जिन मुद्दों के नाम पर वोट मांगकर मोदी जी अच्छे दिन का वादा करके 2014 की सत्ता हथिया लिए थे। एक के बाद एक करके धांय धांय मोदी जी ने सब मुद्दों पर इंसानी पूर्वजो से भी कमाल की गुलाटी और पलटी मारी। मतलब ऐसी गुलाटी की , जिसे देख कर दो चार इंसानी पूर्वज मारे शर्म के पेड़ो से लटक कर बिना टिकट निकल लिए।

अच्छे दिन ये वही नारा था जिस नारे ने मोदी की जीत में अहम भूमिका निभाई वही नारा उनकी जीत के बाद उनके लिए मुश्किल का सबब भी बन गया। क्योकि ये लॉलीपाप लोगो को पच तो गया, लेकिन फिर जब रिजल्ट नही आया तो लोग उल्टा सवाल पूछना शुरू कर दिए। लोगों को लगा था कि मोदी के पीएम बनते ही देश में आमूलचूल परिवर्तन हो जाएगा और सबके अच्छे दिन आ जाएंगे। लेकिन जल्द ही पता चल गया कि यह सिर्फ एक चुनावी जुमला भर था हकीकत नहीं। रैलियों में बेतहाशा फेकने और छोड़ने का एक भाग था ये "अच्छे दिन"।  तब तो हद ही हो गई जब सरकार यह कहने लगी कि उसने अच्छे दिन का नारा दिया ही नहीं। इनके मंत्रियों ने तो यहाँ तक कह दिया कि अच्छे दिन का जुमला बीजेपी ने नहीं, आम आदमी ने दिया।
वैसे बीजेपी को यह बात याद रखना चाहिए कि जिस अच्छे दिन के नारे ने उसे जिताया उसे पूरा न करने पर उसे हराएगा भी वही। जिन मुद्दों के नाम पर वोट मांगकर मोदी जी अच्छे दिन का वादा करके 2014 की सत्ता हथिया लिए थे। एक के बाद एक करके धांय धांय मोदी जी ने सब मुद्दों पर इंसानी पूर्वजो से भी कमाल की गुलाटी और पलटी मारी। मतलब ऐसी गुलाटी की , जिसे देख कर दो चार इंसानी पूर्वज मारे शर्म के पेड़ो से लटक कर निकाल लिए। नीचे ऐसे ही कुछ मुद्दों और उन मुद्दों पर मोदी जी का लिया गया यु टर्न को जानने और अध्धयन करने की जरूरत है।


समान अचार संहिता

सबसे पहले बात करते है, समान नागरिक संहिता यानी कि कॉमन सिविल कोड की। यानी कि ऐसा कानून जो देश के सभी क्षेत्रों और धर्मो के लोगो पर देश के कानून को समान रूप से लागू कर पाए।  बीजेपी ने चुनाव से पहले इस मुद्दे पर खूब माथा पटकी किया। यहां तक कि ये मुद्दा बीजेपी के चुनावी घोषणापत्र में हमेशा रहा है। वैसे इसके फायदे क्या है ये भी जानना जरूरी है, और ये हमारे देश के लिए आवश्यक क्यों है इसको भी जानने की जरूरत है।
अलग-अलग धर्मों के अलग कानून से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है। समान नागरिक संहिता लागू होने से इस परेशानी से निजात मिलेगी और अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों के फैसले जल्द होंगे। शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा फिर चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों न हो। वर्तमान में हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी कानूनों के तहत करते हैं।
2014 चुनाव के पहले मोदी जी ने बड़ी बड़ी बातें इस मुद्दे को लेकर किया। टीवी और मोदी जी के पत्रकार एजेंट दिन भर इस मुद्दे को लेकर बहस करते दिखे ,और मोदी जी के पक्ष में माहौल बनाते दिखे।लेकिन हुआ क्या ?  2014 के बाद मोदी जी ने कहीं भी इस कानून के लिए कोई कोशिश नहीं की । ना तो ऐसा दिखा कि वह यह कानून बनाना चाहते हैं । बस लोगों को मूर्ख बना के इस कानून के नाम पर अपने पक्ष में किया और फिर ले लिए यू टर्न।


15 लाख

मोदी जी ने एक बार यह भी वादा किया कि वह 15 15 लाख रुपए सब के खाते में देंगे । हालांकि वह इस बात से पूरी तरह मुकर गए  और उसे जुमला बता दिया।  लेकिन फिर भी उन्होंने जो दूसरा वादा लिखित रूप में किया था वह यह था कि वह काला धन 100 दिन के अंदर ले आएंगे । और जब वह करने में नाकाम रहे तो उन्होंने देश के लोगों से ही कहा कि काला धन तो तुम्हारे ही पास है । और यह कहते हैं उन्होंने नोटबंदी लगा दी ।
हम इस बहस में नहीं पड़ेंगे की नोटबंदी में देश का कितना नुकसान हुआ।  और कितने लोग मरे । हम बस सरकार से यह पूछना चाहते हैं कि सरकार क्या अपने इस कार्यकाल में नोटबंदी के आंकड़े अधिकारिक रूप से सार्वजनिक करेगी ? सीएजी की कई बैठकों में आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल गए । लेकिन उन्होंने कभी भी नोटबंदी के बाद पुराने नोटों के संग्रहण का कोई आंकड़ा ऑडिट टीम को नहीं दिया । जब भी पूछा गया तो उन्होंने यही बताया कि टेंडर निकाला गया है , मशीन खरीद रहे हैं, उसके बाद गिन कर बताएंगे। मोदी सरकार क्या यह आंकड़े सार्वजनिक करेगी कि नोटबंदी के समय में कितने रुपयों के कितने नए नोट छापे गए ?  पुराने नोट कितने जमा किए गए ? इसके अलावा ऐसा कितने रुपए रहे जो वापस नहीं आये। 
और काला धन के तौर पर बर्बाद हो गये। साथ ही इन पूरे प्रक्रिया में सरकार के कितने पैसे खर्च हुए ? जैसे कि सरकारी कर्मचारियों के ओवरटाइम के पैसे , ट्रांसपोर्टेशन का पैसा , प्रिंटिंग कॉस्ट कितनी लगी ? और फिर उद्देश्य कितना पूरा हुआ कितना आर्थिक फायदा हुआ यह सब आंकड़े मोदी जी कब पेश करेंगे इसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है।


