जी चाहता है
कभी बिखरने को, कभी टूट जाने को जी चाहता है
मेरा फिर से तेरी आँखों मे डूब जाने को जी चाहता है
इनायत ए उल्फत इतना किया तूमने मेरे नसीब में
एक करम पर सौ सौ बार लूट जाने को जी चाहता है
किसी रोज मेरे कंधे पर सिर रख कर तू मुझे मनाएगी
इसीलिए एक बार तुझसे रूठ जाने को जी चाहता है
बस एक तेरे चेहेर पर हंसी देखने की खातिर इलाही
मेरा दौलत शोहरत सबसे लूट जाने को जी चाहता है
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