भारत और पाकिस्तान एक साथ ही आज़ाद हुए । आज के समय दोनो देशों की स्थिति और हालात हम सबके सामने है। आज़ादी के समय बहुतो ने तो मान लिया था कि भारत एक देश के तौर ओर सफल नही हो पायेगा, जैसा कि आज का पाकिस्तान है। ऐसे लोग भी जब नेहरू की ओर देखते, तो कहते कि इस आदमी के रहते भारत की उम्मीदें, उसकी संभावनाएं नहीं मरेंगी। लेकिन आधुनिक भारत में सारी परिस्थितियां बदल चुकी गई।  अब नेहरू देश के लोगो की नज़र में विलेन बना दिये गए है। ।इसके पीछे दशकों तक नेहरू के खिलाफ फैलाए गए झूठों का बहुत बड़ा हाथ है। खास कर हमारे परम सच्चे प्रधानमंत्री माननीय श्री मोदी जी।

हमारे देश का जो इतिहास है वही अपने आप में एक बहुत बड़ा घनचक्कर है।  हमारे देश के इतिहास ने मुख्य रूप से एक सख़्श के साथ बहुत ही बड़ा अन्याय किया है।  जो है पंडित नेहरू ।  इस इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश करने वाले लोगों ने पंडित नेहरु के बारे में इतना झूठ पढ़ाया की,  वह कब हमारी नजरों में हीरो से विलेन बन गए हमें पता ही नहीं चला। 

जवाहर लाल नेहरू जब तक जिंदा थे, बहुत बड़े जननेता थे। उनकी लोकप्रियता ऐसी थी कि आप शायद कल्पना भी न कर सकें। विदेशों में भी नेहरू की बहुत धाक थी। भारत की आजादी के बाद दुनिया के कई देशों को शक था। कि क्या आजाद होने के बाद भारत अपने दम पर जी लेगा? सर्वाइव कर लेगा?

भारत के साथ आजाद हुए पाकिस्तान को देखते हुए ये सवाल ज्यादा उठता था। कइयों ने तो मान लिया था कि भारत एक मुल्क के तौर पर फेल हो जाएगा। ऐसे लोग भी जब नेहरू की ओर देखते, तो कहते कि इस आदमी के रहते भारत की उम्मीदें, उसकी संभावनाएं नहीं मरेंगी। विदेशों में अब भी नेहरू की बड़ी इज्जत है। लेकिन भारत
में स्थितियां बदल गई है।  अब नेहरू को लेकर विवाद ज्यादा हैं। बहुत लोग जानते ही नहीं कि नेहरू ने देश के लिए क्या किया

लोग आज की कांग्रेस और उसके नेताओं को देखकर नेहरू को जज करते हैं। इसके पीछे दशकों तक नेहरू के खिलाफ फैलाए गए झूठों का बहुत बड़ा हाथ है। और इसमें सबसे बड़ा हाथ अब तक के भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का है उन्होंने नेहरू के बारे में मनगढ़ंत बातें इतनी ज्यादा बोली है हरमन से इतना झूठ बोला है वह बातें सच लगने लगी हैं पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू जी के बारे में बोलते हुए कई बार मोदी जी सारी सीमाएं लांघ जाते हैं उन्हें ना तो भाषा का ना तो पद की गरिमा का कोई लिहाज रहता है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में एक चुनावी जनसभा को संबोधित कर विपक्षी पार्टी कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा। लेकिन इस दौरान पीएम मोदी अपने संबोधन में कांग्रेस पर निशाना साधते-साधते भाषा की सारी मर्यादाएं तोड़ते हुए नजर आए। पीएम मोदी ने अपने संबोधन के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर निशाना साधते-साधते उनके चार पुश्तों तक तुम-तड़ाम करते हुए पहुंच गए।खैर वो तो उनकी पुरानी शिक्षा का असर है। हाफ पैंट पहन कर प्राप्त की गई शिक्षा का कही तो उपयोग करना होगा ही ।

मोदी जी ने  राहुल गांधी पर हमला बोलते हुए उनसे पूछा कि क्या आपके दादा-दादी या नाना-नानी ने छत्तीसगढ़ में पानी का पाइप बिछाया है, जिसे मुख्यमंत्री रमन सिंह ने उखाड़ दिया हो। पीएम ने पूछा, “चार पीढ़ी तक तुम (राहुल गांधी और कांग्रेस) लोग बैठे थैतुमने क्यों नहीं किया? ये तो जवाब बताओं?”

राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “ये बताओं कि क्या कहीं पानी की पाइप लाइन आप लगाकर गए थे क्या? आपके (राहुल गांधी) दादा-दादा और नाना-नानी लगाकर गए थे क्या? और रमन सिंह (छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री) ने आकर उखाड़र फेंक दिया क्या? क्यों झूठ फैला रहे हो? क्यों मुर्ख बना रहे हो ?

उसी रैली मे मोदी जी ने कांग्रेस पर परिवारवाद की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा था कि “मैं चुनौती देता हूं कि परिवार से बाहर के किसी अच्छे नेता को 5 साल के लिए पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाए, तब मैं मानूंगा कि पंडित नेहरु ने सही मायनों में लोकतांत्रिक व्यवस्था बनायी थी।” दरअसल कुछ दिनों पहले कांग्रेस सांसद शशि थरुर ने अपने एक बयान में कहा था कि “पंडित नेहरु ने देश में लोकतंत्र की मजबूत नींव रखी, तभी एक ‘चायवाला’ देश का प्रधानमंत्री बन सका है।” अब पीएम मोदी के छत्तीसगढ़ में दिए गए बयान पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने  जवाब दिया

पी. चिदंबरम ने पीएम मोदी की चुनौती का जवाब देते हुए ट्वीट किया कि “पीएम मोदी की याददाश्त के लिए बता दूं कि 1947 से कांग्रेस अध्यक्षों में आचार्य कृपलानी, पट्टाभि सीतारमैया, पुरुषोत्तम दास टंडन, यूएन धेबर, संजीवा रेड्डी, संजीवैय्या, कामराज, निजलिंगप्पा, सी।सुब्रमण्यन, जगजीवन राम, शंकर दयाल शर्मा, डीके बरुआ, ब्रह्मानंद रेड्डी, पीवी नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी शामिल हैं। चिदंबरम ने एक दूसरे ट्वीट में लिखा कि मैं पीएम मोदी और उनके समर्थकों का शुक्रगुजार हूं कि वह इस बात की चिंता करते हैं कि कांग्रेस का अध्यक्ष चुना जाता है।क्या वह इसका आधा समय भी नोटबंदी, जीएसटी, रफाल, सीबीआई और आरबीआई के मुद्दों पर बोलने में बिताएंगे?”

दरसअल ये सब कुछ नेहरू जी के नाम पर हो रहा है । मोदी जी अभी की सारी समस्यायों का जिम्मेदार नेहरू को बता कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। उन्हें इस बात की जरा भी शर्म नही आती की एक आदमी जो 50 साल पहले मर चुका है उसे कब कोसने से क्या मिलने वाला है। शायद वो हर बार ये भूल जाते है कि वो देसबके सबसे ऊंचे संवैधानिक पद पर बैठे है। उनकी उस पद की गरिमा का कोई भी ख्याल नही है। हम तो चाहते है की लोग मोदी जी को एकदम उन्ही को भाषा मे जवाब दे। खामखा क्यों शालीनता और पद की गरिमा का ख्याल रखे। जबकि उनको खुद इसकी परवाह नही।

कभी नेहरू जी के पूरे खानदान को अफगानी बताया गया , तो कभी ईरानी बताया गया , तो कभी उनके परदादा को मुगलों की सेना में फौजदार बताया गया या,  कोतवाल बताया गया ।  जो की सच्चाई यह थी कि नेहरू जी का परिवार कश्मीर का एक कौल परिवार, जिसे मुगल बादशाह ने दिल्ली बुला लिया। ये 18वीं सदी के शुरुआती सालों की बात है। हिंदुस्तान पर मुगलों की हुकूमत थी। जैसे आज दिल्ली देश का केंद्र है, वैसे ही उस समय भी दिल्ली का दरबार मुल्क का सेंटर हुआ करता था। जब की हम बात कर रहे हैं, तब गद्दी पर राज था बादशाह फर्रुखसियर का। वही बादशाह, जिसने 1717 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को मुगल साम्राज्य के अंदर रहने और व्यापार करने की इजाजत दी थी ।

नेहरू के पूर्वजों के पर या परिवार  के मुखिया थे राज नारायण कौल।1710 में उन्होंने कश्मीर के इतिहास पर एक किताब लिखी- तारिख़ी कश्मीर। इस किताब की बड़ी तारीफ हुई। ये वाहवाही कश्मीर से निकलकर दिल्ली दरबार तक पहुंची।तब राजा लोग पढ़े-लिखे लोगों को अपने दरबार में जगह देते थे। तो बादशाह भी राज नारायण के काम से बड़े प्रभावित हुए थे। इसलिए उन्होंने राज नारायण कौल को दिल्ली आने और यहीं बस जाने का न्योता दिया।

