सुदर्शन

हे यदुनंदन जगो चक्र उठाओ अब काल तुम्हे जगाने आया है
क्षीण हो रही है धरा की अस्मत, ये तुम्हे बताने आया है
उठो बोलो हे चक्रधर विपदा न्याय पर पड़ी अब भारी है
मौन साध जग बैठा जीवन पर मृत्यु की ऐसी दावे दारी है
चहु दिशाओं में पाप का डंका धम धम बजता घन घोर है
प्रेम स्नेह सब चुप केवल छल कपट ईर्ष्या का ही शोर है
प्रत्यंचा सारंग की चढ़ाओ ये तीरों की धार सुनाने आया है
हे यदुनंदन जगो चक्र उठाओ अब काल तुम्हे जगाने आया है


धर्म अधर्म सब गुथे हुए है, गुथे है यहाँ पर पाप और पुण्य
कर्म अकर्म सब क्षीड़ हुए, बेमतलब है शिखर और शून्य
अत्याचार पराकास्ठित हुआ,सब मौन देख रहा है लोचन 
हरि ब्रम्हा कुछ न बोले,निशब्द बैठे है कैलाशी त्रिलोचन
क्या सुर नर मुनि, अब हर हर मे अधर्म का हाहाकार है
रश्मि सूर्य की विलुप्त हुई, फैला अंधेरा बड़ा घनाकार है
हे माधव नन्दक की धार धरो, पाप वेग दिखाने आया है
हे यदुनंदन जगो चक्र उठाओ अब काल तुम्हे जगाने आया है


खुले शस्त्र है खुले अस्त्र है ,द्वंद पुकार रही रण भेरी है
हाहाकार मचा विश्व मे, जीवन पे मृत्यु की पग फेरी है
रौद्र रूप दिखाती प्रकृति,ताप निकल रहा है जिससे प्रचंड
जन जन जीवन थम सा गया,थम गया है ये सकल भूखंड
टूट कर गिर रहा है हिमालय, था जो निडर अडिग अखंड
त्राहि त्राहि कर रहा जग, सिमट रहा मानवता का घमंड
युग शैव्य सुग्रीव मेघपुष्प बलाहक की गति दिखाने आया है
हे यदुनंदन जगो चक्र उठाओ अब काल तुम्हे जगाने आया है


ब्रह्मांड विचलित हो जाता, द्रवित हो जाता  विधाता है
श्वेत मृतचेल से लिपटा जब शव बेटी का घर आता है
नाश कर देते अस्मत नारी की,लाज तनिक न आती है
नारी के आज़ादी की खुशियां इनको अब ना सुहाती है
महिषासुर बन अब पापी,कांता की अस्मत उछलता है
हवस लालच तृष्णा का अवगुण, वनिता पर उतरता है
शंखनाद पापी के संहार का पांचजन्य सुनाने आया है
हे यदुनंदन जगो चक्र उठाओ अब काल तुम्हे जगाने आया है




 

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