किसी का घर है, है किसी का ठिकाना

किसी का घर है, है किसी का ठिकाना
मस्तियों के  शहर में है ये कैसा बिराना

कभी जो पीछे से आके ढक लू तुम्हारी आंखे
है तुमको कसम देखो, तुम नाम मेरा बताना

मेरी अँजुरी खाली सही पर है तो मेरी
मुबारक  तुम्हे हो ये लूटा हुआ खजाना

कहो तो आज हम तवाक ए रजू करलें
पर मिलो जो कभी तो जरा सा मुस्कुराना

कही पे मोड़ है, कही पे सफर है बेगाना
देखना तुम भी राह में न कांटे बिछाना

है मर्जी तुम्हारी जो चाहे सुना लो बहाने
तुम्हे तो खूब आता है नए किस्से बनाना


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