गजब का परिवेश 2
जैसा कि मैंने इस आर्टिकल के पहले वाले भाग में बताया था कि कैसे एक आदमी 4 साल में बिना एक भी छुट्टी लिए 350 से भी ज्यादा रैलियां कर देता है।
कैसे बाबा खुद की ही केस में खुद को ही , खुद को बरी करने का एक फैसला लिया, जिसमे जज भी बाबा खुद थे, आरोपी ,वकील, सिपाही, पेशकार, और तो और वहा बैठी हुई जनता भी खुद बाबा जी थे, वहां पे बाबा ने खुद को आदेश देकर खुद को बरी कराया, और खुद ही रिहाई के पत्र टाइप करके खुद को दे दिया,जबकि बाबा के ऊपर धारा 506, 307, 148, 147, 297, 153A , और 295 जैसी गंभीर धराये लगी हुई थी।
उसी कड़ी में ये लोग एक कदम और आगे बढ़ चुके है ।पहले बाबा ने खुद को बरी क्या था, अब बारी थी शागिर्दों को बरी करने की।
बाबा ने एक साथ मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपियों की आरोप मुक्त कर दिया। पूछने पर ये दलील दिया कि " जो मुकदमे बेबुनियाद और झूठे है उनको हटाया गया है" । पता नही मुकदमो की सच्चाई , और सच झूठ का फैसला सरकार कब से करने लगी ?
शायद कोई नया कानून आया होगा, जो चुपचाप पास किया गया हो, जैसे कि अभी विदेशी चंदे वाला कानून पास हुआ।
जिन 131 आरोपियों की खुशामद करके आरोप मुक्त किया गया है, उनमे संगीत सोम और सुरेश राणा जैसे लोग भी है। जिनपे मुजफ्फर नगर दंगा फैलाने का गंभीर आरोप लग चुका है ।इस सांप्रदायिक दंगे में 63 लोगों की मौत हो गई थी और 50 हजार से भी ज्यादा लोग विस्थापित हो गए थे। इन 131 मामलों में से 13 हत्या और 11 हत्या की कोशिश के हैं। इसके अलावा जिन मामलों को वापस लिया जा रहा है, उनमें से कई भारतीय दंड संहिता के मुताबिक जघन्य अपराधों से जुडे़ हैं।
अब बाबा ने इन सब को दोष मुक्त करार दे दिया है।
तो आगे से शायद हम या आप भी दंगे फैलाने पर उपद्रव मचाने पर मंत्री बना दिए जाएं। और अगर आप किसी मंदिर के पुजारी है तो दंगे फैलाने पर आपको मुख्यमंत्री तक बनाया जा सकता है।
और उससे भी बड़ी बात आप दंगे फैला कर लोगों को पैसे देने का वादा करे तो आप प्रधानमंत्री तक बन सकते है।
वैसे अगर यह मामला कोर्ट तक जाता तो भी यह आरोपी वहां से भरी ही हो जाते, क्योंकि कोर्ट की हालत किसी से छुपी हुई नहीं है। कोर्ट के 4 बड़े वरिष्ठ जज आकर कोर्ट की दुर्दशा देश के आगे रोकर जाते हैं। फिर भी किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है।
भक्तों ने एक नया शिगूफा निकाला था कि "यह देश में पहली बार हो रहा है " । कई चीजें देश में पहली बार हो रही है । तभी देश में पहली बार हो रहा है कि एक हाईकोर्ट ने देश के राष्ट्रपति का फैसला पलट दिया ।
आजकल मिलार्ड साहब भी अपने "फेवरेट जजों " की नियुक्ति करवा कर उनके पास अपने फेवरेट केस पहुंचा रहे हैं । तो न्याय की उम्मीद कहां रखा जाएगा समझ में नहीं आती?
उत्तर प्रदेश के राज्यसभा चुनाव के दौरान भी एक ऐसी चीज देखने को मिली , जब दो अलग-अलग राज्यों में स्थिति कमोवेश एक ही जैसी थी। झारखंड में BJP के दो विधायक जेल में बंद थे , और उत्तर प्रदेश में भी एक सपा का और एक बसपा का विधायक जेल में बंद था । चारो के ऊपर आरोप भी लगभग लगभग एक ही जैसे थे । लेकिन पता नहीं देश के संविधान में यह कहां लिखा हुआ है कि झारखंड के विधायकों को वोट राज्यसभा चुनाव में वोट डालने की अनुमति मिल गई , और यूपी के विधायकों को राज्यसभा चुनाव में वोट डालने की अनुमति नहीं मिली?
