अगर आपको इंसान की मौत से ज्यादा जानवरो की मौत पर गंभीर होने वाले पसंद आ रहे है तो यकीन मानिए आपकी संवेदनाओं की हत्या उस आदमी ने कर दिया है। अगर आपको लीनचिंग की समस्या से देश को अवगत कराने वाले देशद्रोही लगते है तो यकीन मानिए आप लीनचिंग में शामिल हत्यारो के प्रबल समर्थक है। अपनी सोच को जबरजस्ती दूसरो पर थोपने का ट्रेंड चल चुका है। जो हमारी सोच से इत्तेफाख नही रखे उसे देशद्रोही साबित करने का ट्रेंड चल चुका है। जो भाजपा और मोदी जी के गलत नीतियों का विरोध करे उनको , मालवीय जी की सेना के द्वारा गद्दार साबित करने का ट्रेंड चल रहा है।

अगर कही का मुखिया या कहीं के राजा के सामने  दो मामले आये।  जिसमें एक मामले में कुछ लोगों के फ़र्ज़ी संगठन के द्वारा उसी के सिपह सालार या उसी के सैनिक को मारा जा गया हो ।और दूसरे मामले में कहीं किसी जानवर की हत्या की झूठी अफवाह फैलाई गई हो, तो वहां पर उस राजा द्वारा लिए गए फैसले से उस राजा के विवेक और संवेदनशीलता का पता चलता है । अब हम उस राजा के बारे में क्या कहें जो एक इंसान की मौत या एक सैनिक  की शहीदी को तरजीह ना दे करके एक फर्जी गोकशी के मुद्दे की जांच का आदेश दे दे ?

वह बार-बार उसी मुद्दे को उठा ले, और उस पर टिप्पणी करें।  जबकि आने सैनिक की मौत पर कुछ ना बोले। तब हमें यह पता चलता है कि उस राजा की या उस शासक की संवेदनशीलता मर चुकी है । उसका मानसिक स्तर कहां पर है,  हमें इसका भी पता चलता है। साथ ही यह भी पता चलता है कि उस शासक के लिए क्या मामला मायने रखता है । क्या उस शासक के लिए उसकी जनता या उसके लोग जरूरी हैं ?  या उस शासक के लिए उसके कथित धर्म-कर्म के काम और नित पाखंड जरूरी हैं?

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में जिले में कथित तौर पर गोकशी की अफवाह फैलने के बाद भीड़ को सुनियोजित तरीके से  आक्रोशित किया गया।  गुस्साई भीड़  में छुपे गुंडों ने आगजनी और हिंसा की जिसके बाद पुलिस को भी कड़े कदम उठाने पड़े। इस हिंसा और पुलिस की कार्रवाई के दौरान दो लोगों की मौत हो गई। लेकिन उसमें से सिर्फ गोकशी के मामले दर्ज हुए जिनकी जांच के आदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिए। हालांकि इस मामले में अभी तक जांच के कोई परिणाम नहीं निकले हैं।

मतलब यह साफ समझा जा सकता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की मौत कोई मायने नहीं रखती । उनके लिए अगर कुछ मायने रखता है तो वह है फर्जी गोकशी का मुद्दा,  जो की असल में वहां पर हुआही नहीं था। वहीं 83 पूर्व ब्यूरोक्रेट्स ने इस मामले को संभालने के तरीकों के कारण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे की मांग की है। इन लोगो ने सीएम योगी को खुला खत लिखकर इस मुद्दे पर अपना गुस्सा जाहिर किया और उनके इस्तीफे की मांग की है। सोशल मीडिया पर यह खत वायरल हो रहा है। दावा किया जा रहा है कि 83 पूर्व अफसरों ने यह खुला खत लिखा है।