राज नारायण कश्मीर छोड़कर दिल्ली आ गए। फर्रुखसियर ने उन्हें थोड़ी जागीर और चांदनी चौक में एक हवेली दे दी। इसके तकरीबन दो साल बाद ही फर्रुखसियर मारा गया। जिस बादशाह ने राज नारायण को दिल्ली बुलाया, वो खुद कत्ल हो गया। बादशाह भले चला गया हो, मगर राज नारायण को मिली हवेली सलामत रही।

जो हवेली राजा ने कॉल परिवार को दिया।
उस हवेली का किस्सा बड़ा दिलचस्प है। क्योंकि इसी हवेली से जुड़ा है कौल परिवार के नेहरू परिवार में बदल जाने का रहस्य।हुआ यूं कि इस हवेली के पास एक नहर बहती थी। आपने शायद देखा-सुना हो। गांवों में लोग कहते हैं।किसी के घर के पास नीम का बड़ा पेड़ हो, तो लोग उस घर को नीम वाला घर बोलने लग जाते हैं। इसी तरह चांदनी चौक में राज नारायण कौल के पड़ोसी उन्हें नेहरू पुकारने लगे। नेहरू पुकारने का नाम था।धीरे-धीरे ये उस कौल परिवार की पहचान बन गया। वो नेहरू के नाम से ही जाने जाने लगे।

राज नारायण कौल के सिर से बादशाह का हाथ उठ चुका था। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया का किसी हिंदुस्तानी को अपना वकील बनाना, ये उस समय के हिसाब से यकीनन बहुत बड़ी बात रही होगी। इसीलिए लक्ष्मी नारायण के टाइम से लेकर आगे तक की चीजें मौजूद हैं। लक्ष्मी नारायण के बेटे थे गंगाधर नेहरू। 1857 के गदर के समय वो दिल्ली के कोतवाल थे। गंगाधर नेहरू जो कि पंडित जवाहर लाल नेहरू के दादा थे  गंगाधर नेहरू और उनकी कोतवाली के बारे में एक दिलचस्प जानकारी हमें दिल्ली पुलिस की वेबसाइट पर मिली। वहां लिखा है-
1857 का गदर कुचलने के बाद अंग्रेजों ने कोतवाल का पद खत्म कर दिया। दिलचस्प बात ये है कि 1857 में भारत की आजादी का पहला संग्राम शुरू होने से ठीक पहले गंगाधर नेहरू को दिल्ली का कोतवाल नियुक्त किया गया था। चूंकि उनके बाद ये पद ही खत्म कर दिया गया, इसलिए वो दिल्ली के आखिरी कोतवाल थे।गंगाधर नेहरू पंडित मोतीलाल नेहरू के पिता
और पंडित जवाहरलाल नेहरू के दादा थे।

1857 के गदर के वक्त दिल्ली में बहुत मार-काट हुई। हजारों लोगों को जान बचाकर भागना पड़ा।भागने वालों में गंगाधर नेहरू का परिवार भी था।ये लोग भागकर आगरा चले गए। गंगाधर और उनकी पत्नी इंद्राणी के परिवार को पांच बच्चे हुए।दो बेटियां- पटरानी और महारानी। और तीन बेटे- बंसीधर, नंदलाल और मोतीलाल।

गंगाधर और इंद्राणी की सबसे छोटी औलाद थे मोतीलाल नेहरू। मोतीलाल को पैदा होने में तीन महीने बचे थे, जब उनके पिता गंगाधर की मौत हो गई। पिता की मौत के बाद परिवार को संभाला बड़े बेटे बंसीधर ने। वो आगरा कोर्ट में मुंशी का काम करते थे। आगे चलकर वो जज भी बने। बंसीलाल से छोटे भाई, यानी नंदलाल स्कूल मास्टर थे। उन दिनों आगरा के पास एक छोटी सी रियासत थी- खेत्री। नंदलाल आगे चलकर खेत्री के राजा के मंत्री बन गए। नंदलाल ने वकालत की भी पढ़ाई की। ये वकालत इस समय तक जैसे नेहरू परिवार की खानदानी परंपरा बन गई थी।  1883 में मोतीलाल कानून की डिग्री लेकर भारत लौट आए। मंझले भाई नंदलाल के साथ मिलकर वो बतौर वकील प्रैक्टिस करने लगे।