पत्रकारिता की स्वयिकता

अगर बात पब्लिक इंटरैक्शन की करें तो अक्सर मनमोहन सिंह को कमजोर और मौन रहने वाला प्रधानमंत्री बताने वाले नरेंद्र मोदी जी खुद ही इस मामले में मनमोहन सिंह के आगे बेहद बुरी तरह हारे हुए और कमजोर नज़र आते हैं।  अपने कार्यकाल में मनमोहन सिंह ने कई सारी प्रेस कॉन्फ्रेंस की । जिसमें विभिन्न टीवी चैनलों  के पत्रकार आए  , और  उन्होंने मनमोहन सिंह से बहुत सारे सवाल भी पूछे । लेकिन इसके उलट नरेंद्र मोदी जी ने अपने 5 साल के कार्यकाल में एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं किया। हां गोदी मीडिया के एक दो पत्रकारों को पर्सनल इंटरव्यू जरूर दिया । वह भी पहले से फिक्स सवालों के आधार पर । जबकि देश के पत्रकारों का एक बड़ा वर्ग उनसे इस बात की मांग करता रहा है,  कि वह भी प्रेस कॉन्फ्रेंस करें और पत्रकारों के सवाल का जवाब दें ।
एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार ने तो खुलेआम नरेंद्र मोदी को कई बार इंटरव्यू देने का चैलेंज किया और अपने चैनल पर आने के चैलेंज किया । लेकिन मोदी जी इस बात को भली-भांति समझते थे कि रविश कुमार के सामने जाने का मतलब है अपनी सारी बची हुई पोल पट्टी खुलवाना   पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेई ने जब सरकार के कामों की कच्चा चिट्ठा खोलना शुरू किया तो सबसे पहले उन्हें आज तक से हटवाया गया । और उसके बाद भी वह जब नहीं माने और दुगनी स्पीड से सरकार के कामों का कच्चा चिट्ठा खोलना जारी रखा तो उन्हें एबीपी न्यूज़ से भी हटा दिया गया  ।
पत्रकारिता पर इतना जोरदार हमला आज तक देश के लोकतंत्र के पास में नहीं हुआ ।वहीं इसके उलट जो पत्रकार गोदी मीडिया के माध्यम से दलाली कर रहे हैं , उनकी दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की हो रही है । कईयों ने तो मात्र 2 साल में दो-दो न्यूज़ चैनल खोल लिये ।


मोब लीनचिंग और अफवाहों का राज

देश की गृह व्यवस्था के लिए भी बड़े बड़े वादे करके देश की सत्ता को हथियाने वाले मोदी जी खुद ही देश की व्यवस्था को बिगाड़ने के भागीदार रहे। उन्होंने आईटी सेल और गोदी मीडिया के माध्यम से देश मे ऐसा मौहल बनाया की अफवाहों और गलतफहमी से लोग एक दूसरे के दुश्मन हो गई। नए शब्द "मोब लीनचिंग" ने जन्म लिया। जिसका अर्थ होता गई भीड़ के द्वारा वर्ग विशेष के आदमी को मरवाना।
पहलू खान, एखलाक खान, रकबर खान, इंस्पेक्टर सुबोध सिंह , और न जाने ऐसे कितने लोगों को भीड़ के द्वारा मरवा दिया गया। और इन सब के आरोपी कही न कही भाजपा से जुड़े हुए मिले। हो भी क्यों न भाजपा के बड़े नेता इस हत्यारो और माफियाओ का पूरा सम्मान जो करते आये है।
केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा हत्या के आरोपियों को माला पहना कर स्वागत कर चुके है, और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह भीड़ के हिंसा के अपराधियो से जेल में मिल के आये है।तो क्या अब हम ये मान ले कि इस तरह की हत्यारी भीड़ और इस तरह के गुंडों का सरक्षण भारतीय जनता पार्टी और उसके नेता कर रहे है ?
यदि किसी व्यक्ति ने कोई पाप किया ,  उसकी सजा सिर्फ मौत थी , लेकिन उसे ये  सजा कोर्ट को देनी चाहिए थी , न कि कुछ लुच्चो और मव्वालीयो को देनी चाहिए। अगर ऐसे ही चलता रहा तो , हर फैसले बंदूक और तलवार की नोक पे होंगे। फिर न तो पुलिस की जरूरत होएगी, न प्रधानमंत्री की न मुख्यमंत्री की। फिर जिसके पास जितने गुर्गे होंगें वो उतना बड़ा सत्यवादी साबित होगा।
कोर्ट, कानून, विधायक, मंत्री, अधिकारी, पुलिस , संसद , लोकतंत्र , व्यवस्था,  फिर किसी की कोई जरूरत नही रहेगी। सब माफियाराज से डिसाइड होगा। फिर ये देश व नही बन पाएगा, जिसका सपना सरदार भगत सिंह ने देखा  था।
यह देश वही बन गया है , जो उन्होंने चेताया था की " गोरे साहब चले जायेंगे और भूरे साहब आ जाएंगे। अगर हम भी सारे फैसले एकतरफा सुनवाई और भीड़ की भड़काऊ भावना के आधार पर करने लगे , अपनी सोच दूसरो पर थोपने लगे तो फिर क्या फर्क रह गया है हममे और तालिबान में ????


