सरदार भगत सिंह ने समाजवाद को भारत के लोगो से परिचित कराया, हालांकि कांग्रेस भी उस समय समाजवाद सिद्धांत पर चल रही थी, लेकिन हम ये कह सकते है का कांग्रेस समाजवाद एक सीमित सीमा तक ही था, या वो अपने समाजवाद को प्रभावी ढंग से पेश नही किया , हो सकता है कि कांग्रेस की अपनी वजहें रही हो। लेकिन सरदार भगत सिंह व शख्स थे जिन्होंने अपने जेल अवधि के तीन साल के अंदर समाजवाद को बेहद प्रभावी तरीके से और बेहद आक्रमक तरीक़े से रखा। उन्होने ये बात लोगो के सामने साफ कही की यदि समाजवाद और इंकलाब लाना है तो साम्रज्यवाद को पूरी तरह से खत्म करना होगा।

मैं जिस समाजवादी विचारधारा को अनुसरित करने की कोशिश कर रहा हूं,वह विचारधारा शहीद भगत सिंह से शुरू होकर लोहिया जी के माध्यम से हम सबके बीच पहुंची है। इस बात की खुशी है कि मैं इस विचारधारा का एक बहुत ही छोटा भाग बन सका। इसके चलते कई बार मेरे कुछ पुराने दोस्त राजनीतिक बातों के जवाब में व्यक्तिगत टिप्पणी करके दोस्ती खत्म कर देते हैं। हालांकि यह मुझे बहुत बड़ा नुकसान है , लेकिन समाजवाद के लिए,  इस विचारधारा के लिए , भगत सिंह के लिए , लोहिया के लिए  , अगर यही कुर्बानी है तो मैं तैयार हूं।

और मैं अपने आप में एक परिवर्तन खुद ही देख रहा हूं कि धीरे-धीरे मैं समाजवाद के साथ साथ भगतवाद के साथ भी उसी मजबूती के साथ जुड़ता जा रहा हूं।भगत सिंह को जितना पढ़ रहा हूं उतना ही ज्यादा उनको जानने की इच्छा हो रही है। और उतना ही ज्यादा उनको और पढ़ने की तलब जाग रही है यह एक नशा और एक आदत बन चुकी है।

समाजवाद, क्रांति, भारत की आजादी, मजदूर वर्ग आंदोलन, धर्म, ईश्वर आदि विषयों पर भगत सिंह के विचारों से हम सुपरिचित हैं। भगत सिंह का जीवन और कार्य, मुख्यत: इन्हीं विषयों पर केन्द्रित रहे हैं। जाति और वर्णव्यवस्था पर उनके विचार ज्यादा नहीं जाने जाते हैं क्योंकि इस विषय पर उन्होंने ज्यादा नहीं लिखा है। इस विषय पर ज्यादा नहीं लिखे जाने का एक कारण यह भी हो सकता है कि वे सिख थे, जहां जाति और वर्णव्यवस्था वैसी मजबूत नहीं है, जैसी हिन्दुओं में है।

तथापि उनका लेख ‘अछूत समस्या’ इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इससे जाति और वर्ण-समस्या पर भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों की झलक मिलती है। आज की तारीख में भी प्रासंगिक यह लेख दलित समस्या पर भगत सिंह की प्रतिनिधि रचना मानी जा सकती है। आज जबकि जाति के सवाल ने विचारधारात्मक एवं राजनीतिक क्षितिज पर महत्वपूर्ण स्थान पा लिया है, उस पर महान क्रांतिकारी भगत सिंह के विचारों को जानने, समझने का खास महत्व है।

हम इस बात पर बहस या चर्चा कर सकते हैं कि , सरदार भगत सिंह जी को सिर्फ "शहीद ए आजम" भगत सिंह क्यों कहा जाता है ? उन्हें "जननायक शहीद ए आजम" भगत सिंह , यह "समाजवादी जन नायक शहीद ए आजम" भगत सिंह पुकार कर क्यों नहीं कहा जाता ?  उन्हें सिर्फ एक शहीद की नजर से क्यों देखा जाता है ? उन्हें एक समाजवादी धारा के प्रखर समर्थक एवं प्रभावी समर्थक के रूप में क्यों नहीं देखा जाता ? जबकि उनके कद तब के तात्कालिक और अब के नेताओ से कई हज़ार गुना बड़ा था।

