मंत्री सुधारो चैलेन्ज

सोशल मीडिया पर हमारे सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री राज्यवर्धन सिंह राठौर जी ने एक फिटनेस चैलेंज वीडियो शेयर किया है,  यह वही मंत्री जी हैं जो कुछ दिन पहले खेल मंत्री बने थे।  और उस समय उनके समर्थकों ने यह कहा था " कि एक खिलाड़ी को खेल मंत्री बनाने पर खेल विभाग का कल्याण हो जाएगा"।   अब खेल विभाग का कितना कल्याण हुआ,  यह तो राज्यवर्धन राठौर जी या खेल विभाग से संबंधित लोग ही बता सकते हैं।

खैर इस समय राज्यवर्धन राठौर जी को दूसरा मंत्रालय मिला हुआ है,  सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ।  भाई साहब को उसकी भी चिंता नहीं है , और वह अब तीसरे मंत्रालय जोकि जेपी नड्डा जी का है "स्वास्थ्य मंत्रालय" ,  उसको हथियाने में लगे हुए हैं । जेपी नड्डा जी को इस बात की थोड़ी चिंता जरूर होनी चाहिए "कि अगर राज्यवर्धन राठौर ने उनका मंत्रालय हथिया लिया तो आखिर वह जाएंगे कहां" ? क्योंकि जी की उम्र को देखते हुए लगता नहीं कि वह राज्यवर्धन राठौर द्वारा दिया गया चैलेंज पूरा कर पाएंगे।

एक छोटी सी जानकारी हम राज्यवर्धन राठौर जी को जरूर देना चाहेंगे "आपका मंत्रालय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय है । अब आपको स्थिति बता दू,  भारत में मीडिया का यह हाल है कि विश्व में पारदर्शिता  के मामले में भारत 138 में नंबर पर है । देश में सोशल मीडिया पर फेक आईडी का जाल बुना हुआ है । और दिन भर सोशल मीडिया पर धार्मिक कट्टरता जातिवाद कट्टरपंथीता का पोस्ट चलता रहता हैं।  लोगों को सरेआम धमकी दी जाती है,  जान से मारने की, बलात्कार करने की , गैंग रेप करने की । लेकिन हमारे मंत्री महोदय जी सिर्फ और सिर्फ पुश-अप्स में बिजी हैं।

हम जेपी नड्डा जी को यह सलाह भी देते हैं कि " वह ऐसी किसी भी चैलेंज को पूरा करने की कोशिश ना करें,  क्योंकि यह सब चैलेंज पूरा करने का एक उम्र और एक शारीरिक योग्यता होती है"।  यह चैलेन्ज अच्छी पहल है लेकिन अगर यह जेपी नड्डा करते तो ज्यादा अच्छा मानते क्योंकि उनका स्वास्थ्य डिपार्टमेंट है । सम्मानीय श्री राज्यवर्धन राठौर जी से यह पूछना चाह रहे हैं कि क्या आप जो चैलेंज दूसरों को दे रहे हैं " क्या आपके ही डिपार्टमेंट में उस चैलेंज को सबने पूरा किया है "?  और क्या सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य ही  जरूरी है ?  काम के प्रति ईमानदारी वाली स्वास्थ्य पर जरूरी नहीं है ?  आप की यह पहल अच्छी है ।लेकिन तब जब आप अपने खुद के विभाग को पूरी तरह दुरुस्त कर लेते,  उसके बाद आप दूसरों को चैलेन्ज दो तो अच्छा लगेगा । 

इस कड़ी में बड़े-बड़े लोग जुड़े और लोगों ने एक-दूसरे को चैलेंज किया।  सबसे हैरानी इस बात की होती है कि स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा जी को स्वास्थ्य से कोई मतलब ही नहीं है,  उनकी तरफ से काम कर रहे हैं राजवर्धन राठौर जी । जिनके खुद के विभाग में लगभग चार हज़ार नियुक्तियां रोक कर रखी गई हैं।  सीमा पर इतना तनाव भरा माहौल है।  देश में कानून व्यवस्था खराब है,  और अशांति का माहौल छाया हुआ है।  लेकिन गृह राज्यमंत्री अपनी ऑफिस की कुर्सी पर बैठ कर के  यह फिटनेस चैलेंज पूरा कर रहे हैं।   कोई मंत्री जी को अपने काम का भी चैलेंज दे दे तो ज्यादा अच्छा रहेगा । मीडिया में आकर इधर-उधर बयान देने वाला काम नहीं,   गृह मंत्रालय के काम की बात कर रहा हूं मैं।

