आदर्श आचार संहिता ?? कहा है कोई बताएगा ?? हमे न तो दिखाई दे रही है ना सुनाई। प्रधानमंत्री इसके दौरान टीवी पर लाइव आते है। अपनी शेखी बघारते है, सब कुछ सरकारी खर्चे पर। लेकिन आचार संहिता का उल्लघंन ?? न बिल्कुल न ! बाबा , साहेब और उनकी पार्टी के खास लोगो पर आचार संहिता उल्लघन का दोष लगाकर लोगो को "लोया" थोड़े बनना है। चुनाव आचार संहिता इसीलिए "बिना दाँत का कानून" बना पड़ा है। अगर ये दांत है भी तो सिर्फ ये हाथी वाला दांत है । क्योंकि इसे लागू करने वालो की इच्छाशक्ति बेहद कमजोर है। और वो भी किसी न किसी विचारधार से प्रभावित है या दबाए गए है।

जरा सोच समझ कर चलिए भैया,  सोच समझ कर बोलिए।  देश में आचार संहिता लगी हुई है । लेकिन हां यह सोच समझ कर चलने और बोलने और रहने की नसीहत सिर्फ विपक्षियों के लिए है।भाजपाइयों के लिए तो "जब सैंया भए कोतवाल, अब डर काहे" वाला हिसाब किताब चल रहा है। दिन रात टीवी पर सड़कों पर अखबारों में साहब और उनकी "बहुत झूठी पार्टी" के द्वारा आचार संहिता की धज्जियां उड़ा उड़ा कर उन्ही धज्जियो का सरबत बड़के बाबा वाले आयोग को पिलाई जा रही है। और बढ़के बाबा आयोग आंखे बंद किये धृतराष्ट्र बन के बैठा हुआ है।

इतनी शर्म की बात है कि देश की इतनी शर्म की बात है कि देश की सबसे ताकतवर संस्था फलाने आयोग आज कितना बेबस और लाचार है।  यह वही आयोग है , जिससे आज से कुछ समय पहले बड़े बड़े राजनीतिक दल और बड़े बड़े नेता डरते थे। फलाने आयोग के सामने नेता जाने से कतराते थे । इस आयोग का सामना करने की हिम्मत नहीं होती थी । जिस फलाने आयोग ने अपनी शक्ति और अपनी ताकत का एहसास 90 के दशकों में राजनीतिक पार्टियों को खूब दिलाया। आज वही आयोग कुछ लोगों के हाथों की कठपुतली बनने की कगार पर खड़ा है। आदर्श आचार संहिता को सही ढंग से पालन न करा पाना, वोटर लिस्ट में बड़ी बड़ी संख्या में वर्ग विशेष या लोगो के नाम का गायब हो जाना , शिकायतों पर ध्यान देने की जगह किसी को बचाने की कोसिस करना, ये सब इस प्रक्रिया के ताजा और जीवंत उदाहरण है।

आदर्श आचार संहिता ?? कहा है,  कोई बताएगा ?? हमे न तो दिखाई दे रही है ना सुनाई। प्रधानमंत्री इसके दौरान टीवी पर लाइव आते है। अपनी शेखी बघारते है, सब कुछ सरकारी खर्चे पर। लेकिन आचार संहिता का उल्लघंन ?? न बिल्कुल न ! बाबा , साहेब और उनकी पार्टी के खास लोगो पर  आचार संहिता उल्लघन का दोष लगाकर लोगो को "लोया" थोड़े बनना है। चुनाव आचार संहिता इसीलिए "बिना दाँत का कानून" बना पड़ा है। अगर ये दांत है भी तो सिर्फ ये हाथी वाला दांत है । क्योंकि इसे लागू करने वालो की इच्छाशक्ति बेहद कमजोर है। और वो भी किसी न किसी विचारधार से प्रभावित है या दबाए गए है।

ईवीएम से लेकर अन्य कई मुद्दों पर विपक्ष के द्वारा बार बार आयोग को बताया गया लेकिन आयोग बिल्कुल चुप्पी मार कर बैठा है। हर जगह वोट में गड़बड़ी मिल रही है। एक विचार विशेष से प्रभावित दिखाई दे रहा है ये धृतराष्ट्र। अगर ऐसा हुआ है तो सिर्फ इच्छाशक्ति की कमी की वजह से हुआ है।  संवैधानिक पद कमजोर नहीं होते हैं , ना ही व्यवस्था कभी कमजोर होती है।  लेकिन समस्या यह है कि वह पद पर बैठा हुआ व्यक्ति भी एक इंसान ही होता है , जिसकी अपनी एक सोच हो सकती है।