हो सकता हो कि शायद उत्तर प्रदेश और झारखंड का संविधान अलग-अलग हो । यह भी नया नया आया होगा और ठीक उसी तरह चुपके से पास करा लिया गया होगा जिस तरह से " विदेशी चंदे" वाला कानून पास करा लिया गया।
भक्तों की दलील भी बड़ी हास्यास्पद होती है वह कहते हैं कि भला कोर्ट चुनाव आयोग पक्षपात कैसे कर सकते हैं। अब कोर्ट या चुनाव आयोग भगवान तो है नहीं, उन्हें भी इंसान ही चला रहे हैं । और इंसानों की भी अपनी एक मूल भावना होती है, तो यह कैसे मुमकिन नहीं है कि कोर्ट या चुनाव आयोग पक्षपात नहीं कर रहे हैं ?
जबकि चुनाव आयोग को लगभग लगभग सारी पार्टियों ने या लिखित में निवेदन किया था कि चुनाव आयोग अगला सारे चुनाव बैलेट बॉक्स करवाएं । लेकिन चुनाव आयोग अपनी स्थिति से टस से मस नहीं हुआ । वैसे अगर हम भारत के बाहर निकलें और देखे तो कई देशों में तो इस बात पर शोध चल रहा है । इन लोगों ने इसके लिए शोधकर्ता नियुक्त किया हुआ है संस्थाओं ने ।
इसके लिए एक अलग से बजट का प्रावधान किया हुआ हैं। हमारे यहां तो हम स्कूल में टीचर ही नहीं रख पा रहे हैं तो इस तरह के शोधकर्ता हम कहां से लाएंगे। कई देशों में लोग इस बात पर शोध और रिसर्च कर रहे हैं कि क्या मत के प्रयोग में किसी तरह की टेक्नोलॉजी का उपयोग होना चाहिए या नहीं ? क्योंकि टेक्नोलॉजी से छेड़छाड़ तो पूरी तरह संभव है, यह से दुनिया का कोई भी वैज्ञानिक नकार नहीं सकता । तो फिर चुनाव आयोग का ऐसा क्या फायदा जो वह ईवीएम पर ही इतना जोर दिए हुए हैं? आखिर में बैलेट बॉक्स से चुनाव कराने में उसे परेशानी क्या है? क्या हमारी टेक्नोलॉजी अमेरिका रूस जापान जर्मनी जैसे देशों से ज्यादा बढ़कर है? जहां पर आज भी इस तरह के चुनाव बैलेट बॉक्स से ही किए जाते हैं।
खैर यह तो कहने पर मजबूर होना पड़ेगा कि अब सिर्फ ईवीएम ही नहीं बल्कि चुनाव आयोग और कोर्ट भी है किए गए हैं । वरना एक ही तरह की स्थिति में एक ही तरह के केस में दो अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग फैसले नहीं आते । क्योंकि संविधान में तो एक ही फैसला लिखा होगा । हां व्यक्ति विशेष के मन में पार्टी विशेष के मन में अलग-अलग फैसले होते हैं । इस वजह से अलग-अलग फैसले आते हैं ।
तो साहब अब इस देश के न्यायालयों में न्याय नहीं मिलेगा अब इस देश के न्यायालयों में वह मिलेगा जो सरकार आप को देना चाहेगी । मतलब जिल्लत, भुखमरी, बेरोजगारी, जातिवाद , धर्मवाद।
और हम मीडिया की क्या बात करे, इक्का दुक्का कथित " देशद्रोही " पत्रकारों को छोड़ दिया जाए तो
हम मीडिया के माध्यम से विश्व गुरु बन चुके है, मीडिया भारत को सबसे ताकतवर बना चुकी है, 10 बार दाऊद को भारत ला चुके है, 50 बार काला धन भारत लाने का तरीका बता चुके है, सर्जिकल स्ट्राइक का सारा मास्टर प्लान ये दिखा चुके है।
