बताओ तो जरा , पूरा का पूरा जहाज खा गए साहेब । इहो ध्यान नही दिए कि जहाजव में मिसाइल भी लगा रहे, अब खाने के बाद मिसाइल पेटवे में फट गया तो? और अगर नही भी फटा तो पाचन प्रक्रिया पूरी होते ही आउटपुट की बारी आई तो विमान तो पच जाएगा , लेकिन मिसाइल नही पचेगी। और विज्ञान के अनुसार जो चीज़ पचती नही वो सुबह बाहर आ जाती है ? फिर लोग क्या कहेंगे , राफेलखोर कहा से मिसाइल मार रहा है?

बताओ तो जरा , पूरा का पूरा जहाज खा गए साहेब । इहो ध्यान नही दिए कि जहाजव में मिसाइल भी लगा रहे, अब खाने के बाद मिसाइल पेटवे में फट गया तो? और अगर नही भी फटा तो पाचन प्रक्रिया पूरी होते ही आउटपुट की बारी आई तो विमान तो पच जाएगा , लेकिन मिसाइल नही पचेगी। और विज्ञान के अनुसार जो चीज़ पचती नही वो सुबह बाहर आ जाती है ? फिर लोग क्या कहेंगे , रफेलखोर कहा से मिसाइल मार रहा है? लपक के झूठ , चोरी चकारी और खानेबानी चल रही है। हमारे साहेब का गणित ही पूरा अलग है, किस दुनिया से कौन सी निराली डिग्री लेकर आये है भगवान ही जाने ?

526 करोड़ रुपये प्रति विमान की जगह 1650 करोड़ रुपये प्रति विमान की दर से खरीदने के बाद भी उसे सस्ता कहने की गणित सिर्फ हमारे साहेब ही लगा सकते है । ठीक वैसे ही जैसे मालवीय साहेब की खलिहर लोगो की टीम ने पेट्रोल को 90 रुपये पार करने के बाद भी ग्राफ बना कर सस्ता दिखा दिया गया था। वो खलिहर लोग भी उसी साहेब वाली यूनिवर्सिटी से पढ़ रहे होंगे।

अब इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी के संस्थापक साहेब के ऊपर घोटाले का आरोप लगाने की हिम्मत हुई तो हुई कैसे राहुल बाबा की ? बताओ तो जरा, जिस आदमी की हैसियत इतनी बड़ी हो कि उसका यही पता नही चलता कि कब देश मे है , कब विदेश में , कब प्लेन में क्या वो करोड़-दस करोड़-हजार करोड़ का घोटाला करेगा ? घोटाले का आरोप इतने बड़े आदमी पर लगाया , वो भी सिर्फ 50 हजार करोड़ या 60 हजार करोड़ का ? हद होती है न?  कम से कम ये आरोप लगाने से पहले साहेब के पद की हैसियत का भी ख्याल रखना चाहिए न।  इतने टुच्चे रकम का आरोप उस आदमी पर लगाया जिसका 700 करोड़ का अकेले आफिस है।

बताओ तो जरा ,इतनी छोटी रकम की चोरी का आरोप लगा कर साहेब के पद की गरिमा ही गिरा दी। वो भी तब जब मोदीजी ने एक बार भी - अपने वचनों से पद की गरिमा कभी गिरने नही दी।

ये बिल्कुल बेमतलब बात है कि राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद में जबरदस्त घोटाला हुआ है। भला उस प्रधानमंत्री के राज में घोटाला कभी हो सकता है, जो न खाता हो, न खाने देता हो, सिर्फ़ योगा करता हो और करने देता हो। और हा यदा कदा झोला लेकर जाता हो और दोस्तो को भी झोला भर भर के विदेश पहुँचा देता हो। 

ऐसे परम पूज्यनीय ईमानदार चाय वाले की सरकार में,  जिसकी पार्टी का अध्यक्ष उससे भी ज्यादा ईमानदार और साफ सुथरी छवि वाले हो , साथ मे उसका बेटा इतना तेज तर्रार व्यापारी हो कि जो पचास हज़ार का 80 करोड़ एक साल में बना ले , उसके ऊपर घोटाले के आरोप की गंदगी ??? छि: कितनी बदबू आ रही है, ये बात सुनकर भी। अरे राम मेरी तो नाक ही सड़ जाएगी इस बदबू से, कोई बचाओ मुझे। भगवान करे ऐसी गंदगी साहेब और उनके शाह पर लगाने वालों को ऐसा श्राप दे कि वो घर मे पोर्न देखते हुए पकड़े जाए।

चाहे तो पिछले 5000 सालों के इतिहास उठा कर देख लो, चाहे वो हर्षवर्धन हो , या समुद्रगुप्त, या विक्रमादित्य हो, या चंद्रगुप्त हो या अशोक हो , या पृथ्वीराज चौहान हो , या अकबर हो या पिछले सत्तर सालो में हुए सारे प्रधानमंत्री ही क्यों न हो, आज तक कोई ईमानदार , सच्चा, जुबान का पक्का और पॉपुलर राजा या प्रधानमंत्री हुआ क्या ?  साहेब की ईमानदारी का आलम और रुतबा तो वो है कि सम्राट अशोक से लेकर अकबर तक सब लोग साहेब के आगे पानी कम है।

फिर भी कहते हो, हर विमान पर एक हजार करोड़ का घोटाला हुआ है? ये कहते राहुल बाबा आपको शर्म नही आती ?  हे भगवान, हे अल्लाह, हे गॉड, तूने मुझे ये सब सुनने के लिए अभी अभी तक भक्तो को जिंदा रखा है ?  ये सुनने से पहले उनके कान फट क्यों नही गए ? ये धरती क्यों नही फटी ?  भक्त उसमे समा क्यों नही गये ? मरने क्यों नहीं दिया ऐसी बातें सुनने से पहले?