अपनी विचारधारा हो सकती है। वह बिक सकता है,  वह नहीं बिक सकता है। बेईमान हो सकता है,  वह ईमानदार भी हो सकता है । किसी से समर्थन रखता होगा तो किसी की राय का विरोध करता होगा। लेकिन हुआ व्यक्ति क्या सोचता है क्या समझता है इसे समर्थन देता है,  या किसका विरोध करता है इससे उस पद पर कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए।  उस वक्त की राय अपनी निजी हो सकती है , लेकिन पद की कोई राय नहीं होती है । लेकिन समस्या ये है को पद पर बैठा व्यक्ति का अपने पद का अपने निजी विचार के अनुरूप प्रयोग न करने की गैरेन्टी लेगा कौन ?

आज जबकि  उलट ही सब कुछ हो रहा है , संवैधानिक पदों पर बैठे हुए महानुभाव अपनी राय को ही पद की राय के रूप में बदल कर पद का इस्तेमाल अपनी राय के अनुरूप कर रहे हैं।  ढिमकाना आयोग 2014 के बाद से ही कुछ अजीबो गरीब की हरकतें कर रहा है।  एक ही तरह के अपराध के लिए किसी को सजा देने दे रहा है, तो किसी को बरी कर दे रहा है । एक ही तरह के कार्य के लिए किसी को नोटिस थमा दी जा रही है तो किसी को क्लीन चिट दे दी जा रही है । यह सब किसके के इशारे पर ही हो रहा है ??

ताजा उदाहरण अभी हम देख सकते हैं ।जब चुनाव आदर्श आचार संहिता लगने के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी सरकारी पैसे और सरकारी पद का प्रयोग करते हुए टीवी पर लाइव आते हैं । और एक मिशन के सक्सेसफुल होने की खबर पूरे देश की जनता को बताते हैं।
क्या प्रधानमंत्री के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति इस खबर को बताने के लिए योग्य नहीं था ?
क्या डीआरडीओ के चेयरमैन समेत डीआरडीओ के सारे अधिकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपेक्षा में अयोग्य और कमजोर थे ?
क्या उनको इस बात की जानकारी पब्लिक में देने नहीं आती ?

प्रधानमंत्री इस तरह का आयोजन आदर्श आचार संहिता में तभी कर सकते हैं जब कुछ इमरजेंसी हालात बने देश में।  सुरक्षा या सूचना का कोई अवरोध उत्पन्न हो।  या कुछ इससे संबंधित समस्या उत्पन्न हो । या कुछ अंदरूनी हालात खराब हो तो प्रधानमंत्री इस तरह से आ सकते हैं ।लेकिन सब बातों को दरकिनार करते हुए प्रधानमंत्री आए और अपना प्रचार किया और चले गए । आयोग को कंप्लेन की गई । लेकिन फलाने आयोग ने मोदी जी को क्लीन चिट दे दिया और बोला "नहीं यह तो सही है"।

ये वही ढिमकाना आयोग हैं जो एंबुलेंस पर "समाजवादी" लिखे होने पर समाजवादी शब्द को ढकवा देता है । ये वही फलाना आयोग है जो पार्क में लगे हाथियों को ढकवा दिया । वहीं आयोग हैं जो चक्र से लेकर के अमिताभ बच्चन की फिल्मों तक को चुनाव के दौरान पब्लिक नहीं आने दिया।  लेकिन अब ढिमकाने आयोग ने शायद पार्टी के हिसाब से अपने आदर्श आचार संहिता में कुछ बदलाव कर लिए हैं । क्योंकि आदर्श आचार संहिता लगने के साथ ही एक्सेल मीडिया समूह के अध्यक्ष और बीजेपी समर्थित राज्यसभा सांसद सुभाष चंद्रा के डिश टीवी और वीडियोकॉन चैनल पर "नमो टीवी" नाम का चैनल आने लगा । जिसमें सीधे सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो के साथ चैनल का लोगो नमो टीवी दिखता है ।क्या यह आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है ?