राज्य के पूर्व अफसरों ने खत में सीएम योगी आदित्यनाथ पर बुलंदशहर हिंसा को गंभीरता से नहीं लेने का आरोप लगाया है। पूर्व अधिकारियों ने खत में लिखा है कि सीएम योगी सिर्फ गोकशी मामले पर ध्यान दे रहे हैं, जबकि हिंसा में इंस्पेक्टर की हुई मौत के मामले पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। हिंसा के दौरान इंस्पेक्टर की हत्या होना बेहद गंभीर बात है। उन्होंने कहा है कि हिंसा के दौरान इंस्पेक्टर की हत्या से राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े होते हैं। पूर्व अधिकारियों ने खत में इलहाबाद हाई कोर्ट से यह अपील की है कि वह इस मामले में संज्ञान ले। साथ ही हिंसा से जुड़े मामले की हर पहलू से जांच की जाए।

इस पत्र में पावर में बैठे मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, गृह सचिव, और उच्च नागरिक सेवाओं के दूसरे सभी सदस्यों को उनकी जिम्मेदारी भी याद दिलाई गई है। इसमें लिखा गया है, "सभी प्रशासनिक लोग निडरता के साथ अपने संवैधानिक कर्तव्य का पालन करें और राजनीतिक दलों निर्देशों के बजाय कानून के नियम को लागू कराएं।"

पूर्व ब्यूरोक्रेट्स ने अपने चिट्ठी में इलाहबाद हाई कोर्ट से गुजारिश की है कि वो इस मामले में संज्ञान लेकर "इस घटना के बारे में जानकारी प्राप्त करें और सही तथ्यों को उजागर करे। साथ ही राजनीतिक जुड़ाव का पर्दाफाश करने, सबकी जवाबदेही तय करने और कार्रवाई की सिफारिश करने के लिए अपने देखरेख में न्यायिक जांच का आदेश दें।"

अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने इससे पहले भी कई मसलों पर खुला खत लिखा है। बुलंदशहर हिंसा को लेकर उन्होंने कहा कि एक पुलिस वाले की भीड़ की ओर से की गई हत्या बहुत दर्दनाक है, इससे राज्य की कानून व्यवस्था पर कई तरह के सवाल खड़े होते हैं।

सीएम योगी का इस्तीफा मांगने वालों राज्य के पूर्व अधिकारियों में बृजेश कुमार, सुनील मित्रा और अदिति मेहता समेत कई बड़े अफसरों के नाम शामिल हैं। राज्य के पूर्व अधिकारियों का यह खत ऐसे समय में सामने आया जब बुलंदशहर हिंसा मामले की जांच एसआईटी ने पूरी की है।

अब जब देश के 80 पूरा बड़े अधिकारियों ने इस खुलेआम इस तरह से भक्तो के प्यारे बाबा जी से उनका इस्तीफा मांग लिया और उनको उनके कर्तव्य याद दिलाने की कोशिश की तो , भला भाजपाई चुप कैसे रह सकते थे।   इस पत्र के जवाब में एक भाजपा नेता भी मामले में विवादित बयान दे रहे हैं।

अनूपशहर से भाजपा नेता संजय शर्मा ने इस्तीफे की इस मांग पर जवाब देते हुए कहा-

    "आप केवल सुमित और एक पुलिस अधिकारी की मौत देख रहे हैं, 21 गायों की मौत नहीं। कृपया समझें कि जिन लोगों ने गायों को मार डाला वे असली अपराधी थे। भीड़ ने हिंसा हमारी गौमाता की हत्या के कारण की। जिस प्रदेश में किसान दो से गौवंश के कारण अपनी फसल में नुकसान होने का भी दंश सिर्फ इसलिए झेल रहा है, क्योंकि कम से कम गौमाता तो नहीं कट रही हैं। जो मुख्यमंत्री को गौकशी रोकने कि लिए धन्यवाद देता है वह हिंदू चोरी छिपे गौकशी को कैसे बर्दाश्त करेगा। अगर गोकशी नहीं हुई होती तो यह घटना भी नहीं हुई होती।

बहुत समय से इस बात पर सवाल उठ रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ गायों की मौत को लेकर ज्यादा परेशान है बजाय उन लोगों की मौत के जिन्होंने उन्हें वोट दिए। इन आरोपों को मजबूती इसलिए मिली क्योंकि मुख्यमंत्री ने बुलंदशहर संघर्षों में मानव हताहतों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। इसके बजाय इस क्षेत्र में पाए गए मवेशी शवों की जांच को आदेश दिए।

अब भाजपा नेता के एक बार फिर गोकशी पर जांच को ज्यादा जरूरी बताने के बाद सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या भाजपा के लिए इंसानों की जिंदगी से ज्यादा गायों की जिंदगी जरूरी हो गई है?