ऐसा नहीं है कि इस देश में जितने भी समाजवादी नेता हुए हैं , उनसे कम भगत सिंह का किरदार समाजवाद को समझाने और लागू करने में रहा हो।  इस देश में जितने भी समाजवादी नेता हुए उन सब से कहीं ज्यादा समाजवाद को गढ़ने और देशवासियों को समाजवाद की तरफ जागरुक करने का काम शहीदे आजम सरदार भगत सिंह ने किया।  माफ करिएगा "समाजवादी जन नायक शहीदे आजम सरदार भगत सिंह"।

सरदार भगत सिंह ने समाजवाद को भारत के लोगो से परिचित कराया, हालांकि कांग्रेस भी उस समय समाजवाद सिद्धांत पर चल रही थी, लेकिन हम ये कह सकते है का कांग्रेस समाजवाद एक सीमित सीमा तक ही था, या वो अपने समाजवाद को प्रभावी ढंग से पेश नही किया ।  हो सकता है कि कांग्रेस की अपनी वजहें रही हो। लेकिन सरदार भगत सिंह व शख्स थे जिन्होंने अपने जेल अवधि के तीन साल के अंदर समाजवाद को बेहद प्रभावी तरीके से और बेहद आक्रमक तरीक़े से रखा। उन्होने ये बात लोगो के सामने साफ कही की यदि समाजवाद और इंकलाब लाना है तो साम्रज्यवाद को पूरी तरह से खत्म करना होगा।

अपनी जेल की अवधि के दौरान समाजवाद सिद्धांत को अच्छी तरह जानने एवं समझने के बाद खुद सरदार भगत सिंह जी इस चीज को स्वीकार किए कि उन्होंने स्काट को मार कर के गलती की,  क्योंकि क्रांति कभी गोली से नहीं आती । क्रांति हमेशा विचारों से आती है । और अपने जीवन के अंतिम समय में सरदार भगत सिंह ने यही करने की कोशिश की । जिसमें वह पूरी तरह सफल हुए।  उन्होंने अपने विचारों से पूरे देश में ऐसी अलख जगाई की लोग कांग्रेस और महात्मा गांधी को भूलकर सिर्फ भगत सिंह के पीछे जाने लगे।

दरअसल भगत सिंह के साथ साथ यह करिश्मा उस सिद्धांत का भी था जिसे भगत सिंह ने अपनाया था।  समाजवाद का सिद्धांत भगत सिंह के रग रग में बस चुका था।  समाजवाद के ऊपर कितने लेख न जाने कितने लेख और एक दो किताबें भी लिख चुके भगत सिंह को आज हम सही मायने में समाजवाद को परिभाषित करते हुए देख सकते हैं।

यह बात सही है कि भगत सिंह के जीवन का कुछ हिस्सा बंदूक की गोली और फांसी के फंदे के साथ रहा है।  लेकिन वह पूरा जीवन नहीं रहा है । भगत सिंह का पूरा जीवन समाजवाद के ऊपर वैचारिक और तार्किक रहा है।  वह किताबों और लेखों में ज्यादा विश्वास करने वाले व्यक्ति थे ।

और यकीन मानिए भगत सिंह ने जितना नुकसान अंग्रेजों का बंदूक से और पिस्तौल से नहीं किया , उससे कई हजार गुना ज्यादा नुकसान  अपने समाजवाद के ऊपर लिखे गए विचारों और अपने लेखों से किया ।क्योकि उन्होंने उन लेखों से भरतवाशियो को समाजवादी आज़ादी के सही मायने बताए, और लोगो को असली आज़ादी के वो सपने दिखाए जो आज कही न कही फिर से खत्म हो रहा है। आज सरदार भगत सिंह कक उस विचारधारा को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी सदन में गाली देते है।

