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Showing posts from February, 2025

लहू से लथपथ पैरों को फिर भी आगे बढ़ना होगा।

एक आखिरी शाम

याद आती थी

रिन्द की बात में है

बिंदिया

ग़ज़ल बनाने आएंगे

मेरे महबूब को आंखों से शिकार करना आता है