अब तो भक्तो को  मोदी-मोदी-मोदी मंत्र का जाप करना ही पड़ेगा, वरना  नरक में भी जगह नहीं मिलेगी। वो जगह भी कोई  हड़प जाएगा। है प्रभू साहेब के ऊपर आरोप लगाने वालों को सद्बुद्धि दो। इन अज्ञानियों को ज्ञान दो भगवान। इन नादान मनुष्यो को अपनी शरण में ले लेना प्रभू। 

चाहे नरक भेज देना मगर इस पृथ्वी पर और उसमें भी भारतभूमि पर फिर आने का मौका कभी मत देना। अगर भेजना ही चाहो तो इस बार सीधे अमेरिका में पैदा करना। वैसे भी वहां का ग्रीन कार्ड बड़ी बकैती पेलने के बाद मिलता है।

और तो और  अटल जी की कैबिनेट में रहे मंत्री भी साहेब के ऊपर आरोप लगाने का पाप कर रहे है। बताओ तो अटल जी को कितना दुख होता होगा। उनकी आत्मा को कितनी ठेस पहुचती होगी। जिस साहेब से उन्होंने राजधर्म पालन करने का पाठ पढ़ा , उन्ही के मंत्री साहेब पर चोरी का इल्जाम लगा रहे है ।

वो मंत्री कौन थे वो ? यशवंत सिन्हा?  अरुण जेटली ? नहीं यार , जेटली नहीं, वो क्या सरनेम है उनका - हां,अरुण शौरी जी। क्या शौरी जी आपने तो कुछ सोचा होता। आपने तो अपना रिकॉर्ड भी खराब कर दिया । खैर प्रशांत भूषण का तो रिकॉर्ड आपसे पहले से ही बहुत खराब है।

चलो मानने के लिए एक बार  यह भी मान लेते हैं कि घोटाला हुआ।  कितने का हुआ ? 50000 करोड़ का ही हुआ न ??  उसी के लिये हुआँ हुआँ कर रहे हो न ? राहुल जी आप कहते हो, की मोदीजी ने घोटाला किया है।  अरे कम से कम ये तो सोचो मोदी जी कौन हैं? कही के सभासद है क्या ? किसी ग्राम पंचायत के सदस्य हैं क्या? सरपंच हैं क्या? किसी नगरपालिका के अध्यक्ष, किसी नगरनिगम के महापौर हैं क्या? पुलिस चौकी के इंचार्ज हैं क्या? किसी विभाग के क्लर्क या सेक्शन आफिसर हैं क्या? बीडीओ, डिप्टी कलेक्टर, कलेक्टर, मंत्री-मुख्यमंत्री हैं क्या?

चलो वो छोड़ो ये बताओ कि वो कही के टीचर है क्या ? कही पढ़ाई किये है क्या ? कभी छात्र रहे है क्या ? नही न ? फिर क्या है वो  क्या हैं देश के - प्रधानमंत्री  न?  ऊपर के बताए गए छोटे मोटे , लल्लू पंजू तो नही है ना ?  आप ऐसा कल्पना भी कर सकते हो कभी? ।मित्रो, भाइयों-बहनों, गरीब मां का बेटा कहने वाला वो  चायवाला ऐसा भी कर सकता है क्या कभी? वह  ऐसा कर सकते हैंं कभी?

साहेब का तो खुला चैलेंज है कि कोई माई का लाल उनका एक भी भाषण दिखा दे, जिसमें एक भी शब्द पद की गरिमा के खिलाफ कुछ बोला  हो कभी । या उन्होंने ने कोई ऐसा एक भी काम किया हो कभी जिससे हौवानीयत दिखे ?  ऐसा एक भी कुछ दिखा दो जो कर्म से ही नहीं  बल्कि अपने वचनों से भी, जो पद की गरिमा को गिराता हो। राहुल बाबा आप एक भी उदाहरण दे दे, एक भी, तो अभी और यहीं भारत मां का यह लाल, यह लाड़ला, यह सपूत, यह भगत सिंह, यह चंद्रशेखर आजाद, अभी और यहीं फांसी पर चढ़ जाएगा। 

भाइयो बहनो चौराहे पर फाँसी का फंदा तैयार रखना।  यह बात मैं उनकी तरफ से उनकी उपस्थिति में कह रहा हूं भाइयों-बहनों। उन्हें पुराना एक्सपीरियंस है फांसी के फंदे पर चढ़ने वाला डायलॉग बोलने का ।  पूरी महारत हासिल है साहेब को । याद है ना नोटबंदी के समय भी चढ़े थे या नहीं चढ़े थे ? अब दुनिया ने नही देखा उनको सरेआम चौराहे पर फांसी झूलते हुए तो इसमें दुनिया का पूरा कसूर है ।