मोतीलाल की दो शादियां हुई थीं। पहली पत्नी बच्चे को जन्म देते समय गुजर गईं।उनका बेटा रतनलाल भी तीन साल की उम्र में चल बसा।फिर 25 बरस की उम्र में मोतीलाल ने दूसरी शादी की। पत्नी का नाम था स्वरूप रानी। शादी के वक्त स्वरूप की उम्र थी 14 साल। इन्हीं मोतीलाल और स्वरूप रानी के बेटे थे जवाहरलाल नेहरू। इनकी बहन का नाम था विजयालक्ष्मी पंडित। परिवार को ले जाकर इलाहाबाद में बसाने का काम भी मोतीलाल नेहरू ने ही किया। शुरुआत में वो इलाहाबाद में 9, ऐल्गिन रोड पर रहे।मोतीलाल के पास पैसों की कोई कमी तो थी नहीं। तो सन् 1900 में उन्होंने 1 चर्च रोड पर एक घर खरीदा।  मोतीलाल और स्वरूप रानी ने अपने इस घर का नाम रखा- आनंद भवन। फिर आगे चलकर इस घर के पास एक और घर बनाया गया। पुराने वाले ‘आनंद भवन’ को ‘स्वराज भवन’ का नाम दे दिया गया। नया घर ‘आनंद भवन’ कहलाने लगा। मोतीलाल ने अपना वो ‘स्वराज भवन’ देश के नाम कर दिया।

नेहरू बैरिस्टर थे। खूब अमीर परिवार था उनका। ऐसा परिवार, जिन्हें खानदानी रईस कहा जाता है। गांधी के असर में नेहरू फ्रीडम स्ट्रगल में शामिल हुए। 1922 में पहली बार जेल जाने और 1945 में आखिरी बार रिहा होने के बीच वो कुल नौ बार जेल गए। सबसे कम 12 दिनों के लिए। सबसे ज्यादा 1,041 दिनों तक। ऐसा नहीं कि राजनीतिक बंदी होने के नाते जेल में बड़ी अच्छी सुविधाएं मिलती हों. वो अंग्रेजों की जेल थी और उनकी सजा में सश्रम कारावास भी था. इन सबके बारे में थोड़ा-थोड़ा बताते हैं आपको-

पहली बार जेल में पंडित नेहरू 6 दिसंबर, 1921 से 3 मार्च, 1922 तक रहे। नवंबर 1921 में प्रिंस ऑफ वेल्स का भारत दौरा हुआ।कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने प्रिंस के दौरे का बहिष्कार किया।ब्रिटिश हुकूमत कांग्रेस और खिलाफत कार्यकर्ताओं पर सख्ती दिखाने लगी। गिरफ्तारियां होने लगीं।प्रिंस जब इलाहाबाद पहुंचा, तो सड़कें-गलियां एकदम वीरान पड़ी थीं।इलाहाबाद में थे नेहरू।वहां प्रिंस के बहिष्कार को कामयाब बनाने में उनका बड़ा हाथ था।6 दिसंबर को पुलिस ‘आनंद भवन’ पहुंची और नेहरू को गिरफ्तार कर लिया गया।उनके पिता मोतीलाल नेहरू भी अरेस्ट किए गए।नेहरू पर सेक्शन 17 (1) के तहत केस चला। उन्हें छह महीने जेल और 100 रुपया जुर्माना भरने की सजा मिली। नेहरू ने जुर्माना देने से इनकार कर दिया।उन्हें लखनऊ डिस्ट्रिक्ट जेल में बंद किया गया। 3 मार्च, 1922 को 87 दिन जेल की सजा के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। नेहरू रिहा नहीं होना चाहते थे. उन्होंने कहा था-

   "मैं नहीं जानता कि मुझे रिहा क्यों किया जा रहा है।मेरे पिता को अस्थमा है।वो और मेरे सैकड़ों साथी अभी भी जेल में हैं। मैं बस इतना ही कहना चाहता हूं कि करो या मरो।आजाद भारत के लिए संघर्ष जारी रखो।जब तक आजादी नहीं मिल जाती, चैन से नहीं बैठना है।

दूसरी बार जेल में 11 मई, 1922 से 31 जनवरी 1923 तक रहे। इस बार कुल 266 दिन बिताए उन्होंने जेल में। पहले 11 मई, 1922 से 20 मई, 1922 तक उन्हें इलाहाबाद डिस्ट्रिक्ट जेल में रखा गया। अपनी पहली जेल की सजा काटकर बाहर आने के बाद नेहरू विदेशी कपड़ों के बहिष्कार की मुहिम में जुट गए। नेहरू गिरफ्तार यूं हुए कि 11 मई को वो अपने पिता से मिलने जेल गए थे। वहां उल्टा उनको ही गिरफ्तार कर लिया गया।फिर इलाहाबाद भेजकर वहां की जिला जेल में डाल दिया। उन्हें 18 महीने सश्रम कारावास की सजा हुई।जेल भेजे जाते समय नेहरू ने कहा था-

