शहीदेआजम के गुनाहगार

इस देश में बहुत समय से यह मांग की जा रही है कि भगत सिंह को भारत रत्न का पुरस्कार क्यों नहीं दिया गया ?
लेकिन देश के लोग इस सच्चाई से अनभिज्ञ हैं कि आज भी भारत सरकार भगत सिंह जी को और उनके साथियों को सिर्फ और सिर्फ एक आतंकवादी ही मानती है।
भारत के संविधान में ,  भारत के कानून में कहीं भी सरदार भगत सिंह जी को शहीद का दर्जा नहीं प्राप्त है । और आजकल जो शहीद भगत सिंह जी के नाम पर अपनी राजनीति चमका रहे हैं , उसी संघ के पूर्व प्रिय रिश्तेदारों की गवाही पर सरदार भगत सिंह जी को फांसी हुई थी।

एक लेख के अनुसार भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष  वकील राशिद कुरैशी ने उच्च न्यायालय में आवेदन दाखिल कर भगत सिंह जी को स्वतंत्रता सेनानी एवं शहीद घोषित करने की मांग की , और साथ में यह भी कहा कि भगत सिंह श्रद्धा सेनानी थे और उन्होंने अखंड भारत की लड़ाई लड़ी।
अंग्रेजों के अधिकारी सांडर्स की हत्या के मामले में भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु पर मुकदमा दर्ज किया गया था ।और इसी केस में उनको  23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई।
उन पर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ साजिश रचने का भी आरोप था । कहा तो यहां तक जाता है कि सरदार भगत सिंह जी को पहले उम्र कैद हुई थी ,
लेकिन एक और झूठे मामले में झूठी गवाही के माध्यम से उन को मौत की सजा दी गई ।

यहां तक तो बात सबको पता  है लेकिन क्या कभी किसी ने यह पता करने की कोशिश की है कि सरदार भगत सिंह जी के खिलाफ गवाही देने वाले कौन थे ? और उन्होंने क्या गवाही दी जिससे सरदार भगत सिंह जी और उनके साथियों को फांसी की सजा दी गई ?

चलिए मैं आपको इसकी थोड़ी जानकारी देना चाहता हूं दिल्ली असेंबली में बम फेंकने के बाद जब भगत सिंह जी और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त पर मुकदमा चला था।  तो उस मुकदमे में भगत सिंह जी और बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ जिन दो मुख्य लोगों ने गवाही दी थी,  वह "शोभा सिंह " और "शादी लाल " थे ।
खैर जैसा कि होता आया है उन दोनों को भारत मां से गद्दारी करके भारत के बेटों को फांसी चढ़ाने का इनाम भी दिया गया।  उन दोनों को अंग्रेज सरकार की तरफ से "सर"  की उपाधि दी गई और करोड़ों-अरबों रुपए का काम और ठेका उनको दिल्ली में दिया गया । दिल्ली के कनॉट प्लेस में सर शोभा सिंह स्कूल मैं आज भी बच्चों की लंबी लाइन देखी जाती है एडमिशन पाने के लिए।   लेकिन उनको एडमिशन भी नहीं मिलता ।

साथ ही एक समय यह था कि जब शोभा सिंह को आधी दिल्ली का मालिक कहा जाता था।  क्योंकि उसके पास बड़े-बड़े सरकारी कामों के ठेका था। वहीं दूसरे गद्दार गवाह शादी लाल को बागपत के आसपास करोड़ों की संपत्ति दी गई।  कहा तो यहां तक जाता है कि आज भी शामली में शादी लाल के वंशजों की शराब के कारखाने हैं ।
शादी लाल के मरने पर लोगों ने उसके प्रति अपना घृणा इस तरह जाहिर की कि उसकी लाश के लिए लोगों ने कफन तक नहीं दिया।  उसके लड़के उस समय दिल्ली से कफन खरीद के ला कर उसका अंतिम संस्कार किये।
वही शोभा सिंह और उसके पिता सुजान सिंह जिनके नाम पर दिल्ली में सुजान सिंह पार्क है । दोनों को पूरे देश के कई हिस्सों में बहुत जमीनें और खूब पैसा दिया गया।
अब आते हैं इन गद्दारों के संघ के  कनेक्शन पर ।

इन गद्दारों का बेटा खुशवंत सिंह जो कि एक फर्जी पत्रकार और "गोदी मीडिया" का जनक था , उसे संघ ने अपने मुखपत्र "पांचजन्य" का प्रमुख संपादक बनाया।  और इसी की सहायता से खुशवंत सिंह ने अपने बाप के नाम से सर शोभा सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट भी बनाया।  पूरी जिंदगी भर खुशवंत सिंह अपने बाप को एक दूरदृष्टा और देशभक्त साबित करने में लगा रहा ।
उसने इतिहासिक कई घटनाओं को अपने हिसाब से गढ़कर लोगों के सामने पेश किया ।
आप लोगों की जानकारी के लिए भी बता दूं कि खुशवंत सिंह का ट्रस्ट हर साल शोभा सिंह मेमोरियल लेक्चर का भी आयोजन करता है , जिसमें बड़े-बड़े लोग बिना शोभा सिंह की असलियत जाने या जानबूझकर उसकी तस्वीर पर माला चढ़ाते हैं । और आज कल जो संघ शहीदे आज़म की शहीदी पे अपनी चुनावी रोटियाँ सेक रहा है , इसी ने भगत सिंह जी के हत्यारों के वंसजो को आश्रय दिया जिन्होंने शहीदेआजम का अपमान करने का भरसक प्रयास किया ।

बृजेश यदुवंशी

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