मेरा इस लेख से आप लोगों से एक ही निवेदन है कि आप लोग नेताओं और कथित देशभक्तों के द्वारा बताए गए भगत सिंह पर ही भरोसा ना करें । आप अपने दिमाग लगाएं और भगत सिंह को खुद से जानने की कोशिश करें। और आप लोगों की इस कार्य में मदद खुद भगत सिंह ही करेंगे , क्योंकि भगत सिंह ने अपने जीवन में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया , उन्होंने ज्यादा से ज्यादा अपने लेखों को अपने स्टेटमेंट को और अपने भाषणों को लिखित रुप में भी रखने की,  और रिकॉर्ड कराने की पूरी कोशिश की।शायद उन्हें इस बात का एहसास था कि भविष्य में लोग उनके विचारों का गलत इस्तेमाल करके अपना उल्लू सीधा करेंगे ।

जब भी भगत सिंह की बात होती है तो हम एक भावनात्मक दुनिया में चले जाते हैं।  और तरह-तरह की कल्पनाएं करने लगते हैं।  जब की कल्पनाओं से , भावनाओं से और ईश्वर में आस्था से भगत सिंह जी का दूर-दूर तक कहीं कोई लेना-देना नहीं था। जतिन दास की 63 दिनों की भूख हड़ताल के बाद जब उनकी शहादत हुई,  तब भगत सिंह जी ने सुखदेव जी को एक पत्र लिखा । और उसमें उन्होंने एक जो विशेष बात कही।  वह यह थी कि -
     " एक बात जिस पर मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं कि , हम लोग ईश्वर , पुनर्जन्म , नरक , स्वर्ग , दंड एवं पारितोषिक अर्थात भगवान द्वारा किए जाने वाले जीवन के हिसाब आदमी कोई विश्वास नहीं रखते ।अतः हमें जीवन एवं मृत्यु के विषय में भी नितांत भौतिकवादी रीति से सोचना चाहिए ।"

इस पत्र का एक-एक शब्द सरदार भगत सिंह जी का ईश्वर में विश्वास ना होना,  और पूरी तरह से परिपक्व होना दिखाता है।  यह दिखाता है कि सरदार भगत सिंह हिंसा के साथ विरोध करना छोड़ विचारों के साथ विरोध करने कि वह शक्ति पा चुके थे।  वह समाजवाद के उस सही मतलब कुछ समझ चुके थे जो पूरे विश्व में वसुधैव कुटुंबकम की भावना को जगाती है।

जैसा कि मैंने पहले भी ऊपर बताया कि सरदार भगत सिंह ने खुद यह बात मानी कि स्कॉट की हत्या करके उन्होंने गलती की।  क्योंकि क्रांति हथियार से नहीं विचार से आती है । और उन्होंने जब क्रांति को पूरी तरह समझ लिया तो अपने साथियों को भी क्रांति का एक सही मतलब समझाते हुए एक पत्र लिखा
उन्होंने लिखा है -
" क्रांति से हमारा क्या अर्थ है।  यह स्पष्ट है शताब्दी में इसका सिर्फ एक ही अर्थ हो सकता है,  जनता के लिए , जनता का राजनीतिक शक्ति हासिल करना है।  वास्तव में यही है क्रांति।  बाकी सभी विद्रोह तो सिर्फ मालिकों के परिवर्तन द्वारा पूंजीवादी संघार को ही अपने आगे बढ़ाते हैं । किसी भी हद तक लोगों से या उनके उद्देश्यों से जताई हमदर्दी जनता से वास्तविकता नहीं छुपा सकती।  लोग छल को पहचानते हैं । भारत में हम भारतीय श्रमिक के शासन से कम कुछ नहीं चाहते।  भारतीय श्रमिकों को भारत में साम्राज्यवादियों और उनके मददगार हटाकर,  जोकि उसी आर्थिक व्यवस्था के पैरोकार हैं जिनकी गणेश शोषण पर आधारित है , आगे जाना है । हम गोरी बुराई की जगह काली बुराई को लाकर कष्ट नहीं उठाना चाहते।  बुराइयां एक स्वार्थ समूह की तरह एक दूसरे का स्थान लेने के लिए तैयार हैं।""

अपने मुकदमों की सुनवाई के दौरान भी सरदार भगत सिंह ने अदालत में कई बार अपने विचारों को रखकर देश के सामने लाने की कोशिश की।  साथ ही साथ उन्होंने अदालत के माध्यम से पूरे देश को समाजवाद और क्रांति के मतलब समझाने की कोशिश किया । और यह व्याख्या करते हुए की क्रांति से उसका क्या अभिप्राय है, उसने न्यायालय के समक्ष भी स्पष्ट किया कि इसका अर्थ -