"भारत को आजाद कराने की इस लड़ाई में शामिल होना सम्मान की बात है।महात्मा गांधी के नेतृत्व में काम करना दोहरे गर्व की बात है। अपने प्यारे देश के लिए तकलीफ उठाने से अच्छा क्या होगा। हम भारतीयों के लिए इससे ज्यादा भाग्य की बात और क्या हो सकती है कि या तो अपने देश के लिए संघर्ष करते हुए मर जाएं या फिर हमारा ये सपना पूरा हो जाए।"

पंडित नेहरू तीसरी बार जेल में 22 सितंबर, 1923 से 4 अक्टूबर, 1923 तक रहे।ये सबसे छोटी 12 दिन की सजा थी।  सजा का बैकग्राउंड ये था कि दो रियासतें थीं- नाभा और पटियाला। दोनों में ठनी हुई थी।इसका फायदा उठाते हुए ब्रिटिश सरकार ने नाभा के राजा को गद्दी से हटा दिया। रियासत चलाने के लिए अपना आदमी नियुक्त कर दिया। इससे सिख भड़क गए। सिखों के कई जत्थे नाभा पहुंचे।अंग्रेजों ने उन्हें बुरी तरह पीटा। फिर अरेस्ट करके जंगलों में छोड़ दिया। ये सारी खबर मिलने पर नेहरू यहां के लिए निकले। पुलिस ने उनसे नाभा से निकल जाने को कहा। मगर नेहरू और उनके साथी नहीं माने तो पुलिस ने उन्हें जेल में डाल दिया गया। अपनी आत्मकथा में नेहरू ने इस सजा के बारे में लिखा है-

मुझे, मेरे साथी ए टी गिडवानी और के संथानम को बहुत बुरी स्थितियों में नाभा जेल के अंदर रखा गया था। जेल की कोठरी बेहद गंदी थी।छोटी सी वो कोठरी नमी और सीलन से भरी थी। छत इतने नीचे था कि हाथ से छू सकते थे।रात को हम फर्श पर सोते थे। सोते हुए जब कोई चूहा मेरे चेहरे पर से गुजरता, तब अचकचाकर मेरी नींद खुल जाती थी।"

चौथी बार जेल में 14 अप्रैल, 1930 से 11 अक्टूबर, 1930 के बीच रहे। इस बार नेहरू कुल 181 दिनों तक इलाहाबाद की नैनी जेल में बंद रहे।  फरवरी 1930 में कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने गांधी को सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने की इजाजत दे दी। गांधी अपने कुछ सहयोगियों के साथ डांडी यात्रा पर रवाना हुए। नेहरू इस समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे। वो और उनके सहयोगी आंदोलन का विस्तार करने में जुटे थे। इस आंदोलन ने जिस तरह से लोगों को एकजुट किया, उससे अंग्रेज सरकार परेशान हो गई।उन्होंने सख्ती काफी बढ़ा दी। 14 अप्रैल, 1930 को नेहरू रायपुर जा रहे थे। वहां हिंदी प्रॉविंशल कॉन्फ्रेंस का तीसरा सेशन था। रास्ते में ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें छह महीने जेल की सजा मिली।

पंडित नेहरू पांचवीं बार 19 अक्टूबर, 1930 से 26 जनवरी, 1931 तक जेल में रहे।  किसानों को एकजुट कर रहे थे, कि वो अंग्रेज सरकार को टैक्स न दें। ऐसे ही एक अभियान के दौरान उन्हें अरेस्ट कर लिया गया। कई मामले चले उन पर. राजद्रोह का मुकदमा भी चला। अलग-अलग मामलों में मिली सजा को मिलाकर कुल दो साल की सश्रम कैद हुई।  जुर्माना न चुकाने पर पांच महीने की सजा और।इसी बार में उन्होंने इंदिरा को कई चिट्ठियां लिखीं, जो आगे चलकर ‘ग्लिम्पसेज़ ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री’ में छपीं।अपने केस के ट्रायल के दौरान नेहरू ने कहा था-

आजादी-गुलामी और सच-झूठ के बीच कोई समझौता नहीं हो सकता है। हमें ये मालूम चल चुका है कि खून बहाकर और तकलीफें सहकर ही आजादी हासिल होगी। देश की आजादी के इस महान संघर्ष में सेवा करना मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी है।मैं प्रार्थना करता हूं कि मेरे देश के लोग बिना थके ये संघर्ष जारी रखेंगे। तब तक, जब तक कि हमें कामयाबी नहीं मिल जाती। जब तक कि हमें अपने सपनों का भारत नहीं मिल जाता है।आजाद भारत जिंदाबाद।"