अगर आपको इंसान की मौत से ज्यादा जानवरो की मौत पर गंभीर होने वाले पसंद आ रहे है तो यकीन मानिए आपकी संवेदनाओं की हत्या उस आदमी ने कर दिया है। अगर आपको लीनचिंग की समस्या से देश को अवगत कराने वाले देशद्रोही लगते है तो यकीन मानिए आप लीनचिंग में शामिल हत्यारो के प्रबल समर्थक है। अपनी सोच को जबरजस्ती दूसरो पर थोपने का ट्रेंड चल चुका है। जो हमारी सोच से इत्तेफाख नही रखे उसे देशद्रोही साबित करने का ट्रेंड चल चुका है। जो भाजपा और मोदी जी के गलत नीतियों का विरोध करे उनको , मालवीय जी की सेना के द्वारा गद्दार साबित करने का ट्रेंड चल रहा है।

दरअसल ये एक सोच है जो इन लोगों के दिमाग में एक चरस की तरह सन 1925 से लगातार बोया जा रहा है। इन लोगों को इंसानी जिंदगी, इंसानी जरूरते नही हैं। इनके लिए  जरूरत इनके छल, ढोंग, पाखंड और लाभ की है । यह अपने लालच और अपने पाखंड के दिखावे के चक्कर में किसी की जान की परवाह नहीं करते ।और यह जहर हर रोज , सुबह शाखाओं से बांटे जाते हैं। और 1925 से लगातार बांटते आ रहे हैं।  यह जहर देश के कई बड़े लोगों के शरीर में भी जा चुका है।  जिसमें एक खिलाड़ी कहने वाला अभिनेता भी है। तो ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले एक दो पहलवान भी हैं।

जिन्होंने उस समय तो देश का नाम रोशन किया लेकिन वह यह भूल जाते हैं कि देश की समस्याओं पर ध्यान दिलाना भी देश को सही दिशा में ले जाने की तरफ एक कदम है।  किसी व्यक्ति विशेष की इतनी औकात नहीं है कि उसकी बुराई करने से देश की बुराई हो जाए चाहे , वह देश की किसी भी पद पर भी क्यों ना बैठा हो । बुलंदशहर गोकशी मामले में जिस तरह से ना सिर्फ योगी मुख्यमंत्री आदित्यनाथ द्वारा गाए के मुद्दे को ही मुख्य मुद्दा माना गया उसने इस सोच की तरह सोच रखने वाले जिनकी दिमाग में चरस वह बो दिया गया वह आज भस्मासुर की भी बन चुकी है।

भगवान शंकर को एक भस्मासुर संभालने में बहुत दिक्कत हुई थी   आज के समय में तो टेलीफोन से या मोबाइल से एक मिस कॉल करके किसी पार्टी विशेष से जुड़कर के इस समय देश में 11 करोड़ भस्मासुर तैयार हो चुके हैं । और इन भस्मासुर उम्र में से ऑनलाइन भस्मासुर भी बनाए गए हैं। जिस की बागडोर मालवीय जी के हाथ में है। और मालवीय जी जितना जहर दिन रात पैदा करते हैं, यह भस्मासुर इतना जहर दिन रात ऑनलाइन और सोशल मीडिया से लोगों के बीच भरोसे रहते हैं  है।

अभी पिछले दिनों ही सुना की इस बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शाह जी ने यह कहा कि "हम दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी हैं। और हमारे कुल ग्यारह करोड़ सदस्य हैं ।" मुझे एक बात समझ में नहीं आई कि अमित शाह जी जताना क्या चाह रहे थे  ? इस सीधा सा हिसाब है की देश में इस समय 130 करोड़ से ऊपर की आबादी है।  और उसमें से एक 11 करोड़ बीजेपी के सपोर्टर हैं। तो इसका मतलब कि देश में लगभग लगभग 120 करोड़ लोग ऐसे बच जाते हैं जो बीजेपी के सपोर्टर नहीं है या बीजेपी के विरोधी हैं।