और इन सब कड़ी में आगे जुड़ते हैं दिल्ली के भाजपा सांसद माननीय श्री मनोज तिवारी जी,  जो इंसान के पूर्वजों की तरह कूद कूद कर वीडियो बनाए हैं।  जिनके खुद के क्षेत्र में उन्होंने कोई काम नहीं किया , और पता नहीं सही है या गलत आए दिन उनके पीटे जाने की खबर उड़ती रहती है ।

मतलब इन मंत्रियों को,  और इन सांसदों को अपने विभाग के और अपने क्षेत्रीय काम धाम से कोई मतलब नहीं है।  यह बस अपने साथ वाले मंत्री के विभाग या अपने साथ वाले सांसद के विभाग में कूदा मारने की कोशिश कर रहे हैं। खैर इन मंत्रियों के यह तमाशे , और यह हरकतें इस लायक नहीं है कि मैं इन पर बैठकर ब्लॉक लिखूं या , इनके बारे में अपने सोशल मीडिया पर शेयर करूं।
मेरा आज का जो उद्देश्य है मैं उस पर आता हूं , हमारे नागरिक उड्डयन मंत्री माननीय श्री जयंत सिन्हा जी ने एक साहसिक फैसला लिया,  और नागरिकों के लिए एक चार्टर प्लान किया।  जिस के हिसाब से अगर यात्री को फ्लाइट रद्द होने की जानकारी उड़ान के दिन से दो हफ्ते से कम या 24 घंटे के भीतर दी जाती है,  तो एयरलाइंस की तरफ से उस फ्लाइट के तय समय से दो घंटे के भीतर किसी अन्य फ्लाइट में टिकट मुहैया कराई जाएगी।  या फिर यात्री को टिकट के पैसे वापस मिलेंगे। अगर एयरलाइंस कंपनी की तरफ से फ्लाइट देरी होने के बारे में 24 घंटे पहले यात्री को सूचित किया जाता है। और फ्लाइट 4 घंटों से अधिक देर हो जाती है तो एयरलाइंस की तरफ से टिकट के पूरे पैसे वापस करने का विकल्प देना होगा।

कनेक्टिंग फ्लाइट मिस होने पर भी कंपनियों को हर्जाना देगा होगा। अगर तीन-चार घंटे देरी की वजह से कनेक्टिंग फ्लाइट मिस हो जाए तो उस स्थिति में पांच हजार रुपये, जबकि 4 से 12 घंटे लेट होने पर दस हजार रुपये और 12 घंटे से अधिक लेट होने की वजह से मिस होने पर बीस हजार रुपये का हर्जाना एयरलाइंस कंपनी की तरफ से यात्रियों को देना होगा।
अगर फ्लाइट बुकिंग के 24 घंटे के भीतर यात्री टिकट कैंसल कर देते हैं तो उन्हें इसके लिए कोई कैंसिलेशन चार्ज नहीं देना होगा। इसके अलावा यात्रा समय से 96 घंटे पहले तक टिकट कैंसल करने पर भी कोई चार्ज नहीं देना होगा।

प्लेन के उड़ान भरने और फ्लाइट मोड पर निजी मोबाइल या इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को रखने पर कंपनी की तरफ से इंटरनेट सुविधा मुहैया कराई जाए। 3000 मीटर की ऊंचाई पर मोबाइल इस्तेमाल करने की सुविधा दी  जाए। बैगेज डैमेज होने, देरी से मिलने और खो जाने की स्थिति में एयरलाइन कंपनी को हर्ज़ाना देना पड़ेगा।
यात्रियों की सुविधा के लिए इतने डायनामिक फैसले लेने के लिए माननीय श्री जयंत सिन्हा जी का बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार।
लेकिन यहां पर एक सवाल जरूर उठता है कि अगर हवाई जहाज के यात्रियों को लेट होने पर मुआवजा मिल रहा है, या  फ्लाइट कैंसिल होने पर भी मुआवजा हर्जाना मिल रहा है,  तो यह सुविधा भारतीय रेल के यात्रियों को क्यों न दिया जाए ?