छठी बार जेल का समय 26 दिसंबर, 1931 से 30 अगस्त, 1933 तक रहा। इस बार कुल 614 दिन जेल में रहे नेहरू। उन्हें इस जेल से उस जेल शिफ्ट किया जाता रहा। पहले नैनी सेंट्रल जेल, फिर बरेली डिस्ट्रिक्ट जेल, फिर देहरादून जेल, फिर वापस नैनी सेंट्रल जेल। नेहरू किसानों से अपील कर रहे थे कि वो जमींदारों को लगान देना बंद कर दें। तब तक, जब तक कि सरकार किसानों की परेशानियां दूर नहीं करती।इसे दबाने के लिए यूनाइटेड प्रोविंस की सरकार अध्यादेश ले आई। कहा, किसान अगर लगान देने से इनकार करता है तो ये अपराध माना जाएगा। नेहरू को इलाहाबाद से बाहर न निकलने और किसी भी तरह की राजनैतिक गतिविधि में शामिल न होने का आदेश दिया गया। मगर नेहरू नहीं माने।  नतीजा, उन्हें अरेस्ट कर लिया गया। दो साल के सश्रम कारावास और 500 रुपया जुर्माना भरने की सजा सुनाई गई।

सातवीं बार जेल में 12 फरवरी, 1934 से 3 सितंबर, 1935 तके थे। इस टोटल 558 दिन जेल में बिताए नेहरू ने। पहले अलीपुर सेंट्रल जेल में रखा गया उनको  फिर देहरादून जेल भेजे गए। फिर नैनी सेंट्रल जेल और वहां से अल्मोड़ा जेल। 17 और 18 जनवरी, 1934 को नेहरू कोलकाता पहुंचे।वहां के अल्बर्ट हॉल में उन्होंने सभाएं की। यहां दिए गए भाषणों की वजह से उनके ऊपर मुकदमा दर्ज हुआ। उन्हें इलाहाबाद से गिरफ्तार कर लिया गया।फिर से उनके ऊपर राजद्रोह का केस चला। अपना पक्ष रखते हुए नेहरू बोले-

अगर राजद्रोह का मतलब है भारत की आजादी और विदेशी गुलामी के सारे निशानों को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म करना, तो बेशक मैंने राजद्रोह किया है।

आठवीं बार जेल 31 अक्टूबर, 1940 से 3 दिसंबर, 1941 तक कुल 399 दिनों की जेल।  दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो चुका था कांग्रेस ने भी अपनी एक वॉर कमिटी बनाई। नेहरू इसके अध्यक्ष थे। अबुल कलाम आजाद और सरदार पटेल भी थे इसमें। इस कमिटी ने एक प्रस्ताव जारी किया। मांग रखी कि ब्रिटिश सरकार भारत को आजाद कर दे। नेहरू ने सत्याग्रह शुरू करने का ऐलान कर दिया। इसी सिलसिले में उन्होंने 6-7 अक्टूबर, 1940 को गोरखपुर में कुछ भाषण दिए। इन्हीं भाषणों की वजह से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें चार साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई।

नौवीं बार जेल  9 अगस्त, 1942 को गए और 15 जून, 1945 को रिहा हुए। ये आखिरी बार था, जब नेहरू जेल में डाले गए थे। ये जेल में बिताया गया उनका सबसे लंबा वक्त था- कुल 1,041 दिन। ये ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का दौर था। शायद भारत के स्वतंत्रता संग्राम का सबसे ऐतिहासिक दौर था ये। क्योंकि यहां से शुरू हुआ रास्ता आगे चलकर आजादी तक पहुंचा। कांग्रेस ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का प्रस्ताव पारित किया।नेहरू समेत कांग्रेस के कई बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए। नेहरू को सबसे पहले अहमदनगर किले की जेल में बंद रखा गया। वहां से बरेली सेंट्रल जेल भेजा गया। फिर वो अल्मोड़ा जेल भेजे गए।

ये तो सब जानते हैं कि लालकिले पर आज़ाद हिंद फौज के अफ़सरों के ख़िलाफ़ चले मुकदमे के लिए उन्होंने वचावपक्ष के वक़ील का चोगा पहना था, लेकिन सुभाष के प्रति उनके निजी प्रेम का खुलासा तो मोदी जी की वजह से हो पाया।

मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद रहस्यमय ‘बोस फ़ाइल्स’ के सार्वजनिक होने का बड़ा हल्ला मचा था। जनवरी 2016 में कई फ़ाइलें सार्वजनिक की गईं तो पता चला कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) ने 1954 में नेताजी की बेटी की मदद के लिए एक ट्रस्ट बनाया था, जिससे उन्हें 500 रुपये प्रति माह आर्थिक मदद दी जाती थी। दस्तावेजों के मुताबिक, 23 मई, 1954 को अनिता बोस के लिए दो लाख रुपये का एक ट्रस्ट बनाया गया था। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बी. सी. रॉय उसके ट्रस्टी थे।

