बेंडिट क्वीन और पद्मावती
दलित जाति की फूलन देवी का पूरे गाँव के राजपूत दबंग "लाला राम" के नेतृत्व में सामूहिक बलात्कार करते हैं।
शेखर कपूर फूलन देवी पर जो "बैंडिट क्वीन" फिल्म बनाते हैं उस फिल्म में "मल्लाह" फूलन देवी को नग्न करके गाँव के बीचो बीच स्थित कूँए से पानी मँगाते हैं और फिर गंदी गंदी अश्लील गालियाँ दिलाते हैं। पूरा गाँव इस नग्न तमाशे को देखता है।
पूरे "मल्लाह जाति" को सरेआम हाईवोल्टेज साउंड सिस्टम से हाल में गूँजती गालियाँ दिलवाईं जाती हैं।
फूलन ? ओ फूलन ? साली माखरधोक।
यह सब फिल्म को रियलस्टिक बनाने के नाम पर होता है , पिछवाड़ा खोले डाकू उनका तमाम मर्द डाकुओं के सामने चंबल के बीहड़ में सार्वजनिक रूप से बलात्कार करते हैं।
यहाँ ना कोई "करणी सेना" पैदा होती है ना किसी जाति या समूह की अस्मिता को चोट पहुँचती है।
दरअसल इस देश में सारी अस्मिता राजनैतिक रूप से मज़बूत कुछ विशेष लोगों की ही होती है।
बाकी सब लोग जाति सूचक और धर्म सूचक नाम की गालियाँ खाने के लिए हैं और ऐसी फिल्म देख कर लोग वाहवाही करते सिनेमा हाल से निकल जाते हैं।
गजबे दोगलापन है इस देश में।
इज़्ज़त के हकदार बस मुँह और छाती वाले ही लोग हैं।
या फिर इज्जत के हकदार सिर्फ एक जाति विशेष है ?
या एक वर्ग विशेष के लोग ही होते हैं ?
हम सबका बस एक ही प्रश्न है कि क्या मां का दर्जा पद्मावती को ही हासिल है ? क्या फूलन किसी की मां नहीं बन सकती थी ? या फूलन को मां कहलाने का अधिकार नहीं दिया गया था? आखिर किस पैमाने पर और किस तरह के स्तर पर यह निर्धारित किया जाता है कि कौन कितनी और किस इज्जत का हकदार है । और यह इन लोगों को निर्धारित करने का अधिकार कहां से मिला है । समाज के कुछ दोगले वर्ग के लोग जो सभी वर्गों से मिलकर बनते हैं यही लोग हर तरह की जाति विशेष क्षेत्र विशेष वर्ग विशेष और न जाने कितने विशेष विशेष तरह की परिस्थितियां पैदा कर के देश एवं समाज में विघटन कराने की पूरी कोशिश करते हैं।
और हमारे सत्ता में बैठे हुए लोग जहां पर कोई कथित मामा फिल्म को बैन करता है, कहीं पर कोई कथित महारानी बैन करती हैं, तो कहीं पर कोई कथित चाचा बैन करते हैं। यही लोग ऐसे पाखंडियों और ढोंगियों को श्रेय देकर कुर्सी की लालच में बढ़ाते रहते हैं और देश और समाज को गंदगी की ओर धकेलने की पूरी साजिश करते हैं।
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