खैर साहेब फांसी पर चढ़ गए , अब आओ ही बताओ हुआ उनका एक भी बाल बांका ?  कोई चाहे तो पास आकर दूर से देख ले। उनकी चिंता करने की किसी को कोई जरूरत नहीं। वह स्वयं सक्षम हैं।

आपको याद होगा कि जब अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस की यात्रा पर गए थे तब फ्रांस्वा ओलांद ही राष्ट्रपति थे। उन्हीं के साथ राफेल विमान का करार हुआ था। मीडियापार्ट फ्रांस' नाम के अख़बार ने पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद से पूछा कि रिलायंस को किसने चुना और क्यों चुना तो फ्रांस्वा ओलांद ने कहा कि -

" हमारे पास पार्टनर चुनने का कोई विकल्प नहीं था। भारत की सरकार ने ही रिलायंस को प्रस्तावित किया। डास्सो ने अनिल अंबानी के साथ समझौता किया। हमारे पास कोई चारा नहीं था।हम उस मध्यस्थ के साथ काम कर रहे थे जो हमें दिया गया था। मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकता कि इसका संबंध फिल्म जुली गाइये होगा।"

जुले गाइये फ्रांस्वां ओलांद की गर्लफ्रैंड रही हैं। भारत में तो इसी बात पर आग लग जाए मगर गर्लफ्रैंड की फिल्म में भारतीय कंपनी के निवेश के तार भी राफेल डील से जोड़े जा रहे हैं। यह पहली बार है जब अनिल अंबानी ग्रुप को लेकर गंभीर बयान आया है। अब यह आरोप आरोप से ज्यादा हो जाता है। अब भारत सरकार को इस सवाल का जवाब देना होगा कि अंबानी का नाम किसकी तरफ से फ्रांस सरकार को भेजा गया। किस स्तर पर भेजा गया। इसके पहले क्या इस डील के बनी कई कमेटियों में चर्चा हुई थी। क्या रक्षा मामलों के कैबिनेट कमिटी में अंबानी की फ्रांस्वा ओलांद का यह बयान साधारण नहीं है।

मोदी जी ने ओलांद के साथ फ़ोटो भी खिंचवाया। खूब गले मिले। और आज वही ओलांद को उनके भक्त नक्सली साबित करने पे लगे हैं।  वेवकूफ ये भी भूल रहे है कि वो गणतंत्र दिवस पर मुख्य मेहमान बनकर आये थे।  10 अप्रैल 2015 के दिन मोदी जी ने ओलांद के साथ फोटो खिंचवाई और डील को फाइनल किया । लेकिन थोड़ी इंटरेस्टिंग बात यहाँ आती है कि  इसी डील के 16 दिन पहले राफेल बनाने वाली डास्सो एविएशन के सीईओ का बयान आता है कि "हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड से बात हो रही है।"यानी कि एचओएल का नाम लगभग डील के लिए फाइनल था, क्योकि डील होने में सिर्फ 14 दिन बचे थे।

मार्च 2014 के बीच दोनों के बीच करार हुआ था कि भारत में 108 लड़ाकू विमान बनेगा और 70 फीसदी काम एचएएल को मिलेगा।लेकिन इस डील से दो दिन पहले हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड का नाम गायब हो जाता है। प्रशांत भूषण ने अपने प्रेस कांफ्रेंस में आरोप लगाया था जिसे बार-बार राहुल गांधी ने कहा था कि क्रोनी कैपटलिस्ट को लाभ पहुंचाने के लिए एचएएल को डील से हटा दिया गया। रिलायंस डिफेंस डील के भीतर आ जाती है। यही नहीं प्रशांत भूषण ने 8 अप्रैल 2015 के दिन भारत के विदेश सचिव के एक बयान का भी ज़िक्र किया था।

प्रधानमंत्री मोदी के भारत दौरे से पहले विदेश सचिव ने कहा था कि राफेल को लेकर मेरी समझ यह है कि फ्रेंच कंपनी, हमारा रक्षा मंत्रालय और हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड के बीच चर्चा चल रही है। ये सभी टेक्निकल और डिटेल चर्चा है।नेतृत्व के स्तर पर जो यात्रा होती है, उसमें हम रक्षा सौदों को लेकर शामिल नहीं करते हैं।वो अलग ही ट्रैक पर चल रहा होता है।

ये तो समझ मे आता ही है कि 10 अप्रैल 2015 को डील होती है।उसके दो दिन पहले 8 अप्रैल को विदेश सचिव के अनुसार एचएएल डील में शामिल है। उसके 14 दिन पहले डास्सो एविएशन के बयान के अनुसार सरकारी कंपनी एचएएल डील में शामिल है। अब ये बात थोड़ी खुजली काटने लायक जरूर है कि अम्बानी जी इस सीन में कैसे आगये ? ये डील किसके इशारे पर होती है? राहुल गांधी इसी को लेकर लगातार आरोप लगा रहे हैं। और इस वजह से अनिल अंबानी की कंपनी ने कांग्रेस पार्टी पर मानहानि का दावा भी किया है। तो पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान के बाद यह मामला कहां पहुंचता है।