प्रधानमंत्री का झूठ

नरेन्द्र मोदी को ये ग़ुमान है कि वो बहुत धाँसू वक़्ता हैं। ये बात को ख़ारिज़ भी नहीं किया जा सकता। भाषणों की बदौलत ही वो सवा सौ करोड़ लोगों वाले देश के मुखिया के आसन तक जा पहुँचे। वर्ना, उनके प्रशासनिक, कूटनीतिक, आर्थिक, विधायी और राजनीतिक कौशल को तो देश चार साल से झेल ही रहा है। लेकिन इससे भी कही ज्याफ बड़े वो फेकू और झूठे है। भाषणों की वजह से ही मोदी की फेंकूँ, जुमलेबाज़, झूठ पर झूठ बोलने वाले या कुछ भी बोल देने वाला मसख़रे नेता जैसे ख़ास पहचान बनती चली गयी। मज़े की बात तो ये है कि मोदी हरेक झूठ को अति आत्मविश्वास से बोलते हैं।
सिर्फ नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में ही नरेंद्र मोदी ने झूठ नहीं बोला बल्कि सरदार पटेल से लेकर के सरदार भगत सिंह तक चल शेखर आज आज तक हर क्रांतिकारी के बारे में इन्होंने झूठ बोला। और उस क्रांतिकारी को अपने गलत नजरिए से दिखाकर कांग्रेस के प्रति नफरत पैदा करने की कोशिश की।  कभी कहते हैं कि सरदार पटेल को नेहरू जी ने प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया। तो कभी कहते हैं कि सरदार भगत सिंह जी जब जेल में बंद थे तो कोई कांग्रेसी उनका सपोर्ट नहीं किया । मैं आज प्रधानमंत्री जी के बोले हुए कई झूठ और उनकी सच्चाई सबके सामने ले आऊंगा जैसा कि मैंने ऊपर कांग्रेस द्वारा नेताजी के लिए किए गए कार्यों को दिखाया अब बात करते हैं। सरदार भगत सिंह जी के बारे में।
में एक रैली में कर्नाटक चुनाव में ही हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी ने यह कहा कि " उन्हें जहां तक जानकारी है जब  भगत सिंह जेल में बंद थे,  कोई भी कांग्रेसी नेता उनसे मिलने नहीं गया " ।  उन्होंने कहा था कि " अगर किसी के पास इसके अलावा सही जानकारी हो तो वह बताए तो मैं सुधार कर लूंगा। "
हालांकि इसके तुरंत बाद पत्रकार रविश कुमार ने प्रधानमंत्री को सच्चाई बताई ,लेकिन प्रधानमंत्री ने उसे सही नही किया। प्रधानमंत्री जी की इस तरह की भाषण देने वाली को लिखने वाली टीम में 20 से भी ज्यादा लोग हैं।  तो क्या वह निहायत ही बेवकूफ वाहियात और गवार टाइप के लोग हैं ?  जिन्हें इतिहास तथ्य और तर्कों से कोई मतलब नहीं है?  वह अपने हिसाब से मनगढ़ंत बातें लिखते हैं ? और प्रधानमंत्री के सामने एक तथ्य वहीं झूठा और गलत भाषण रख देते हैं ?
जिसे प्रधानमंत्री बड़ी मासूमियत से पढ़ लेते हैं,  बिना सही गलत की जानकारी के  ? या फिर वह लोग प्रधानमंत्री के आदेश से ही इस तरह के झूठे और मनगढ़ंत भाषण लिखते हैं?  जिसमें इतिहास की बातों को तोड़ मरोड़ कर और इतिहास की बातों को झूठा बना कर पेश किया जाता है।  क्या यह सब कुछ प्रधानमंत्री की मर्जी से हो रहा है ?  या प्रधानमंत्री इन सब बातों से अनजान है?  अगर प्रधानमंत्री को इसके बारे में कुछ भी पता नहीं था,  तो जब उनके इतने सारे झूठ लोगों के सामने आए ।
जैसे तक्षशिला को बिहार में बताया गया , भारत के 600 करोड़ वोटर बताए गए,  तब प्रधानमंत्री ने अपने भाषण वाली टीम चेंज क्यों नहीं की  ? और अपने इतने बड़े बड़े झूठ पर उन्होंने देश से माफी क्यों नहीं मांगी?  इसका इशारा साफ है इसका मतलब साफ है कि यह सारे भाषण प्रधानमंत्री भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के इशारे पर लिखे जाते हैं।  जो उस समय की जन भावनाओं को और उग्र और कट्टर बनाने के हिसाब से अनुकूलित होते हैं।
इन भाषणों का सत्य से और इतिहास से कोई सरोकार नहीं होता है । यह भाषण पर अपना चुनावी वोट बैंक साबित करने की कोशिश करते हैं।  फिर चाहे ही वोट पाने के बाद सब लोग आपस में मर कटकर खत्म क्यों ना हो जाए ।इसे प्रधानमंत्री को शायद कोई फर्क नहीं पड़ता है।