दिन रात , 24 घंटे प्रधानमंत्री के भाषणों की और उनके चौकीदार से लेकर अन्य कई नौटंकिओ की वीडियो वहां पर पोस्ट की जा रही है।  24 घंटे "मैं भी चौकीदार हूं" गाने चल रहे हैं। और जिम्मेदार संस्थाएं इस पर चुप है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय की वेबसाइट पर मौजूद सूची के अनुसार 31 मार्च 2019 तक देश में कुल 901 टीवी चैनल काम कर रहे हैं। इस सूची में नमो टीवी का कहीं कोई नाम नहीं है। इसके अलावा संचार सैटलाइट लिंगसैट के ज़रिए जुड़ने वाले डीटीएच सेवाओं की सूची में भी नमो टीवी का नाम नहीं है।

नमो टीवी को कन्टेन्ट टीवी के नाम से भी पुकारा जा रहा है। और चैनल की वेबसाइट पर साफ़ तौर पर कहा गया है , कि ये नरेंद्र मोदी के कार्यक्रमों का लाइव प्रसारण, उनसे जुड़ी ख़बरें और उनसे भाषण दिखाने के लिए है। डीटीएच पर सर्विस देने वाले टाटा स्काई ने गुरुवार को यू-टर्न लेते हुए इस बारे में स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि नमो टीवी 'हिंदी न्यूज़ चैनल' नहीं है। यह एक विशेष सुविधा है जो इंटरनेट के माध्यम से मुहैया कराया जा रहा है। और इसके प्रसारण के लिए सरकारी लाइसेंस की ज़रूरत नहीं। हालांकि इससे पहले टाटा स्काई कहता रहा था कि यह न्यूज़ चैनल है। जबकि 24 घंटे इस चैनल पर सिर्फ नरेंद्र मोदी और उनके लोगो का प्रचार किया जा रहा है।

लेकिन चुनाव आयोग कलयुग धृतराष्ट्र बनकर बैठा हुआ है ।और उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है । हां इक्का-दुक्का मामले में दिखावे के लिए नोटिस जरूर दी गई।  लेकिन उस पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई।  जैसे रेलवे और उड्डयन मंत्रालय को मोदी जी की फोटो वाली कप देने की वजह से नोटिस दी गई।  लेकिन उस नोटिस का हुआ क्या यह पता नहीं । वह लोग सरेआम नरेंद्र मोदी की फोटो लगे हुए कप और प्लेट लोगों के सामने सरकारी धन पर ला रहे हैं । और सरकारी धन के दुरुपयोग से अपना प्रचार कर रहे हैं। लेकिन चुनाव आयोग को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है ।

बहुत पैसे हैं भारतीय जनता पार्टी के पास । इसीलिए सौ सौ करोड़ रुपए के चैनल लॉन्च कर दिए जा रहे हैं। क्या इन चैनलों के खर्च को भारतीय जनता पार्टी के प्रचार खर्च में जोड़ना नही चाहिए? यह कहां से उस खर्च से बाहर हैं ? बात सिर्फ सरकारी धन का दुरुपयोग करके अपना प्रचार करने तक ही सीमित नहीं है। तरह-तरह की बदजुबानी और बयान बाजी अमित शाह नरेंद्र मोदी और आदित्यनाथ लगातार कर रहे हैं । ऐसी बदजुबानी जो किसी सभ्य इंसान के बस की बात नहीं है । जैसे विरोधियों को आतंकवादी के नाम में जोड़ देना,  जैसे पार्टियों के नाम के शब्दों को मिलाकर "शराब" और "दारू" बोलना,  यह सब प्रधानमंत्री की भाषा का हिस्सा है ।

अमित शाह तो दो कदम आगे निकलते हुए अनाप-शनाप और झूठ बोल बोल कर अपना प्रचार कर रहे हैं । सीधे-सीधे धार्मिक भावनाओं को भड़का कर और धर्म की बातें कर करके अपने कैंपेन को बढ़ा रहे हैं । आदर्श आचार संहिता का मतलब यह होता है कि आप जाति धर्म के नाम पर कोई बात नहीं कर सकते । लेकिन यहां खुलेआम उल्लंघन हो रहे हैं ।

