शून्य से शुरुआत करने का हुनर। कभी भी ना हार मानने का वह जज्बा । फ़र्श से अर्श पर पहुंचाने की वह महारत । व्ययन्गो से सच्चाई दिखाने की ताकत। हारे हुए को जिताने की वो बाजीगरी।खत्म को सुरुआत में बदलने की वो अदा। शब्दो से खेलने का वो अंदाज शायद अब नही दिखेगा।
भाजपा के स्थापना दिवस पर बोलते हुए पंडित अटल बिहारी वाजपेई जी ने कहा था कि "भारतीय जनता पार्टी देश के गांधीवादी समाजवाद के संबिधान की नीति पर चलेगी।" ये सिद्धांत भी अटल जी के साथ ही समाप्त हो गया । और अब इस पार्टी में संविधान तक को पालन करने की कोई नीति नहीं है।
वह मशहूर भाषण , जिसे भाजपा वाले "अंधेरा छटेगा । सूरज निकलेगा । कमल खिलेगा । " के लिए याद करते हैं । तब मुंबई में मंच पर बैठे हुए लालकृष्ण आडवाणी और अन्य नेताओं की मौजूदगी थे। हो सकता हो वहीं कहीं कोने में किसी छुटपैये नेता का माइक पकड़े हुए नरेंद्र मोदी जी भी खड़े रहे हो । और छुपते छुपाए भीड़ में आए हुए अमित शाह भी खड़े रहे हो ।उन्होंने भी यह भाषण सुना ही होगा लेकिन आज देश गांधीवाद समाजवाद और संविधान का भारतीय जनता पार्टी में क्या हश्र है यह किसी से छुपा नहीं है।
अटल जी ने गांधी जी के सिद्धांतों की हत्या होते देख एक कविता लिखी।
"क्षमा करो बापू! तुम हमको,बचन भंग के हम अपराधी।
राजघाट को किया अपावन,मंज़िल भूले, यात्रा आधी।
जयप्रकाश जी! रखो भरोसा,टूटे सपनों को जोड़ेंगे।
चिताभस्म की चिंगारी से,अन्धकार के गढ़ तोड़ेंगे।"
पार्टी ने अधिकारिक पन्नों पर आधिकारिक तौर से समाजवाद शब्द का इस्तेमाल किया । और वह भी तब जब संविधान सभा में समाजवाद शब्द को जुड़े हुए दो दशक हो चुके थे। क्या आप भाजपा के नरेंद्र मोदी और अमित शाह जी यह बताने का कष्ट करेंगे कि गांधीवादी समाजवाद उनकी पार्टी में अब कहां है ? और अब जब उनके नेता समाजवाद को गालियां दे रहे हैं , तब क्या अब अटल जी की कही गई उन बातों को भाजपा से निकाल दिया जाएगा ?
