि वो कोई नागपुरिया विचारधारा के अनुनायी नही है , जिनकी लाठी देखने से हालात खराब हो जाएं बल्कि वो तो उस समाजवादी विचाधारा के अनुनायी है ।
संघर्ष और आंदोलन ही समाजवादियों का ताकत है। योगी सरकार की इस तानाशाही ने इस ताकत को 200 गुना ज्यादा बढ़ा दिया है। बड़े दिनों बाद समाजवादियों का खून सड़को पर बहा है। और इतिहास गवाह है को जब समाजवादियों का खून सड़को पर बहा, समाजवादियों ने सरकार उखाड़ फेकी , और शांति की स्थापना कर समाजवादी ध्वज लहराया है। चाहे वो लेनिन की क्रांति हो, या कार्लमार्क्स के विचारो का आंदोलन।
समाजवादी जननायक भगत सिंह को कौन भूल सकता है। समाजवादी विचारधारा से लबरेज भगत सिंह और लोहिया ने सरकारों को उनकी असली जगह जनता के पैरों में लाकर गिराया है।
सुनो हिटलर के वंशजो , सुनो अंग्रेजो के चेलो, सुनो नागपुरिया कानून के पलको। ये संघर्ष , लाठिया खाना, आंदोलन बनाना , सच्चाई के लिए लड़ जाना, सही के लिए मरने की भी परवाह न करना, तानाशाहों को उनकी औकात पर लाना और आधुनिक हिटलरो का विरोध करना ही समाजवादियों की ताकत है , तुम हमारा जितना खून बहाओगे हमारा आंदोलन उतना मजबूत होगा। तुम जितना मरोगे हम उतनी आवाज के साथ तुम्हारा विरोध करेंगे। तुम जितना दबाओगे हम उतना बड़ा आंदोलन करेंगे। और ये आंदोलन तक चलेगा जब तक तुमको उखाड़ न फेके, और समाजवादी शांतिमय सरकार की स्थापना न करे।
ऋचा सिंह, नेहा यादव, निधि यादव, रमा यादव , सुषमा भारती जैसी समाजवादी सोच से लबरेज नारी शक्ति को मेरा आदर सम्मान और शत शत नमन।
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