और हमारे यूपी के महाराज बाबाजी तो मोदी जी और शाहजी से 10 कदम आगे निकल चुके हैं। शब्दों की सीमा पद की मर्यादा इंसानियत के आदर्श सब कुछ चिलम में डालकर सूंघ चुके हैं ।विरोधियों को "जानवर" "कुत्ता" "बिल्ली" कहने तक पर उतारू हो चुके हैं। और देवी देवताओं कप दलित और दबा कुचला बताने पर तुले हुए है।  लोगों के घरों के मामले में, लोगों के खानदान को लेकर टिप्पणी कर रहे हैं। खैर वह कर भी सकते हैं। क्योंकि दूसरों के खानदान हैं , दूसरों के घर हैं, दूसरों का परिवार है । अब जिन का खानदान ,घर परिवार नहीं होगा वह दूसरों पर तो  टिप्पणी करेगा ही। लेकिन इस टिप्पणी का मतलब यह नहीं कि जनता सब कुछ गूंगी बहरी बनकर देख रही है । जनता जवाब देना जानती है । और जनता जवाब देती है । गंदी और भद्दी टिप्पणी किसी भी इंसान को अच्छा नहीं लगता। 

जिस तरह की बदजुबानी भारतीय जनता पार्टी के नेता कर रहे हैं , वह एक अलग ही स्तर की है।  जिसमें प्रियंका गांधी जैसे नेताओं को "स्कर्ट वाली बाई" तक कह कर इनके नेता बुला रहे हैं। तो सपना चौधरी को नचनिया कहकर बुला रहे हैं ।इनके नेता नरेश अग्रवाल तो याद ही होंगे जिन्होंने भगवान राम को विस्की में रंग सीता मां को डुबो दिया था,  और जया बच्चन जी को नाचने गंज बजाने वाली कहा था । और ऐसे लोगो का सम्मान भी इस पार्टी में खूब होता है। लखनऊ वाली स्वाति भाभी तो याद ही होंगी न सबको। इन लोगों को यह बात समझ में नहीं आती है, की कम से कम जनता के बीच में अपनी शाखा वाले संस्कार तो ना दिखाएं ।

अगर इनको थोड़ा समझना है सीखना है तो अपना पुराना इतिहास भी देख ले । जब इन के सबसे बड़े नेता, भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक और हम सबके पूजनीय पंडित अटल बिहारी वाजपेई ने भी एक गलती कर दी थी । और उनको इस गलती की सजा वहां की जनता ने दिया।

1962 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की बलरामपुर लोकसभा सीट के मतदाताओं ने तो अटल बिहारी वाजपेयी जैसे वाकपटु नेता की अशोभनीय टिप्पणी को भी बर्दाश्त नहीं किया । और उनकी जीती हुई बाजी पलटकर उन्हें हार का मजा चखा दिया था। इससे पहले 1957 के चुनाव में वे कांग्रेस के बैरिस्टर हैदर हुसैन को हराकर इसी सीट से जनसंघ के सांसद निर्वाचित हुए थे। उस हार का बदला लेने के लिए कांग्रेस ने 1962 में अपनी वरिष्ठ महिला नेता सुभद्रा जोशी को उनके मुकाबले में उतारा तो उनकी राह बहुत कठिन बताई जाती थी। इसलिए वे अपने जनसंपर्क में मतदाताओं से तकिया कलाम की तरह बार-बार कहती थीं कि "वे चुनाव जीतीं तो साल के बारह महीने और महीने के तीसों दिन उनकी सेवा को तत्पर रहेंगी।" प्रचार अभियान ने जोर पकड़ा तो एक दिन अटल बिहारी वाजपेयी को जाने क्या सूझी कि अपनी एक सभा में सुभद्रा की इस बात को लेकर उन पर लैंगिक टिप्पणी पर उतर आए।

यह भी ध्यान नहीं रखा कि जो कुछ वे कह रहे हैं, वह बहुत अशोभनीय है। उपहास करते हुए बोले, ‘सुभद्रा जी कहती हैं कि वे महीने के तीसों दिन मतदाताओं की सेवा करेंगी। मैं पूछता हूं, कैसे करेंगी ? महीने में कुछ दिन तो महिलाएं सेवा करने लायक रहती ही नहीं हैं!’