मतलब यह 11 करोड़ लोग अपनी सोच को देश की सोच बता कर हम पर हावी हो जाते हैं। यह 11 करोड़ लोग यानी कि लगभग लगभग देश की पूरी आबादी के 9% लोग देश के बचे हुए 91% लोगों पर अपनी सोच थोप कर उन्हें मनमानी तरीके से चलाते हैं । और ना मानने पर उनको भीड़ की हिंसाबके नाम पर साजिश करके मार देते हैं।

और जब इनके आका जो कि भस्मासुर को पाल रहे हैं । जब कभी इनकी मर्जी के हिसाब से नहीं बोलते तो ये भस्मासुर अपने आकाओं को ही खा जाते हैं । जैसा कि हाल फिलहाल में सुषमा स्वराज जी के साथ हुआ । ट्विटर और फेसबुक पर इन भस्मासुर ने उनको इतनी गालियां दी कि उन्हें दुखी होकर इसके लिए पोस्ट लिखना पड़ गया।

ये भीड़ खुद एक भष्मासुर है। इस भीड़ के जनक  ,  भीड़ या ट्रॉल्स को विरोधियों के खिलाफ अमर्यादित रूप से इस्तेमाल करने वाले या भीड़ के लोगो को फॉलो करने वाले खुद इस बात से अनभिज्ञ है की ये भष्मासुर आज नहीं तो कल इन लोगो को भी भस्म कर देगा। और इसका सबसे ताजा उदाहरण विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ हुई गाली गलोच है ।

ट्रोल सेना ने श्रीमती स्वराज को ‘असहनीय’ दर्द दिया तो वे आहत होकर ट्विटर पर सर्वेक्षण कराने लगीं. इस सर्वेक्षण में सोशल मीडिया के यूजरों से पूछा गया कि क्या वे किसी को उस तरह, जैसे सुषमा को किया गया, ट्रोल करने को सही ठहराते हैं?

जैसा कि बहुत स्वाभाविक था, इस सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 1,24,305 में 57 प्रतिशत यूजरों ने कहा कि नहीं, वे ऐसी किसी ट्रोलिंग का समर्थन नहीं करते। इस जीत के बाद ‘भलीमानस’ सुषमा ने पहले तो यह कहा कि लोकतंत्र में मतभिन्नता स्वाभाविक है, फिर ट्रोल करने वालों को उपदेश दिया कि ‘आलोचना अवश्य करो, लेकिन अभद्र भाषा में नहीं। सभ्य भाषा में की गई आलोचना ज्यादा असरदार होती है’।इसपर भी संतोष नहीं हुआ तो लोकप्रिय कवि गोपालदास ‘नीरज’ की पंक्तियां भी ट्वीट कर डालीं

वैसे ये बात जरूर सोचने योग्य है कि ये 43%लोग कौन हैं ? कौन उन 43 प्रतिशत लोगों को कौन फॉलो करता है ? कौन इस तरह की भाषा को सपोर्ट करता है ? कौन इस तरह के लोगों को सह देता है?यह बात किसी से छुपी नहीं है ।

वित्त मंत्री पीयूष गोयल के ऑफिस की Twitter ID करीब 60000 लोगों को फॉलो करती है और 60000 में अधिकतर वही लोग को फॉलो करती है जो अक्सर हर जगह पर गाली गलौज करते हुए पाए जाते है।

जिस भीड़ के ख़तरे के बारे में चार साल से लगातार आगाह किया जा रहा है,  वो भीड़ अपनी सनक के चरम पर है या क्या पता अभी इस भीड़ का चरम और दिखना बाकी ही हो ?कभी गौरक्षा के नाम पर तो कभी बच्चा चोरी की अफवाह के नाम पर किसी को घेर लेना, मार देना, आसान होता जा रहा है। पहले लगता था कि सिर्फ सांप्रदायिक भीड़ है मगर अब आपके सामने कई प्रकार की भीड़ है। अख़लाक़ की घटना से शुरू हई भीड़ की ये सनक अलवर और पलवल होती हुई अब असम से लेकर धुलिया तक फैल चुकी है।

