ख्वाब है सूखे पत्तों जैसे
खाब है सूखे पत्तो जैसे, मन की टहनियों से झड़ जाते है।
बेसुध खयालो में अक्स तेरा, अक्सर ही सपनो संग अड़ जाते है
ना आते ख्वाबो में तो भी मुमकिन था तेरा काफिला छोड़ना
यूँ गिला से तो तेरे किस्से भी मेरी तन्हाइयो से लड़ जाते है।
सांझ की एक पुरुवा तेरे होने का एहसास दिलाती रही।
ठंड हवा के झोंके साथ , तेरे महक के जाम पिलाती रही।
नज़रो के धोखे की बात ही क्या, वो तो धोखे को भी नज़र लगाती रही।
सर्द हवा बही भी बहुत उस दिन, लेकिन तेरी ताबीर ही हमे सुलाती रही।
आंखों को जब भी खोला तो किस्से तेरे सामने घर कर जाते है।
खाब है सूखे पत्तो जैसे, मन की टहनियों से झड़ जाते है।
बेसुध खयालो में अक्स तेरा, अक्सर ही सपनो संग अड़ जाते है
नाम का ही तेरा ये सुमिरन है मेरे बेबस हाथों की लकीरों में ,
चंद बारिस मुझे भी दे, सुना बाढ़ आई कुरबत की शहरी फकीरो में,
अब सारा जहॉँ ये बोल रहा, तेरे नेक रहनुमाई की तासीरो में
एक तूने ही जीती बाजी दिलो की, इन हारे हुये सब वजीरों में
तेरे महफ़िलो के ही शामियाने बस यूं ही रास्ते मे मेरे पड़ जाते है
खाब है सूखे पत्तो जैसे, मन की टहनियों से झड़ जाते है।
बेसुध खयालो में अक्स तेरा, अक्सर ही सपनो संग अड़ जाते है
मैंने तो ख्वाबो में भी सिर्फ तेरी ही वादापरस्ती देखी
इसी वादपरस्ती परजाने कितनीआंखे बरसती देखी
बरसात की उन बूंदों में सिर्फ तेरी रूह तरसती देखी
तरसते उन रूहो की तेरे मकानों में एक बस्ती देखी
मैखाने की बस्ती में भी कोई ठिकाना न हो तो, तेरे ही घर आते है
खाब है सूखे पत्तो जैसे, मन की टहनियों से झड़ जाते है।
बेसुध खयालो में अक्स तेरा, अक्सर ही सपनो संग अड़ जाते है
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