उनकी टिप्पणी से आहत सुभद्रा जोशी ने भी ऐसा ही किया और प्रतिक्रिया में इतना ही कहा कि अटल द्वारा की गई इस बेइज्जती का बदला वे नहीं, उनके मतदाता लेंगे। वाकई ऐसा ही हुआ। अटल जी जीतते-जीतते वह चुनाव हार गये। यह और बात है कि अगले चुनाव में वे फिर मतदाताओं के सामने आए तो उन्होंने उन्हें माफ करके लोकसभा पहुंचा दिया।

अपने इतिहास से सिर्फ बुद्धिमान और इंसान ही सीखते है। मूर्ख और जानवर अपना इतिहास याद नही रखते।  अभद्र टिप्पणियों और लगतार आचार संहिता का उल्लघंन किया जा रहा है। ना तो देश ले कानून की परवाह है ना तो चुनाव आयोग की परवाह है। जम कर उल्लघंन किया जा रहा है। और इसके प्रभाव और इसके क्लॉज़ का किसी को कोई परवाह नही है।

चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की घोषणा करने के साथ ही 5 मार्च से आचार संहिता प्रभावी हो गई है। चुनाव प्रक्रिया पूरी होने की अधिसूचना जारी होने तक यह प्रभावी रहेगी। आम व्यक्ति, मंत्री-नेता, जनप्रतिनिधि, राजनीतिक दल, प्रशासन, सरकारी कर्मचारी पर लागू पानी-बिजली कनेक्शन मिलेगा या नहीं किसी ने नया मकान बनाया है। उसे पानी-बिजली कनेक्शन चाहिए। उसे पाइप लाइन जुड़वानी है तो इसमें कोई दिक्कत नहीं है। आचार संहिता खत्म होने का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। पॉलिसी डिसीजन या स्वविवेक वाले काम नहीं हो सकते।नए लाभार्थियों का चयन नहीं हो सकता।आचार संहिता का यह मतलब नहीं है कि रूटीन के काम भी बंद हो जाए।
हो सकती है पट्टे की रजिस्ट्री यूआईटी से पहले से आवंटित प्लॉट, मकान या नियमन का पट्टा जारी हो गया है। रजिस्ट्री नहीं हुई है। ऐसे में रजिस्ट्री कराने में कोई दिक्कत नहीं है। आचार संहिता इसमें आड़े नहीं आती। यूआईटी व नप नई योजना जारी नहीं कर सकती। पॉलिसी डिसिजन नहीं ले सकती। रूटीन काम तो होंगे ही।

सुप्रीम कोर्ट ने रात 10 से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर बजाने पर रोक लगाई हुई है। किसी भी समारोह में सुबह 6 से रात 10 बजे तक लाउडस्पीकर बजाए जा सकते हैं। इसके लिए संबंधित एसडीएम से पहले स्वीकृति लेनी होगी। आचार संहिता से लाउडस्पीकर का कोई संबंध नहीं है। ध्वनि विस्तारक प्रतिबंध कानून तो पहले से है।

आचार संहिता का उल्लंघन होने पर आईपीसी व जनप्रतिनिधित्व कानून की विभिन्न धाराओं में सजा व जुर्माने का प्रावधान है। चुनाव आयोग उम्मीदवार को चुनाव लडऩे के अयोग्य घोषित कर सकता है।

इससे बचने के लिए सभी पार्टियों और उनके प्रत्याशियो को चुनाव आयोग द्वारा जारी गाइड लाइन जारी की जाती है जिसके तहत उन्हें कुछ कामो को न करने सख्त हिदायद दी जाती है। जिसमे यह होता है कि सत्तारूढ़ पार्टी चुनाव में अनीतिक रूप से सरकारी तंत्र का इस्तेमाल नहीं करेंगी।
कोई भी मंत्री, एमएलए, जनप्रतिनिधि सरकारी दौरे व सरकारी गाड़ी का उपयोग नहीं करेंगे।
कोई भी सरकारी शिलान्यास, उद्घाटन, लोकार्पण नहीं कर सकेंगे।
किसी भी भवन पर मालिक की सहमति बिना झंडे-बैनर, पोस्टर, होर्डिंग नहीं लगा सकेंगे।
एसपी या उनके अधिकृत अधिकारी से बिना स्वीकृति लिए धरना, रैली, जुलूस, सभा न करें। लाउडस्पीकर न बजाएं।
धारा 144 प्रभावी है। कोई भी व्यक्ति हथियार, विस्फोटक , लाठी लेकर नहीं घूम सकेंगे।
कोई भी व्यक्ति किसी पर भी उसके निजी जीवन से जुड़ी टिप्पणी/भड़काऊ नारे नहीं लगाए।
कोई भी व्यक्ति वोट के लिए साड़ी, कंबल, घड़ी, शराब, पैसा या अन्य गिफ्ट दे तो नहीं ले।

