हौसलों का टूटना

हौसलों के टूटने का अभी तो आरम्भ है।
जीत की राह छूट, शिकस्त पथ प्रारंभ है।
हार कर खड़ा  मैं जीत के मुकाम पर  ।
बिक चुके सब्र सारे हुज़ूर की दुकान पर।
चीख रहा शिकस्त शब्द अपने गुलाम पर।
युद्ध की राह खत्म अब सिर्फ इस नाम पर।
विकराल खड़ा सामने हार का दृढ़ स्तंभ है
हौसलों के टूटने का अभी तो आरम्भ है।

टूटी हिम्मत, गिरा मान अब यही श्रृंगार है।
मिट चुकी बेबाकी सारी वक्त का यही प्रहार है।
चौदिश धुंधले रास्तो का सिर्फ एक कुहार है।
मुकाम की तलाश में खुद से एक नई तकरार है।
विजय मस्तक उठेगा,  शत्रु से यही एक दंभ है।
हौसलों के जुड़ने का अब हुआ पुनः आरम्भ है।
शिकस्त पथ छोड़ , विजय पथ का प्रारंभ है।

समर द्वंद में स्वयं खड़ा  जय का मैं सत्कार हूँ।
मुस्किलो से आगे बढ़ उनकी राह में मैं रार हूँ।
हारे जज्बातों पर फिर से अपना मैं अधिकार हूँ।
बढ़ चला आगे मैं अब अराति समक्ष तलवार हूँ।
लोभ लाज परे छोड़ हृदय भावनाओ का कुम्भ है।
हौसलों के जुड़ने का अब हुआ पुनः आरम्भ है।
शिकस्त पथ छोड़ , विजय पथ का प्रारंभ है।

शिकस्त की राह से विकराल सा मैं बढ़ा हूँ
जीत की चाह लिए वही ढाल से मैं खड़ा हूँ।
विजय मंगल बज रही उसी वास्ते मैं लड़ा हूँ।
शिकस्त मस्तक पर चढ़ ,इसी जीत को गढ़ा हूँ।
जीत का है मंत्र ये शत्रुओ का ये शुम्भ है।
हौसलों के जुड़ने का अब हुआ पुनः आरम्भ है।
शिकस्त पथ छोड़ , विजय पथ का प्रारंभ है।

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