सरकार बार-बार कह चुकी है कि रिलायंस डिफेंस के मामले में उसकी कोई भूमिका नहीं थी। यही बात रिलायंस डिफेंस ने मीडिया को दिए अपने जवाब में कहा था कि विदेशी वेंडरस के भारतीय पार्टनर्स के चयन में रक्षा मंत्रालय की कोई भूमिका नहीं है। 2005 से अभी तक 50 ऑफसेट कांट्रेक्ट साइन हो चुके हैं।सब में एक ही प्रक्रिया अपनाई गई है।

फ्रांस्वा ओलांद का बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि डील उन्हीं के वक्त हुई थी जब वे राष्ट्रपति थे। अब जबकि उनका कहना है कि हमारे पास पार्टनर चुनने का कोई विकल्प नहीं था। भारत की सरकार ने ही रिलायंस को प्रस्तावित किया। डास्सो ने अंबानी के साथ समझौता किया। हमारे पास कोई चारा नहीं था।हम उस मध्यस्थ के साथ काम कर रहे थे जो हमें दिया गया था। मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकता कि इसका संबंध फिल्म जुली गाइये होगा।

8 मार्च 2018 की एक खबर के अनुसार भारत की यात्रा पर आने से पहले फ्रांस के राष्ट्रपति एमानुएल मैक्रों ने कहा कि अगर नरेंद्र मोदी की सरकार इस डील से संबंधित कुछ संवेदनशील सूचनाओं को साझा करना चाहती है तो फ्रांस एतराज़ नहीं करेगा।उन्होंने यह भी कहा था कि यह समझौता उनके कार्यकाल में नहीं हुआ था मगर दोनों देशों के हित में था।

भारत और फ्रांस के बीच राफेल डील के पहले आर्थिक, औद्योगिक और रणनीतिक हितों पर काफी विचार विमर्श किया गया है। राफेल डील का विवाद दो सवालों को लेकर महत्वपूर्ण है।एक कि एक राफेल विमान कितने का है। कांग्रेस का आरोप है कि यूपीए के समय की तुलना में मोदी सरकार ने 1000 करोड़ ज्यादा देकर खरीदा है ताकि किसी खास उद्योगपति को फायदा पहुंचाया जा सके।

दूसरा विवाद है कि खास उद्योगपति को फायदा पहुंचाने के पहले डील से कुछ हफ्ते पहले एक नई कंपनी बनाई जाती है। नई कंपनी का विमान निर्माण के संबंध में कोई अनुभव नहीं है।जिस हिन्दुस्तान एरोनोटिक्स लिमिटेड ने सुखोई 30 जैसे विमान बनाए हैं उसे डील से बाहर कर दिया जाता है।

अनिल अंबानी ग्रुप की कंपनी को साझीदार बनाए जाने के कांग्रेस के हमले के बाद अरुण जेटली जो कि वित्त मंत्री हैं वो ब्लॉग लिखते हैं। कहते हैं कि जेटली इसका जवाब देते हैं कि डील में कोई प्राइवेट कंपनी कैसे आ गई।कहते है कि यूपीए के समय ही शर्त बनी थी कि जो मूल निर्माता कंपनी है वो भारत में कलपुर्ज़ों की आपूर्ति या रखरखाव के लिए खुद से भारतीय कंपनी को साझीदार बना सकती है। इसका सरकार से कोई लेना देना नहीं है।

लेकिन इसका जवाब नहीं मिला कि राफेल बनाने वाली डास्सो एविशन कंपनी क्यों एक ऐसी कंपनी को साझीदार बनाएगी, जिसका इस क्षेत्र में अनुभव काफी नया है या न के बराबर हैं। और आरोप है कि वह कंपनी कुछ ही महीने पहले वजूद में आई है। जेटली इस पहलू को नहीं छूते हैं। जेटली ने अपने ब्लॉग में इस बात का जवाब दिया है कि डील साइन से पहले 14 महीने तक प्राइस निगोसीएसन कमेटी और कॉन्ट्रैक्ट निगोसीएसन कमेटी  ने इस पर विचार विमर्श किया है।कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी की मजूरी ली गई।

प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी लगातार प्रेस कांफ्रेंस करते हैं। राहुल गांधी ने लगातार इस पर कई प्रेस कांफ्रेंस और ट्वीट किए हैं।निर्मला सीतारमण ने भी जवाब देना शुरू किया है।उन्होंने हाल ही में कहा था कि हिन्दुस्तान एरोनोटिक्स लिमिटेड को इसलिए डील से बाहर किया गया, क्योंकि एचएएल के पास क्षमता नहीं थी।

इसी  बीच कांग्रेस ने डास्सो एविएशन के सीईओ का बयान का वीडियो ट्वीट कर दिया।कांग्रेस द्वारा जारी किए गए इस वीडियो में राफेल बनाने वाली कंपनी डसॉल्ट के सीईओ हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड (HAL) के साथ समझौते की बात कर रहे हैं। जैसा कि मैंने पहले भी बताया।  ये वीडियो प्रधानमंत्री मोदी के फ्रांस दौरे से से 17 दिन पहले का बताया जा रहा है। इसी दौरे में डील पर दस्तख़त हुए, लेकिन एचएएल को डिल में जगह नहीं मिली।