सुप्रीम कोर्ट ने रात 10 से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर बजाने पर रोक लगाई हुई है। किसी भी समारोह में सुबह 6 से रात 10 बजे तक लाउडस्पीकर बजाए जा सकते हैं। इसके लिए संबंधित एसडीएम से पहले स्वीकृति लेनी होगी। आचार संहिता से लाउडस्पीकर का कोई संबंध नहीं है। ध्वनि विस्तारक प्रतिबंध कानून तो पहले से है।

इसके अलावा सरकारी योजनाओं पर जो की पहले से चलती आ रही है उनपे कोई फर्क नही पड़ता।
जिसे वृद्धावस्था, विकलांग, निशक्त पेंशन आदि लाभ पहले से मिल रहे हैं तो मिलते रहेंगे।
राशन सामग्री सहित अन्य परिलाभ जो आचार संहिता से पहले मिल रहे थे, मिलेंगे।
जाति, मूल निवास, आय सहित अन्य प्रमाण पत्र बनते रहेंगे।
नरेगा में चालू कार्यों पर श्रमिकों को काम मिलता रहेगा।
जिन कामों की स्वीकृति जारी हो गई, पर शुरू नहीं हुए वे अब नहीं हो सकेंगे।

भारत में होने वाले चुनावों में अपनी बात वोटर्स तक पहुँचाने के लिये चुनाव सभाओं, जुलूसों, भाषणों, नारेबाजी और पोस्टरों आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इसी के मद्देनज़र आदर्श आचार संहिता के तहत क्या करें और क्या न करें की एक लंबी-चौड़ी फेहरिस्त है, लेकिन हम बात उन्हीं मुद्दों पर करेंगे, जो आदर्श आचार संहिता को इतना अहम बना देते हैं।

वर्तमान में प्रचलित आदर्श आचार संहिता में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के सामान्य आचरण के लिये दिशा-निर्देश दिये गए हैं।
सबसे पहले तो आदर्श आचार संहिता लागू होते ही राज्य सरकारों और प्रशासन पर कई तरह के अंकुश लग जाते हैं।

सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचन आयोग के तहत आ जाते हैं।
आदर्श आचार संहिता में रूलिंग पार्टी के लिये कुछ खास गाइडलाइंस दी गई हैं। इनमें सरकारी मशीनरी और सुविधाओं का उपयोग चुनाव के लिये न करने और मंत्रियों तथा अन्य अधिकारियों द्वारा अनुदानों, नई योजनाओं आदि का ऐलान करने की मनाही है।मंत्रियों तथा सरकारी पदों पर तैनात लोगों को सरकारी दौरे में चुनाव प्रचार करने की इजाजत भी नहीं होती।

सरकारी पैसे का इस्तेमाल कर विज्ञापन जारी नहीं किये जा सकते हैं। इनके अलावा चुनाव प्रचार के दौरान किसी की प्राइवेट लाइफ का ज़िक्र करने और सांप्रदायिक भावनाएँ भड़काने वाली कोई अपील करने पर भी पाबंदी लगाई गई है।

यदि कोई सरकारी अधिकारी या पुलिस अधिकारी किसी राजनीतिक दल का पक्ष लेता है तो चुनाव आयोग को उसके खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है। इसके अलावा चुनाव सभाओं में अनुशासन और शिष्टाचार कायम रखने तथा जुलूस निकालने के लिये भी गाइडलाइंस बनाई गई हैं।

किसी उम्मीदवार या पार्टी को जुलूस निकालने या रैली और बैठक करने के लिये चुनाव आयोग से अनुमति लेनी पड़ती है और इसकी जानकारी निकटतम थाने में देनी होती है।
हैलीपैड, मीटिंग ग्राउंड, सरकारी बंगले, सरकारी गेस्ट हाउस जैसी सार्वजनिक जगहों पर कुछ उम्मीदवारों का कब्ज़ा नहीं होना चाहिये। इन्हें सभी उम्मीदवारों को समान रूप से मुहैया कराना चाहिये।

इसके अलावा चुनाव राज्य या जब पूरे देश में चुनाव हो रहे हो तो सत्तारूढ़ दल के मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री कोई भी किसी तरह से सरकारी धन का प्रयोग अपने पार्टी प्रचार के लिए नहीं कर सकते । एक सीमा होती है जो चुनाव आयोग द्वारा गाइडलाइन के रूप में पहले ही बता दी जाती है,  कि किस सीमा तक के धन को प्रत्याशी प्रत्येक चुनाव में खर्च कर सकते हैं। उसी तरह पार्टियों के खर्च की भी एक सीमा होती है। पार्टियों से संबंधित नाम चुनाव चिन्ह बहुत सारी चीजें ढक दी जाती है। या बंद कर दी जाती हैं ।