नेहरू जी एक ऐसे शख्श थे जो नेता जी के परिवार को लेकर हमेशा चिंतित रहा। जिन्हें सुभाष का विरोधी बताने का पूरा अभियान चलाया गया है। जबकि दोनों ही काँग्रेस के समाजवादी खेमे के नेता थे। कोई निजी मतभेद नहीं था। सुभाषचंद्र बोस की ‘सैन्यवाद प्रवृत्ति’ को गाँधी और उनके अनुयायी उचित नहीं मानते थे। लेकिन सुभाष हमेशा वैचारिक रूप से नेहरू को अपने करीब पाते थे।

नेहरू ने सुभाष के दुबारा कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने के बाद कार्यसमिति से इस्तीफ़ा भी नहीं दिया था, जैसा कि पटेल समेत 12 गाँधी अनुयायियों ने किया था पर वे गाँधी की दृष्टि को ज़्यादा महत्वपूर्ण मानते थे। यह नेहरू के प्रति सम्मान ही था कि जब सुभाष बोस ने आज़ाद हिंद फ़ौज बनाई तो एक ब्रिगेड का नाम नेहरू के नाम पर रखा। गाँधी जी को ‘राष्ट्रपिता’ का संबोधन भी नेता जी ने ही दिया था जो बताता है कि वैचारिक विरोध के बावजूद वे गाँधी जी की महानता के किस क़दर कायल थे।

23 मई, 1954 को नेहरू ने एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए। इसमें लिखा है , “डॉ. बी. सी. राय और मैंने आज वियना में सुभाष चंद्र बोस की बच्ची के लिए एक ट्रस्ट डीड पर हस्ताक्षर किए हैं। दस्तावेजों को सुरक्षित रखने के लिए मैंने उनकी मूल प्रति एआईसीसी को दे दी है।”

एआईसीसी ने 1964 तक अनिता को 6,000 रुपये वार्षिक की मदद की। 1965 में उनकी शादी के बाद यह आर्थिक सहयोग बंद कर दिया गया। यह मत समझिए कि तब 500 रुपये महीने कोई छोटी रकम थी। बड़े-बड़े अफ़सरों को भी इतना वेतन नहीं मिलता था।

हमने यह भी देखा है की विचारों से परे जहां भगत सिंह ने महात्मा गांधी के बारे में लिखा कि"  उनकी वजह से ही सारा देश आज आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए एकजुट खड़ा हुआ है",  कांग्रेस के नेताओं ने भी भगत सिंह की वीरता और उनकी विचारों की प्रशंसा किया । यह मैं इसलिए बता रहा हूं क्योंकि आजकल के फर्जी इतिहासकार फर्जी , फेंकू नेताओं से कांग्रेस की और नेहरु जी की एक अलग ही छवि प्रस्तुत करवाते हैं । या वह नेता खुद ही करते हैं । क्योंकि अभी भी नेहरू जी पर यह आरोप,  और कांग्रेस या गांधीजी पर भी आरोप लगता है कि " उन्होंने भगत सिंह की किसी भी तरीके से कोई भी मदद नहीं की , ना ही उनके बारे में कभी कुछ भी नही कहा " 

कर्नाटक चुनाव में ही हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी ने यह कहा कि " उन्हें जहां तक जानकारी है जब  भगत सिंह जेल में बंद थे,  कोई भी कांग्रेसी नेता उनसे मिलने नहीं गया " । पहली बात तो यह सवाल ही अपने आप में एक बहुत ही वाहियात और व्यर्थता से भरा हुआ विचार है , कि "कौन नेता किस से मिलने गया ? या कौन नेता किससे मिलने नहीं गया ? या किस नेता ने किसके बारे में बोला ? या किस नेता ने किसके बारे में नहीं बोला" 

लेकिन फिर भी प्रधानमंत्री जी की इस बात का जवाब देना जरूरी है । क्योंकि उन्होंने कहा था कि " अगर किसी के पास इसके अलावा सही जानकारी हो तो वह बताए तो मैं सुधार कर लूंगा। "

 मैं माननीय प्रधानमंत्री जी की जानकारी के लिए बताना चाहता हूं,  9 अगस्त 1929 को पंडित नेहरु जी न सिर्फ  भगत सिंह बल्कि उनके सारे साथियों से मिलने जेल पहुंचे थे । और इस बात का खुलासा उन्होंने अगले ही दिन " द ट्रिब्यूनल " के इंटरव्यू में किया।  