भारतीय जनता पार्टी में समाजवाद पंडित अटल बिहारी वाजपेई जी की मौत से पहले ही खत्म हो गया। अटल जी की खून से सींची गई बीजेपी में आज दूसरी प्रवृत्ति के लोग आकर उन को दरकिनार कर दिए हैं ।और उनकी मेहनत का फल खुद भोग रहे हैं। अटल जी आरएसएस के उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे, या यह भी कह सकते हैं कि वह इकलौते आरएसएस के ऐसे नेता थे जो भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 23 दिनों तक जेल में रहे । उन्होंने पार्टी नीतियों से बढ़कर देश की नीतियों को माना। देश उनके लिए किसी पार्टी या किसी विचारधारा का मोहताज नहीं था।
सही मायनों में समाजवाद वह है जहां पर जाति धर्म उम्र जेंडर भाषा क्षेत्र देश की कोई सीमा और कोई बंधन नहीं होता जहां पर सब एक के लिए काम करते हैं और एक सबके लिए काम करता है जहां पर सबको कम से कम उसकी जरूरत के अनुसार व्यवस्था मुहैया कराई जाए वही होता है समाजवाद।
समाजवाद की इसी धारा पर चलते हुए अटल जी ने नए आदर्शों को गढ़ा। अटल जी अपने विरोधियों से भी इतने प्यार से मिलते थे कि उनके अंदर की सारी विरोध की भावना खत्म हो जाती थी । हमें एक समय याद आता है , जब अटल जी प्रधानमंत्री थे । और विपक्ष के एक बड़े नेता , बड़े ही कड़े तेवर में प्रधानमंत्री जी से मिलने गए। और उन्होंने यहां तक कहा कि " हम सरकार नहीं चलने देंगे । हम प्रधानमंत्री से मिलकर विरोध दर्ज करेंगे"। यहां तक कि भारत बंद का भी ऐलान कर दिए । लेकिन जब वह अटल जी से मिलने गए, और यह मुलाकात करीब आधे घंटे की रही।
उसके बाद जब वह निकल कर सामने आए तो, मुस्कुराते हुए बोले - "हमारी प्रधानमंत्री जी से बात हो गई है। हम सब मिलकर देश चलाएंगे ।और समस्याओं को सुलझाएंगे"। यह व्यक्तित्व था अटल जी का , जो विरोधियों को भी आगे बढ़कर गले लगाते थे । और उनको अपने प्यार की भावना के आगे नतमस्तक कर देते थे। सबको साथ लेकर चलने की ये भावना उनके कविताओं में भी दिख जाती है।
उनकी एक कविता थी,
"बाधाएं आती हैं आएं"
बाधाएं आती हैं आएं,घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफानों में,अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
उजियारे में, अंधकार में,कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,अरमानों को ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,पावस बनकर ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
यह भावना अब भारतीय जनता पार्टी में खत्म हो चुकी है अब विरोधियों को खत्म करने की बात की जाती है । अब विरोध करने वालों को गाली दी जाती है। और आलोचना करने वालों को जूतों से मारने की धमकी दी जाती है । ये वह भारतीय जनता पार्टी नहीं रही, जिसे अटल बिहारी वाजपेई जी ने बनाया था । अंत समय में अटल जी को खुद इस बात का दुख होता होगा कि उनकी बनाई हुई इस पार्टी का क्या हश्र हुआ।
उनके आदर्श इस पार्टी में अब खत्म हो चुके हैं।
अटलजी अपने प्रारंभिक जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आ गए थे। 1942 के 'भारत छोड़ो' आन्दोलन में इन्होने भी भाग लिया और 23 दिन तक कारावास में रहे। इन्होने पत्रकारिता के क्षेत्र में विशिष्ट ख्याति प्राप्त की। अटलजी ने अनेक पुस्तकों की रचना की। अटलजी एक कुशल वक्ता थे। उनके बोलने का ढंग बिलकुल निराला थे। पत्रकारिता से अटलजी ने राजनीति में प्रवेश किया। 6 अप्रैल 1980 ई० में उनको भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर आसीन किया गया। 16 मई 1996 को अटलजी ने देश के 10वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। किन्तु इस बार इनको संख्या बल के आगे त्याग-पत्र देना पड़ा। 19 मार्च 1998 को पुनः अटलजी को देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई। 13 अक्टूबर 1999 को अटलजी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।
अटलजी मात्र राजनेता ही नहीं अपितु सर्वमान्य व्यक्ति एवं साहित्यकार भी थे। उनका चिरप्रसन्न एवं मुक्त स्वभाव उनको महान बना देता है। आज अटलजी राजनीति के उस सर्वोच्च स्थान पर पहुँच चुके थे, जहाँ व्यक्ति को किसी भी राजनीतिक पक्ष की जरूरत नहीं पड़ती। अपितु उनका सान्निध्य ही किसी भी पक्ष अथवा व्यक्ति के लिए गौरव की बात होती है।
