गैस के दाम बढ़े, तो कोई बात नही। बोलो जय श्री राम, और हा थोड़ा चिल्ला कर दम लगा कर बोलना चाहिए। पेट्रोल के दाम बढ़े तो कोई बात नही, बोलो अच्छे दिन आने वाले है। और है थोड़ी बेशर्मी , बेहयाई और निर्लज्जपने के साथ बोलना चाहिए। इससे दाम में कमी नही होगी, है सिर्फ मूर्ख बढ़े हुए दाम भूल कर कथित चौकीदार की भक्ति और चमचागिरी में लग जाएंगे। और लोग महंगाई को भूल जाएंगे। एक दम तगड़ा राजनीतिक फार्मूला है ये।
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले हम भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री और तब के तत्कालीन इंडिया प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेंद्र मोदी जी को अक्सर तेल और गैस की बढ़ी हुई कीमतों पर लंबा चौड़ा भाषण देते हुए सुना करते थे । और वह कुछ ऐसी युक्तियां भी बताते थे जिससे हमें तो लगता था कि यह तो मैजिक हो जाएगा और हमारे पेट्रोल डीजल के आज के दाम कम हो जाएंगे ।
यकीन होता भी तो कैसे नहीं , तरह-तरह की युक्तियां बताई। उन्होंने और तरह-तरह के तरीके बताएं कि , इस तरह से पेट्रोल और डीजल और गैस के दाम कम कर दिए जाएंगे । इतना ही नहीं उन्होंने अपने पीछे दो चार प्रचारको को भी छोड़ रखा था । एक कथित श्री श्री करके बाबा हैं , और एक दूसरे योगा वाले बाबा । यह दोनों तो दिन-रात मोदी जी के इसी प्रचार में लगे थे। योगा वाले बाबा ने तो यहां तक कह दिया कि मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने पर पेट्रोल 35 रुपये लीटर तक मिलने लगेगा।
इन बाबाओं ने घूम-घूमकर पूरे देश में अपने समर्थकों का इस्तेमाल करके मोदी जी का खूब प्रचार किया । और लोगों को पेट्रोल 35 रुपये में दिलवाने का लालच दिया। लोग भी इसी लालच के वशीभूत होकर मोदी जी को जमकर वोट दिए । और उसके बाद हालात क्या हो गए ,सबको पता चल ही गया होगा ? 2014 में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 110 डॉलर प्रति बैरल थी।
मोदी जी की सरकार बनने के बाद यह करीब करीब 56 डॉलर प्रति बैरल आ गया था और अभी भी लगभग 70 या 75 डॉलर प्रति बैरल के आस पास है। लेकिन तेल की कीमतें आज आसमान छू रही है। और तब रसोई गैस का सिलेंडर और पेट्रोल के डब्बे रखकर हड़ताल करने वाले सुषमा स्वराज अरुण जेटली राजनाथ सिंह स्मृति ईरानी यह सभी लोग चुप्पी साधे बैठे हुए हैं।
चुप्पी साधे भी क्यू नही, इन लोगो को टैक्स और उज्ज्वला के नाम पर खुलेआम बेवकूफ बनाया जा रहा है।केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ‘उज्ज्वला गैस योजना’ को गरीब महिलाओं के लिए मुफ्त दी गई बड़ी परिवर्तनकारी योजना बता रही है। प्रधानमंत्री खुद कई मौकों पर सार्वजनिक मंच से इस योजना की सफलता की तारीफ कर चुके हैं मगर सच्चाई इससे उलट है।
पहली बात तो यह कि इस स्कीम के तहत गरीब महिलाओं को दिया गया गैस कनेक्शन (सिलेंडर और चूल्हा) न तो फ्री है और न ही सिलेंडर पर (मार्च 2018 तक) सब्सिडी मिली है। किसी भी लाभार्थी को गैस कनेक्शन लेते ही कुल 1750 रुपये चुकाने पड़ते हैं। इनमें से 990 रुपये गैस चूल्हे के लिए जाते हैं जबकि 760 रुपये का पहला सिलेंडर आता है। सरकार की तरफ से दावा किया जाता है कि प्रति गैस कनेक्शन यानी प्रति उपभोक्ता 1600 रुपये की आर्थिक सहायता दी गई है, जो गलत है।
