सरकारी तंत्र में ऑडिट का महत्वपूर्ण रोल है। ऑडिट के माध्यम से ही पैसे का या शक्तियों का उपयोग सही हुआ है या नही इसका पता लगाया जा सकता है। लेकिन अगर आपको पता चले कि किसी राहत कोष ,जिसमे जनता बड़े पैमाने पर दान देती है , उसकी ऑडिट नही की जा सकती तो आप उसके पीछे छुपी हुई किस तरह कर मंशा की कल्पना करेंगे ? मतलब आप जनता के पैसे अपनी मर्जी से खर्च करें और उसका कोई हिसाब न देना हो। अब पीएम केयर्स को कैग ऑडिट से बाहर कर क्या सरकार भ्रस्टाचार ने नए दरवाजे और नए अवसर नही खोल रही है ?

 जब एक व्यवस्था मौजूद है और वो पूरी तरह से पारदर्शिता के साथ कार्य कर रही है तो उसकी जगह ऐसे व्यवस्था लाने की क्या जरूरत है जो उसी के जैसा काम करने का दावा करे, लेकिन उसमें ट्रांसपेरेंसी नाम की कोई चीज़ न हो, जिसका कार्यो और लेन देन की जांच करने का अधिकार न तो सीएजी के पास हो न ही जेपीसी कमेटी के पास हो।जिसे कोई भी सरकारी संस्था का ऑडिटर जांच नही सकता, अगर जांच सकता है तो वो सरकार द्वारा नियुक्त एक स्वतंत्र ऑडिटर । माने मोहल्ले के किसी भी एक सीए को सरकार नियुक्त करके ऑडिट करवा सकती है। अब जिसे नियुक्त किया जाएगा और जिसे हम पैसे देंगे वो भला हमारे खिलाफ जांच निष्पक्षता से कैसे करेगा। 
सोचिये सवाल बड़ा है। 


सबसे पहले बात प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (PMNRF) की करते हैं। यह राहत कोष से 1948 में बनाया गया था। इसका उद्देश्य भारत के विभाजन के दौरान और उसके ठीक बाद पाकिस्तान से विस्थापित लोगों को सहायता करना था। प्रधानमंत्री राहत कोष के संसाधनों का इस्तेमाल मुख्य रूप से बाढ़, तूफान या भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों और उनके परिवार वालों की मदद के लिए किया जाता है। इसके अलावा दुर्घटनाओं और दंगों से भी पीड़ितों को तत्काल मदद के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष का इस्तेमाल किया जाता है। प्रधानमंत्री राहत कोष का इस्तेमाल चिकित्सीय उपचार प्रदान करने के लिए भी किया जाता है। फंड में पूरी तरह से सार्वजनिक योगदान होता है और इसे कोई बजटीय समर्थन नहीं मिलता है। मतलब इस फण्ड में सिर्फ दान केये गए पैसो से ही काम किया जाता है। सरकार खुद के बजट से इसमे कोई फण्ड नही देती। फंड के कॉर्पस को विभिन्न रूपों में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों और अन्य एजेंसियों के साथ निवेश किया जाता है। संवितरण प्रधान मंत्री के ही अनुमोदन से किए जाते हैं। और उन्ही के उठाये कदमो से होता आया है।जो अनुमोदन अभी तक किये गए है वो स्वीकृत ही हुए हैं। 

 
इसके गठन की आवश्यकता और जरूरत उस समय थी जब शायद ही देश मे कांग्रेस के अलालवा कोई और दल रहा हो। खुद बीजेपी के पूर्वज और जनसंघ के स्थापक श्यामा मुखर्जी कांग्रेस की मेहरबानी से उसके बाद मंत्री बने कश्मीर मामलों के। विभाजन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि विस्थापितों के मदद के लिए सरकार प्रयास कर रही है परंतु यह पर्याप्त नहीं है और इसीलिए इनकी मदद के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी है। इसी के तहत एक राष्ट्रीय कोष की स्थापना की गई। खास बात यह भी है कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष का गठन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने किया था हालांकि इसके प्रबंध समिति ने हमेशा कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष को शामिल किया गया है। हम यह बताते हैं कि जब फंड को बनाया गया था तो कौन-कौन से लोग इसके प्रबंध समिति में शामिल थे। 


1 - प्रधान मंत्री
2 -भारत की राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष।
3 -उप प्रधान मंत्री।
4 - वित्त मंत्री।
5 -टाटा ट्रस्टीज़ का एक प्रतिनिधि।
6 -फिक्की द्वारा चुने जाने वाले उद्योग और वाणिज्य का प्रतिनिधि।


