निशानी
निशानी जो भी है तेरी अब उसे हमने संभाली है
उम्र भर साथ रहेंगी ये गलतफहमी भी पाली है
नही कहना किसी से भी तेरी कोई शिकायत अब
तेरे सोहबत की बदनामी भी लगती बात निराली है
कहें किससे रूठे किससे बात अब सब पुरानी है
गिला शिकवा कहें किससे बनी वो भी कहानी है
बहकता है बनके तू पंछी जहाँ की सब फिज़ाओ में
अभी तक नही शाम गुजरी यही बस बात बतानी है
कहानी जो कही तुमने वही फिर से सुना जाओ
झूठ का एक महल भी तुम फिर से बना जाओ
उतर आये जमीं पर भी सितारे अब गर्दिशों से
उन्हें अब आसमान में तुम फिर से सजा आओ
है गिरने का सबब मालूम हमे तो सम्भलना आता है
जो रहगुज़र है मुहब्बत की,हमे तो बदलना आता है
न करना तुम कभी भी खुद पर मेरे इश्क़ का गुमान
फूल हमने खिलाया जो अब उसे मसलना आता है
शिकायत कम नही तुमसे कहो तो आज बतलाऊ
घाव कितने है गहरे सब कहो तो आज दिखलाऊ
जख्म जितने भी हमने पाले आज तक है वो जिंदा
इन जख्मो की गवाही को कहो तो आज झुठलाऊ
अमानत है ये तेरी जो, यही मेरी अदावत है
पतझड़ में मैं बिखरा हूँ, यही मेरी सदाकत है
मचलती हुई शमाओ पर जैसे परवाने बिखरते है
बिखर जाऊ मैं भी जुगुनू सा ,यही मेरी जमानत है
कसमो की या वादों की बातें हम नही किया करते
बनावटी किस्सों की भी सौगाते हम नही दिया करते
रहेगी जब तलक तू मेरी बनके रहूंगा मैं भी तेरा ही
महकते फूलो के दामन में काटें हम नही दिया करते
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