संसद से लेकर सड़क तक हर जगह "जय श्री राम" के नारे लगाए जा रहे है। लेकिन अफसोस ये है कि ये नारे राम भावना के अनुरूप भक्ति भाव से नही बल्कि दो अलग उद्देश्यों से लगाये जा रहे है । एक उद्देश्य है चिढ़ाने वाले तरीके से " जय श्री राम " बोलकर विरोधियो को श्री राम का विरोधी साबित करके अपना वोट बैंक सेट करना । और दूसरा उद्देश्य है "जय श्री राम" बोलकर हत्या करना , करवाना और बलात्कारियो की मदद करना। इन लोगो ने भगवान राम की भावना का पालन तो कभी किया नही , उनके नाम के जयकारे को "जय सियाराम" जैसे शांति भरे शब्द से बदलकर चिल्लाते हुए "जय श्री राम" जैसा डर का प्रतीक बना दिया। किसी भी वेद पुराण या किसी भी तस्वीर में भगवान राम का नाम माँ सीता के बिना नही है। लेकिन भगवान राम के नाम पर आतंक मचाने वाले इन आतंकवादियों ने भगवान राम को अपने वोट के चक्कर मे अकेला बना दिया है।  मतलब साफ है, भगवान श्री राम के नाम पर टोटल बिजनेस।  बिजनेस वोट का, बिजनेस जान का, बिजनेस भावनाओ का।

संसद का नजारा ही अलग था, लग रहा था कि किसी मंदिर या मस्जिद में बैठे है। कोई गला फाड़ कर "जय श्रीराम" के नारे लगा रहा था कोई  " छाती का पूरा जोर लगा कर "अल्लाह हो अकबर" चिल्ला रहा था। मतलब इन लोगो को इतना भी लिहाज नही था कि लोकतंत्र के मंदिर में बैठे है और देश की जनता इनको देख रही है। और ये लोग जो देश के माननीय कहलाते है , ये सड़क के अवारो की तरह नारे लगा कर उकसाने का काम कर रहे थे। भारतीय जनता पार्टी के अधिकतर आये हुए नए सांसदों ने इसकी शुरुआत किया । वो सांसद जिनका कोई बेस नही । मोदी के नाम की वोट वाली भीख मिल गयी और पहुच गए सांसद में गला फाड़ने। असदुद्दीन ओवैशी के शपथ के टाइम " जय श्री राम" के नारे जान बूझ कर उनको उकसाने के लिए लगाए गए। और यही शुरुआत हुई इस लम्पट भरे नारेबाजीओ की।


इन नारेबाजी से मुझे कोई दिक्कत नही होती। लेकिन यही नारेबाजियों आधार बन रही है । धार्मिक और राजनीतिक हत्यारो की। तरीका पूरा आसान है। किसी मुसलमान  या दलित को पकड़ लो, उसको जिससे आपकी निजी दुश्मनी हो। कुछ लफंटरो की भीड़ जुटा लो। माथे पर टीका , भगवा गमछा और "जय श्री रामराम" के नारे लगवाते हुए उसे मार डालो। एक वीडियो बना लो कि भगवान के नाम पर  मारा गया है। और उसे पीट पीट कर मार डालो।


जेल जाने का कोई खतरा नही क्योकि धर्म के नाम पर बीजेपी वाले जब बलात्कारियो के लिए धरना प्रदर्शन करके उनको बचाने का काम कर सकते है तो फिर भीड़ के नाम पर की गई हत्या के हत्यारों को तो बीजेपी के नेता बचा ही सकते हैं। और ये मैं अंदाजे से नही कह रहा हु। याद करिये मोब लीनचिंग के मुख्य आरोपियों की जमानत की जुगाड़ से लेकर उनके रिहा होने पर उनसे मिलने केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा गए थे।


मेरे देश के प्रधानमंत्री को इस बात की शर्म करनी चाहिए कि भगवान राम का जो गलत नारा वो और उनकी पार्टी के मुख्य नेता आक्रामकता भरे लहजे में लगाते है , वही नारा लगाकर उनकी पार्टी के लोग, उनसे जुड़े संगठनों के लोग हत्या जैसे वारदातों को अंजाम दे रहे है। और इसी नारे के दम पर बलात्कारियो को भी बचाने की पूरीपूरी कोसिस कर रहे है। कठुआ की 8 साल की बच्ची आसिफा याद है ना ?