जिस राफेल विमान की तकनीकियां और कांफ़्रिग्रेशन सरकार ने संसद तक मे बताने से मना कर दिया, ये उस राफेल का डेमो हर दूसरे दिन दिखाते है।
और बगदादी को तो हर रोज ही मारते है ।
यही होता है जब मीडिया हाउस का मालिक किसी पार्टी की कृपा से राज्यसभा पहुँच जाए, । तभी एक पेरफेस्ट गोदी मीडिया का निर्माण होता है। और आज तो लगभग सारी मीडिया ही गोदी मीडिया बन चुकी है।
जहा पर किसी पार्टी विशेष के चुनाव हारने पे एंकर ये कहती है कि " एक बुरी खबर, ........ फला पार्टी फला सीट हारी" । तो वहाँ के मीडिया का अस्तिव क्या होगा, हर कोई समझ सकता है। फ़र्ज़ी वीडियो की खबरे चला कर, नोट में चिप वाली खबरे चला कर, कुछ न मिला तो गौरैया के घोंसले की खबरे चला कर आपका ध्यान भटकाये रहते है। सारे कथित " देशप्रेमी" पत्रकार एक सुर में प्रोपेगेंडा फैलाने में लगे है। अगर मीडिया की हकीकत जाननी जो तो शाम को 9 बजे एक बार सारे न्यूज़ चेंनल देखिए,आपको समझ मे आ जायेगा कि किस चेंनल पर आपकी नौकरी, पढ़ाई, रोजगार, शिक्षा की सिरीज़ चल रही हों और किस चेंनल पर गौरैया के घोसले का एनालिसिस चल रहा है । लेकिन मुझे इसका भी यकीन है कि हम वही गौरैया का एनालिसिस देखेंगे, क्योकि जब तक मुसीबत खुद पर नही आती हमारे कान पर जू तक नही रेंगती।
तो इस वजह से जो फेसबुक हमारा डाटा बाहर बेचता है, उसी फेसबुक को हमारा चुनाव आयोग अपना मीडिया पार्टनर बनाता है। तो निष्पक्षता की उम्मीद कैसे करे ?
वैसे इनसब के जिम्मेदार कहीं ना कहीं हम ही हैं। और कोई नहीं है।
क्योकि हम ही है वो जो फसबुक पे , आपकी आपके अंदर कौन सा जानवर है , आप दाढ़ी में कैसे दिखेंगे, आपको कितनी लड़कियों ने प्रपोज किया है, आप कैसे मरेंगे आप ब्रेकिंग न्यूज़ में क्यों हैं , जैसी वाहियात बाते जानने के लिए बेधड़क ऍप्लिकेशन्स पर क्लिक करते है और सारी पेरमिसन ग्रांट करते जाते है। हम कुछ पढ़ने की भी जहमत नही उठाते।
आज हम और हमारा देश जिन परिस्थितयो में है , ये सब ऐसी ही लापरवाहियों का नतीजा है,। क्योकि हम लालची है , ईर्ष्यालु है।
लालची इसलिए कि कोई आकर ऐसे ही फेक देता है चुनाव जीतने के बाद वो पैसे देगा, तो हम उसे वोट दे देते है, बिना सच्चाई जांने की क्या ऐसा मुमकिन है भी यजे नही
और ईर्ष्यालु इसलिए मि नोटबन्दी जैसे दौर में भी हमे अपने दो दो दिन लाइन में खड़े रहने रहने की तकलीफ नही थी, बल्कि इसबात की खुसी थी कि कोई अमीर की नींद हराम हो गई है। बिना ये जाने की वो अमीर हमारा पैसा लेकर भागने वाला है।
नींद किसकी हराम हुई, लाइन में कौन खड़ा रहा , परेसान कौन हुआ किसी से कुछ छिपा नही है।
फिर भी हम कलयुगी धृतराष्ट्र बने बैठे है, जैसे चुनाव आयोग और न्यायालय बैठा हुआ है, बनावटी धृतराष्ट्र बन कर।
जयहिंद
बृजेश यदुवंशी
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