जनता दल का चुनाव चिन्ह चक्र होने की वजह से टीवी पर घड़ी डिटर्जेंट का ऐड बंद कर दिया गया ,घटना 1991 की है । अमिताभ बच्चन की फिल्में चुनाव के दौरान आनी बंद कर दी गई, क्योंकि वह चुनाव लड़ने जा रहे थे। 2017 में समाजवादी शब्दो को हटा दिया गया ।हर बार ऐसा ही होता आया है,  लेकिन अब के समय मे हेमा मालिनी,  मनोज तिवारी से लेकर सारे बीजेपी के अभिनेताओ के प्रचार और फिल्में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रहे है।  नमो टीवी नाम से चैनल आ रहा है। दिन रात प्रचार चल रहे है। मोदी जी की बायोपिक बन रही है। रिलीज हो रही है। और इन सब मे चुनाव आयोग को कोई कमी नही दिख रही है।

बदजुबानी और ग़ुलामी का आलम ये ही कि राजस्थान का राज्यपाल अपने आप को "बीजेपी का कार्यकर्ता" बताता है। और सबसे मोदी जी को जीतने की अपील करता है। इन सब से आगे बढ़कर योगी जी भारतीय सेना को बीजेपी और मोदी जी का ग़ुलाम बताने पर तुले है। वो भारतीय सेना को " मोदी की सेना" बता बता पार्टी का प्रचार कर रहे है।  लेकिन धृतराष्ट्र आयोग आंख कान नाक मुह सब बंद किये बैठे है।

धृतराष्ट्र आयोग को न तो बीजेपी द्वारा आचार संहिता का कोई भी उल्लंघन दिखाई दे रहा है,  ना ही उन्हें भारतीय जनता पार्टी के नेताओं द्वारा की जा रही अभद्र टिप्पणियां और बदजुबनिया दिखाई दे रही है । ना ही उन्हें इन नेताओं द्वारा इतिहास और तथ्यों को लेकर बोला जा रहा झूठ दिखाई दे रहा है । राष्ट्र के ज्ञानी लोग एकदम चुप्पी मारे बैठे हैं । और मोदी जी से लेकर के सारे नेता लगातार झूठ और बदजुबानी करते आये है। खुद प्रधानमंत्री इस रेस में अपनी पार्टी के नेताओ और अन्य नेताओं से मीलों आगे है। हर जगह सिर्फ झूठ , बदजुबानी , और भड़काऊ भाषण देने उनकी फिदरत बन चुका है।

मैंने नरेंद्र मोदी जी से पहले भी आग्रह किया था अभी भी कर रहा हूं कि दिन-रात ट्विटर पर गाली देने वाले , लोगों की मां बहन को बलात्कार की धमकी देने वाले,   बद्दतमीज़ और खलीहर लोगों को फॉलो करने की जगह आप  पंडित अटल बिहारी वाजपेई जी के जीवनी उनके संघर्षों को और उनकी वीडियो को देखिए,  पढ़िए तो आपको कई चीजें समझ में आएंगी।  अगर मोदी जी ,  अटल जी को थोड़ा भी समझते और सीखते तो आज उनकी जुबानी और झूठ इस सीमा तक नहीं बड़ी होती   प्रधानमंत्री जी जैसे ही कमल के सानिध्य में आते हैं वह अपनी सारी शालीनता सारी तमीज और सारा आदर्श कूड़े के डिब्बे में डाल कर,  सिर्फ एक झूठ बोलने वाले और बदजुबानी करने वाले एक टेप रिकॉर्डर की तरफ बजते हुए बढ़ते जाते हैं ।

वो ऐसा करेंगे भी क्यो नही जब साहेब टि्वटर पर बीस हज़ार से भी ज्यादा बत्तमीज़ और खलिहर लोगों को फॉलो कर रहे है, जो दिन-रात ट्विटर पर और ऑनलाइन कंटेंट पर सबको सिर्फ माँ बहन की गालियां दे रहे है। तो जब ऐसे लोगो को फॉलो करेंगे, ऐसे लोगो के आस पास दिन रात रहेंगे तो ऐसे ही रिजल्ट जनता के सामने आएगा।

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