"समाज को पुनः व्यवस्थित करना है- समाजवादी आधार पर जिसमें मजदूर की प्रभुसत्ता को मान्यता दी जाए तथा एक विश्व संघ जो मानवता को पूंजीवाद की दास्तां तथा साम्राज्यवादी युद्धों से मुक्ति दिलाये।"

उसने बार-बार यह स्पष्ट किया कि क्रांति का मतलब बंदूक अथवा बम की संस्कृति नहीं है। क्रांति से हमारा अर्थ है कि प्रत्यक्ष अन्याय पर आधारित दमित व्यवस्था का अंत होना चाहिए। क्रांति का अर्थ हमारे लिए  ऐसे व्यवस्थित समाज की स्थापना करना है जहां किसी भी प्रकार की कोई बाधाएं नहीं होंगी। जहां मजदूर की प्रभुसत्ता को स्वीकार किया जाएगा जहां विश्व संघ के माध्यम से मानवता पूंजीवाद की दास्तां तथा साम्राज्यवादी युद्धों के खतरों से मुक्त करेगी।

भगत सिंह जी ने HSRA ( भारतीय समाजवादगणतंत्र संघ) की स्थापना की।  इसके नाम के अंत में संघ लगे होने से आप ही बिल्कुल न सोचें कि इनका संबंध कहीं से कुछ भी आरएसएस से रहा होगा ।

सावरकर और गोडसे की पूजा करने वालों को शायद एच एस आर ए का पूरा नाम भी नहीं मालूम होगा । तो इसके मायने उनको कहां से पता चलेंगे ?  सरदार भगत सिंह जी ने अपने पूरे जीवन भर समाजवाद की इसी विचारधारा के साथ लड़ाई किया । भगत सिंह जी समाजवाद के कितने बड़े पुजारी थे यह बात उन की लिखी हुई किताब "समाजवाद के आदर्श"  को पढ़कर समझ में आता है ।

उनकी इसी विचारधारा और दीवानेपन ने उनका स्थान देश में गांधी जी से भी ऊपर कर दिया । भगत सिंह जी ने हमेशा ही सामंतवादी ताकतों का विरोध किया और साथ ही उन्होंने कट्टरपंथी ताकतों का भी विरोध किया,  जिसमें मुस्लिम लीग आरएसएस और हिंदू महासभा भी शामिल थे ।भगत सिंह जी समाजवादी क्रांतिकारी धारा के सबसे बड़े नेताओं में से एक थे । 

यह समाजवाद का ही असर था की भगत सिंह अब देश की समस्यायों को गहराई तक समझने लगे थे। वो अब सिर्फ आज़ादी की बात न करके साम्प्रदायिकता , शिक्षा, गरीबी, रोजगारी, और किसानों पर भी बात करने लगे थे । भगत सिंह अब मजदूरो की बात करने लगे थे। और भगत सिंह के इसी विचार ने अंग्रेजी हुक्मरानों को बेहद डरा दिया। वो समझ गए कि यदि भगत सिंह अपने विचारों को पूरी तरह से देख के लोगो को समझाने में कामयाब हो गए तो फिर लोग सही आज़ादी के लिए लड़ना सुरु कर देंगे।

भगत सिंह ने मजदूरों और किसानों और दलितों पे बहुत ध्यान दिया और उनके उत्थान के लिए बहुतबतारुके बताए,। भगतसिंह के अनुसार-
   ‘‘समाज का वास्तविक पोषक श्रमजीवी है। जनता का प्रभुत्व मजदूरों का अंतिम भाग्य है। इन आदर्शों और विश्वास के लिए हम उन कष्टों का स्वागत करेंगे, जिनकी हमें सजा दी जाएगी। हम अपनी तरुणाई को इसी क्रांति की वेदी पर होम करने लाए हैं, क्योंकि इतने गौरवशाली उद्देश्य के लिए कोई भी बलिदान बहुत बड़ा नहीं है।