ये डास्सो एविएशन के सीईओ के  बयान वाला वीडियो 25 मार्च 2015 का है। इस कार्यक्रम में राफेल बनाने वाली कंपनी डसॉल्ट के सीईओ एरिक ट्रेपियर ने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के चेयरमैन की मौजूदगी में उम्मीद जताई थी कि जल्द ही डसॉल्ट और एचएएल के समझौते पर मुहर लग जाएगी।

एरिक ट्रेपियर के इस बयान से साफ़ है कि भारत में 108 राफेल बनाने के लिए डसॉल्ट एचएएल के साथ समझौते के काफ़ी क़रीब था, लेकिन 17 दिन बाद 10 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री मोदी के फ्रांस दौरे पर जब राफ़ेल डील हुई तो लड़ाकू विमानों की तादाद 126 की बजाय सिर्फ 36 हो गई। साथ ही एचएएल की विमान बनाने की डील की जगह अनिल अंबानी के रिलायंस डिफेंस को ऑफसेट प्रोजेक्ट के लिए चुन लिया गया।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, प्रधानमंत्री ने भारत के साथ विश्वासघात और सैनिकों के लहू का अपमान किया। ओलांद के बयान पर फ्रांस सरकार ने दी सफाई, राफेल बनाने वाली कंपनी ने खुद रिलायंस डिफेंस को चुना ।

अब बारी आगयी बचने और बचाने की। फिर दोनों देशों के प्रवक्ताओं के बयान आने सुरु हो गए। उन्होंने अपने बयान में कहा कि ‘एक बार फिर इस बात को जोर देकर कहा जा रहा है कि इस वाणिज्यिक फैसले में न तो सरकार और न ही फ्रांसीसी सरकार की कोई भूमिका थी।" 

वही फ्रेंच भाषा के एक प्रकाशन ‘मीडियापार्ट’ की खबर में ओलांद के हवाले से कहा गया है, ‘भारत सरकार ने इस सेवा समूह का प्रस्ताव दिया था और उनका वही बयान बताया गया।
हालांकि पूर्व राष्ट्रपति ओलांद के इस बयान के बाद फ्रांस के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी किया । फ्रांस सरकार ने कहा, ‘हमारी फ्रेंच कंपनियों के इस फैसले में कोई भूमिका नहीं है कि उन्होंने किन भारतीय कंपनियों का चयन किया या करेंगी।

भारतीय अधिग्रहण प्रक्रिया के मुताबिक फ्रांस की कंपनियों के पास ये पूरी आजादी है कि वो उन भारतीय साझेदार कंपनियों को चुनें जिन्हें वो सबसे ज्यादा उपयुक्त समझती हैं ’। हालांकि की फ्रांस सरकार ने ओलांद के बयान का कही भी पूरी तरह से खंडन नही किया। या ये नही कहा कि ओलांद झूठ बोल रहे है।

वहीं, फ्रांस सरकार के अलावा राफेल विमान बनाने वाली कंपनी डास्सो एविएशन ने भी बयान जारी किया है। उसने कहा है कि कंपनी ने रिलायंस डिफेंस का चयन भारत सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ नीति के तहत किया है।कंपनी ने कहा है, ‘इस साझेदारी से फरवरी 2017 में डास्सो रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (डीआरएएल) नाम की संयुक्त कंपनी बनी। फैल्कन और राफेल विमान के अलग-अलग हिस्सों के निर्माण के लिए डास्सो एविएशन और रिलायंस ने नागपुर में एक प्लांट का निर्माण किया है।

दूसरी ओर, ओलांद के बयान संबंधी रिपोर्ट आने के बाद विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने हमले और तेज कर दिए। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया, ‘प्रधानमंत्री ने बंद कमरे में राफेल सौदे को लेकर बातचीत की और इसे बदलवाया। फ्रांस्वा ओलांद का धन्यवाद कि अब हमें पता चला कि उन्होंने दिवालिया अनिल अंबानी को अरबों डॉलर का सौदा दिलवाया। उन्होंने आगे कहा, ‘प्रधानमंत्री ने भारत के साथ विश्वासघात किया है।

उन्होंने हमारे सैनिकों के लहू का अपमान किया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि ओलांद का बयान सीधे-सीधे उस बात का विरोधाभासी है जो अब तक मोदी सरकार कहती रही है और पूछा कि क्या करार पर "अहम तथ्यों को छिपाने" से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में नहीं डाला गया?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अप्रैल 2015 को पेरिस में तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के साथ बातचीत के बाद 36 राफेल विमानों की खरीद का ऐलान किया था। करार पर अंतिम रूप से 23 सितंबर 2016 को मुहर लगी थी.खबर में ओलांद ने करार का उनकी सहयोगी जूली गायेट की फिल्म से किसी भी तरह के संबंध से इनकार किया है। 

पिछले महीने एक अखबार में इस आशय की खबर है। रिपोर्ट में कहा गया था कि राफेल डील पर मुहर लगने से पहले अंबानी की रिलायंस एंटरटेनमेंट ने गायेट के साथ एक फिल्म निर्माण के लिये समझौता किया था।तो अगर ऐसा है तो ओलांद खुद को फायदा पहुचाने वाली कंपनी को सवालों के कटघरे में क्यों खड़ा करेंगे ?