अब ये आपके अपनों को भी चपेट में लेने को आतुर है । विरोध करिये प्रदर्शन करिये सरकार उखाड़ फेंकिये इससे पहले कि आपके सामने आपके अपनों को मौत के घाट उतार दिया जाये और आप कुछ न कर सकें इससे पहले कि आपकी बच्ची को गिद्धों द्वारा नोच लिया जाये और आप कुछ न कर सकें। पहले यह भीड़ सिर्फ सीमित जगह  तक ही रहती थी , लेकिन जब से पार्टियों ने अपने-अपने आईटी सेल लॉन्च किए हैं तब से भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल द्वारा इस तरह की चीजों को और वीभत्स रूप दिया जा रहा है ।

इस देश का संविधान हर किसी को दायरे में रहकर के अपनी बात बोलने की आजादी देता है। भले ही वह किसी के विचार से मेल खाते हो या नही। हमें अपनी बात को रखने का और कहने का पूरा हक भारत के संविधान से मिला हुआ है। लेकिन आज के समय में अपनी बात को अगर हम इन आईटी सेल के भस्मासुरो के पसंद अनुसार नहीं रख पाते हैं तो यह भस्मासुर आपको इतना ट्रोल करेंगे कि आप स्वयं ही जलकर मर जाना चाहेंगे।

आजकल भारतीय जनता पार्टी के ऑनलाइन दुनिया मे सेनाएं हैं। वे अपने सोशल मीडिया के ट्रोल्स, जिनको इसके लिए पैसे मिलते हैं, उनको योद्धा कहते हैं। उनकी मानसिकता योद्धा वाली ही है, वे लोगों को कुचलना, दबाना चाहते हैं, एक तरह से हिंसा पर उतरना चाहते हैं। इसमें सबसे ज्यादा जो परेशानी की बात है, जो मुझे डर लगता है कि अभी तो आॅनलाइन लिंचिंग हो रही है, लेकिन इसके चलते जमीन पर दंगे भी हो सकते हैं, मुजफ्फरनगर में हुआ भी। कई ऐसे उदाहरण  दिए भी गए हैं जहां लोग नकली वीडियो और झूठे तथ्यों के आधार पर लोगों को भड़काने की कोशिश की।

दिल्ली में एक डॉक्टर के मर्डर के बारे में हैदराबाद से एक आदमी ने ट्वीट किया। वे भाजपा के समर्थक हैं और उनकी काफी बड़ी फॉलोइंग है। उन्होंने डॉक्टर के मर्डर को सांप्रदायिक रंग दिया कि होली के दिन उन्होंने मुसलमान पर रंग डाला और ये मुसलमानों को पसंद नहीं आया इसलिए उनका मर्डर हो गया है।दिल्ली पुलिस को बताना पड़ा कि ये एकदम बकवास बात है।

ट्रोल्स के ऊपर बड़े नेताओं और पार्टियों का वरदहस्त है। इसमें भी सबसे ज्यादा मैं बीजेपी को दाद देना चाहूंगा कि उन्होंने सबसे पहले इसे अपनाया। नरेंद्र मोदी खुद बहुत ही ज्यादा टेक्नोसेवी हैं। वे ट्विटर को लेकर बहुत आॅब्सेस्ड (आसक्त) हैं।राम माधव ने बताया कि कैसे वे खुद अपनी टीम के साथ शाखा से शाखा जाते थे, उनको समझाते थे कि कैसे उनको इस्तेमाल किया जाए।

आरएसएस जो पूरे संघ परिवार का मुखिया है, उनको दो चीजों ने अपील किया। एक तो उनका हीनताबोध कि उनकी आवाज मेनस्ट्रीम मीडिया में हमेशा दबाई जाती है और दूसरा गोपनीयता। मतलब कोई जान नहीं सकता कि आप कौन हैं, कहां रह रहे हैं, क्या कर रहे हैं।मुझे ये दोनों चीजें लगती हैं कि एक तो उनका यह बोध कि हमारी आवाज दबाई जाती है उसमें इसने भी अपील किया। अब वे इसका इस्तेमाल करके लोगों पर हमला कर रहे हैं।