दरअसल, सरकार इस योजना के तहत लिए गए कनेक्शन में पहले छह सिलेंडर की रिफिलिंग पर मिलने वाली सब्सिडी खुद रख लेती थी, ताकि 1600 रुपये की दी गई आर्थिक सहायता (एक तरह का कर्ज) चुकता कर लिया जाय। सरकार सिर्फ 150 रुपये का रेग्यूलेटर फ्री देती है। इसके एवज में पीतल बर्नर वाले चूल्हे की जगह लोहे का बर्नर लगा चूल्हा दिया जाता है। गैस पाइप भी छोटा दिया जाता है।
उज्ज्वला योजना के उपभोक्ताओं को पहले छह सिलेंडर बाजार दर पर खरीदने होते हैं जो 750 से 900 रुपये के बीच पड़ता है। अमूमन एक सिलिंडर पर सब्सिडी 240 से 290 रुपये मिलती है। इस लिहाज से सरकार पहले छह सिलेंडर की रिफिलिंग के दौरान करीब 1740 रुपये प्रति ग्राहक वसूल लेती थी।अगर देखा जाए तो सरकार इसमें भी गरीबों को सहायता देने के नाम पर उनसे लगभग लगभग 140 रुपये कमा ले रही है।
यही हाल पेट्रोल और डीजल का भी है । पेट्रोल के नाम पर टैक्स की गुंडागर्दी के साथ वसूली भी सरकार जमकर कर रही है । ऑयल कंपनियां रिफाइनरियों से 26.86 रुपये प्रति लीटर में तेल खरीदती हैं। इसके बाद ऑयल कंपनियों का तेल की मार्केटिंग में 2.68 रुपये प्रति लीटर का खर्च आता है। 21.48 रुपये प्रति लीटर केंद्रीय उत्पाद शुल्क लगता है। मुंबई के लिए 1.10 रुपये की चुंगी लगती है।
इसके अलावा 20 रुपये का खर्च कंपनी के डीलर तक पहुंचने में आता है। यह सबकुछ मिलाकर एक लीटर पेट्रोल की कीमत 52.32 रुपये हो जाती है। इसके बाद 52.32 रुपये पर 26 फीसदी का वैट लगता है और 9 रुपये का टैक्स अलग से लगता है। एक लीटर पेट्रोल पर डीलर का कमीशन 2.58 रुपये होता है।
यह सब मिलाकर अब मुंबई में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 77.50 रुपये हो जाती है। केंद्र और राज्य सरकार मिलकर मुंबई में पेट्रोल पर 153 फीसदी टैक्स वसूलती है।
दरअसल बात यह है कि हमारे साहिब भी बिना सोचे समझे कोई काम नहीं करते हैं ।और भक्त भी उनकी भक्ति में दिन रात ऐसे लीन रहते हैं, मानो प्रभु ने जो दिया है बस यही दिया है। एक भक्त से पूछ लिया गया कि जरा बताओ यह पेट्रोल और डीजल इतना महंगा क्यों हो रहा है ?
भक्त भी पक्का वाला था, तुरंत उखड़ गया और उसने इसके कई सारे फायदे गिना दिए ।
बोला यह प्रदूषण भी तो एक बहुत बड़ी समस्या है, जिधर देखो हर तरफ धुआं ही धुआं। एक तरफ तो साहब ने हमारे उज्ज्वला योजना लॉन्च करके धुंए पर रोक लगाई । तो तुम लोगों ने गाड़ियां चला चला कर धुआं फैला दिया। और उसी को रोकने के लिए पेट्रोल और डीजल महंगा कर दिया ।
दूसरा यह भी है कि साहब ने फिट रहने का चैलेंज भी स्वीकार कर लिया है । अब साहब फिट रहें और देश की जनता अनफिट रहे यह तो देखने में अच्छा नहीं लगेगा न ? साहब तो भगवान के अवतार ही हैं , तो वह तो हवाई जहाज में भी घूम के फिट रह सकते हैं। लेकिन आम आदमी को फिट रहने के लिए साइकिल चलाना जरूरी है ।और साइकिल तभी चलेगा जब आम आदमी के पास पेट्रोल और डीजल खरीदने की औकात नहीं बचेगी ।
गर्मी में इतनी ज्यादा लूं और उमस रहती है कि अगर किसी को कायदे से लु लग जाए तो उसकी जान भी जा सकती है । इसीलिए पेट्रोल और डीजल महंगा कर दिया गया , कि ना तो लोग पेट्रोल और डीजल खरीद पाएंगे ना ही घर के बाहर निकलेंगे । और ना ही उनको लू लगेगी और ना ही उनकी जान जाएगी ।