समाज का सबसे आवश्यक अंग होते हुए भी उत्पादन करने का या मजदूरों से शोषकगण उनकी मेहनत का फल लूट लेते हैं। एक ओर जहां सभी के लिए अनाज पैदा करने वाले किसानों के परिवार भूखों मरते हैं, वहीं सारे संसार को सूट जुटाने वाला बुनकर अपना और अपने बच्चों का तन ढकने के लिए पर्याप्त कपड़ा नहीं पाता, शानदार महल खड़ा करने वाले राजमिस्त्री, लेबर और बढ़ई, झोपड़ियों में ही बसर करते और मर जाते हैं। और दूसरी ओर पूंजीपति, शोषक अपनी सनक पर करोड़ों बहा देते हैं।’’

जैसे-जैसे भगतसिंह समाजवादी सिद्धांतों का अध्ययन करके उनके मूल तथ्य को हृदयंगम करते गए उनका यह दृढ़ मत होता गया कि क्रांति का वास्तविक मार्ग मेहनतपेशा लोगों को जोड़ना तथा संगठित करना ही है। अपनी फांसी से कुछ ही पहले लाहौर सेंट्रल जेल के अधीक्षक के नाम लिखे गए एक पत्र में उन्होंने कहा था-

‘‘यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि हमको बमों और पिस्तौलों से कुछ हासिल नहीं होगा। ‘हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्रीय सेना’ के इतिहास से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है। बम चलाना निरर्थक ही नहीं, अक्सर हानिकारक भी होता है, हालांकि कुछ परिस्थितियों में उसकी अनुमति दी जा सकती है जिसका मुख्य उद्देश्य मजदूरों और किसानों को संगठित करना ही होना चाहिए।’’

भारतीय समाजवाद के सबसे युवा चिंतक इतिहास में भगतसिंह ही स्थापित होते हैं। विवेकानंद, जयप्रकाश, लोहिया, नरेन्द्रदेव, सुभाष बोस, मानवेन्द्र नाथ राय और जवाहरलाल नेहरू आदि ने ‘समाजवाद‘ का आग्रह उनसे ज्यादा उम्र में किया है। साम्यवादी विचारकों माक्र्स, लेनिन, एंजिल्स आदि को पढ़ने के अतिरिक्त भगतसिंह ने अप्टाॅन सिंक्लेयर, जैक लंडन, बर्नर्ड शॉ, चाल्र्स डिकेन्स, आदि सहित तीन सौ से अधिक महत्वपूर्ण किताबें पढ़ रखी थीं।

शहादत के दिन भी लेनिन की जीवनी पढ़ते पढ़ते ही फांसी के फंदे पर झूल गए। भगतसिंह के निर्माण के सहयोगी नेशनल काॅलेज लाहोर के प्राचार्य छबील दास, द्वारका दास लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन राजाराम शास्त्री, महान पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी और उनके मित्रों भगवतीचरण वोहरा, चंद्रशेखर आजाद, सोहनसिंह जोश, सुखदेव, विजयकुमार सिन्हा, शचीन्द्रनाथ सान्याल आदि रहे हैं।

भगतसिंह ने ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन‘ नामक क्रांतिकारी संगठन के नाम में ‘सोशलिस्ट‘ नाम का शब्द इस आशय के साथ जोड़ा कि भारत को जो स्वतंत्रता मिले उसका आर्थिक उद्देश्य समाजवाद भी होना चाहिए। अपने साथियों में भगतसिंह सबसे पहले समाजवादी विचारों की तरफ आकर्षित हुए। उन्होंने ‘मैं नास्तिक क्यों हूं?‘ लेख तथा ‘नौजवान सभा का घोषणा पत्र‘ लिखा।

दरअसल सरदार भगत सिंह  अपने इन बयानों और लेखों के माध्यम से समाजवाद को लोगों के दिल में उतारते हुए अपने आजाद देश में पूरी तरह से लागू करने का योजना में थे। इसीलिए हर जगह लिखित रूप में बयान देने पर विशेष ध्यान दिया । अपनी किताब "समाजवाद के सिद्धांत" में सरदार भगत सिंह ने अपने नजरिए से एक समाजवाद की परिकल्पना की । सरदार भगत सिंह ने लोगों के मन में समाजवादी जो गहरी पैठ ऐसे बैठाया कि उसके बाद लोग पूरी तरह से आजादी के प्रति आश्वस्त हो चुके थे । और थक हार कर अग्रेजी सरकार को भी भारत को आजाद करना पड़ा।