पंडित नेहरू कहते हैं- 'मैं कल सेंट्रल जेल गया था. सरदार भगत सिंह, श्री बटुकेश्वर दत्त, श्री जतिन नाथ दास और लाहौर केस के सभी आरोपियों को देखा, जो भूख हड़ताल पर बैठे थे. कई दिनों से उन्हें जबरन खिलाने का प्रयास हो रहा है. कुछ को इस तरह जबरन खिलाया जा रहा है कि उन्हें चोट पहुंच रही है. जतिन दास की स्थिति काफी नाजुक है. वे काफी कमजोर हो चुके हैं और चलफिर नहीं सकते. बोल नहीं पाते, बस बुदबुदाते हैं. उन्हें काफी दर्द है. ऐसा लगता है कि वे इस दर्द से मुक्ति के लिए प्राण त्याग देना चाहते हों. उनकी स्थिति काफी गंभीर है. मैंने शिव वर्मा, अजय कुमार घोष और एल जयदेव को भी देखा. मेरे लिए असधारण रूप से इन बहादुर नौजवानों को इस स्थिति में देखना बहुत पीड़ादायक था. मुझे उनसे मिलकर यही लगा कि वे अपनी प्रतिज्ञा पर कायम हैं. चाहे जो नतीजा हो. बल्कि वे अपने बारे में जरा भी परवाह नहीं करते हैं. सरदार भगत सिंह ने उन्हें वहां की स्थिति बताई कि कत्ल के अपराध को छोड़कर सभी राजनीतिक बंदियों से विशिष्ट व्यवहार होना चाहए. मुझे पूर्ण आशा है कि उन युवकों का महान आत्मत्याग सफल होगा.'। 

 जबकि पंडित नेहरू ने भगत सिंह के विचारों की और उनके आदर्शों की प्रशंसा तब के कांग्रेस बुलेटिन में किया था पंडित नेहरु लिखते हैं- 
'यह क्या बात है कि यह लड़का यकायक इतना प्रसिद्ध हो गया और दूसरों के लिए रहनुमा हो गया. महात्मा गांधी, जो अहिंसा के दूत हैं, आज भगत सिंह के महान त्याग की प्रशंसा करते हैं. वैसे तो पेशावर, शोलापुर, बम्बई और अन्य स्थानों में सैकड़ों आदमियों ने अपनी जान दी है. बात यह है कि भगत सिंह का निस्वार्थ- त्याग और उसकी वीरता बहुत ऊंचे दर्जे की थी. लेकिन इस उत्तेजना और जोश के समय भगत सिंह का सम्मान करते हुए हमें यह न भूलना चाहिए कि हमने अहिंसा के मार्ग से अपने लक्ष्य की प्राप्ति का निश्चय किया है. मैं साफ कहना चाहता हूं कि मुझे ऐसे मार्ग का अवलम्बन किए जाने पर लज्जा नहीं होती है, लेकिन मैं अनुभव करता हूं कि हिंसा मार्ग का अवलम्बन करने से देश का सर्वोत्कृष्ट हित नहीं हो सकता और इससे साम्प्रदायिक होने का भी भय है. हम नहीं कह सकते कि भारत के स्वतंत्र होने के पहले हमें कितने भगत सिंहों का बलिदान करना पड़ेगा. भगत सिंह से हमें यह सबक लेना चाहिए कि हमें देश के लिए बहादुरी से मरना चाहिए.' 

वैसे भी कांग्रेस उस समय किसी एक परिवार की पार्टी नहीं थी।  ना ही वह गांधी परिवार के पास भी आई थी । हां अगर आप लोग के पास की जानकारी हो कि कांग्रेस की स्थापना 1906 में अफगानिस्तान में 4 मुसलमानों ने मिलकर की थी । जिन मुसलमानों में से एक मुसलमान ने अपना नाम बाद में बदलकर मोतीलाल नेहरु कर लिया , तो फिर मैं तो क्या,  दुनिया का कोई भी आदमी आप के दिमाग का कुछ नहीं कर सकता । 

मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में जिस जवाहरलाल नेहरू को गद्दार  नाकारा झूठा , और अय्यास साबित करने की कोशिश की वह नेहरू देश के लिए 9 बार जेल गए । और इतना कुछ किया । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बस इतना ही पूछना चाहूंगा कि जिस सावरकर को वीर का कहकर अपने छपने की छाती को फुलाकर 156 इंच कर रहे थे , वह सावरकर कितने दिन जेल में था ? और क्यों वक़्त से पहले क्यों रिहा हुआ ?  और दोबारा फिर जेल क्यों नहीं गया?
22 माफीनामो का क्या राज है ??

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