अब एक बार हम उस कंपनी  हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के बारे में भी थोड़ा बहुत जान लेते है, जिसे सरकार ने निकम्मा, नकारा और बिनकाम का प्रस्तुत किया है । राफेल डील से बाहर करके इस कंपनी को नकारा एयर निकम्मा साबित करने की कोसिस की गई । अगर सरकार के लोगो की माने तो कुछ क्षमताओं की कमी के चलते यह कंपनी इस बड़ी डील से बाहर हो गई।

लेकिन  अगर कंपनी का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो मालुम पड़ता है कि यह वह कंपनी है, जिसने भारतीय सेना को स्वदेश में बने विमानों में उड़ान भरने के लायक बनाया। पिछले 77 साल का इतिहास देखें तो एचएएल ने एक से बढ़कर एक कीर्तिमान स्थापित किए हैं। रक्षा क्षेत्र में अग्रणी माने जाने वाले अमेरिका, फ्रांस, इजरायल जैसे  दो दर्जन देशों की एयरक्राफ्ट बनाने वाली कंपनियों को भी अपना ग्राहक बनाने वाली इस सरकारी कंपनी को अब तक शानदार काम के चलते 30 से ज्यादा पुरस्कार मिल चुके हैं।

देश की नवरत्न कंपनियों में शुमार हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को लीजेंड पीएसयू(सार्वजनिक उपक्रम) का भी तमगा मिल चुका है।  कंपनी ने गुणवत्ता की बदौलत 30 से अधिक देशों में निर्यात करने में सफलता हासिल की है।  एचएएल  ने करीब 77 वर्षों के सफर में तीन हजार से भी अधिक विमानों का निर्माण,  3400 से अधिक विमान-इंजनों और 2600 से अधिक इंजनों की मरम्मत की है। इस वक्त आइआइटी मद्रास से एमटेक किए आर माधवन बतौर डायरेक्टर कंपनी का चार्ज संभाल रहे हैं।

23 दिसंबर 1940 को जब उस वक्त देश के माने-जाने उद्ममी वालचन्द हीराचन्द ने सोचा कि क्यों न एक ऐसी कंपनी बनाई जाए, जिससे भारत में ही जहाज बनने लगे। इसी सोच के साथ उन्होंने चार करोड़ रुपये की शुरुआती पूंजी के साथ मैसूर की तत्कालीन सरकार के सहयोग से 23 दिसंबर 1940 को कंपनी की नींव डाली। 1941 में भारत सरकार ने एक तिहाई शेयर खरीद लिया। और 1942 में पूरा मैनेजमेट अपने हाथ में ले लिया। फिर अमेरिका की इंटर कॉन्टीनेंटल एयरक्राफ्ट कंपनी के सहयोग से देश की यह कंपनी हॉक फाइटर और बॉम्बर एयरक्राफ्ट बनाने लगी।

1945 में यह कंपनी मिनिस्ट्री ऑफ इंडस्ट्री एंड सप्लाई और फिर जनवरी 1951 में इसे मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस के अधीन कर दिया गया। अगस्त 1951 में एचटी-2 ट्रेनर एयरक्राफ्ट को डिजाइन कर कंपनी ने निर्माण किया।अपने निर्देशन में बने इस विमान को पहली बार डॉ. वीएम घटगे ने उड़ाने में सफलता हासिल की. इसके बाद कंपनी ने करीब डेढ़ सौ ट्रेनर एयरक्राफ्ट बनाकर एयरफोर्स को सप्लाई किए गए। फिर टू सीटर पुष्पक, कृषक, जेट फाइटर मारुत और जेट ट्रेनर किरन नामक एयरक्राफ्ट इस कंपनी ने बनाए।इस बीच अगस्त 1963 में मिग 21 बनाने के लिए एयरोनॉटिक्स इंडिया लिमिटेड(एआइएल) अस्तित्व में आई। 

जून 1964 में सरकार ने हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड को  Aeronautics India Limited के साथ मिला दिया। और  इस प्रकार हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड का जन्म हुआ।यह विलय एक अक्टूबर 1964 को हुआ।फिर इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड का नाम मिला। कंपनी का मुख्य काम प्लेन की डिजाइनिंग, मैन्यूफैक्चरिंग, रिपेयरिंग और एयरक्राफ्ट, हेलीकॉप्टर के इंजन की मरम्मत करने का है।

हिंदुस्तान एयरनॉटिक्स ने कई शानदार हेलीकॉप्टर बनाए हैं, जो भारतीय वायुसेना के लिए काफी उपयोगी हैं। इसमे ध्रुव हैलीकॉप्टर भारत का एक बहूद्देशीय हैलीकॉप्टर है। इजरायल जैसा देश भी इस विमान को भारत से खरीद चुका है।  वहीं एचएएल रुद्र (HAL Rudra) एचएएल ध्रुव का एक सशस्त्र संस्करण है।