किसानों के साथ धोखा

साहिब 2014 में आए तो रट रट कर भाषण दिए। "मित्रों साथ महीने दे दो,  मित्रों 70 महीने दे दो।"
फिर "मित्रों 2022 में ये कर देंगे , 2022 में वो  कर देंगे"।  2022 में ही सारा गोल सेट करके रखा है साहब ने।  2014 में बनी सरकार 2019 तक चलनी है , लेकिन सारा गोल सेट कर रखा है 2022 में ।
चाहे वह 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा हो , चाहे न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाने का वादा हो , या एमएस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को और बढ़ा कर लागू करने का वादा हो । साहेब ने इन सब मामलों में इंसानी पूर्वजों की तरह लपक कर गुलाटी मारी है । और गुलाटी भी ऐसी की डाल पर लटके हुए इंसानी पूर्वज देखकर शरमा जाए ।और रोज सुबह शाम साहेब की फोटो पर अगरबत्ती माला चढ़ाकर फिर से गुलाटी मारने की प्रेक्टिस करने लगे। 
साहेब ने किसानों के लिए एक और योजना निकाली।  जिसमें उनको यह कहा गया कि हम आप की फसलों का बीमा करेंगे , और प्राकृतिक आपदा आने पर हम उस नुकसान के बराबर की भरपाई करेंगे । लेकिन यहां भी साहेब खेल कर गए,  और खेल उन्होंने ऐसा किया कि फसल के नुकसान की भरपाई वाली रकम किसान को ना देकर उस भुगतान को बीमा कंपनी को देने लगे ।अब इसकी भी जांच नहीं की कि बीमा कंपनी किसान को पैसा दे रही है, या नहीं दे रही है। या क्लेम एक्सेप्ट कर रही है या नहीं कर रही है।  कर रही है तो कितना कर रही है। 
इन सब से साहब को कोई मतलब नहीं है। बस साहब ने अपने बीमा कंपनी वाले मित्रों को खुश जरूर कर दिया।  बात किए थे किसानों की आय दोगुनी करने की,  यहां तो साहब ने बीमा कंपनियों की आय दसगुनी कर दी।  बीच में साहब ने एक और शिगुफा छोड़ दिया की न्यूनतम समर्थन मूल्य डेढ़ गुने से ज्यादा बढ़ गया है । लेकिन जब उसका भी सच्चाई सामने आई तो लोग सोचने पर विवश हुए । क्योंकि उसमें सारी कैलकुलेशन ही खा गए साहब। उन्होंने उसमें मैंन पावर कॉस्ट को जोड़ा ही नहीं। 
चलो हम मान भी लेते हैं कि साहेब ने 150% तक न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया,  तो 2014 के हलफनामे में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यह क्यों कहा कि वह किसानों की फसलों की लागत की 50 परसेंट से ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य दे ही नहीं सकती । तो अब मोदी जी बताने का कष्ट करेंगे कि 150 प्रतिशत वाला मिरेकल कैसे हो गया ?


2 करोड़ नए रोजगार का लेमनचूस

मोदी जी ने देश की जनता कर साथ एक वादा ये किया कि वो हर साल 2 करोड़ नए रोजगार देंगे। लेकिन पूरे 5 साल में भी वे 2 करोड़ रोजगार नही दे सके। उल्टा हर जगह से रोजगार के मौके कम कर दिए गए। जीएसटी और नोटबन्दी की वजह से सारे युवा बेरोज़गार हो गए।वैसे तो नोटबंदी को मोदी सरकार ब्‍लैकमनी के खिलाफ बड़ा फैसला बताती रही है लेकिन इस फैसले की वजह से बेरोजगारी में जबरदस्‍त बढ़ोतरी हुई है।  नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में बेरोजगारी की दर 6.1 फीसदी है। यह आंकड़ा 45 सालों के उच्‍चतम स्‍तर पर है।इससे पहले  1972-73 में देश में बेरोजगारी की दर 6 फीसदी से ज्‍यादा थी। अहम बात ये है कि आंकड़े नोटबंदी के बाद के हैं।
  शहरी क्षेत्र में सबसे ज्‍यादा बेरोजगार रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों के मुकाबले शहरी क्षेत्र में सबसे ज्‍यादा बेरोजगारी है। आंकड़ों के मुताबिक शहरी क्षेत्र में बेरोजगारी की दर 7.8 फीसदी है जबकि ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 5.3 फीसदी है। वहीं, 2017-18 में युवाओं की बेरोजगारी दर में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षित महिलाओं की बेरोजगारी दर बढ़कर 17.3 फीसदी रही है। इससे पहले 2004-05  से 2011-12 के बीच ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं की बेरोजगारी दर 9.7 फीसदी से 15.2 फीसदी के बीच थी।  वहीं, ग्रामीण क्षेत्र के शिक्षित पुरुषों की बेरोजगारी दर का आंकड़ा 10.5 फीसदी पर है। बता दें कि 2004-05 से 2011-12 के बीच यह आंकड़ा 3.5 से 4.4 फीसदी के बीच था।
और जब नौकरी को लेकर रोजगार को लेकर सवाल पूछा गया तो , युवाओं को स्किल इंडिया जैसी चीजें थमा दी गई जिसका भविष्य में कहीं कोई फायदा नहीं नजर आया । विपक्ष के हल्ला करने पर और लोगों के बार-बार सवाल उठाने पर जवाब में पकोड़े तलने का और ठेला लगाने का सुझाव दे दिया गया।