हमारे रेलवे मंत्री श्री पीयूष गोयल जी जिन्हें "डायनामिक मंत्री" भी कहा जाता है।  उन्हें यह डायनामिक फैसला लेना चाहिए । और उन्हें जो भी बजट की जरूरत पड़े वह उन्हें लेना चाहिए।  इसमें उनको कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए। क्योंकि उस समय वह वित्त मंत्री भी है।

यह एक सवाल बहुत बड़ा है कि क्या मुआवजा पाने का अधिकार सिर्फ हवाई यात्री ही रखते हैं ? क्या भारत के गरीब नीचे तबके के लोग , आम जनता क्या यह  मुआवजा पाने का अधिकारिक नहीं है ?  क्या इनके वक्त की कोई कीमत नहीं है ? जबकि देश में रेल की इतनी बुरी दुर्दशा  चल रही है जितनी कि शायद ही कभी रही हो।  मेंटेनेंस के नाम पर टिकट के दाम बेतहाशा बढ़ाए गए।  यहां तक कि कई ट्रेनों के टिकट के दाम हवाई जहाज की तरह फ्लेक्सी कर दिए गए।  प्लेटफार्म टिकट का दाम भी पांच रुपये से बढ़ाकर बीस रुपये तक कर दिया गया ।

यह सब हुआ किस नाम पर की " हम ट्रेन को दुरुस्त करेंगे,  और ट्रेनों को सही समय पर चलाएंगे"।  इसके बाद भारत के रेल यत्तियो के साथ जो होता है, वो बेहद गंदा मज़ाक ही कहा जा सकता है । आज भी आज भारत की 80% , जी हां ध्यान से पढ़िए 80% ट्रेनें समय से कभी नहीं चल पाती हैं।

साल 2016-17 के दौरान मेल-एक्सप्रेस ट्रेन के समय पर गंतव्य पर पहुंचने का औसत 76 फीसदी रहा था। इसका मतलब यह है कि 76 फीसदी ट्रेनें टाइम पर चली थीं। वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान मेल-एक्सप्रेस ट्रेन की समय पर पहुंचने की दर घटकर 71.38 फीसदी रह गई।
अगर पैसेंजर ट्रेनों की बात करें तो वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान समय पर पहुंचने की औसतन दर 76.53 फीसदी रही, जो वर्ष 2017-18 में गिरकर 72.66 फीसदी रह गई।

रेल मंत्रालय में निदेशक (सूचना एवं प्रसार) वेदप्रकाश का कहना है कि सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारने पर पूरा जोर दे रही है। उन्होंने बताया कि साल 2009-2014 के दौरान रेलवे के इंफ्रास्ट्रक्चर पर सालाना 24,307 करोड़ रुपये का निवेश किया गया। मोदी सरकार में साल 2014-15 में इस मद में 58,718 करोड़ रुपये का निवेश किया गया।
वित्त वर्ष 2015-16 में इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़कर 93,520 करोड़ रुपये पर पहुंच गया. वित्त वर्ष 2016-2017 के दौरान रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर में 1,09,935 करोड़ रुपये का निवेश किया गया।
वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश का लक्ष्य 1,46,500 करोड़ रुपये तय किया गया है।वेदप्रकाश के मुताबिक देश भर में रेलवे लाइन डबल की जा रही है। उनके विद्युतीकरण और आधुनिकीकरण का काम चल रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार की वजह से भी रेलवे की आवाजाही पर असर पड़ा है।
साल 2019 तक डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर काम करना शुरू कर देगा तो उसके बाद मालगाड़ियों का दबाव मौजूदा लाइनों से हट जाएगा। इससे पैसेंजर ट्रेन को तेजी से और समय पर चलाया जा सकेगा।पूरे देश में रेलवे सुरक्षा पर फोकस रेलवे की प्रीमियम ट्रेनें शताब्दी और राजधानी तक 2 से लेकर 6 घंटे की देरी से चल रही हैं।  रेलवे का इस पर कहना है कि "सुरक्षित यात्रा अधिक जरूरी है"। पूरे देश में सरकार का फोकस रेलवे को सुरक्षित तरीके से चलाने पर है।  जिन रेल ट्रैक और स्टेशन पर मरम्मत और सेफ्टी के काम बकाया थे उन्हें तेजी से पूरा किया जा रहा है।

रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्विनी लोहानी ने रेलवे सुरक्षा से संबंधित कार्य जल्द पूरा करने के निर्देश जारी किये है। उफ्फ इतना सारा काम और प्लान बनाया गया है कि लिखते लिखते हाथ दर्द करने लगा।  लेकिन 4 साल ले बाद और यात्रियों से मरम्मत के नाम पर इतना पैसा लेने के बाद भी क्या हाल है ?