कैसे आसिफा के बलात्कारियो को बचाने के लिए बीजेपी के दो विधायको ने "हिन्दू एकता मंच" नाम का संगठन बना कर बलात्कारियो के लिए धरने प्रदर्शन किए। मतलब धर्म का सहारा लेकर बलात्कारियो को बचाने की पूरी कोसिस । हाल ही में परम पूज्य, टिकट ने मिलने पे  पिछड़ी जाति का बनने वाले साक्षी महाराज उन्नाव वाली लड़की के बलात्कारी बीजेपी के विधायक राकेश सेंगर से मिलने जेल पहुचे और बाहर आकर लोगो को छाती तान कर बताया।


अगर सवाल करो तो कहते है कि प्रधानमन्त्री ऐसे लोगो को पसंद नही करते और न ही बढ़ावा देते हैं। कभी सोचा है किसी ने की अगर प्रधानमंत्री ऐसे लोगो को पसंद नही करते तो इन लोगो की हिम्मत कहाँ इसे इतनी बढ़ जाती है ? कैसे ये लोग बिना लगाम के घोड़े के तरह लगतार अपराधअपराध करते है ?  मतलब साफ है की ऐसे लोगो को बीजेपी में सारे नेताओ का सपोर्ट है  न सिर्फ नेताओ का बल्कि प्रधानमंत्री मोदी भी खुद ऐसे लोगो लोगो को पाल कर रखते है।


अगर ऐसा नही है तो बात बात पर हिन्दू मुस्लिम भावना भड़काने वाले गिरिराज सिंह केंद्रीय मंत्री नही बनाते। हत्या  ,दंगे और विधानसभा को हाईजैक करने वाले "संत" सारंगी को केंद्रीय मंत्री नही बनाते, गोडसे जैसे आतंकी को देशभक्त और हेमंत करकरे जैसे शहीद को भ्रष्ट बताने वाली "साध्वी" प्रज्ञा को सांसद नही बनवाते। बलात्कार के मुख्य आरोपी कुलदीप सेंगर को अभी भी पार्टी में नही रखते। विधायक को दनादन चप्पल से कूटने वाला शरद त्रिपाठी अभी तक बीजेपी का सदस्य नही होता।


जवान बच्चियों की जीन्स खुलवाने वाले साक्षी को संसद नही पहुँचवाते। भीमकोरेगाव के मुख्य आरोपी संभाजी भिड़े को अपना गुरु नही बोलते। गौरी लंकेश की हत्या के बाद उनको " कुतिया"  कहने वाले शख्स को ट्विटर और फॉलो नही करते। अगर प्रधानमंत्री सच मे ऐसे लोगो को पसंद नही करते तो किसी भी मोब लीनचिंग या दंगे में इनके पार्टी के लोगो का नाम नही आता। लेकिन ये सिर्फ उनका सपोर्ट ही है कि हर घटना में बीजेपी या उससे जुड़े संगठनों के नाम शामिल रहा है। खास करके मोब लीनचिंग और दंगो के मामले में। और उससे भी बेहतर इनका नाम रहता है घटना को धर्मिम चोला पहनाने में।


