चलो दो दो जाम लगाते है

मैखाने में नक्स हर एक साकी का दाम लगाते है
इश्क़ ए रिंदाना में यहाँ की सारी अवाम लगाते है

अब बूंदों  से भीगते  भीगते  मन  भर गया बावरें
बरसात का मौसम है चलो  दो दो जाम लगाते है

बात हमारी भी पूरी हुई,बात तुम्हारी भी पूरी हुई
आओ खामोशी के साथ बैठक ए शाम लगाते है

बड़ा बदनाम  हुआ अपनी गुस्ताखियों से मुर्शिद
चलो अब मयखानों पर इनका इल्ज़ाम लगाते है

जिस आब ए जमजम को तू तरसता  है इलाही
मधुशाला में वो  जाम हम सुबह  शाम लगाते है


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