क्या हम सच मे इंसान ही है , वही इंसान जो अपने को सबसे ज्यादा दिमागवाला और सभ्य होने का दावा करता है , क्या हम वही इंसान है जो खुद का भगवान का सबसे श्रेष्ठ संरचना होने का दावा करता है ?  जिस तरह की संवेदन हीनता और वहशीपन इस समाज के कुछ लोगो ने दिखाया है उसे देख कर तो यही लगता है कि इंसानों की ये जमात जंगली भेडियो और शिकारी कुत्तो से भी ज्यादा वहशी और दरिदंगी से भरपूर है। इस समाज ने निर्भया से लेकर, रागिनी दुबे, संस्कृति राय , आसिफा और ट्विंकल शर्मा जैसी मासूम बच्चियों के ऊपर न सिर्फ वहशीपन दिखाया बल्कि कुछ लोग तो इन बलात्कारियो के समर्थन में अपनी राजनीतिक ताकत का भी प्रयोग किये।

अगर मैं ये कहूं कि ये देश या इस देश के लोगो की मानसिकता देश के बेटियों के लिए ही सड़ चुकी है। इतनी ज्यादा सड़ चुकी है कि बेटियों को महिलाओं को सरेआम ढंग के कपड़े पहनने की वकालत करने वाले उन्ही महिलाओं के उन्ही बेटियों के बलात्कारियो को बचाने के लिए मोर्चे बनाते है। उनकी गिरफ्तारी का विरोध करते हुए धरने देते है,  बलात्कार के शिकार हुए बच्ची के चरित्र पर सवाल उठा रहे हैं। खैर अभिव्यक्ति की आज़ादी का ये भी एक नमूना है। मिसयूज इसे ही कहते है।  संसद में जन प्रतिनिधि बन कर  गयी महिलाओं को भी "ढंग" के कपड़े पहनने की सलाह देने वाले उन लोगो का समर्थन करते है जो "ढंग" के कपड़े की समझ न रखने वाली 3 साल की बच्चियों के साथ बलात्कार करते है।

जघन्य अपराध के लिए फिल्मो की हेरोइनों और आधुनिक कपड़ो को जिम्मेदार बताने वाले समाज के ठेकेदार क्या ये बताने का कष्ट करेंगे कि हमे पांच साल या तीन साल की बच्ची को किस तरह के "ढंग"के कपड़े पहनाए, जिससे कि वो बलात्कार से बच सके, जिससे वो दरिंदगी से बच सके, जिससे वो ज़ाहिद , असलम, सांझी राम, दीपक खजुरिया , तिलक राज जैसे दरिंदो से बच सकें। बेटियों की रक्षा के लिए वोट के समय बड़े बड़े दावा करने वाली सरकार, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ  , एन्टी रोमियो स्क्वाड जैसे कथित बदलाव करने वाली मौजूदा सरकार उस वक़्त चुप्पी मार कर बैठ जाती है , जब कठुआ जैसे बलात्कार के आरोपियों का समर्थन इनके विधायक और मंत्री खुल कर करते है।

इनके नवनिर्वाचित सासंद उन्नाव बलात्कार के आरोपी से खुलेआम जेल में मिलकर आते है । और लोगो को ये भी बताते है कि उस बलात्कारी की "कृपा" से वो चुनाव जीत गए। उसे "यशश्वी" होने का आशीर्वाद देकर आते है। क्या इन लोगो की संवेदनशीलता इतनी मर चुकी है कि ये अपने काली नियत को खुलेआम ज़ाहिर करने से भी नही रुकते। वैसे ये वही संसद महाराज है जो तीन साल पहले एक कुवारी लड़की की जीन्स सरेआम मीडिया के सामने खुलवाने पे उतारू थे। हम उन लोगो की सोच पर शर्म आती है जो लोग ऐसे नकारे बेशर्म हर बेकार लोगो को चुनकर लोकतंत्र के मंदिर में भेजते है।

