सर्दियों की धूप
उलझी जुल्फें सुलझाने में बहुत मशरूफ लगती है
रेल में सामने बैठी वो लड़की सर्दियों की धूप लगती है
माथे पे बिंदी,कानो में झूमके, वो दुपट्टे को संभालना
मैं कैसे बताऊ, पीले सूट में वो क्या खूब लगती है
चाँद, तारे, फूल कलियाँ सब इल्तेज़ा करो मुझसे
तुम सब से जादा खूबसूरत मेरी महबूब लगती है
बेबाक होकर वो जब भी मेरे आगोश में सोती है
किसी शायर की ग़ज़ल,किसी जन्नत की हूर लगती है
मेरे हाथो में उसका हाथ, जैसे जन्नत थामे बैठे हो
उसके पाँव चूमना,किसी खजाने की तूब लगती है
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