उन्होंने बहुत मेहनत की इस पर। पहले उन्होंने डिजिटल शाखाएं बनाईं, ऐसे शाखाएं जिसमें महिलाएं भी जाती हैं। संघ में महिलाओं को आने की अनुमति नहीं है, लेकिन डिजिटल शाखा में है। अहमदाबाद हो, बेंगलुरु हो या गांधीनगर, वहां पर जैसे वीपीओ होता है, उस तरह इनके बड़े बड़े आॅपरेशन हैं, जहां से 24 घंटे ट्रोलिंग होती है।

महिलाओं को ट्रोल करने वालों पर क्या कार्रवाई, इस बारे में आपको एक लाइन में बताता हूं। जो लोग कहते हैं कि उनके सिर पर नरेंद्र मोदी का हाथ है, वे खुद कहते हैं कि ‘हम भाग्यवान हैं कि हमें नरेंद्र मोदी फॉलो करते हैं’, ऐसे लोग ये सब करते हैं। तो जब सरकार उनकी है, प्रधानमंत्री उनके हैं तो क्या होगा?

दक्षिणपंथी हिंदू उग्रवाद के बढ़ते ज्वार के भारत के सबसे निडर आलोचकों में से एक गौरी लंकेश को चुप करा दिया। 55 वर्षीय गौरी लको उनके गृह राज्य कर्नाटक में पूरे आधिकारिक सम्मान के साथ दफनाया गया, राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उनकी हत्या को '' लोकतंत्र पर हत्या '' करार देते हुए इसकी निंदा की। ट्विटर पर हैशटैग #GauriLaesheshMurder टॉप ट्रेंडिंग टॉपिक बन गया और लोग। पूरे भारत में उनके जीवन पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।लेकिन उस दिन पूर्ण प्रदर्शन पर भारतीय राजनीति का एक और गहरा पक्ष था।
जिसमे एक किसी दाधीच नाम वाले व्यक्ति ने ट्वीट किया-

              "एक कुतिया की मौत एक कुत्ते की मौत हो गई और अब सभी पिल्ले एक ही धुन में झूम रहे हैं,"।

हिंदी में सूरत शहर के एक कपड़ा व्यापारी, निखिल दाधीच ने ट्वीट किया। हालांकि दधीच का अपमानजनक ट्वीट शायद ही अनूठा था । यह उस दिन ट्विटर पर ट्रोल द्वारा पोस्ट की गई घृणित टिप्पणियों की बाढ़ में से एक था । यह एक महत्वपूर्ण सम्मान में खड़ा था। दाधीच 1,859 ट्विटर उपयोगकर्ताओं में से एक है,जिनको खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फॉलो करते है। यानी की ट्विटर लर मोदी जी उनका अनुसरण करते है। यानी हम ये कह सकते है कि शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को भी गाली गलौच और बतमीजी में इंटरेस्ट है ?

30 जून को सोशल मीडिया डे के तौर पर मनाया गया। इस दौरान कांग्रेस ने ‘अनफॉलो ट्रोल्स चैलेंज’ की शुरूआत की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह चैलेंज दे डाला। कांग्रेस ने पीएम मोदी से कहा कि वह ऐसे लोगों को सोशल मीडिया (ट्विटर) पर फॉलो करना बंद करें जो लोगों को इस वर्चुअल वर्ल्ड में गाली देते हैं, उन्हें मानसिक तौर पर प्रताड़ित करते हैं और तरह-तरह की धमकियां देते हैं।कांग्रेस ने केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को भी इस चैलेंज के लिए नॉमिनेट किया।