बलात्कारियो को ऐसे लोग बढ़ाते है। और ऐसे लोगो को ताकतवर हम लोग अपना वोट देकर बनाते है। जैसा कि उन्नाव के लोगो ने  सांसद साक्षी जैसे बलात्कार के आरोपियों को बढ़ावा देने वाले लोग को वोट देकर किया। ये लोग और इनके लोग लोग कही सरेआम महिलाओं को लातो से पीटते है यो कही उनके साथ अभद्रता करते है। पकड़े जाने पे धमकी देकर राखी बंधवाते है। पहले बहने भाई के कलाई पर राखी बांध कर रक्षा का वचन लेती थी, अब लोग लातो से पीटकर महिलाओं से बचने के लिए राखी बंधवा ले रहे है। और खौफ का आलम ये है कि एक एफआईआर तक नही होती इसके ख़िलाफ़।

बेटियों की रक्षा और सम्मान का दावा करने वाले सिर्फ काला कपड़ा दिखाने पर सरेआम लड़कियो को अपने सुरक्षा कर्मियों से पिटवाते है। उनको बालो से पकड़ कर घसिटवाते है।  ये सिर्फ इस लिए क्योकि मन मे तानाशाही की भावना है, की हमारा विरोध क्यों कर दिया "। यही बदले के भावना बच्चियों और महिलाओं के साथ बलात्कार की भावना में बदल जाती है। नफरत की भावना का परिणाम ही रागिनी दुबे, संस्कृति राय, आसिफ और ट्विंकल का हश्र है।

यूपी के अलीगढ़ की रहने वाली ढाई साल की मासूम ट्विंकल को सिर्फ इसलिए मार दिया गया क्योंकि आरोपियो की पैसों को लेकर उसके पिता से कहासुनी हो गई थी। अलीगढ़ के टप्पल थाना क्षेत्र की रहने वाली ट्विंकल 30 मई से लापता थी। उसके माता-पिता ने टप्पल थाने में उसके गुमशुदा होने की रिपोर्ट लिखवाई थी लेकिन किसी को नहीं पता था कि ट्विंकल उसी दिन इस दुनिया से जा चुकी है।

ट्विंकल की हत्या की वजह महज दस हजार रुपए के लेनदेन का विवाद था। हत्यारोपी जाहिर बनवारी का पड़ोसी है। उसने बनवारी के पिता कन्हैया लाल से किसी काम के लिए दस हजार रुपए उधार लिए थे। जब रुपए वापस मांगे तो दोनों के बीच विवाद हो गया। दो दिन बाद जब उसका क्षत विक्षत शव मिला तो परिवार ने जाहिद को ही हत्यारोपी बताते हुए मुकदमा दर्ज करा दिया। दो दिन की पड़ताल के बाद पुलिस ने जाहिद और उसके साथ ही असलम को गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ में हकीकत सामने आने पर पुलिस ने दोनों को जेल भेज दिया है।

पिता से बदला लेने के लिए आरोपी जाहिद ने अपने दोस्त असलम के साथ मिलकर पूरी प्लानिंग की। प्लानिंग के तहत 30 मई को जाहिद ने बिस्कुट का लालच देकर बच्ची को अपने साथ ले गया। इसके बाद दोनों ने बच्ची की दुपट्टे से गला घोंटकर हत्या कर दी। सबूत छिपाने के लिए शव को असलम के घर में भूसे में छिपा दिया। शव से जब बदबू आने लगी तो एक जून को उसे कूड़े पर फेंक दिया था। ट्विंकल की शरीर को इतनी बुरी तरह छतिग्रस्त कर दिया कि उसका शरीर बलात्कार की जांच करने लायक भी नही बचा।

और जब ट्विंकल की लाश मिली तो दुनिया ने फिर से वही देखा जो पहले भी देख चुकी है, निर्भया, आसिफा, के रूप में। इस तरह की दरिन्दगी पहले भी देखने को मिली है। बस धर्म अलग अलग। आसिफा के आरोपी धर्म से हिन्दू तो ट्विंकल के आरोपी धर्म से मुसलमान। बस यही फर्क है ।  भले ही हमारे धर्मो की विचारधाराएं एक जैसी न हो लेकिन धर्मो के लोगो की दरिन्दगी के भरी विचार धाराएं बिल्कुल एक जैसी हैं। इन विचारों और कृत्यों में कोई भी अंतर नही है।