कुछ भक्त तो टमाटर और दाल सस्ता होने का भी लॉजिक देते हैं । मन तो करता है कि सालों की गाड़ी की टंकी में एक किलो दाल और तीन किलो टमाटर का सूप डाल दो । और बोलो कि भाई अब ले जा चलाते हुए ।
और सब से क्रांतिकारी तो यह लगा कि एक राजा राममोहन राय थे , जिन्होंने सती प्रथा समाप्त किया। अब हमारे साहब पीछे कैसे रहे । तो साहब दहेज प्रथा समाप्त करने के ऊपर लग गए। तो उन्होंने यह सोचा कि पेट्रोल और डीजल इतना महंगा कर दो कि दूल्हा पक्ष की औकात ही ना बचे कि वह पेट्रोल डलवाए । ना रहेगा पेट्रोल ना दहेज में दी जाएगी कार और बाइक।
और अंत में भक्त कुछ यह भी तर्क देते हैं कि यह वाला गुप्त फायदा है पेट्रोल और महंगी कारें तो हिंदुओं और सवर्णों के पास होती हैं। यह तो सेकुलर और अल्पसंख्यकों को बेरोजगार बनाने के लिए किया गया है। वह ऐसे क्योंकि ज्यादातर पंचर और गाड़ी रिपेयरिंग की दुकानें ऐसे ही लोगों की होती हैं । अब अगर पेट्रोल डीजल महंगा हो गया तो लोग ना गाड़ी चला पाएंगे, और न हो वो खराब होगी, ना ऐसे लोगों की दुकान पर आएंगी, और ना ही वह उसे बनाकर आमदनी कर पाएंगे।
चुनावी वर्ष 2014 में दिए गए सारे वादे 2018 तक आते-आते खोखले हो गए । अब 2019 में जनता को और भक्तों को कौन सा झांसा देंगे पीएम मोदी ? महंगाई से परेशान हैं? विकास का नारा ? या दलितों का भला करने वाला नारा?
प्रधानमंत्री एक ऐसी अर्थनीति के निर्माता बन चुके हैं, जो एकदम ही अमीर कॉर्पोरेट सेक्टर को फायदा पहुंचाने की गरज से बनाई गई है। इस अर्थनीति के चलते आम आदमी की जिंदगी दुश्वार हो चली है। गत दो वर्षों से जारी महंगाई दर ने पिछले सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए। अमीर आदमी को यकीनन महंगाई से कुछ भी फर्क नहीं पड़ता, किंतु एक गरीब इंसान की हालत कितनी बदतर हो चली है, इसका कुछ भी अंदाजा शासक वर्ग को संभवतया नहीं है। अन्यथा इस पर इतना बेरहम रुख हुकूमत की ओर से अख्तियार नहीं किया जाता।
विपक्ष के बिखराव और खराब सियासी हालात ने कमरतोड़ महंगाई के प्रश्न पर जनमानस के रोष की अभिव्यक्ति को अत्यंत असहज कर दिया है, अन्यथा अपनी माली हालत को लेकर आम आदमी के अंतस्थल में जबरदस्त ज्वालामुखी धधक रहा है। अमीर तबके के और अधिक अमीर हो जाने की अंतहीन लिप्सा की खातिर आम आदमी को निचोड़ा जा रहा है।
मार्केट इकोनॉमी के नाम पर अब पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को बेलगाम कर दिया गया है। ऐसा हो रहा कि हुकूमत द्वारा महंगाई के दावानल में पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस को भी डाल दिया गया। महंगाई के प्रश्न पर आम आदमी का रोष इसलिए भी राजनीतिक जोर नहीं पकड़ रहा कि प्रायः सभी राजनीतिक दलों के नेताओं का अपना चरित्र भी कॉर्पोरेट परस्त होता जा रहा है। संसद के सदस्य अपना वेतन अब बीस हजार से बढ़ाकर नब्बे हजार करने जा रहे हैं, जो कि हुकूमत के सेक्रेटरी रैंक के अफसर के वेतन के समकक्ष होगा।