शम्भू लाल रेगर नाम का वो आतकंवादी याद है ना , जिसने अपने अवैध संबंध छुपाने के लिए एक व्यक्ति की हत्या कर दिया और बचने के लिए उसे धार्मिक चोला पहना दिया।  और तो और उस आतंवादी के समर्थन में बीजेपी के स्थानीय नेता खूब प्रदर्शन किए । कुछ तो कोर्ट की छत पर चढ़ गए और कोर्ट की छत से तिरंगा फेंक कर वहाँ पर भगवा झंडा फहरा दिया। या 26 जनवरी के दिन हत्यारे संभूलाल रेगर के हत्या करते हुए सीन की झांकी निकालना और ऐसे लोगो पर कोई कार्यवाई न करना यही दिखाता है कि बीजेपी का और खुद मोदी जी का ऐसे लोगो को पूरा सपोर्ट है।


झारखंड में शम्स तबरेज नाम के युवक की पीठ पीट कर हत्या कर दी गयी। हत्या करने वाला बीजेपी का पदाधिकारी था। उसी सोच स प्रेरित था। उससे पीट पीट कर जबरजस्ती जय श्री राम और जय हनुमान के नारे लगवाए गए। और फिर उसको पीट कर मार दिया गया। वैसे ये पहली बार नही है जब मोदी जी के चाहने वालो ने ऐसी घटना को अंजाम दिया है। ऐसा पहले भी अनगिनत बार हो चुका है। मतलब इतना बार की न मैं गिनाने की स्थिति में हु और न आप गिनने की स्थिति में। अनगिनत नाम, अनगिनत लोग, अनगिनत पीड़ित अनगिनत हत्यारे बस यही चल रहा है मोदी जी की छत्रछाया में।


कांग्रेस नेता ने जब बोला की "झारखंड मोब लीनचिंग का हब बन गया है" तब मोदी जी ने रियेक्ट किया बोले कि "झारखंड के नाम खराब कर रहे है "  क्यो बोला क्योकि झारखण्ड में चुनाव आने वाला है। और झारखंड के लोगो की भावनाओ के साथ खेल कर वोट लेना बेहद जरूरी है। अगर नाम खराब होने की इतनी चिंता थी तब ये चिंता कहाँ गयी थी, जब बटला हाउस इंकॉउंटर के आधार पर हमारे जिले " आज़मगढ़" को इनके नेता " आतंकगढ़" बोल रहे थे। ये सवाल उस भांड को भी पूछना चाहिए जो आज़मगढ़ में आकर "भगवान के लिखे" को भी बदलने का दावा कर रहा था।


भीड़ को हथियार बनवा कर अपने वोट बैंक की राजनीति के लिए सत्ता पक्ष द्वारा कुछ लोगो को लगातार निशाना बनाया जा रहा है । पहले तो कहा जाता था कि भीड़ का कोई पक्ष या विचारधारा नही होती। लेकिन अब ये भीड़ एक पक्ष विशेष , एक धर्म विशेष , एयर एक जाति विशेष के रूप में परिवर्तित हो हई है ।  ये इस तरह की भीड़ एक बहुत अच्छा रिजल्ट है उन नेताओ की मेहनत का जो दिन रात एक करके अथक प्रयास करके लोगो के बीच हिन्दू मुस्लिम , ऊँच नीच, का नीच बोते है। और इस बीच के फसल की सिंचाई ये फेक न्यूज़ और गोदी मीडिया से लगातार करवाते रहते है । ताकि फसल मजबूत और पौष्टिक बनी रहे , इतनी को धर्म से जाती के नाम पर मारने मरने पे उतारू हो जाये।


यह भी कहना गलत नही होगा की ये भीड़ किसी राज्य किसी क्षेत्र किसी भाषा या किसी धर्म तक ही सीमित नहीं रह गई है।   यह इन के हिसाब से अलग-अलग गुटों में बदलती रहती है । लेकिन हम यह जरूर कह सकते हैं कि इस भीड़ के इंसाफ का शिकार खास धर्म और खास जाति के लोग ही हुए हैं । जैसे मुसलमान , दलित और सेना ।इसके अलावा देश में कहीं भी जिंदा लोग भीड़ के इस बर्बरता का शिकार नहीं हुए हैं । मूर्तियों को भी इस भीड़ ने नहीं बख्शा।
जरा सोचिए यह मानसिकता वाले आज उन महापुरुषों और नायकों की मूर्तियों से इतना डर रहे हैं कि , उनकी मूर्ति को तोड़ दे रहे हैं।  तो ऐसी मानसिकता वाले उन नायकों के समय में क्या-क्या करते होंगे ? और उनसे पहले उन्होंने क्या-क्या किया होगा ?बस एक कल्पना भर ही कर लीजिए ।