एक के बदले 10 सर

एक के बदले 10 सर लाने का वादा करके सत्ता में आने वाले मोदी जी ने आते हो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को शपथ ग्रहण समारोह में बुलाकर खूब खिलाया पिलाया । इसके बाद दोस्ती साधने पाकिस्तान गए। उसके बाद जो दोस्ती का दौर शुरू हुआ उसके जलवे क्या कहने।  कभी गिफ्ट में साल दिया जाता था।  तो कभी बिरयानी खाने निकल पड़ते थे । पाकिस्तान से दोस्ती इस कदर रही कि प्रधानमंत्री खुद ही भूल गए की वो भारत जैसे बड़े देश के प्रधानमंत्री हैं । और बिना प्रोटोकॉल के,  बिना देश का मान सम्मान का ध्यान दिए बिना बुलाए पाकिस्तान पहुंच गए।  और बर्थडे मना कर आए ।
एक सर के बदले 10 सर का वादा करने वाले मोदी जी और उनके मंत्री सिर्फ निंदा ही करते रह गए । और कई मंत्रियों के नाम तो "केंद्रीय निंदा मंत्री" भी पड़ गया।  2014 से पहले आतंकी पब्लिक जगहों पर हमला करते थे। और ऐसी जगहों पर हमला करते थे जहां पर पुलिस या सेना के लोग कम रहते थे । लेकिन साहब के आने के बाद आतंकियों की हिम्मत इतनी बढ़ गई कि अब आक्रमण सीधा सेना के कैंप ऊपर होने लगे।पठानकोट एयरबेस पर अटैक और उरी एयरबेस पर अटैक इसी का एक जीता जागता उदाहरण रहा।  इसके अलावा सीजफायर में ना जाने कितने जवान मोदी जी की इस महत्वाकांक्षा की भेंट बढ़ गए ।
आर एस एस प्रमुख मोहन भागवत ने भी यहां तक कह दिया कि जब बॉर्डर पर युद्ध जैसे हालात नहीं तो जवानों की शहादत कैसे हो रही है । मोदी जी ने फिर कभी भी यह बताने का कष्ट नहीं किया कि एक के बदले 10 सर वाला वादा कहां गया।


"गंगा माँ ने बुलाया है "

साहेब ने गंगा मैया के नाम पर भी बनारस के लोगो को मोहा, और मोह कर वोट ले लिए। लोगो को लगा कि बहुत दिनों के बाद कोई अलग कॉन्सेट लेकर आया है, वैसे भी गंगा कोई सीरियस चुनावी मुद्दा तो कभी रही नही थी। हा यदा कदा कोई हड़ताल कर देता था गंगा सफाई को लेकर , लेकिन साहेब आते ही जबरजस्ती गंगा माँ का बेटा बन गए , और सुरु कर दिया आपना काम। गंगा नदी को थेम्स नदी की तरह साफ बनाना, गंगा रिवर फ्रंट लगाने की बात करना, गंगा को और नदियों से कनेक्ट करने की बात, गंगा को जलमार्ग की तरह इस्तेमाल करने की बात, साहेब ने इतनी सारी लंबी लंबी फेकी की लोग उसके लपेटे में आ गए।
साहेब जैसे ही प्रधानमंत्री बने , उन्होंने दिखावे के लिए गंगा एक्शन प्लान का नाम बदल दिया । अब गंगा एक्शन प्लान को हटाकर,  "नमामि गंगे" योजना कर दी।  और उस समय उन्होंने उस परियोजना के लिए लगभग लगभग एक भारी भरकम रकम को एलॉट किया लेकिन । 4 साल में सरकार उस पैसे का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाई । और जब संसद में सरकार ने नमामि गंगे योजना की रिपोर्ट सीएजी को सौंपी तो सीएजी ने सारा कच्चा चिट्ठा सामने रख दिया ।
सीएजी के मुताबिक 2014 से 2017 के बीच नमामि गंगे के लिए आवंटित पैसों में से 50% हिस्सा भी खर्च नही किया गया।  ऐसे में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के 2133 करोड़, 422 करोड़ और 60 करोड रुपए खर्च ही नहीं किए गए ।
जबकि यह रकम बहुत सारे राज्य के कार्यक्रम और  एजेंसियों के उपक्रमों के साथ खर्च करनी थी ।
सीएजी की रिपोर्ट कहती है कि "46 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट इंटरसेक्शन और डायवर्जन प्रोजेक्ट्स और नहर पर योजनाओं की लागत पांच हज़ार करोड़  से ग्यारह हजार करोड़ थी।
2710 करोड़ रुपए की लागत वाली 26 परिजनों में जानबूझकर देरी की गई । जिसकी वजह भूमि का उपलब्ध नहीं होना और ठेकेदारों की कामचोरी बताई गई।  रिपोर्ट में सीएजी ने  बताया कि कार्य को अंतिम रूप नहीं दिए जाने की वजह से स्वच्छ गंगा नदी में से एक भी रुपए का इस्तेमाल नहीं किया जा सका है।  और इसके तहत कुल 198 करोड रुपए अभी बैंक में पड़े हुए हैं ।
अब जब सरकार खुद भी सफाई के और काम के आंकड़े देती है , तो ही स्थिति और भी भयंकर बन जाती है।  सरकार ने 13 मई 2015 को नमामि गंगे योजना शुरू की । 3 सालों में सरकार ने 4131 करोड़ रुपए दिए और सफाई के लिए कुल बीस हज़ार करोड रुपए अलॉट किए। लेकिन उसमें से अभी तक केवल तीन हज़ार करोड रुपए ही इस्तेमाल हो सके हैं । देश के पांच अलग-अलग राज्यों के 97 शहरों से होकर गुजरने वाली 2525 किलोमीटर लंबी गंगा के किनारे बसे हुए शहरों से लगभग लगभग 2953 मिलियन टन कचरा निकलता है।
खूब सारे प्रचार-प्रसार के बाद भी सरकार ने 326 करोड रुपए खर्च किए । और इस तरह से 1700 करोड़ से रुपए से भी ज्यादा की रकम खर्च ही नहीं हो पाई। 2015-16 में भी स्थिति कुछ खास नहीं बदली , और वही फटी फटाई पुरानी राग अलापने वाली केंद्र सरकार ने पिछली बार के 2137 करोड़ के बजट आवंटन को घटाकर 1650  कर दिया । और इसमें भी 18 करोड रुपए बिना खर्च के बच गए। अब सवाल यह भी है कि हमारे साहब इतनी महत्वपूर्ण परियोजना को लेकर गंभीर क्यों नहीं है ? जवाब है हा, वो सिर्फ चुनाव और वोट के लिए सीरियस होते है।