अगर आपको रेल यात्रा करनी ही पड़े तो अपने हाथ में काफी समय एक्स्ट्रा लेकर चलियेगा। इसकी वजह यह है कि रेलवे के कई सेक्शन में मेंटेनेंस के नाम पर ब्लॉकेज चल रही है। इस वजह से ट्रेनें लेट चल रही है।
रेलवे का कहना है कि सुरक्षा उसकी उच्च प्राथमिकता में शामिल है। इस वजह से पटरियों को मेंटेन करना जरूरी है। आम तौर पर कोहरा पड़ने या बाढ़ आने की वजह से ही ट्रेनें देर से चलती हैं। रेलगाड़ियों के देरी से चलने के चलते देश भर में यात्री परेशान हैं।
रेलवे की लंबी दूरी की तमाम ट्रेनें घंटों देरी से चल रही हैं। उनके डेस्टिनेशन पर पहुंचने का कोई समय भी निर्धारित नहीं है। रेल मंत्रालय के आंकड़े भी यहीं कहते हैं कि रेलवे का टाइम टेबल ही बिगड़ चुका है। दिलचस्प यह है कि लेट चलने वाली ट्रेन में मेल एक्सप्रेस ही नहीं, राजधानी-शताब्दी और दुरंतो भी शामिल है।

NDTV के शो प्राइम टाइम में रवीश कुमार बताते हैं कि "अमृतसर से दरभंगा के बीच जननायक एक्सप्रेस चलती है। सारी जनरल बोगी होती है। ये ट्रेन भी खूब देरी से चलती है। बताइये क्या रेलवे इनमें सवार मजदूरों को फ्री में नाश्ता पानी देगी। 23 मई को अमृतसर से दरभंगा वाली ट्रेन 11 घंटे से ज्यादा की देरी से चल रही है। 22 मई की ट्रेन 23 मई को 22 घंटा 30 मिनट की देरी से दरभंगा पहुंची है। पटना स्टेशन पर हबीब ने कुछ यात्रियों से इस सवाल पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी तो उन्होंने भी यही कहा कि यात्री तो रेल के भी हैं, लेट होने पर उन्हें भी मुआवाज़ा मिले। 

रवि प्रजापति ने हमें ईमेल से अपनी लगाई हुई एक आरटीआई की कॉपी मेल की है।इस पर 6 मार्च 2018 की तारीख लिखी है। इसमें रवि ने पूछा था कि 2017-18 के कैलेंडर ईयर में ट्रेन 12367 और 12368 आनंद-विहार भागलपुर विक्रमशिला एक्सप्रेस कितनी बार अपनी मंज़िल पर समय से पहुंची, तो जवाब मिलता है कि ट्रेन नंबर 22367 विक्रमशिला एक्सप्रेस आनंद-विहार टर्मिनल पर 2017-18 में मात्र 6 बार समय पर पहुंची है।ट्रेन नंबर 12368 अपनी मंज़िल भागलुपर सिर्फ एक बार राइट टाइम पहुंची है।

यह ट्रेन 32-32 घंटे तक लेट चली है। सोचिए इस ट्रेन के यात्रियों को मुआवजा मिले तो कितना अच्छा रहेगा। हर अधिकार एक समान का नारा होना चाहिए। जो हवाई यात्री को मिले वही रेल यात्री को मिले। लेट होने की समस्या भारतीय रेल में ज्यादा है। पटना के एक अनुभवी ट्रैवल एजेंट अनिल ने बताया कि एक रेलगाड़ी जिसके रवाना होने का समय सुबह 10 बजे का है। अब इसका चार्ट राइट टाइम के चार घंटा पहले बन जाएगा। मान लीजिए ट्रेन 20 घंटे लेट हो गई। आप चाहेंगे कि ट्रेन का टिकट कैंसल करा लें। तो आप सुबह 10 बजे के आधा घंटा पहले ही कैंसिल करा सकते हैं।यानी ओरिजिनल टाइम के आधा घंटा पहले।उसके बाद कैंसल नहीं करा सकते हैं।फिर भी आपको पता चल जाता है कि ट्रेन सुबह 10 बजे नहीं खुलेगी और आप कैंसिल कराना चाहते हैं तो ट्रेन डिपाजिटरी रिसिप्ट टीडीआर के जरिए पैसा वापस मिलता है।