कांग्रेस पार्टी की नेशनल मीडिया कॉर्डिनेटर राधिका खेरा ने अनफॉलो ट्रोल्स चैलेंज के तहत पीएम मोदी और पीयूष गोयल को यह चैलेंज दिया। अनफॉलो ट्रोल्स चैलेंज हैश टैग के साथ उन्होंने लिखा, ‘इस सोशल मीडिया डे पर हम सभी सोशल मीडिया यूजर्स ये प्रतिज्ञा लेते हैं कि इस वर्चुअल वर्ल्ड को साफ-सुथरा और गालियों से रहित बनाए रखेंगे। गाली-गलौज करने वाले और लोगों को टारगेट करने वालों ट्रोल्स को अनफॉलो करने के लिए दो लोगों को नॉमिनेट करना शुरू कीजिए। लेकिन जैसा कि पहले से लगभग सबको मालूम था मोदी जी या उनके मंत्री ने ऐसा कुछ नही किया न ही उनके कान पर जूं तक रेंगी।

ध्रुव सक्सेना, मनीष गांधी, मोहित अग्रवाल, बलराम पटेल, ब्रजेश पटेल, राजीव पटेल, कुश पंडित, जितेंद्र ठाकुर, रितेश खुल्लर, जितेंद्र सिंह यादव, त्रिलोक सिंह। ये सारे नाम है उन लोगों को जिन्हें मध्य प्रदेश के एंटी टेरर स्कॉड ने पाकिस्तानी की ख़ुफ़िया एजेंसी के लिए काम करने के आरोप में पकड़ा है। गनीमत है कि इनमें से कोई जेएनयू का नहीं है और न ही मुसलमान है वर्ना आज मीडिया में तूफान मच रहा होता और इसके बहाने यूपी के बड़े वाले वोट बैंक को एकजुट होने के लिए ललकारा जाता।

अगर इन नामों की जगह मुस्लिम नाम होते तो मीडिया में हंगामा मच रहा होता। ट्रोल सारा काम छोड़ कर बवाल मचा चुके होते। तूफान मचाने की राजनीति का एक ही मकसद है कि किसी तरह हिन्दू मुस्लिम गोलबंदी करो और वो गोलबंदी एक पार्टी के हक में करो। जहां कहीं दंगा हो, वहां से ऐसा कोई किस्सा चुन लो और फिर सोशल मीडिया से लेकर मीडिया में हंगामा करो, सवाल पूछो कि फलां कहां हैं, वो चुप क्यों हैं। अपनी सरकारों से नहीं पूछेंगे, दो चार पत्रकार से पूछकर ये बराबरी और इंसाफ मांगते हैं। एकाध ट्वीट अपने मंत्री को ही कर देते कि आप क्यों नहीं बोल रहे हैं। जांच क्यों नहीं हो रही है। आए दिन यही होता रहता है।

इसी तरह एनडीटीवी इंडिया के पत्रकार रवीश कुमार को ये भस्मासुर ट्रॉल्स निशाने पर लेते रहते हैं । यह तो सभी रविश कुमार को मां बहन की गालियों से लेकर , उनके जान से मारने की धमकी तक, और उनकी बीवी और उनकी बेटी का बलात्कार तक करने की धमकी दे देते हैं। और खुलेआम यह ट्रॉल्स के लोग वीडियो बनाकर के रवीश कुमार को व्हाट्सएप करते हैं । और उनको जान से मारने की धमकी देते हैं।

रवीश कुमार यह सब अपने शो प्राइम टाइम में बकायदा उन लोगो की वीडियो के साथ दिखाते हैं। लेकिन उन लोगों पर कोई कार्यवाही नहीं होती है। इसके साथ नहीं रवीश कुमार ने अपने साथ हुए ही इन हरकतों और गाली-गलौज और जान से मारने की धमकी ओं को लेकर के मोदी जी को भी एक पत्र लिखा । और उस पत्र में उन्होंने यह भी बताया कि किस तरह भाजपा की आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने भी रवीश कुमार की एक फर्जी और एडिटेड वीडियो पोस्ट करके लोगों के बीच उनके प्रति नफरत पैदा करके उनको गाली दिलवाई।