सरकारी आंकड़े खुद ही बयान करते हैं कि गत वर्ष के दौरान खाने-पीने की वस्तुओं के दाम 16.5 की इंफ्लेशन की दर से बढ़े हैं। चीनी के दाम 73 फीसदी, मूंग दाल की कीमत 113 फीसद, उड़द दाल के दाम 71 फीसद, अनाज के दाम 20 फीसद, अरहर दाल की कीमत 58 फीसद और आलू-प्याज के दाम 32 फीसद बढ़ गए हैं।
इसके अलावा रिटेल के दामों और थोक दामों में भारी अंतर बना ही रहता है। सरकारी आंकड़े महज थोक सूचकांक बताते हैं, जबकि आम आदमी तक माल पहुंचने में बहुत से बिचौलियों और दलालों की जेबें गरम जो चुकी होती हैं।
वैसे भी भारत की अर्थव्यवस्था अब सटोरियों और बिचौलियों के हाथों में ही खेल रही है। अपना खून-पसीना एक करके उत्पादन करने वाले किसानों की कमर कर्ज से झुक चुकी है। रिटेल बाजार में खाद्य पदार्थों के दाम चाहे कुछ भी क्यों न बढ़ जाएँ, किसान वर्ग को इसका फायदा कदाचित नहीं पहुंचता। इतना ही नहीं, धीरे-धीरे उनके हाथ से उनकी जमीन भी छिनती जा रही है।
हिन्दुस्तान के आजाद होने के बावजूद कृषि और कृषक संबंधी ब्रिटिश राज की रीति-नीति में कोई बुनियादी बदलाव नहीं आया। आज भी लगभग वही कानून चल रहे हैं जो अंग्रेजों के शासनकाल में चल रहे थे। देश का 80 करोड़ किसान शासकीय नीति से बाकायदा उपेक्षित है। गत दो वर्षों के दौरान देश का किसान और अधिक गरीब हुआ है जबकि उसके द्वारा उत्पादित खाद्य पदार्थों के दामों में भारी इजाफा दर्ज किया गया।
यह समूचा मुनाफा अमीरों की जेबों में चला गया। देश के अमीरों की अमीरी ने अद्भुत तेजी के साथ कुलांचें भरीं। मंत्रियों और प्रशासकों के वेतन में जबरदस्त वृद्धि हो गई। दूसरी ओर साधारण किसानों में गरीबी का आलम है। आम आदमी की रोटी-दाल किसानों ने नहीं, वरन बड़ी तिजोरियों के मालिकों ने दूभर कर दी है।
वस्तुतः समस्त देश में आर्थिक-सामाजिक हालात में सुधार का नाम ही वास्तविक विकास है। एक वर्ग के अमीर बनते चले जाने और किसान-मजदूरों के दरिद्र बनते जाने का नाम विकास नहीं बल्कि देश का विनाश है। निरंतर गति से बढ़ती महंगाई और शोषण के बीच चोली-दामन का संबंध है।
महंगाई वास्तव में ताकतवर अमीरों द्वारा गरीबों को लूटने का एक अस्त्र है। इस खतरनाक साजिश में सरकारें भी अमीरों के साथ बाकायदा शामिल हैं। वास्तव में सरकार ने बाजार की ताकतों को इतना प्रश्रय और समर्थन प्रदान कर दिया है कि घरेलू बाजार व्यवस्था नियंत्रण से बाहर होकर बेकाबू हो चुकी है। सटोरिए, दलाल और बिचौलिए इसमें सबसे अहम किरदार हो गए हैं।
देश में दुग्ध उत्पाद की कमी है किंतु केसिन चीज और मिल्क पावडर का निर्यात बदस्तूर जारी है। देश के लोग कृषि उत्पादों की महंगाई से बेहद त्रस्त हैं, किंतु कृषि उत्पादों का निर्यात तेजी से बढ़ रहा है।
चार साल से सरकार दावा रही है कि मूल्यवृद्धि पर काबू पा लिया जाएगा किंतु नतीजा एकदम शून्य रहा। अधिक मांग का दबाव न होने एवं फसलों के भरपूर होने के बावजूद कीमतों की उड़ान क्यों जारी रही है? वायदा बाजार बाकायदा पल्लवित हो रहा है। काले बाजार और काले अघोषित गोदामों में किसान को चावल, चीनी, दाल, गेहूं आदि के जखीरे को दबाकर बाजार में चालू आपूर्ति कम कर दी गई।