एजेंट कहते हैं कि बहुत कम लोगों का पैसा वापस आता है और वो भी कभी समय पर नहीं आता।कई महीने बाद आता है।रेलवे इस मामले में अपनी स्थिति और स्पष्ट कर सकती है। अगर ऐसा है तो वाकई दुखद है।ट्रेन लेट भी चले और कैंसिल होने का विकल्प भी न रहे यह अच्छी बात नहीं है। हमने 23 मई की दोपहर 3 बजकर 46 मिनट पर Railradar.railyatri.in पर चेक किया, तो उस वक्त 70 प्रतिशत रेलगाड़ियां लेट थीं और 30 फीसदी समय से चल रही थीं। ये रोज़ का हाल है"।

रवीश कुमार की रिपोर्ट देखने पर लगता है कि इस समय देश में ट्रेनों की और उनके आवागमन की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है।

सुल्तानपुर के अवधेश कुमार अपने परिवार के साथ सुल्तानगंज से किऊल के लिए चले थे। उन्हें किऊल में दूसरी ट्रेन पकड़नी थी। ट्रेन किऊल से ठीक पहले मालदा डिवीजन में पड़ने वाले स्टेशन धनौरी तक ठीक चली। किऊल पहंुचने के पहले ही ट्रेन को आउटर सिग्नल पर रोक दिया गया। जब तक उनकी ट्रेन किऊल पहंुचती उनकी लिंक ट्रेन निकल चुकी थी।किऊल-जमालपुर सेक्शन के यात्रियों को रोज ऐसी परेशानी झेलनी पड़ रही है। किऊल होकर विभिन्न रूटों की ट्रेनें गुजरती हैं। गया, बरौनी एवं मेनलाइन के लिए यात्री किऊल स्टेशन से ट्रेन पकड़ते हैं। यहां यात्री एक दिशा से आते हैं और किऊल में ट्रेन बदलकर दूसरी दिशा की ओर जाते हैं। रोजाना ऐसे यात्रियों की संख्या हजारों में होती है।इन हजारों यात्रियों के साथ होता क्या है- इनकी ट्रेन किऊल आउटर सिग्नल पर घंटों खड़ी रह जाती है और आगे की ट्रेन छूटने के कारण किऊल में दूसरी ट्रेन के लिए घंटों स्टेशन पर इंतजार करना पड़ता है। खासकर मालदा डिवीजन से आने वाली ट्रेनों के साथ दोहरा व्यवहार हो रहा है। समय से आने के बाद भी आउटर सिग्नल पर ट्रेनों को रोका जाता है। रात में तो ट्रेनों को कभी उरैन तो कभी धनौरी में घंटों रोका जाता है। ट्रेन वहां से खुल भी गई तो किऊल आउटर पर ट्रेनों को खड़ी करना परिचालन विभाग की नियति बन गई है।

सर्दियों में या बरसात के मौसम में जब ट्रेनें लेट होती हैं, तो हम मान लेते हैं और हमें मनवा भी दिया जाता है कि देशभर में फॉग चल रहा है, इसलिए ट्रेनें लेट हैं। हम ‘देशहित’ में 2-4 घंटे से लेकर 20-25 घंटे लेट ट्रेनों में भी सफर कर लेते हैं। सर्दी होती है, तो स्लीपर और जनरल में सफर करने वालों को (आधी से ज्यादा आबादी इन्हीं क्लास में सफर करती है) इतना फर्क नहीं पड़ता। मगर अब अप्रैल-मई चल रहा है। भयंकर गर्मी है। मौसम भी अनुकूल है, मगर ट्रेनें 4-5 घंटे ही नहीं एक-एक दिन तक लेट हो रही हैं। कल्पना करके देखिए गर्मी से तपते लोहे के डिब्बों में आपके घर-परिवार का कोई बुजुर्ग, बच्चा, बीमार व्यक्ति ट्रेन में सफर कर रहा हो, उस पर क्या बीतेगी।
रेलवे किस-किस को दूध, नाश्ता, दवाई, डॉक्टर मुहैया कराता रहेगा और कब तक? गर्मियों में भी ट्रेनों की लेट-लतीफी का जो सबसे बड़ा कारण है, वह है प्रशासनिक लापरवाही और बेफिक्री। पता नहीं कौन सा रिवाज चल पड़ा है कि लगभग हर बड़े स्टेशन से पहले ट्रेन को 1-2 घंटे आउटर पर खड़ा कर दिया जाता है। ट्रेन को आउटर पर खड़ा करने का फैसला अधिकारियों का होता है और यह उन्हीं परिस्थितियों में खड़ी होती हैं, जब प्लैटफॉर्म न खाली हो या उस प्लैटफॉर्म पर कोई और ट्रेन आनी हो।