भीड़ के द्वारा गलत बातों पर समर्थन और लोगों की हत्या करना या हिंसा फैलाना का मनोविज्ञान यही कहता है की,  भीड़ में कभी भी हिंसा की भावना पहले से नहीं होती है।  जब लोग भीड़ में बदलते हैं विचारों का आदान-प्रदान करते हैं,  तो इनको कंट्रोल करने वाले उनके मन में हिंसा की भावना उत्पन्न करते हैं । और उसके लिए यह टारगेट वाले समुदाय के लिए नफरत पैदा करते हैं ।


भीड़ को जुटाने से पहले इसकी पूरी तैयारी की जाती है । पहले लोगों की भावनाओं को उनकी सम्वेदनाओं को खत्म कर दिया जाता है । उन्हें एक ऐसे व्यक्तित्व का गुलाम बनाया जाता है जिसकी सोच के आगे वह कुछ भी सोच नहीं सकते हैं । फिर उन लोगों को इकट्ठा करके उन्हें भीड़ का रुप दिया जाता है।  उसके बाद वह भीड़ को अपने तरीके से इस्तेमाल करते हैं। जबकि भीड़ में शामिल लोगों को इस बात का एहसास ही नहीं होता कि वह हत्या किस लिए कर रहे हैं,  या उनके हत्या करने का उद्देश्य क्या है। हिंसा फैलाने का उद्देश्य क्या है।


लोगों की भावनाएं और उनकी संवेदनाएं मरने के यही संकेत हैं कि,  जब वह अपने से दूसरे धर्म या दूसरी जाति या दूसरे क्षेत्र के लोगों के अलग रहन-सहन,  तौर- तरीकों, को अपनाने से या उनको देखने उसे भी मना कर दे ।या बराबरी का दर्जा देने तक से मना कर दे।
उनको दूसरे समुदाय के लोगों के खाने पीने पर एतराज हो।  दूसरे समुदाय की भाषा उनको देशद्रोही भाषा लगती हो । दाढ़ी और मूछों के आकार से उनको चिढ़ होने लगे।  सर पर रखे हुए टोपी या गमछे से उनको ऊंच नीच की भावना आने लगे तो हमें यह समझ लेना चाहिए कि अब लोगों की भावनाएं मर चुकी हैं।


उनमें इतनी संवेदना भी नहीं बची की राह चलते किसी की मदद भी कर सकें।अमूमन ये अपने कृत्यों को सही साबित करने के लिए धर्म या प्राचीन रूढ़ियों को ढाल बनाते हैं, ताकि किसी की हत्या करने के बाद अपने ख़ून से सने हाथों को पानी से धोकर खाना खा सकें और अपने बच्चों को प्यार कर सकें। ये धर्मकांडो का तर्क देते है, ये धर्म की रक्षा करने का दावा करते है ताकि अपने परिवारों वालो की नज़रों में हीरो बने रहे , और दुनिया की नज़रों में एक धर्मरक्षक।