हालांकि बाद में समय-समय पर इसमें नए सदस्यों को जोड़ा गया है। 1985 में एक ऐसा समय आया जब इस फंड प्रबंधन की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री को सौंप दिया गया। प्रधानमंत्री को यह भी अधिकार दिया गया कि वह जिसे चाहे उसे फंड का सचिव बना सकते हैं जिस पर फंड के बैंक खातों को संचालित करने का अधिकार होगा। यानि कि यह फंड पूरे तरीके से PMO के द्वारा संचालित किया जाने लगा। ध्यान देने वाली बात यह है कि यह निर्णय तब लिया गया था जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री होने के नाते इस फंड के प्रभारी थे। और उसी समय से उस फण्ड का पूरा कंट्रोल प्रधानमंत्री के हाथ मे आ गया। लेकिन इसमें सत्ता के अलावा और दलों , विभिन्न सेक्टर से और लोगो के होने के कारण इसके निर्णय को सर्वसम्मति निर्णय कहा जा सकता है। 


अब बात PM-CARES की करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना महामारी से लड़ने के लिए सार्वजनिक योगदान के लिए PM-CARES फंड का गठन किया है। इसके तहत मिलने वाले दान को कोरोना वायरस से प्रभावित लोगों को राहत पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। इस फंड के अन्य सदस्यों में रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री को शामिल किया गया है। उसके अलावा विपक्ष या किसी और दल की किसी भी सांसद को इसमे शामिल नही किया गया। इसके अलावा विज्ञान, स्वास्थ्य, कानून और सार्वजनिक क्षेत्रों में अच्छे काम करने वाले लोगों को भी इसके सदस्य के रूप में नियुक्ति की गई है। हालॉकि उस सदस्य की नियुक्ति की योग्यता क्या होगी, किस प्रक्रिया के तहत वो सदस्य नियुक्त किया जाएगा, इसके बारे में कुछ भी स्पष्ट नही है। अंततः प्रधानमंत्री जिसको चाहे इसमे शामिल कर सकते है। इस फंड के गठन के साथ ही प्रसिद्ध हस्तियों के साथ-साथ आम लोगों ने भी लाखों की संख्या में अपने योगदान किए हैं। 

लेकिन दूसरी तरफ इस नए कोष के गठन को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर और इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने मुखर होकर सवाल उठाया है कि जब पहले से ही प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा कोष है तो फिर नया कोष पीएम केयर्स फंड बनाने की क्या जरूरत है। शशि थरूर ने अपने ट्वीट में कहा है कि प्रधानमंत्री को एक नया धर्मादा कोष जिसके नियम तक अस्पष्ट हैं, बनाने की बजाय क्यों नहीं पीएमएनआरएफ का ही नाम बदल कर पीएम केयर्स कर देना चाहिए था।

कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने भी इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब पीएमएनआरएफ मे 3800 करोड़ रुपए बिना खर्च किए हुए हैं, तो पहले उन्हें उपयोग में लाया जाना चाहिए न कि नया कोष बनाकर लोगों से योगदान मांगा जाए।


अब ये सवाल पूछना लाजमी है कि जब पहले से प्रधानमंत्री नेशनल रिलीफ फण्ड PMNRF बना हुआ है, तो फिर पीएम केयर फण्ड PM CARES fund नाम से नया अकॉउंट बनाने की क्या जरूरत थी? पहले वाले प्रधानमंत्री नेशनल रिलीफ फण्ड को ऑपरेट व मॉनिटर करने के लिए बाकायदा गृह सचिव समेत कुछ नौकरशाह जिम्मेदार हैं तथा विपक्ष के नेता भी उस ट्रस्ट के सदस्य हैं, झोलझाल की गुंजाइश नही है। उस फण्ड की बकायदा ऑडिट होती है उसकी एक अलग से वेबसाइट बनी हुई है जहां उसकी ऑडिट रिपोर्ट पब्लिक है। कैग और जेपीसी के पास उसे ऑडिट करने का पूरा अधिकार है। उसके नियमन और गाइडलाइन है।