साल 2012 में दिल्ली के चर्चित निर्भया गैंगरेप मामले के वक्त भी ऐसा ही माहौल था।लाखों की तादाद में लोग सड़कों पर उतर आये थे। इस खौफनाक मामले के बाद ये जनता के आक्रोश का ही असर था कि वर्मा कमिशन की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने नया एंटी रेप लॉ बनाया। इसके लिए आईपीसी और सीआरपीसी में तमाम बदलाव किए गए, और इसके तहत सख्त कानून बनाए गए। साथ ही रेप को लेकर कई नए कानूनी प्रावधान भी शामिल किए गए। लेकिन इतनी सख्ती और इतने आक्रोश के बावजूद रेप के मामले नहीं रुके। आंकड़े यही बताते हैं.

देश की राजधानी दिल्ली में साल 2011 से 2016 के बीच महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामलों में 277 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। दिल्ली में साल 2011 में जहां इस तरह के 572 मामले दर्ज किये गए थे, वहीं साल 2016 में यह आंकड़ा 2155 रहा। इनमें से 291 मामलों का अप्रैल 2017 तक नतीजा नहीं निकला था।निर्भया कांड के बाद दिल्ली में दुष्कर्म के दर्ज मामलों में 132 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। साल 2017 में अकेले जनवरी महीने में ही दुष्कर्म के 140 मामले दर्ज किए गए थे। मई 2017 तक दिल्ली में दुष्कर्म के कुल 836 मामले दर्ज किए गए।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बलात्कार के मामले 2015 की तुलना में 2016 में 12.4 फीसदी बढ़े हैं। 2016 में 38,947 बलात्कार के मामले देश में दर्ज हुए। मध्य प्रदेश इनमें अव्वल है, क्योंकि बलात्कार के सबसे ज्यादा -4,882 मामले मध्य प्रदेश में दर्ज हुए। इसके बाद दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश आता है, जहां 4,816 बलात्कार के मामले दर्ज हुए। बलात्कार के 4,189 दर्ज मामलों के साथ महाराष्ट्र तीसरे नंबर पर रहा।

अगर बात करे सिर्फ हमारे उत्तर प्रदेश की सिर्फ बलात्कार ही नही बल्कि सारे तरह के अपराध चिलम के साये में फल फूल रहे है। योगी सरकार राज्य में अपराध दर की गिरावट का दावा करते हुए आंकड़े जारी करती है। सरकार के मुताबिक, पिछली सरकार के इन्हीं सौ दिनों और योगीराज के इन सौ दिनों में हत्या में 4.43 फीसदी, दहेज हत्या में में 6.68 फीसदी, सड़क पर अपराध में 100 फीसदी की गिरावट आई है। इसके अलावा एससीएसटी क्राइम में भी 12.43 फीसदी की गिरावट आई है। दरअसल योगी सरकार लूट, डकैती, फिरौती के लिए अपहरण और रेप जैसे अपराधों के ग्राफ पर रोशनी डालना भूल गई।

यूपी पुलिस ने 15 मार्च से 15 जून के बीच सूबे में हुए अपराध पर जो आंकड़े सामने रखे हैं, उनके मुताबिक, सूबे में हुई संगीन वारदातों की फेहरिस्त में शायद ही कोई कमी आई है। और तो और क्राइम रेट पिछले आंकड़ों को पूरी तरह से पार करते हुए तहस-नहस कर चुका है। यूपी पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, 15 मार्च से 15 जून तक इन तीन महीनों में डकैती के मामले 13.85 फीसदी, लूट 20.46 फीसदी, फिरौती के लिए किए गए अपहरण 44.44 फीसदी और बलात्कार के मामलों में 40.83 फीसदी का इजाफा हुआ है

हां, राज्य में हुई हत्याओं के गिरते ग्राफ पर जरूर योगी सरकार के आंकड़े यूपी पुलिस के साथ मेल खा रहे हैं। मगर बाकी अपराधों पर चुप्पी साध लेना शायद सरकार की कार्यक्षमता पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। यही वजह है कि सरकार ने अपने कामो की उपलब्धियां गिनाते हुए अपराध के इन बढ़ते आंकड़ों पर बात करना बिल्कुल भी मुनासिब न समझा।बहरहाल इन आंकड़ों के फेर को सुलझाने का दावा करते हुए योगी सरकार और उनकी पुलिस खुद काफी उलझे हुए नजर आ रहे हैं।