धर्म और राष्ट्रवाद को राजनीति को अड्डा बना दिया गया है। या यूं कहें कि राजनीति की अखाड़े में मुद्दों पर पिट चुके पहलवान अब धर्म और राष्ट्रवाद के मुर्गे राजनीति के अखाड़े में लड़ा रहे है । जैसे ही राजनीति में धर्म आता है तो आपस में नफरत, द्वेष, भड़काना, डराना सब कुछ चालू हो जाता है।  क्योंकि राजनीति में चुनाव जीतने के लिए वोट चाहिए, वोट के लिए लोगों को कुछ न कुछ तो उनके दिमाग मे चढ़ाना ही पड़ता है। इसलिए सुनियोजित दंगे फसाद चालू हो जाते है।  और दोनों तरफ भड़काने वाले लोग होते हैं। जो आग में घी डालते है, ताकि उनको और ज्यादा फायदा हो ।


यही फार्मूला अभी हमारे देश में भाजपा और आर एस एस ने लगा रखा है। इसीलिए जिन राज्यों में भाजपा की सरकारे है। वहॉ पर ज्यादा दंगे फ़साद हो रहे है और नये राज्यों में जहॉ भी भाजपा अपना जन आधार बढ़ाने की योजना बनाते हैं। उसमे सबसे पहला काम हिंदू, मुसलमान में विवाद कराना  होता है । किसी भी तरह से हिन्दू मुस्लिम दंगे हो, उनको पता है कि मुस्लिम वोटर कम है और हिन्दू वोटर ज्यादा है, जितना आपसी में मार काट होगा, उतने ज्यादा हमारे वोट पक्के होगे । इसी सोच को लागू कर पूरे देश में चुनाव जीत रहे है।


इसके पीछे देश को लूटने का खेल पूँजीपति कर रहे है, यही पूँजीपति इन पार्टियों, संगठनों को धन मुहैया कराते है, ताकि आम जनता इन झगड़ो में लगी रहे और हम देश के संसाधनों, सम्पति,पैसा लूट सके ।


जब भी धर्म के नाम पर ज़हर फैलाया जाता है, भावनाओ को खुरेदा जाता है, सौगंधे खिलाई जाती है, आम आदमी के दिमाग को शून्य कर दिया जाता है, जिसके बाद उसका उपयोग किया जाता है, इस समय वह रोजी रोटी, घर परिवार, पैसा आमदनी, सब भूल जाता है, केवल दूसरे धर्म के लोग केवल दुश्मन दिखते है। समझ लीजिए आप और आम आदमी इनके असल जाल में फस गया है । ऐसे में वो वोट तो छोड़िए जान भी देने को तैयार रहता है, इसी प्रकार की मानसिकता बनाकर ये बाबा बैरागी, बच्चियो महिलाओं का शारीरिक शोषण करते है ।और कुछ अंधभक्त गौरवान्वित महसूस करते हैं कि हमें फल मिल गया, यही धार्मिक मानसिक गुलामी है, जिसको धर्म के नाम पर पैदा किया जाता है ।


हमारा देश करीब 800 साल तक मुस्लिम शासकों के अधीन रहा मगर तब भी हिंदू, सिख, ईसाई और बौद्ध धर्म फला-फूला।कुछ मुस्लिम शासकों ने क्रूर व्यवाहर किया तो वह भी नष्ट हुए और उनका राज्य भी। इतने कठोर और क्रूर मुस्लिम शासकों के समय भी धर्म को हानि नही हुई। और आज जब कि देश स्वतंत्र है तब लोगो को धर्म को खतरे में दिखा कर वोट मांगते हुए देखा जा सकता है। ये ठीक वैसा ही है जैसे कि एक इन्सुरेंस एजेंट मौत का खौफ दिखाकर पालिसी बेचकर अपना टारगेट पूरा कर लेता है। और अगर मौत हो भी गयी तो क्लेम करने वालो को ठेंगा दिखा कर दाँत चियार दिया जाता है।


