वीर अहीर
पर्वत पर जिन्होंने जान गवाई, हुई शहीदी थी जिन वीरो की
अतिंम सांस तक लड़े जो, वो बलिदानी कौम थी अहीरों की
एक एक वीर थे दस दस शत्रु पर भारी,
मौत पर भी रही यादवो की ही दावेदारी
सबने जब जय दादा किशन हुंकारा था
सुन कर तब दुश्मन भी हिम्मत हारा था
सबने अपना सर्व सर्वोच्च बलिदान दिया
जमीं पे खुद को हंसते हँसते कुर्बान किया
क्या दाद दू उनको क्या सुनाऊ कहानी रेज़ांगला के शेरो की
अतिंम सांस तक लड़े जो, वो बलिदानी कौम थी अहीरों की
समां गए धरती में, कदम न पीछे हट पाए
120 शेरो के आगे 3000 भी न डट पाए
जब तक थी बंदूके वीरो ने मोर्चा थाम लिया
खत्म हुई जो गोली तो हाथो से काम लिया
कही पर पत्थर कही पर पटक कर मारा था
काल ही था जो वीर अहीरों को ललकारा था
अहीरधाम की पावन धरा सुनाती किस्सा यदुवंशी दिलेरों की
अतिंम सांस तक लड़े जो, वो बलिदानी कौम थी अहीरों की
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