पार्टियों के फण्डिंग की जांच का लॉलीपॉप

सभी राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाने के बात पर भी मोदी जी पलटी मार लिया।  यह भी बीजेपी का एक अहम वादा था। लेकिन कथनी और करनी में फर्क होता है और अब मोदी सरकार इस वादे से भी मुकर रही है। सुप्रीम कोर्ट के एक नोटिस के जवाब में मोदी सरकार ने कहा, 'राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने से इसके सुचारू संचालन में बाधा पहुंचेगी।'
और इस तरह राजनीति में काले धन को चंदे के रूप से सफेद करने के राश्ते को और बड़ा और आसान बना दिया गया। राजनीतिक दलों को 2000 रुपये तक के प्रति व्यक्ति चंदे का कोई हिसाब न देने की छूट दे दी गयी। साथ ही राजनीतिक दलों के विदेशो से मिलने वाले चंदो को जांच की प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया। जिससे कि हवाला और दलाली के पैसों का ट्रांसेक्शन बेहद आसान हो चुका है।
बता दें कि इस तरह से राजनीतिक फंडिंग के अनेक मामले पहले भी सामने आते रहे हैं। मामला भाजपा को मिले कथित चंदे का भी है। भाजपा के इस तरह के गोलमाल पर न ईडी, न सेबी और न ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का ध्यान जा रहा है।भाजपा के दबाव में वित्तीय संस्थाएं ऐसे मामलों को स्टेप डाउन कर जाती हैं। आरोप है कि इस राजनीतिक दल की एक शैल कंपनी आरके डेवलेपर है। साथ ही स्किल रिलेटर्स प्राइवेट लिमिटेड और दर्शन डेवलेपर प्राइवेट लिमिटेड भी ऐसी ही कंपनी हैं।
इन्होंने सेक्शन 182 के अंतर्गत भाजपा को कथित तौर पर 20 करोड़ रुपये का चंदा दिया है। इसी सेक्शन में ये प्रावधान है कि जो कंपनी राजनीतिक फंडिंग करती है, उसे तीन साल तक प्रोफ़िट मेकिंग कंपनी यानी लाभ में चलने वाला उद्योग, होना जरुरी है।बैलेंस शीट बताती है कि आरके डेवलेपर को 2012-13 में करीब 25 लाख रुपये का नुकसान हुआ है।
स्किल रिलेटर्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी, जिसने भाजपा को 2 करोड़ का चंदा दिया है, वह भी लॉस मेकिंग कंपनी बताई गई है। इसमे हैरानी की बात ये है कि इन तीनों कंपनियों ने अपनी बैलेंस शीट में यह तक नहीं बताया है कि उन्होंने भाजपा को चंदा दिया है।मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर की 2017-18 की रिपोर्ट में यह सब जानकारी सार्वजनिक है।