चाहे प्रधान मन्त्री के पद पर रहे हों या नेता प्रतिपक्ष; बेशक देश की बात हो या क्रान्तिकारियों की, या फिर उनकी अपनी ही कविताओं की; नपी-तुली और बेवाक टिप्पणी करने में अटल जी कभी नहीं चूके। अटल जी की कुछ टिप्पणीया यहां भी है ।
"भारत को लेकर मेरी एक दृष्टि है- ऐसा भारत जो भूख, भय, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो।"
"क्रान्तिकारियों के साथ हमने न्याय नहीं किया, देशवासी महान क्रान्तिकारियों को भूल रहे हैं, आजादी के बाद अहिंसा के अतिरेक के कारण यह सब हुआ।
"मेरी कविता जंग का ऐलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय-संकल्प है। वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है
देश के लिए अपनी अभूतपूर्व सेवाओं के चलते उन्हें वर्ष 1992 में पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा गया। 1993 में उन्हें कानपुर विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि का सम्मान प्राप्त हुआ।वर्ष 1994 में अटल बिहारी वाजपेयी को लोकमान्य तिलक अवार्ड से सम्मानित किया गया वर्ष 1994 में पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार भी प्रदान किया गया।
वर्ष 1994 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान दिया गया। वर्ष 2015 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया।वर्ष 2015 में बांग्लादेश द्वारा ‘लिबरेशन वार अवार्ड’ दिया गया।
जब 1980 में जनता पार्टी से नाराज होकर पार्टी का दामन छोड़ा। तबके बाद बनी भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में वह एक थे। उसी साल उन्हें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष की कमान सौंपी गयी। इसके बाद 1986 तक उन्होंने बीजेपी अध्यक्ष पद संभाला। उन्होंने इंदिरा गांधी के कुछ कार्यों की तब सराहना की थी। जबकी संघ उनकी विचारधारा का विरोध कर रहा था।
कहा जाता है कि संसद में इंदिरा गांधी को दुर्गा की उपाधि अटल बिहारी वाजपेयी की तरफ से दी गई। उन्होंने इंदिरा सरकार की तरफ से 1975 में लादे गए आपातकाल का विरोध किया। लेकिन, बंग्लादेश के निर्माण में इंदिरा गांधी की भूमिका को उन्होंने सराहा था।
वैश्विक चुनौतियों के बाद भी राजस्थान के पोखरण में 1998 में परमाणु परीक्षण किया। इस परीक्षण के बाद अमेरिका समेत कई देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया।लेकिन उनकी दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति ने इन परिस्थितियों में भी उन्हें अटल स्तंभ के रूप में अडिग रखा। कारगिल युद्ध की भयावहता का भी डट कर मुकाबला किया और पाकिस्तान को धूल चटायी।
कारगिल के वक़्त वाजपेई जी ने मंच से एक ऐसी कविता पड़ी , जिससे पूरा का पूरा पाकिस्तान तिलमिला गया । किसी देश के प्रधानमंत्री द्वारा इतनी खुले अंदाज से अपने काव्य कला द्वारा किसी दुश्मन देश के ऊपर ऐसा वार पहले कभी किसी ने नहीं देखा। उस कविता से उन्होंने पाकिस्तान को उसकी औकात दिखाई । और पाकिस्तान को यह समझाया कि तुम भीख में मिले हुए टुकड़ों पर पल रहे हो।
"एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते, पर स्वतंत्रता भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।
अगणित बलिदानो से अर्जित यह स्वतंत्रता, अश्रु स्वेद शोणित से सिंचित यह स्वतन्त्रता।
त्याग तेज तपबल से रक्षित यह स्वतंत्रता, दु:खी मनुजता के हित अर्पित यह स्वतन्त्रता।
इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो, चिनगारी का खेल बुरा होता है।
औरों के घर आग लगाने का जो सपना, वो अपने ही घर में सदा खरा होता है।
अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र ना खोदो, अपने पैरों आप कुल्हाड़ी नहीं चलाओ।
ओ नादान पड़ोसी अपनी आंखे खोलो, आजादी अनमोल ना इसका मोल लगाओ।
पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है? तुम्हे मुफ़्त में मिली न कीमत गयी चुकाई।
अंग्रेजों के बल पर दो टुकडे पाये हैं, माँ को खंडित करते तुमको लाज ना आई ?