अगर भगत सिंह के नज़रिए से समाजवाद के मायने देखा जाए तो वह यह होता है कि,  एक ऐसा समाज की संरचना करना जिसमें जाति , धर्म,  क्षेत्र, ऊँच नीच , के भेदभाव के बिना एक दूसरे के साथ मिलकर एक दूसरे के सहयोग करने की भावना बनाना। अपने से पहले दूसरों की भलाई करने की भावना हो। समाजवाद को मानने वालों का दिल कितना बड़ा होता है कि सारे विश्व को अपना परिवार समझते हैं । "वसुधैव कुटुंबकम" की भावना से समाजवाद से ही आती है।

समाजवाद को सीधे–सरल शब्दों में परिभाषित करने को कहा जाए तो उसका अर्थ होगा, ऐसी व्यवस्था जिसमें समाज के संसाधनों पर जन–जन का साझा हो. सभी लोग अपनी क्षमतानुसार काम करें. अर्जित संपत्ति का मिल–बांटकर, अपने और सर्व–हित में उपयोग करें. उसका प्रबंधन समाज द्वारा लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित व्यवस्था,सरकार द्वारा किया जाता हो। सरकार प्रत्येक से उसकी क्षमता के अनुसार काम लेकर, हर एक को उसकी आवश्यकता के अनुरूप लौटाए। यह बिना समर्पण और त्याग के असंभव है. इसलिए ईश्वास्योपनिषद में कहा गया—‘त्येन त्यक्तेनभुंजीथा’ । यानी ‘जिसने त्यागा है, उसी ने भोग किया है’। व्यक्ति त्याग करेगा तभी तो दूसरे के अभावों की पूर्ति के संसाधन जमा होंगे। यह कोई पहेली नहीं, सीधी–सी व्यवस्था थी। त्याग और भोग के बीच संतुलन बनाए रखने की। सहकार और सहयोग की जरूरत को स्थापित करने वाली। ऐसी व्यवस्था जिसमें—‘एक सबके लिए और सब एक के लिए काम करें'। जिसमें आर्थिक–सामाजिक–राजनीतिक , यानी हर स्तर पर समानता हो। 

समाजवाद अपने आप में इतना विशाल है कि इसे ससाझाना किसी दार्शनिक या किसी किताब के बस का नहीं है। समाजवाद कभी भी किसी अन्य विचारधारा या किसी अन्य संगठन का मोहताज नहीं रहा । यह अपने आप में पूरा एक संसार है ।समाजवाद में व्यक्ति विशेष को महत्व ना देकर पूरे समाज की को महत्व दिया जाता है ।
पूंजीवाद का विरोध किया जाता है ।
एक दूसरे के सहयोग पर आधारित होता है ।
यह आर्थिक समानता का पक्षधर है ।
यह लोगों को लोकतंत्र में आस्था रखना सिखाता है। सामाजिक शोषण का अंत करता है ।
सामाजिक न्याय की वकालत करता है।
सभी को उन्नति के समान अवसर देता है ।साम्राज्यवाद का विरोध करता है।

समाजवाद जीवनी खूबियों और समाजवाद के इन्हीं समांतर समझने की परखने की विचारधारा ने भगत सिंह को अपनी तरफ आकर्षित किया ।सरदार भगत सिंह अक्सर यही कहा करते थे कि "ऐसी आजादी मिली भी तो क्या फायदा?  गोरे साहब चले जाएंगे और पूरे साहब आ जाएंगे"। लेकिन सरदार भगत सिंह ने जब समाजवाद को समझा और समाजवाद के साथ कुछ समय अकेले में बिताया तो  उनको समझ आया कि अगर समाजवाद पूरी तरह से देश में लागू हुआ तो देश में जनता का राज होगा और उन्हें फिर यह नहीं कहना पड़ेगा कि "गोरे साहब चले जाएंगे तो पूरे साहब आ जाएंगे"।

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