इसी तरह एचएएल ने तेजस नामक लड़ाकू विमान बनाया। दिसंबर 2009 में  गोवा समुद्र स्तरीय उड़ान परीक्षण के दौरान, तेजस ने 1,350 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की गति से उडा़न भरी। यह देश में बना पहला सुपरसॉनिक लड़ाकू विमान है। 1970 में एचएएल ने मैसर्स एसएनआईएएस के साथ मिलकर चेतक और चीता नामक हेलीकॉप्टर्स के निर्माण के  लिए बेंगलुरु में विशेष यूनिट खोली।

एचएल अब तक 31 प्रकार के एयरक्राफ्ट बना चुकी है, जिसमें 17 स्वदेशी डिजाइन के एयरक्राफ्ट हैं। जिसमें सुखोई ३० एमकेआई भारतीय वायुसेना का अग्रिम पंक्ति का लड़ाकू विमान है। एचएएल ने इस विमान को रूस के सैन्य विमान निर्माता  सुखोई के सहयोग से बनाया है। खास बात है कि इस सुखोई सीरीज के सुखोई 30-एमकेके तथा एमके 2 जैसे विमानों को चीन और इंडोनेशिया को बेचा जा चुका है।वहीं एमकेएम, एमकेवी संस्करणों को मलेशिया, वेनेजुएला तथा अल्जीरिया ने खरीदा है।

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के ही बनाये हुए सुखोई विमान ने वर्ष 1997 में पहली बार  में पहली बार उड़ान भरी और 2002 में इसे इंडियन एयरफोर्स के बेड़े में शामिल किया गया।  वर्ष 2004 से सुखोई विमानों का निर्माण   भारत में ही हिन्दुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है। यह चौथी पीढ़ी का लड़ाकू विमान है।जो मिग विमानों का स्थान ले रहा। इस वक्त यह सरकारी कंपनी  सुखोई SU-30 MKI , ध्रुव Dhruv-ALH , चेतक-चीता हेलीकॉप्टर का प्रोडक्शन कर रही है।

जगुआर और मिग की रिपेयरिंग का भी काम चल रहा है। खास बात है कि यह सरकारी कंपनी भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को भी आगे बढ़ाने में एयरोस्पेस डिवीजन के जरिए मदद कर रही। सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल की दिशा में भी कंपनी काम कर रही है। एचएएल लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टर बनाने पर विशेष जोर है। अपने सभी प्रोजेक्ट्स को तय समय-सीमा में पूरा करने के लिए कंपनी ने बेंगलुरु, हैदराबाद, नासिक, कानपुर, लखनऊ, कोरापत, कोरवा सहित कुल 11 रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर स्थापित कर रखे है।

एचएएल ने अपनी खूबियों के दम पर अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों की एक जमात तैयार की है। दो दर्जन से अधिक देशों को प्लेन से जुड़ी साजो-सामग्रा निर्यात करने वाली इस कंपनी के एयरबस इंडस्ट्रीज फ्रांस, बोईंग यूएसए, कोस्ट गार्ड मारीशस, ई एल टी ए, इस्राइल, इजराइल एयरक्राफ्ट इंडस्ट्रीज, रूस अमेरिका,  आदि ग्राहक हैं। एचएएल को कई अवार्ड मिल चुके हैं। अंतर्राष्ट्रीय सूचना एवं विपणन केन्द्र ने मेसर्स ग्लोबल रेटिंग, यूके के संयोजन में मेसर्स हिन्दुस्तान एरोनाटिक्स लिमिटेड को 2003 में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन में इंटरनेशनल गोल्ड मेडल से सम्मानित किया था।

इसके अलावा  कंपनी को 2013 में देश की नवरत्न कंपनियों में से इसको लीजेंड पीएसयू का अवार्ड मिल चुका है। कंपनी को रिसर्च एंड डिजाइन, टेक्नॉलजी, मैनेजेरियल, एक्सपोर्ट्स, एनर्जी, क्वालिटी के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय से लेकर राष्ट्रीय अवार्ड मिल चुके हैं। 2015-16 में  एक्सीलेंस परफार्मस पर 2007-08, 2009-10, 2010-11स 2012-13 और 2015-16 में रक्षा मंत्रालय की ओर से रक्षा मंत्री अवार्ड मिल चुका है एक्सीलेंस इन परफारमेंस में।

और इतने सारे कीर्तिमान  और बुलंदिया स्थापित करने के बाद हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को क्या मिलता है ?  उसे एक नकारा और बेकार  कंपनी साबित करके दलाली खाने के चक्कर मे एक ऐसी कंपनी को फ्रेम में चिपका दिया जाता है , जिसका इतिहास ही 9 महीने पुराना था। और कार्य अनुभव के नाम और अम्बानी जी के पास शून्य के अलावा कुछ नही था। लेकिन है उनके पास एक ऐसी चीज जरूर है जो हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड जैसी बीस कंपनियों की छुट्टी कर सकती है। और वो है चायवाले की दोस्ती और कमीशन का तगड़ा ऑफर।

राफेल मुद्दा ओलांद के बयान के बाद जितना गर्माया था , उसमें आग में घी जैसे डालने जैसा काम फ्रांस के वर्तमान राष्ट्रपति मैक्रॉन की पत्नी ब्रिगेट मैक्रॉन के बयान ने किया, क्योंकि उन्होंने कहा की -
"राफेल डील में जितनी पैसों की इधर उधर हुई है और घोटाला हुआ है , उतने में तो किसी भी देश की अर्थव्यवस्था सुधारी जा सकती है। उन्होंने यह भी कह दिया कि किसी देश का प्रधानमंत्री अपने ही देश के साथ और अपनी जनता के साथ इतना बड़ा विश्वासघात कैसे कर सकता है? भारत में इस बात से सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई हैं और एक तरफ से सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को आलोचनाओं से घेर लिए हैं।