अब ये नया पीएम केयर फण्ड PM CARES fund बनाया है, नरेन्द्र मोदी इस फण्ड के चेयरमैन, अमित शाह, राजनाथ सिंह और निर्मला सीतारमण उसकी ट्रस्टी हैं, और कोई नही है? न तो विपक्ष का कोई नेता और फिलहाल न तो और कोई सदस्य। अगर आप आरटीआई के माध्यम से पीएमओ से पीएम केयर फण्ड PM CARES fund की ट्रस्ट डीड और उसके रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट की प्रतियां मांगे जो कि पीएमओ से दी जानी चाहिए बल्कि देश की जनता को ये दोनों दस्तावेज सार्वजनिक करते हुए उसका प्रयोजन बताना चाहिए। ये बात गैरेन्टी के साथ कहा जा सकता है कि ये चीज़े आपको शर्तिया नहीं दी जाएंगी। जिसकी वजह केवल और केवल नीयत है। क्योकि साफ है आरटीआई से जवाब दिया तो घोटाला और गंदी नियत सबके सामने जाहिर हो जाएगी।

मतलब ये है हमारा सवाल फिर वही है कि आखिर मोदीजी ने यह नया एकाउंट पीएम केयर फण्ड PM CARES fund नाम से क्यों बनाया जबकि पहले से प्रधानमंत्री नेशनल रिलीफ फण्ड PMNRF बना हुआ है? क्या PMNRF के इस्तेमाल में प्रधानमंत्री को कोई समस्या आ रही थी ? अगर ऐसा है तो वो समस्या क्या थी जिसे प्रधानमंत्री हल नही कर पा रहे थे ? ऐसी कौन सी अड़चन थी उस फण्ड को इस्तेमाल करने में ? वो अड़चन कैग या जरूरत पड़ने पर जेपीसी हो सकती है। जो भी उसका सच हो वो जनता के नाम से सामने आना चाहिए। और दान दाताओं को भी इस नए पीएम केयर फण्ड PM CARES fund के बजाय पहले बने हुए प्रधानमंत्री नेशनल रिलीफ फण्ड PMNRF में ही अपना दान देना चाहिए।


लेकिन दूसरी तरफ इन सवालों के जवाब में सरकार की तरफ से दिए गए बयान में इन नए कोष के गठन के औचित्य को सही ठहराते हुए कहा गया है कि संकटकालीन अवस्था में चाहे वह प्राकृतिक हो या कोई और एक बेहद त्वरित और सामूहिक कार्यवाही की जरूरत होती है, जिससे पीड़ितों के कष्टों का निवारण हो सके, नुकसान की भरपाई हो सके और राहत कार्यों को तेज किया जा सके। बयान में कहा गया कि प्रधानमंत्री कार्यालय को सभी क्षेत्रों से सरकार को आर्थिक योगदान देने के लिए लगातार अनुरोध मिल रहे हैं जिससे सरकार इस आपात संकट से निबट सके।


पीएम केयर्स में आर्थिक अंशदान के लिए रिलायंस, टाटा, आदित्य बिरला ग्रुप , अडानी, आईटीसी, हिंदु्स्तान यूनीलीवर, हीरो साइकिल, वेदांता समूह, बजाज, शिरडी ट्रस्ट, बीसीसीआई, सीआरपीएफ, सन फार्मा, ओला जैसे अनेक उद्योग एवं व्यापार समूह, अक्षय कुमार, प्रभाष, चिरंजीवी, राम चरण, महेश बाबू जैसे अनेक सितारे, सचिन तेंदुलकर, सुरेश रैना आदि खिलाड़ी और सामाजिक सांस्कृतिक राजनीतिक क्षेत्रों के अनेक लोगों ने खुशी खुशी सामने आकर अपनी अपनी क्षमता के मुताबिक खुलकर अंशदान देने की घोषणा की है। गठन के महज कुछ ही दिनों में इस कोष में अरबों रुपए की धनराशि जमा हो गई है और यह सिलसिला जारी है।


वहीं राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारी संभाल चुके भारत सरकार के एक पूर्व सचिव का कहना है कि पीएमएनआरएफ के होते हुए किसी भी नए तरह के कोष के गठन की कोई आवश्यकता नहीं थी।जहां तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निजी लोकप्रियता को कोरोना विरोधी अभियान से जोड़कर उसे पुश देने का सवाल है तो यह काम पीएमएनआरएफ के लिए भी अपील करके हो सकता था। और इसमें पारदर्शिता भी पूरी होती सर्वसम्मति भी पूरी होती। और उसकी ऑडिट करके उसका हिसाब भी लिया जा सकता है।