भयमुक्त शासन का नारा देते हुए जब 19 मार्च, 2017 को योगी आदित्यनाथ ने सूबे के 21वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, तब शायद यूपी की जनता को भरोसा हो गया कि अब प्रदेश में अपराध का खात्मा निश्चित रूप से होकर रहेगा। योगी सरकार एक्शन में आई और ताबड़तोड़ फैसले लिए गए.ल। महिला सुरक्षा के दावों पर योगी सरकार ने एंटी रोमियो स्क्वॉड का गठन किया, लेकिन यह स्क्वॉड अपने काम के तौर-तरीकों को लेकर विवादों में ही घिरा रहा। फिर हत्या और बलात्कार में पुलिस के लोग ही आरोपी बनने लगे।


बलात्कार के ही मामलो में उत्तर प्रदेश के बागपत अस्पताल में भर्ती कराई गई नर्सिग की एक छात्रा से दुष्कर्म के मामले में मंगलवार को एक वॉर्ड ब्वॉय व मेडिकल छात्र को गिरफ्तार किया गया. पुलिस अधीक्षक शैलेश कुमार पांडेय ने कहा कि 17 साल की पीड़ित को मिचली व सिरदर्द की शिकायत पर भर्ती किया गया था। उसके साथ जिला अस्पताल में मध्यरात्रि को दुष्कर्म किया गया.पीड़ित के साथ आई उसकी बहन चाय लेने गई हुई थी. हमलावर पीड़ित को कुछ टेस्ट करने के बहाने इमरजेंसी कक्ष में ले गए और वहां उससे दुष्कर्म किया।

इसी कड़ी में बलरामपुर जिले के पचपेड़वा क्षेत्र में आठ साल की एक बच्ची के साथ बलात्कार करने के आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. बच्ची को गंभीर हालत में इलाज के लिए गोंडा भेजा जा रहा है. पुलिस सूत्रों ने मंगलवार को बताया कि पचपेड़वा थाना क्षेत्र निवासी आठ साल की बच्ची सोमवार की शाम खेत से लौट रही थी. रास्ते में बच्ची के पड़ोसी चिन्नू (28) ने उसे जबरन खेत में खींच लिया और उसके साथ दुष्कर्म किया.

उन्नाव वाला केस तो सबको याद ही होगा जिसमें विद्यायल राकेश सेंगर ने बलात्कार किया, पीड़ित के पिता को जान से मार डाला और सरेआम हस्ते हुए घूमता रहा। सरकार प्रशासन ने पूरी मदद किया क्योकि वो बाबा के चहितो में से एक था। सारी मीडिया और सब लोग विधायक जी के पीछे लग गए लेकिन विधायक जी के ऊपर स्वयं मुख्यमंत्री का आशीर्वाद था, तो पुलिस कैसे पकड़ लेती उनको। वो तो सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी का आदेश दिया तब जाकर सेंगर जी जेल में ठूंसे गए।

बलात्कार और नृसंशिता अब इतनी बढ़ चुकी है कि महिलाओं और बच्चियों के लिए ये समाज किसी नरक जैसा बन चुका है। महिलाओं और पुरुषों में फर्क न करने का दावा करने वाला समाज सिर्फ औरतो को ही "मर्यादा" में रहने की शिक्षा क्यो देता है ? ईश्वर ने नर और नारी की शारीरिक संरचना भिन्न इसलिए बनाई कि यह संसार आगे बढ़ सके। परिवेश में घुलती अनैतिकता और बेशर्म आचरण ने पुरुषों के मानस में स्त्री को मात्र भोग्या ही निरूपित किया है। यह आज की बात नहीं है अपितु बरसों-बरस से चली आ रही एक लिजलिजी मानसिकता है जो दिन-प्रतिदिन फैलती जा रही है।

