मैं फूलों के शहर आ गया।

जैसे सेहरा में चलते चलते  बंजारे का घर आ गया
तूने नज़रे क्या मिलाई,  मैं फूलों के  शहर आ गया।

बस तेरे हुस्न  को अल्फाज़ो में पिरोने की बात हुई
और इस फकीर को शेर लिखने का हुनर आ गया।

अभी अभी तो निजात पाई थी गम  ए उल्फत  से
अभी अभी  फिर से  ये  नया  दर्द  ए सर आ गया

आज  फिर  किसी  ने पीछे  से  आवाज  लगाई  है
आज फिर कोई  इस खिड़की  पर  नज़र  आ गया

ये हवाये  उसको  छू  कर  बस मेरी  गली में आयी
और मैं खुशबू ए  यार से  लबालब होकर आ गया


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