हिन्दू देवी देवताओं और भगवान राम की रक्षा की ठेका लेने वाली पार्टी आज अपना वजूद भी उन्ही भगवान राम के नाम पर बना पाई है। भारतीय जनता पार्टी ने भगवान राम और उनके मंदिर बनवाने के नाम पर खूब वोट और धन बटोरा अपने चुनावो घोषणा पत्रो में 8 बार राम मंदिर  बनाने का वादा करने वाली बीजेपी इस बार फिर से इसी वादे को लेकर उतरी है। भाजपा ने हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पहली बार अयोध्या में राम मंदिर के आंदोलन को समर्थन देने का फ़ैसला किया था।


राम मंदिर आंदोलन से भाजपा को राजनीतिक फ़ायदा हुआ इस पर कोई विवाद नहीं हो सकता पर मस्जिद गिरने का उसे राजनीतिक फ़ायदा हुआ, यह विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता।भाजपा से राजनीतिक छुआ-छूत ख़त्म हुई 1998 में, जब उसने अपने चुनाव घोषणापत्र से राम मंदिर, समान नागरिक संहिता और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दे हटा दिए।केंद्र में छह साल उसकी सरकार रही पर पार्टी को राम और अयोध्या की याद आना तो दूर, उसने कुछ ऐसा किया कि विहिप और अशोक सिंघल की इस मुद्दे पर विश्वसनीयता ही ख़त्म हो गई।


जिस राम मंदिर मुद्दे ने भाजपा को दो लोकसभा सीटों से केंद्र की सत्ता तक पहुंचाया उस पर पार्टी ही नहीं पूरे संघ परिवार की विश्वसनीयता ख़त्म हो चुकी है  । जिन अशोक सिंघल के नाम पर देश भर से लाखों लोग जुटते थे, उनके जीवित रहते ही उनकी अपील का असर ख़त्म हो गया था ।मंदिर समर्थकों को यक़ीन हो गया कि भाजपा के लिए राम मंदिर आस्था का नहीं महज़ वोट बटोरने का साधन है। यही कारण है कि 2002 में उत्तर प्रदेश में भाजपा पहले नंबर से तीसरे नंबर की पार्टी बन गई। 2004 के लोकसभा चुनाव में कभी 62 लोकसभा सीट तक जीतने वाली पार्टी नौ सीट पर सिमट गई।


ऐसा इसलिए मुमकिन हो सका क्योकि शायद हमसे पहले वाली पीढ़ी हमारे मुकाबले ज्यादा समझदार और संवेदनशील थी। उनकी धर्म और इंसानियत का सही मतलब मालूम था। वो बहके नही। क्योकि उस समय बहकाने वाले पत्रकार और न्यूज़ चैंनल नही थे। ऐसे नेता थे जो कोसिस कर रहे थे लेकिन लोग उन्हें कामयाब नही होने दिए।


खुद अयोध्या की स्थानीय जनता ने भी 1984 से लेकर अब तक राममंदिर के नाम पर बहुत कुछ देखा है। 1984-85 में सीखचों में कैद राम को मुक्त कराने के लिए निकाली गयी विश्व हिन्दू परिषद की रथयात्रा, तथा 1986 में अदालती आदेश से ताला खुलने के बाद रामजानकी विजय यात्रा से लेकर 1989 में शिलान्यास, 1990 में कारसेवा और 1992  में बाबरी मस्जिद विध्वंस जैसी घटनाओं को अपनी आंखों के सामने देखने वाली अयोध्या की जनता अब बीजेपी के इन वादों  को महज ड्रामा मान रही है। वह चाहती तो है कि राममंदिर का निर्माण हो जाये लेकिन अब इस प्रकार के नाटकों के लिए वह अपने को तैयार नहीं कर पा रही है। 1992 के बाद अयोध्या ने राहत की सांस भी ली थी कि रोज होने वाले हंगामें से कमसेकम मुक्ति मिलेगी। जब सारे मुद्दे हवा- हवाई हो गये तब फिर से अयोध्या की याद भारतीय जनता पार्टी को आयी है।