स्त्री शरीर को लेकर बने सस्ते चुटकुलों से लेकर चौराहों पर होने वाली छिछोरी गपशप तक और इंटरनेट पर परोसे जाने वाले घटिया फोटो से लेकर हल्के बेहूदा कमेंट तक में अधिकतर पुरुषों की गिरी हुई सोच से हमारा सामना होता है। कई बार पुरुषों का बढ़ता तनाव भी बलात्कार का कारण होता है और महिलाओं के प्रति बढ़ता अपमानजनक माहौल भी पुरुष के दुस्साहस को बढ़ाने में उत्प्रेरक का काम करता है। हमारी सामाजिक मानसिकता भी स्वार्थी हो रही है। फलस्वरूप किसी भी मामले में हम स्वयं को शामिल नहीं करते और अपराधी में व्यापक सामाजिक स्तर पर डर नहीं बन पाता। पहली बार दामिनी/निर्भया के मामले में सामाजिक रोष प्रकट हुआ। वरना तो ना सोच बदली है ना समाज। अभी भी हालात 70 प्रतिशत तक शर्मनाक हैं।


महिला-कानूनों की एक लंबी सूची है जो उनके हक में खड़े हैं, शब्दों से मजबूत, मगर 'अमलीकरण' के अभाव में बेबस, बेचारे और लाचार। कहां से शुरू करें हम महिलाओं के हक की असली लड़ाई? उसकी अपनी 'लूटी' जाती देह से, प्रताड़‍ित होते कोमल मन से, छले जाते अधिकारों से या निरंतर थोपे जा रहे दायित्वों से। प्रकृति ने स्त्री को कितना खूबसूरत वरदान दिया है, जन्म देने का, लेकिन बलात्कार पी‍ड़‍िताओं के लिए यही वरदान अभिशाप बनकर उनकी सारी जिंदगी को डस लेता है। ना सिर्फ वह स्त्री लांछित की जाती है बल्कि 'बलात' इस दुनिया में लाया गया वह नन्हा जीव भी अपमानजनक जीवन जीने को मजबूर हो जाता है। इंसानियत की यह कैसी विभत्स परीक्षा देनी होती है एक स्त्री को ‍कि इंसान के नाम पर पशु बना व्यभिचारी कुछ सजा के बाद समाज में सहज स्वीकृत हो जाता है और वह बिना ‍किसी गुनाह के सारी उम्र की गुनाहगार बना दी जाती है।

मात्र इसलिए कि उसे भोग्या मानकर चंद दरिंदों ने अपनी हवस का शिकार बनाया है? अगर वह प्रतिकार करने में सक्षम नहीं है तो भी दोष उसका और अगर वह ऐसा करती है तो भी दोष उसका? पुरुष प्रधान समाज ने सारी व्यवस्था कर रखी है उसके लिए। दामिनी केस में ना जाने कितने बयान ऐसे आए हैं कि उसने बचाव की कोशिश करके गलती की, समर्पण कर देती तो यह हश्र ना होता।
गांवों में वह डायन करार दी जाती है और नग्नावस्था में सारे गांव के सामने टांग दी जाती है। वहीं शहरों में और भी अधिक अत्याधुनिक हथकंडे हैं उसे रास्ते से हटाने के। अगर यह सब नहीं भी हुआ तो तथा कथित  'इज्जत लूटने' जैसे शब्द की दुहाई भी उसी स्त्री को दी जाती है ता‍कि वह खुद ही खुद को अपवित्र मानकर आत्मघाती कदम उठा लें।

अमेरिकी लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रॉबिन मॉर्गन ने 1974 में लिखे अपने प्रसिद्ध लेख ‘थ्योरी एंड प्रैक्टिस ,पोर्नोग्राफी एंड रेप’ में लिखा था कि पोर्नोग्राफी उस सिद्धांत की तरह काम करता है, जिसे व्यावहारिक रूप से बलात्कार के रूप में अंजाम दिया जाता है। उसके बाद से अब तक इसके पक्ष और विपक्ष में शोध और दलीलें प्रस्तुत की जाती रही हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी ‘फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन’ ने अपने आपराधिक आंकड़ों के विश्लेषण में पाया है कि यौन हिंसा के 80% मामलों में वहां पोर्न की मौजूदगी देखी गई है। टेड बंडी नाम के एक अमरीकी सीरियल किलर ने 30 से अधिक महिलाओं और लड़कियों का वीभत्स तरीके से बलात्कार और फिर उनकी हत्या की थी। जनवरी 1989 में मौत की सजा से एक दिन पहले दिए गए अपने विस्तृत साक्षात्कार में बंडी ने कहा था कि यदि उसे पोर्न देखने की आदत नहीं पड़ी होती, तो उसने इतने हिंसक यौन-अपराध नहीं किए होते। हालांकि बंडी की इस स्वीकारोक्ति के बाद भी पोर्न समर्थकों द्वारा बंडी और उसके साक्षात्कारकर्ता की मंशा का हवाला देते हुए इस तथ्य की अनदेखी करने की कोशिशें हुईं।बंडी के साक्षात्कार का वह वीडियो भी यू-ट्यूब पर उपलब्ध है।