अब ये सब रोज रोज होते जा रहा है, कही से पूर्व राष्ट्रपति बयान दे रहा है तो कही से वर्तमान राष्ट्रपति की पत्नी।  सब मिल के साहेब को फसा देते हो ।ये रोज रोज प्रेस कॉन्फ्रेंस करके लोगो को जहाजो के दाम बताते हुए शर्म नही आती तुम लोगो को? हमारे साहेब की गणित उल्टी है तो क्या उसका फायदा तुम लोग इस तरह से उठाओगे ?  एक अनपढ़ या कुपढे सीधे साढ़े भोले व्यक्ति के ऊपर तुम लोग गणित के गुणा गणित से वार करोगे ?

अरे हमारे साहेब तो इतने सीधे है कि बेचारे को तीन का पहाड़ा भी मुश्किल से आता है । ये तो सोच लेते कि वह घोटाला भी करेंगे तो पद की प्रतिष्ठा के अनुकूल ही करेंगे न! और क्या 50000 करोड़ का घोटाला उनकी पद की प्रतिष्ठा-गरिमा के अनुरूप नहीं है ? फिर दिक्कत क्या है, सवाल क्या है, यही हमें और मोदीजी को समझ में आ रहा है। आपको भी समझ में नहीं आ रहा होगा। समझो इनकी चाल, ये चाहते हैं मोदीजी पद की प्रतिष्ठा गिराकर  घोटाला किया करें। ऐसा वह कभी नहीं करेंगे।

न करेंंगे और भाइयों-बहनों और वह किसी को करने भी नहीं देंगे। उनका मानना है  की झूठ भी बोलो तो विज़न बडा रखी। और पैसे के मामले में 'आलवेज थिंक बिग, डू बिग"।  और तुम लोग उनपे सिर्फ 50 हज़ार करोड़ के चोरी का आरोप लगा रहे हो ? देश की प्रतिष्ठा का सवाल है।  उसकी पुनर्प्रतिष्ठा का प्रश्न है। सबसे बढ़कर देशभक्ति का सवाल है। इस पर कोई समझौता नहीं हो सकता और राहुल जी, राहुल जी की जानें, मोदीजी ऐसा नहीं करेंगे और न करने देंगे।अब कोई दोस्त झोला भर कर चला जाये तो साहेब क्या कर सकते है, साहेब तो फकीर है। फकीर और झोले का रिश्ता साहेब जानते है । फिर भला वो झोले को कैसे रोक सकते है ? 

अब अधर्मी साहेब की इस दुविधा को चोरी का नाम दे रहे है । घोटाले का नाम दे रहे है ।  साहेब ने घोटाला किया भी है तो देश की गरिमा और प्रतिष्ठा के अनुरूप किया है । ये घोटाला देश भक्ति के श्रेणी में आता है। इस घोटाले से साहेब की साख दुनिया भर में बढ़ जाएगी । और अब से जो प्रधानमंत्री इससे कम का घोटाला करेगा, समझो पक्का देशद्रोही है और देश कभी ऐसे देशद्रोहियों को बर्दाश्त नहीं करनेवाला।

साहेब के मासूमियत का फायदा विदेशी भी उठा रहे है , ये तो गलत बात है गयी। फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने भी फायदा उठाया। साहेब को फसा दिया। पहले तो हमारे मासूम साहेब को बहला फुसला कर महंगे दामो वे सौदा करवा लिया और उसके बाद फिर एक ऐसा बयान दे दिया, जिससे राफेल मामले में तूफान मच गया।  फ्रांस की मीडिया में ओलांद का यह बयान काफी सनसनी फैला चुका है। वहां के पत्रकार फ्रांस्वा ओलंद के इस बयान को खूब ट्वीट कर रहे हैं। और वो साथ मे साहेब को टैग कर करके मज़े भी ले रहे है, हमारे साहेब के अनपढ़ होने का इस तरह मिसयूज कर रहे है वो ।

और उसी बयान को आधार बना कर साहेब की मासूमियत का फायदा उठा रहे है। यह एक ऐसा बयान है जो राफेल मामले में सरकार और साहेब को  को नए सिरे से कटघरे में खड़ा कर देता है । और साहेब बेबस और लाचार खड़े दिखते है । इस लाचारी को छुपाने के लिए लिया न जाने साहेब को क्या क्या स्वांग रचने पड़ते है । कभी धारा 377 तो कभी कोई एक्ट। तो कभी खुद पर हमले की बात। तो कभी राम मंदिर की सुनवाई।  साहेब हर स्वांग रचाकर अभी तक जनता का ध्यान राफेल से हटाने में सफल हुए है। लेकिन ये कमबख्त राहुल गांधी है जो साहेब को संसद से लेकर सड़क तक हर जगह घेरे रखा है । और आंख तक मिलाने की हिम्मत नही आने दे रहा है बेचारे साहेब में ।

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