संसद से लेकर सड़क तक हर जगह "जय श्री राम" के नारे लगाए जा रहे है। लेकिन अफसोस ये है कि ये नारे राम भावना के अनुरूप भक्ति भाव से नही बल्कि दो अलग उद्देश्यों से लगाये जा रहे है । एक उद्देश्य है चिढ़ाने वाले तरीके से " जय श्री राम " बोलकर विरोधियो को श्री राम का विरोधी साबित करके अपना वोट बैंक सेट करना । और दूसरा उद्देश्य है "जय श्री राम" बोलकर हत्या करना , करवाना और बलात्कारियो की मदद करना।


इन लोगो ने भगवान राम की भावना का पालन तो कभी किया नही , उनके नाम के जयकारे को "जय सियाराम" जैसे शांति भरे शब्द से बदलकर चिल्लाते हुए "जय श्री राम" जैसा डर का प्रतीक बना दिया। किसी भी वेद पुराण या किसी भी तस्वीर में भगवान राम का नाम माँ सीता के बिना नही है। लेकिन भगवान राम के नाम पर आतंक मचाने वाले इन आतंकवादियों ने भगवान राम को अपने वोट के चक्कर मे अकेला बना दिया है।  मतलब साफ है, भगवान श्री राम के नाम पर टोटल बिजनेस।  बिजनेस वोट का, बिजनेस जान का, बिजनेस भावनाओ का।


और इन्ही भावनाओ के बहकावे में आकर मूर्ख लोगो वाले भीड़ ने देश में एक बार फिर वही किया जिसके लिए उसे पिछले पांच साल से भी ज्यादा समय से पाला पोसा और बढ़ाया जा रहा है । भीड़ को सांप्रदायिकता दंगा अराजकता कट्टरता तानाशाही के अलग-अलग दूध से फला और चलाया जा रहा है । सत्ता में बैठे हुए भीड़ के नेतृत्व वाले नेता या बाबा लोग भीड़ के माध्यम से अपने राजनीतिक और व्यक्तिगत दुश्मनी निकाल रहे हैं।


भीड़ की हिंसा का जो दौर चला है , वह एक दो दिन या एक दो महीने महीने नही, बल्कि सालो से पली आ रही धार्मिक नफरत और असहनशीलता का परिणाम है। अगर आपको किसी से दुश्मनी है , और आपको उससे वह दुश्मनी निकालनी है , तो आपको कुछ नहीं करना होगा , बस आपको कुछ मूर्खों की जमात में जा कर यह कहना होगा कि फलां व्यक्ति मुसलमान है , और गाय की तस्करी करके लेकर जा रहा है।


मोहम्मद अख्लाक से लेकर रकबर खान तक और शम्स तबरेज तक।  पिछले पांच सालों में मॉब लिंचिंग के 150 से भी ज्यादा  मामले हो चुके हैं । और एक वेबसाइट के मुताबिक इन मामलों में 2015 से अब तक 75 लोगों की जानें जा चुकी हैं। इनमें दलितों के साथ हुए अत्याचार भी शामिल हैं। मगर सिर्फ गोरक्षा के नाम पर हुई गुंडागर्दी की बात करें तो सरकारी आंकड़े कहते हैं-
साल 2014 में ऐसे 3 मामले आए और उनमें 11 लोग ज़ख्मी हुए। जबकि 2015 में अचानक ये बढ़कर 12 हो गया। इन 12 मामलों में 10 लोगों की पीट-पीट कर मार डाला गया जबकि 48 लोग ज़ख्मी हुए।2016 में गोरक्षा के नाम पर गुंडागर्डी की वारदातें दोगुनी हो गई हैं। 24 ऐसे मामलों में 8 लोगों को अपनी जानें गंवानी पड़ीं जबकि 58 लोगों को पीट-पीट कर बदहाल कर दिया गया।2017 में तो गोरक्षा के नाम पर गुंडई करने वाले बेकाबू ही हो गए। 37 ऐसे मामले हुए जिनमें 11 लोगों की मौत हुई. जबकि 152 लोग ज़ख्मी हुए।
साल 2018 में 13 लोग ऐसे  मामले में मौत के गाल में समा गए।  साल 2019 में राजनीतिक और भीड़ के हिंसा के मामले तो शतक मार दिए।