आजकल उच्च-मध्य वर्ग के एक छोटे से हिस्से में ‘बीडीएसएम’ आधारित यौनाचार तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। बीडीएसएम यानी बॉन्डेज , डिसीप्लीन, डोमिनेंस एंड सबमिशन और सैडोमैसकिज़्म । मनोवैज्ञानिकों ने इस प्रकार के यौनाचार को मनोविकार की श्रेणी में ही रखा है और कई नारी-अधिकारवादी अध्येताओं ने बलात्कारी मानसिकता के साथ भी इसे जोड़ा है।जो भी हो, इस प्रकार का यौनाचार मनुष्य की यौन-प्रवृत्तियों को समझने की एक कुंजी भी प्रदान करता है और हिंसा के साथ इसके संबंधों को भी उजागर करता है।जबकि कई लोग बीडीएसएम के पक्ष में यह तर्क भी देते पाए जाते हैं कि यह बलात्कार पीड़िताओं को मानसिक आघात से उबारने में मददगार होता है।


अभी हम जो भी लिख ले या जो भी बोले या जो भी सोच ले लेकिन निर्भया ,संस्कृति, रागिनी, आसिफ या ट्विंकल के साथ जो हुआ वह कहीं से भी इंसानियत या उससे दूर दूर से कोई संबंधित नहीं है ।इन लोगों के साथ हुए इस जघन्य अपराधों को देखकर हमें सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि क्या हम सच में इंसान हैं । इन अपराधों की भयावहता इतनी भयंकर थी कि हमारी रूह तक कांप जाती है। इन बच्चियों ने अपने साथ हुए इन अपराधों को उस वक्त कैसे झेला होगा इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती । संस्कृति को सरेआम बाजार में चाकू से मार देना या , आसिफा को लगातार सात दिन तक 4 लोगों के द्वारा बलात्कार करना या ट्विंकल को हाथ पैर काट कर बलात्कार करके आंखें निकाल देकर भूसी में उसकी लाश को छुपा देने जैसे जघन्य अपराध दिखाते हैं कि हम और हमारे लोगों की सोच कहां तक जा रही है।

वहीं अन्य मामलों में जन में राजनीतिक इंटरफेरेंस हो जाती है अलग ही रूप देखने को मिलते हैं । आसिफा के बलात्कारियों के लिए कथित "देशभक्त पार्टी" के विधायकों ने धरना दिया और उन्हें छुड़ाने की कोशिश की।पुलिस बलों से लड़ गए। कोर्ट मर जा रहे है और उन बलात्कारियो का आज तक साथ दे रहे है। उन्नाव में लड़की ने विधायक जी पर रेप का खुलासा किया तो विधायक जी ने लड़की के बाप को मरवा दिया । सरेआम उसको जलील करते रहे ।और उसके चाचा को भी मरवा दिया । यह सब राजनीतिक संरक्षण ही है । बलात्कार करना और उसके बाद उसका ढिंढोरा पीटना राजनीतिक संरक्षण के दायरे में आता है।  यह अपने आप को सबसे बड़ा दिखाने कि जो टशन होती है उसका परिणाम है । जैसा कि अलवर में हुआ पति के सामने पत्नी का बलात्कार करके वीडियो को सोशल मीडिया पर डाला गया , फोटो व्हाटसअप पर शेयर किया गया।   ये किस तरह की सोच के साथ या किया गया हम सोच सकते हैं।

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