अमेरिकी शस्त्रों से अपनी आजादी को दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो।
दस बीस अरब डालर लेकर आने वाली बरबादी से तुम बच लोगे यह मत समझो।
धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो।
हमलों से, अत्याचारों से, संहारों से भारत का शीष झुका लोगे यह मत समझो।
जब तक गंगा मे धार, सिंधु मे ज्वार, अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष,
स्वातंत्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे अगणित जीवन यौवन अशेष।
अमेरिका क्या संसार भले ही हो विरुद्ध, काश्मीर पर भारत का सर नही झुकेगा
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते, पर स्वतंत्र भारत का निश्चय नहीं रुकेगा।"
लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेई की भाषण शैली और कार्य से प्रभावित होकर जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें कहा था कि "यह लड़का एक दिन जरूर भारत का प्रधानमंत्री बनेगा"। खुद वाजपेई जी भी नेहरू जी की बहुत इज्जत करते थे ।नेहरू जी के निधन के बाद 29 मई 1964 को उन्होंने लोकसभा में श्रद्धांजलि दी और यह कहा-
"एक सपना था जो अधूरा रह गया, एक गीत था जो गूँगा हो गया, एक लौ थी जो अनन्त में विलीन हो गई। सपना था एक ऐसे संसार का जो भय और भूख से रहित होगा, गीत था एक ऐसे महाकाव्य का जिसमें गीता की गूँज और गुलाब की गंध थी। लौ थी एक ऐसे दीपक की जो रात भर जलता रहा, हर अँधेरे से लड़ता रहा और हमें रास्ता दिखाकर, एक प्रभात में निर्वाण को प्राप्त हो गया।
मृत्यु ध्रुव है, शरीर नश्वर है। कल कंचन की जिस काया को हम चंदन की चिता पर चढ़ा कर आए, उसका नाश निश्चित था। लेकिन क्या यह ज़रूरी था कि मौत इतनी चोरी छिपे आती? जब संगी-साथी सोए पड़े थे, जब पहरेदार बेखबर थे, हमारे जीवन की एक अमूल्य निधि लुट गई। भारत माता आज शोकमग्ना है – उसका सबसे लाड़ला राजकुमार खो गया। मानवता आज खिन्नमना है, उसका पुजारी सो गया। शांति आज अशांत है, उसका रक्षक चला गया। दलितों का सहारा छूट गया। जन जन की आँख का तारा टूट गया। यवनिका पात हो गया।
विश्व के रंगमंच का प्रमुख अभिनेता अपना अंतिम अभिनय दिखाकर अन्तर्ध्यान हो गया।यह एक महान परीक्षा का काल है। यदि हम सब अपने को समर्पित कर सकें एक ऐसे महान उद्देश्य के लिए जिसके अन्तर्गत भारत सशक्त हो, समर्थ और समृद्ध हो और स्वाभिमान के साथ विश्व शांति की चिरस्थापना में अपना योग दे सके तो हम उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करने में सफल होंगे।
संसद में उनका अभाव कभी नहीं भरेगा। शायद तीन मूर्ति को उन जैसा व्यक्ति कभी भी अपने अस्तित्व से सार्थक नहीं करेगा। वह व्यक्तित्व, वह ज़िंदादिली, विरोधी को भी साथ ले कर चलने की वह भावना, वह सज्जनता, वह महानता शायद निकट भविष्य में देखने को नहीं मिलेगी। मतभेद होते हुए भी उनके महान आदर्शों के प्रति, उनकी प्रामाणिकता के प्रति, उनकी देशभक्ति के प्रति, और उनके अटूट साहस के प्रति हमारे हृदय में आदर के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।इन्हीं शब्दों के साथ मैं उस महान आत्मा के प्रति अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।"