नेता जी सुभाष चंद्र बोस की फाइलों को सार्वजनिक करने का वादा

सुभाष चंद्र बोस की फाइलों को सर्वाजनिक करने की घोषणा उस समय चुनावो के लिए ये जबरजस्त घोषणा थी।  गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जनवरी 2014 में एक रैली में कहा था, 'पूरा देश जानना चाहता है नेताजी की मौत किन हालात में हुई.'खैर, वादों से पलटने में माहिर बन चुकी इस सरकार ने दिसंबर 2014 में एक आरटीआई के जवाब में कहा, 'सुभाष चंद्र बोस से संबंधित दस्तावेजों का खुलासा दूसरे देशों से हमारे संबंधों को खराब कर सकता है.'  नेता जी की फाइलों को सार्वजनिक करने के नाम पर पूरा प्रपंच किया गया।
और उसमें भी नेहरू जी को विलेन साबित करने की कोसिस की गई। एक बिना सिग्नेचर वाला अंग्रेजो को लिखा हुआ एक नोट ये बता कर सामने किया गया था कि ये नोट नेहरू जी ने इंग्लैंड को लिखा है। उस नोट में यह लिखा दिखाया गया कि " सुभाष आपके युद्ध गुनाहगार है"  । और कमाल की बात ये रही कि उसके नीचे न तो प्रधानमंत्री कार्यालय का स्टाम्प और न ही प्रधानमंत्री नेहरू का सिग्नेचर।  अब ये भी सुना है क्या की कोई प्रधानमंत्री बिना स्टाम्प या बिना सिग्नेचर के कोई लैटर लिखे।
खैर नेता जी की फाइलों को सार्वजिनक करने का ढोंग रचा गया और उन्ही फ़ाइल को सार्वजनिक किया गया जो पहले से पब्लिक डोमेन पर उपलब्ध थी। जो राजदार फाइलें गुप्त थी , उन्हें गुप्त ही रखा गया और वो आज तक गुप्त है।
मतलब ये की नेता जी के नाम पर देश की भावनाओ का इस्तेमाल करके मोदी जी ने सिर्फ और सिर्फ वोट का जुगाड़ किया।
जब सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हो गई और उनकी आजाद हिंद फौज के हजारों अफसर और सैनिक गिरफ्तार कर लिए गए तो देश के सामने चुनौती पैदा हो गई ।अपने मित्र सुभाष की मृत्यु के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस काम काम संभाला। इन सैनिकों को बचाने के लिए देश के भावी प्रधानमंत्री ने वह काला चोगा फिर से धारण किया, जिसे वे वकालत के कैरियर की बहुत शुरुआत में छोड़ चुके थे। नवंबर 1945 में लाल किले में आइएनए सैनिकों का मुकदमा  तीन शख्स थे जिन्होंने लड़ा, ये तीन लोग थे। जवाहर लाल नेहरू, सर तेज बहादुर सप्रू और हमारे समय के मुखर जस्टिस मार्कंडेय काटजू के दादा कैलाश नाथ काटजू।
नेहरू एक तरफ मुकदमा लड़ रहे थे, दूसरी तरफ नेता की हैसियत से इन सैनिकों को बचाने में लगे थे और तीसरी तरफ देश की जनता में वह उत्साह फैला रहे थे जो "आजाद हिंद फौज" के सैनिकों की रिहाई को राष्ट्रीय मुद्दा बना सके।
शायद हमारे प्रधानमंत्री को इतनी जानकारी नही वरना आज आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गांधी परिवार पर लाल किले से  कटाक्ष नही करते। इतिहास में पहले प्रधानमंत्री है जो बिना जानकारी के ही लंबे-लंबे भाषण देते है जिसमें अधिकांश जानकारी झूठी होती है और कांग्रेस , गांधी परिवार पर कटाक्ष होते है।


100 दिन के अंदर काला धन लाने का वादा

2013 में मोदी ने एक रैली में कहा था कि अगर बीजेपी की सरकार बनी तो वे काला धन वापस लाएंगे और इससे हर गरीब को 15-20 लाख रुपये मिलेंगे। लेकिन इस वादे का हश्र भी बाकियों जैसा ही हुआ। न तो काला धन वापस आया, न हर गरीब को 15 लाख रुपये मिले। और तो और अब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने तो यह भी कह दिया कि यह सिर्फ एक मजेदार राजनीतिक अभिव्यक्ति (चुनावी जुमला) थी। और 15 लाख या काला धन आना तो दूर उल्टा देश से दुगने रफ्तार से पैसा बाहर गया। साथ ही सरकार के कुछ दोस्त भी गए।  उनको जम कर लोन बांटा गया। और उनके भाग जाने के बाद उन पैसो को डूबत खाते में डाल दिया गया। और लोन की वसूली सिर्फ नाम मात्र की रही।
रिजर्व बैंक के मुताबिक पिछले चार साल में मात्र 29 हजार करोड़ की वसूली हो पाई है। पिछले चार वित्तीय वर्ष (2014-2018) में 21 सार्वजनिक बैंक महज 29,343 करोड़ रुपये की वसूली कर पाए हैं। जबकि इस दौरान बैंकों ने 2.72 लाख करोड़ रुपये के फंसे कर्ज को राइट ऑफ कर दिया गया।इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड' (IBC) की वजह से 4 लाख करोड़ के एनपीए की वसूली हुई है। यूपीए सरकार द्वारा कॉरपोरेट को दिया गया करीब 9 लाख करोड़ रुपये का कर्ज एनपीए या फंसे कर्ज में तब्दील हो गया था, उसमें से ही यह वसूली की गई है। लेकिन रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि साल 2016-17 और 2017-18 (दिसंबर तक) में सार्वजनिक बैंकों ने महज 15,786 करोड़ रुपये की वसूली की है। इनमें आईबीसी सहित सभी माध्यमों से वसूली शामिल है। बैंकों ने आईबीसी के तहत जनवरी 2017 से वसूली शुरू की थी।
काले धन के नाम पर कुछ भी नही किया गया। बल्कि उल्टा अपने मित्रों को प्लेन में बैठा बैठा कर विदेश शिफ्ट करा दिया। ललित मोदी, नीरव मोदी, विजय माल्या, मेहुल चौकसी।  न जाने मित्र पैसे लेकर भाग गए।


अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण।

राम मंदिर वह मुद्दा है, जो किसी भी सड़ी गली, मैली कुचैली , घटिया से भी घटिया पार्टी को सत्ता को शिखर पर पहुँचा देता है। दरअसल ये कमाल भगवान राम का है, जो मरी हुई पार्टी को भी जिंदा कर देते है। भगवान राम के लिए जो काम हनुमान जी ने संजीवनी लाकर किया था, वही काम राजीव गांधी ने राम मंदिर का मुद्दा बीजेपी को देकर किया।अगर हम इसे समझने की कोसिस करेंगे तो पाएंगे की राम मंदिर वो मुद्दा है, जिसे बीजेपी धरातल पर आने नही देगी। यानी मन्दिर बनने नही देगी। ऐसा इसलिए कि कोई भी समझदार सोने का अंडा देने वाली  मुर्गी को एक ही बार मे काट कर सारे अंडे नही निकलेगा। ठीक वैसे ही राम मंदिर बीजेपी के लिए सोने के अंडे वाली मुर्गी है। जिसे वो मंदिर बनवा कर मरना नही चाहते।
बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा से लेकर उत्तरप्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने बयान दिया था कि अगर कोई विकल्प नहीं बचेगा तो केंद्र सरकार संसद में कानून लाएगी।हालांकि बाद में मौर्य ने कहा हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। लोकसभा में हमारे पास बहुमत है, लेकिन हमारे पास बिल पास करने के लिए राज्यसभा में बहुमत नहीं है। इसलिए विकल्प चुनने का समय नहीं है।
बीजेपी राम मंदिर के नाम पर 30 सालों से वोट मांग रही है। 2014 में भी बीजेपी ने राम मंदिर के निर्माण का वादा किया था। हालांकि उस चुनाव में नरेंद्र मोदी ने विकास का नारा देकर भारी बहुमत हासिल किया था।लेकिन अब 2019 के चुनावी समर में उतरने से पहले राम फिर याद आने लगे हैं।अबतक का इतिहास रहा है कि बीजेपी जब भी ग्राउण्ड ज़ीरो पर फंसती दिखी है, उसने राम मंदिर का सहारा लिया है। ऐसे में बीजेपी के लिये गुजरात में राम मंदिर का मुद्दा डूबते को तिनके का सहारा जैसा है।
आप 1989 से लेकर 1998 तक के लोकसभा चुनावों में उसके घोषणापत्रों को देख लीजिए। सबमें प्रथम पृष्ठ का आरंभ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की व्याख्या से होता और विवादित स्थान पर राम मंदिर का निर्माण उसमें शामिल होता था। हालांकि 2009 और 2014 के चुनावों में यह अंतिम पृष्ठ पर चला गया।मंदिर के नाम और 20 हज़ार करोड़ से भी ज्यादा रकम चंदे के रूप में अर्जित की गई। खुद भाजपा ने 700 करोड़ की हाई टेक आफिस बना लिया। जो किसी सेवन स्टार होटल से कम नही है। भाजपा में नेता और राम मंदिर के नाम पर राजनीति करने वाले साररे नेताजी लोगो की दिन दूनी रात चौगुनी धनिक बृद्धि हुई है। खुद महलो में रह रहे है। लेकिन ट्रिपल तलाक , और एस सी ,एस टी एक्ट की तर्ज़ पर एक अध्यादेश लाकर मंदिर बनाने का कानूनी राश्ता साफ नही कर रहे हैं। क्योकि नियत नही है।
इनके बारे में तो कहावत भी प्रचलित हुई-
राम लाल टाट में,पट्ठे सारे ठाठ में।
मंदिर वही बनाएंगे , लेकिन तारीख नही बताएंगे।



कुल बातो का निष्कर्ष यही निकलता है कि 2014 में मोदी जी ने जितना हो सकता था उतनी बातो का वादा किया , बिना उन बातों के तह तक गए। उन्होंने जम कर फेका, झूठ बोला और ऐसे मुद्दे जान बूझ कर उठाये जिससे कि जनता की भावनाएं जुड़ी हो। हालांकि की उनकी नियत में उन मुद्दों को सुलझाना बिल्कुल नही था। वो तो सिर्फ उन मुद्दों में उलझा कर लोगो का वोट लेना चाहते थे। और उन्होंने पूरे पांच साल ये भी कोसिस किया कि जनता इन्ही फालतू के भावनात्क मुद्दों में उलझे रहे है। एक दूसरे को शक और नफरत की निगाह से देखते रहे, जिससे कि उनका ध्यान देश के मुख्य और असली मुद्दों पर जैसे गरीबी, शिक्षा, सुरक्षा, रोजगार, आदि पर न जाये ।  और हुआ भी लगभग ऐसा ही, मोदी जी ने कुछ इस तरह का मौहाल बनाया की लोग टैक्स सेलिब्रेट किये और पकोड़े तलने और तलवाने की सलाह देने लगे। साथ ही पकोड़े तलना राष्ट्रीय रोजगार तक घोषित करवा दिए।
जय समाजवाद









Comments

Popular Posts