कुछ परेशानियां, कुछ लापरवाहियां रेलवे में हो सकती हैं। पीयूष गोयल जी अपने और अपने आसपास के अधिकारियों के कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार होने की जिम्मेदारी ले सकते हैं, मगर तेरह लाख कर्मचारियों की जिम्मेदारी कैसे ले सकते हैं। कोई संस्थान या कोई पत्रकार जब ऐसे में रेलवे और IRCTC की गड़बड़ियां उजागर करता है, तो उन गड़बड़ियों को सही करने के साथ रेलवे को उसे पुरस्कृत करना चाहिए, प्रोत्साहित करना चाहिए। मगर बदले में नोटिस भेजा जाता है और इस बात से साफ इनकार किया जाता है कि हमारे सिस्टम में कोई गड़बड़ी नहीं है।

ट्रेनों की  लेटलतीफी दरअसल कोई टेक्निकल प्रॉब्लम नहीं,  बल्कि रेलवे विभाग की लापरवाही है।  रेलवे विभाग बिल्कुल ही निरंकुश एवं कार्य विहीन हो चुका है।  रेलवे विभाग को यात्रियों के और देश के लोगों के समय की कोई चिंता नहीं है।  ना ही हमारे रेल मंत्री या प्रधानमंत्री को है।  अगर इनको थोड़ी भी चिंता होती तो हवाई जहाज में यात्रियों को जो सुविधा दी गई है,  या जो चार्टर तैयार किया गया है वैसा ही कुछ चार्टर रेल यात्रियों के लिए भी बनाया जाता । जिससे कि कम से कम समय पर सही जगह ना पहुंच पाने के एवज में उन्हें कुछ तो पैसा मिलता।

आप जहां पर हवाई जहाज के यात्रियों को बीस हजार रुपये दे रहे हैं, वही पर आप रेल यात्रियों को बस दो हज़ार ही दीजिए।  लेकिन कुछ तो मुआवजा दीजिए । आखिर में यह दोहरा रवैया क्यों ?  और एक बात यह भी समझ में नहीं आती कि जो भारत सरकार रेलवे के यात्रियों को लेटलतीफ होने पर कोई मुआवजा नहीं देती है,  वह भारत सरकार प्राइवेट कंपनियों से उनके यात्रियों को मुआवजा कैसे दिलवाएगी ?  क्या यह एक तरह की निरंकुशता नहीं है,  जो काम हम खुद नहीं कर रहे हैं  वह काम हम दूसरों से कैसे करा सकते हैं ?

और वैसे भी जब देश में अभी चैलेंज का माहौल चल रहा है,  तो मैं भी सरकार के कुछ मंत्रियों को एक कड़ी आगे बढ़कर चैलेंज देता हूं ।

जैसे कि पीयूष गोयल जी को ट्रेन इस समय पर चलाने का चैलेंज देता हूं ।

राज्यवर्धन राठौर जी को अपने विभाग की चार हज़ार नियुक्तियों को पूरा करने का चैलेंज देता हूं ।

प्रधानमंत्री को बिना "Chutzpa" किये,  तेल की कीमतें कम करने का चैलेंज देता हूं।

गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू को देश के आंतरिक हालात सुधारने , और सीमा पर चीन को रोकने का चैलेंज देता हूं।

नितिन गडकरी जी को गंगा माता को साफ करने का चैलेंज देता हूं ।

राजनाथ सिंह जी को कड़ी निंदा से कुछ कदम आगे बढ़ने का चैलेन्ज करता हु।




और सबसे अंत में आते हैं "मनोज तिवारी"
उनको ज्यादा कोई भारी काम नहीं दूंगा उन्हें सिर्फ अपनी पिटाई या पिटाई की अफवाह रोकने का चैलेंज देता हूं।

जय हिंद
जय समाजवाद

बृजेश यदुवंशी

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