कुल मिलाकर गोरक्षा के नाम पर अब तक कुल 85 गुंडागर्दी के मामले सामने आ चुके हैं जिनमें 34 लोग मरे गए। और 289 लोगों को अधमरा कर दिया गया। और धार्मिक कट्टरता और उन्माद के नाम पर करीब 115 लोगो को मौत के घाट उतार दिया गया। एक बात समझ मे नही आती की अगर मोदी जी ये सब नही चाहते तो उनके कार्यकर्ता ये सब कैसे कर रहे है ? जबकि वो और उनके लोग अपने कार्यकर्ताओं को सेना से भी ज्यादा अनुशाषित बताते आये है। इशारा साफ है ये सब मोदी जी और बीजेपी के बड़े नेताओं की शह और उनकी देखरेख पर हो रहा है।


 फिर आप देखिए यह भीड़ और मूर्खों की और जमात किस तरह से आपकी दुश्मनी को पूरा करती है । और आपके दुश्मन को पीट-पीटकर खत्म कर देती है।  पहलू खान,  अखलाक से लेकर रकबर खान तक, इंस्पेक्टर सुबोध से लेकर शम्स तवरेज तक।  देश में एक जानवर के बदले या उन जानवर के नाम पर इंसान को मारने की एक नया ट्रेंड चल चुका  है । और प्रदेश का मुख्यमंत्री भी सिर्फ गौ हत्या के आरोपियों को सज़ा देने की बाग करते है,  यानी कि हम ये समझ सकते है की खुद मुख्यमंत्री बाबा के लिए क्या जरूरी है। और हमारी पोलिस की बाबा के नजर मे औकात एक जानवर से भी बदतर है।


" जिस देश की भीड़ वहां के सही गलत का फैसला खुद ही करने लगे, तो यह समझ लेना चाहिए की  राजा निकम्मा, नकारा, निरंकुश और तथ्यविहीन है । "और जब ये निरंकुश संसद में पहुचते है तो फिर वैसे ही नारेबाजी और हुल्लड़बाजी करते है जैसी की इसबार शपथ ग्रहण के वक़्त हुआ। धार्मिक नारे  लगाकर ये हुल्लड़बाज अपनी लफंटरी और लम्पटपने को दिखा रहे थे। संसद में धार्मिक नारे कत्तई बर्दास्त नही किये जा सकते है। क्योंकि यही नारे बाहर निकल कर मोब लीनचिंग और धार्मिक उन्माद का रूप लेते है। ये कहा जा सकता है कि इन उन्मादों के जिम्मेदार इन तरह से नारे संसद में लगाने वाले नेता होते है। भगवान राम के नाम की मलाई खाकर उनके नाम से हत्या करवाने वाले नेता संसद में पहुँच चुके है।

खुद भगवान राम को भी इन भीड़ से भरे आतंकवादियो की करनी पर शर्म आती होगी।  भगवान राम का नाम लेकर , जय श्री राम बोलकर बलात्कार करो, जयश्री राम बोलकर हत्या करो, चोरी चकारी, छेड़खानी सब जय श्री राम बोलकर की सकती है। भगवान राम भे सोचते होंगे कि पहले बीजेपी ने उनके नाम और जमकर वोट किया, उनके नाम पर 2 से 302 पर पहुँच गए। और अब उनके नाम पे जान ले रहे है।  अभी दो तीन जान ले रहे है , आगे 302 नंबर जान लेने में  भी पहुँच जाए। हम ये भी कह सकते है कि "बीजेपी राम के नाम पर वोट लेती थी अब जान लेती है"। ये सब देख कर भगवान राम भी कहते होंगे कि " नॉट इन माई नेम प्लीज"।

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