उक्त पूर्व अधिकारी के अनुसार पीएमएनआरएफ के अलावा दो अन्य कोष राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (एनडीआरएफ) और राज्य आपदा राहत कोष (एसडीआरएफ) हैं जिनका उपयोग भी किसी भी आपदा से लड़ने के लिए किया जाता है।लेकिन इनमें पैसा कर से जुटाए गए राजस्व से आता है जबकि पीएमएनआरएफ में व्यक्तियों और संस्थाओं के योगदान से आता है। पीएम केयर्स में भी योगदान का ही पैसा आएगा। इसलिए इसमें और पीएमएनआरएफ में कोई फर्क नहीं है। बस फर्क है तो पैसे के इस्तेमाल के फैसले का और उसके बाद का हिसाब का। 

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण गठन में अहम भूमिका निभा चुके एक अन्य पूर्व नौकरशाह का कहना है कि पीएमएनआरएफ, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ के अलावा गृह मंत्रालय स्वास्थ्य मंत्रालय के भी अपने कोष हैं। इसके अलावा हर राज्य में मुख्यमंत्री राहत कोष है। इसके बाद अब एक नए कोष का गठन सवाल जरूर खड़े करता है। 

लेकिन इतने सारे सवालों के जवाब में कई मुख्य समाचार पत्रों के आर्टिकल्स में ये लिखा जा रहा है कि हमें प्रधानमंत्री मोदी के इरादों पर शक न जाहिर करके इस संकट की घड़ी में उनके इस कदम का स्वागत करना चाहिए। हो सकता है कि यह कोष जो एक ट्रस्ट के रूप में गठित किया गया है, पुराने कोषों की तुलना में दान दाताओं को ज्यादा आकर्षित कर सके। ये कैसे मुमकिन है कि एक व्यक्तिविशेष को संस्था और सिस्टम से बड़ा बना दिया गया है। अगला वैसे का हिसाब देने को राजी नही हो रहा है, और हमे कहा जा रहा है कि हमे उसपे भरोसा रखना चाहिए। 

कुछ समाचार पत्रों में ये भी लिखा गया कि इस कोष का गठन क्योंकि कोरोना से लड़ने के लिए किया गया है इसलिए दानदाता को यह निश्चिंतता रहेगी कि उसका दिया हुआ पैसा कोरोना से ही लड़ने में लगेगा, जबकि दूसरे कोषों में यह गारंटी नहीं रहती कि है दानदाता के योगदान का उपयोग किसी एक आपदा में किया जाएगा। लेकिन उसमें भी यही सवाल उठता है कि जितना पैसा खर्च किया गया उसके जगह कुछ लोगों ने दान दिया तो क्या  फर्क पड़ता है कौन सा पैसा कहा इस्तेमाल होता है, मतलब पैसे के सही इस्तेमाल और सही हिसाब से होना चाहिए। 


भारत सरकार के एक अन्य पूर्व सचिव ने भी पीएम केयर्स के गठन के औचित्य पर अपनी राय देते हुए कहा कि पीएमएनआरएफ के खर्चों का सीएजी ऑडिट होता है और उसका हिसाब किताब संसद में रखा जाता है और संसद से उसकी स्वीकृति लेनी होती है। जबकि पीएम केयर्स एक ट्रस्ट है जिसका सीएजी ऑडिट नहीं होगा और उसके हिसाब किताब को संसद में रखने की कोई वैधानिक आवश्यकता नहीं होगी। और न ही इसकी जांच या इसके प्रक्रिया पर आधिकारिक रूप से कोई सवाल उठाया जा सकता है। 


अगर सारी बातों को छोड़ भी तो भी ये समझ आता है कि पीएमएनआरएफ का गठन प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में हुआ था जबकि पीएम केयर्स का गठन मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में हुआ है।बीच में इतने प्रधानमंत्री हुए जिनमें लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिंह राव अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह जैसे यादगार प्रधानमंत्री भी हुए लेकिन उनके कार्यकाल में कोई नया कोष नहीं बना। भविष्य में पीएमएनआरएफ के साथ नेहरू तो पीएम केयर्स के साथ मोदी का नाम जुड़ा रहेगा। और हमारे प्रधानमंत्री जी भले ही नेहरू जी की बुराई हर बात में करते हो, लेकिन मन से मन वो नेहरू जी को ही फॉलो करते है और उन्हें के जैसा या वही बनना चाहते है, ये बात उनके कपड़े पहनने से लेकर खाने पीने के शौक तक साफ देखी जा सकती है। बस नेहरु ही जैसा सर्वभाव की स्वीकारिता नही ला पाए। 

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