कुछ अनचाहे अधमने सरकारी छापों में ही गोदामों में बाकायदा दबा पड़ा विशाल भंडार दिखाई दे गया। राजकाज और बाजार की मिलीभगत ने अब ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि राज्य व्यवस्था और बाजार के बीच फर्क महज औपचारिकता ही बन कर रह गया है। काली राजनीति का काले धंधे के साथ अवैध समीकरण भारत की जम्हूरियत और राज व्यवस्था का खास चेहरा बन गए हैं।
वायदा बाजारों के चलते खाद्य पदार्थों की कीमतें कम नहीं हो पा रही हैं, क्योंकि कीमतें कम होने से बिचौलियों और कृषि कंपनियों को घाटा हो सकता है। हमारे देश में इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है कि एक तरफ गोदामों में अनाज सड़ रहा है और दूसरी तरफ लोग भुखमरी का शिकार हो रहे हैं। बिचौलिए मालामाल हो रहे हैं और किसान बदहाल हैं।
महंगाई की मार ने सब की कमर तोड़ दी है आज रसोई गैस गीजर डीजल और पेट्रोल के दाम आसमान छू रहे हैं डाले और किराना के सामान भी महंगाई के चरम पर है ।
पहले तो महंगाई को दूर करने के लिए भारतीय जनता पार्टी की तरफ से संसद मार्ग की सड़कों पर खूब धरना प्रदर्शन होता था। और इनके मजदूर संगठन भी उस समय न्यूनतम वेतन ₹18000 करने को लेकर अक्सर धरना प्रदर्शन करते थे।
हर दिन गाड़ियों से काम पर जाने वाले लोगों के लिए कोई राहत की खबर नहीं आ रही है। पूरे देश में ईंधन के बढ़ रहे दाम आम आदमी की समस्या का कारण बना है। लगातार रविवार को 14वें दिन भी ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है।
मेट्रोपॉलिटन शहरों में संशोधित पेट्रोल की कीमतें इतनी अधिक है कि उन्हें सुनकर आम आदमी के पैरों तले जमीन खिसक जाए। दिल्ली में 80.83 रुपय प्रति लीटर, मुम्बई में 87.39 रुपय प्रति लीटर, कोलकाता में 83.27 रुपय प्रति लीटर, और चेन्नई 83.22 रुपय प्रति लीटर पेट्रोल के दाम हैं।
वहीं दूसरी तरफ डीजल के दामों में भी बढ़ोत्तरी लगातार देखने को मिल रही है। दिल्ली में डीजल की कीमत 72.70 रुपय हो गई है, वहीं कोलकाता में 75.37 रुपये हो गयी है । चेन्नई में 76.26 रुपये हो गयी है, और मुम्बई में 76.98 रुपए प्रति लीटर के दर से बिक रहा है।
देश में जुगाड़ का जादू भी कम मजेदार नहीं है? गंदे नाले की गैस से चाय तो बन ही रही है, कोई बत्तख से ऑक्सीजन पैदा कर रहा है। कोई महाभारत काल मे वाई फाई और लैपटॉप बना दे रहा है। एक दिन ऐसा भी आएगा जब कोई-न-कोई नाले के पानी से गाड़ी भी चला कर दिखा देगा।
बत्तख के आसपास पाइप लगा कर ऑक्सीजन निकाल के गोरखपुर वाले हॉस्पिटल में पहुँचा देगा। देखना, एक दिन गैस सिलेंडर का कोई खरीददार नहीं मिलेगा, और विदेशी तो पेट्रोल बेचने के लिए तरस जाएंगे।रावण, पुष्पक विमान की तकनीक अपने साथ ले गया और संजय ने टीवी-इंटरनेट की टेक्नोलॉजी सार्वजनिक नहीं की, वरना आज सोशल मीडिया के लिए विदेशी तकनीक की जरूरत ही नहीं पड़ती?
दरअसल, यह सारी गंदगी सोशल मीडिया फैला रहा है? इसीलिए, बार-बार कहा जा रहा है कि सोशल मीडिया के माध्यम से गंदगी न फैलाएं। लेकिन मीडिया को भी अपनी टीआरपी और अपने पैसे से मतलब है और इसके बाद अगर उनको कुछ समय मिलता है तो वह नेताओं और सरकार की चाटुकारिता में बिता देते हैं ताकि उनके ऊपर लगे हुए फिरौती के केस वगैरह वापस हो जाएं और वह फिर से टाई कोट लगाकर हिंदू मुस्लिम का एनालिसिस करने बैठ जाएं।
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