मुश्किलों का मैं सार हूं।
मुस्किलो का मैं सार हू।
खामियों का मैं अभिसार हू।
जब डर गया तो ,रहा नही।
अब गिर गया तो कहा नही।
रोकने को आये अड़चने हज़ार
तल्खियां लगाये इज़ारते कतार
सबको रहा खड़ा मैं निहार हु
मुस्किलो का मैं सार हू।
खामियों का मैं अभिसार हू।
वक़्त था तो लड़ा नही।
जीत के पीछे पड़ा नही।
हार थी सामने तो तो मुस्कुरा दिया।
जीत आयी मुस्कुराते तो ठुकरा दिया।
हार जीत से मैं परे, मर्ज़ियो का कुहार हू।
मुस्किलो का मैं सार हू।
खामियों का मैं अभिसार हू।
मौत से मैं क्या डरु।
जिंदगी से मैं क्या करूं।
सफर भी काम आये न ,ऐसा मुकाम हु।
चीखता रहे जो मैं ऐसा बेजुबान हूं।
चढ़ा मंजिलो पर अशुद्धि का श्रृंगार हू।
मुस्किलो का मैं सार हू।
खामियों का मैं अभिसार हू।
शून्य का मैं तेज़ हू।
मंदता का मैं वेग हूं।
हौसलो का सैलाब अब खत्म है।
उसी सैलाब के माथे पर जख्म है।
कर्कश के सामने मैं खड़ा कटार हु।
मुस्किलो का मैं सार हू।
खामियों का मैं अभिसार हू।
दर्द भाव से मैं भरा नही।
मौत वेश से मैं डरा नही
सर्वश्रेष्ठता का सामने एक गुबार है
हाशिये के पर्वतों का अब उतार है।
अकिंचन सा मुस्कुराता,द्वंद का मैं बहार हूँ
मुस्किलो का मैं सार हू।
खामियों का मैं अभिसार हू।
बृजेश यदुवंशी
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