पत्रकार रवीश कुमार ने सोशल मीडिया के जरिए ट्रोल्स को जवाब दिया है। उन्होंने कहा है कि जो उनका मजाक बना रहे हैं, वे उनका नहीं बल्कि अपना मजाक बना रहे हैं। वह किसी को हराते या जिताते नहीं हैं। वह साहस के साथ अपना नजरिया सबके सामने रखते हैं, क्योंकि लाखों में एक रवीश कुमार होने से बोलने का हौसला आता है। बता दें कि रवीश लंबे समय से सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। टि्वटर और फेसबुक पर अपनी बेबाक राय को लेकर अक्सर ट्रोल्स के निशाने पर आते हैं। ऐसे में सोशल मीडिया का एक धड़ा उन पर यह आरोप लगाता है कि वह एक पक्षीय हो जाते हैं। जबकि रवीश इन आरोपों को लेकर समय-समय पर अपनी राय रखते हैं।

हाल ही में सोशल मीडिया पर वे ट्रोल्स के निशाने पर आए थे, जिसका सोमवार को उन्होंने जवाब दिया है। फेसबुक पोस्ट के जरिए उन्होंने कहा है, “जो मेरा मजाक उड़ा रहे हैं। मैं उतना कहूंगा कि आप मेरा नहीं अपना ही मजाक उड़ा रहे हैं। मैं सवाल करता हूं। किसी को हराता या जिताता नहीं। मुझमें अपना नजरिया रखने का साहस है। एक ताकतवर और लोकप्रिय नेता के सामने खड़े होकर बोल देने के लिए जो हौसला चाहिए वह मुझ में है।“यह हौसला जेब में दस लाख करोड़ के होने से नहीं आता बल्कि लाखों में एक रवीश कुमार होने से आता है। अपनी नौकरी, अपना चैन सबकुछ दांव पर लगा कर लोगों के सवाल के साथ खड़ा होना सबके बस की बात नहीं। सूरत के व्यापारी जानते हैं। उनके कभी नहीं कहा कि आप किसे वोट करेंगे। उन्होंने तकलीफ बताई तो उनका बात उठा दी। यही मेरा काम है और यही करता रहूंगा।

समस्या सिर्फ इन ट्रॉल्स की वजह से ही नहीं है ।इइन ट्रॉल्स के इस तरह गाली गलौच करने के पीछे का मुख्य कारण यह है कि जब प्रधानमंत्री ऐसे कमेंट करने वालों और ऐसी गाली गलौज करने वाले को फॉलो करते हैं ,तो ऐसे लोगों को पूरा हौसला मिलता है। जब मुख्यमंत्री इंसान की मौत को छोड़कर के एक गाय की मौत पर चिंता करते हैं । तब इस तरह के लोगों की मानसिक भावनाओं को और बल मिलता है। और यह उसका विरोध करने पर लोगों को दिइने उत्साह से गाली गलौज करते हैं ।

यकीन मानिए ऑनलाइन ट्रॉल्स वाले लश्कर-ए-तैयबा जमात-उद-दावा , जैश ए मोहम्मद के आतंकवादियों के बराबर ही हैं । या उन से बढ़कर हैं । उनके हाथ में जो हथियार है वह उससे लोगों को मारते हैं। और इन ऑनलाइन ट्रॉल्स वालों के हाथ में जो हथियार है ये उससे लोगों को मारने की कोशिश करते हैं। तो फिर क्या हुआ दोनों में ?

कुछ नहीं दोनों एक जैसे ही हैं म और यकीन मानिए बीजेपी के ऑनलाइन ट्रॉल्स के लोगों के हाथों में अगर एके-47 पकड़ा दी जाए तो यह लोग लश्कर-ए-तैयबा, जमात-उद-दावा , जैश ए मोहम्मद के आतंकवादियों से भी ज्यादा कहीं ज्यादा आतंक मचा देंगे देश में। कही ज्यादा मार काट करेंगे , कही ज्यादा निर्दयता दिखाएंगे , और कही ज्यादा लोगो को मौत के घाट उतार देंगे। और यकीन मानिए इनका इंटेंसन भी उन आतंकवादियों से कही ज्यादा खतरनाक होगा।

Comments

Popular Posts