तमाम चुनौतियों को एक किनारे रखकर अटल जी ने देश हित एवं देश की सुरक्षा को सर्वोपरि रखा। पोखरण का दूसरा परमाणु परीक्षण भी इसी का एक बेहद ही खूबसूरत नतीजा रहा। जिसमें परीक्षण की टीम को अपना पूरा सपोर्ट दिया। सारी सुविधाएं मुहैया करवाएं ।और अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश की चेतावनी को भी दरकिनार करते हुए परमाणु परीक्षण करवाया, और उसे सफल करवाया। कारगिल का युद्ध भी अटल जी की इसी कौशल राजनीति का एक हिस्सा था।
इस तरह की प्रतिभा और गुड़ के धनी थे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी । जो अपने विरोधियों को भी बराबर का हक और सम्मान देते थे। विचार किसी के भी हो अटल जी उनको सुनते थे , उन को अमल में लाते थे । सबको साथ लेकर उनमे कुछ ऐसी कला थी जो आज तक किसी मे नही रही होगी।
अटल जी की आलोचना करने की एक अलग कला थी।अटल जी जब भी विपक्ष की आलोचना करते थे, तो मुद्दों पर कुछ इस तरह कहते थे कि विपक्ष के पास कोई जवाब नहीं रहता था। उन्होंने कभी भी किसी को व्यक्तिगत कुछ नहीं कहा। लेकिन अक्सर अपनी आलोचनाओं और अपनी भाषण शैली से वह सरकार को नतमस्तक कर देते थे।
जब नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे तो उनकी वित्त नीतियों पर अटल जी की कठोर आलोचना के बाद खुद नरसिम्हा राव जी ने अटल जी को फोन किया , और उन्हें कहा -
"आपकी आलोचना इतनी तीखी और सटीक थी कि हमारे वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह इस्तीफा देना चाह रहे हैं। तब अटल जी ने कहा था कि "राजनीति में कुछ भी व्यक्तिगत नहीं होता। पद पर बैठा व्यक्ति पद के लिए जिम्मेदार होता है ।उसका अपना व्यक्तिगत कुछ भी नहीं होता ।इसलिए मनमोहन सिंह को इस्तीफा देने की जरूरत नहीं है।"
शून्य से शुरुआत करने का हुनर। कभी भी ना हार मानने का वह जज्बा । अर्श से फर्श पर पहुंचाने की वह महारत । व्ययन्गो से सच्चाई दिखाने की ताकत। हारे हुए को जिताने की वो बाजीगरी।खत्म को सुरुआत में बदलने की वो अदा। शब्दो से खेलने का वो अंदाज शायद अब नही दिखेगा। लेकिन उनकी कविताएं वो सब हमे दिखाती रहेंगी।
"बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं। टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं।
गीत नहीं गाता हूं।
लगी कुछऐसी नजर बिखरा शीशे सा शहर,अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं।
गीत नहीं गाता हूं।
पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद, मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं,
गीत नहीं गाता हूं।
गीत नया गाता हूं।
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर,पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर,
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात, प्राची में अरुणिम की रेख देख पता हूं,
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी,अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी,
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं,
गीत नया गाता हूं।
अटल हमेशा अटल रहेंगे। उनके आदर्श भारतवाशियो के रग रग में हमेशा रहेगा। और चिर काल तक वो देश के राजनीति का मार्गदर्शन करते रहेंगे।
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था।
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूं?
तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफां का, तेवरी तन गई।
मौत से ठन गई
Ek aacha prayash..
ReplyDeleteWell written
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