फेक न्यूज़ का भ्रमजाल - 2
मुंबई के नालासोपारा इलाके में बारिश से बने गड्ढे में गिरा युवक 3 दिन बाद हिंद महासागर से बाहर निकला। बताया जा रहा है कि युवक मोबाइल में देखते-देखते चल रहा था कि तभी वो सड़क पर बने गड्ढ़े में जा गिरा। गड्ढे में पानी का बहाव इतना ज़्यादा तेज़ था कि युवक बहता हुआ हिंद महासागर पहुंच गया। जहां नौसेना के जंगी जहाज की नज़र उस पर पड़ी।
जहाज पर मौजूद सिपाही ने अपनी दूरबीन में जब उसे देखा तो वो समुद्र के बीचों-बीच सेल्फी ले रहा था। शक होने पर युवक को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई उसने पूरी कहानी बयान कर दी। युवक ने ये बताया कि उसने समुद्र के अंदर एक चीनी पनडुब्बी भी देखी है। उसने अपने मोबाइल में उस पनडुब्बी की एक फोटो भी दिखाई।
ख़बर सामने आने के बाद BMC ने युवक के सम्मान में गड्ढे का नाम युवक के नाम पर रखने का फैसला किया है। वहीं बैंगलोर में बारिश से लगे ट्रैफिक जाम में फंसा एक शख्स कल 2 साल बाद अपने घर लौटकर वापस आया। बताया जा रहा है कि युवक 8 जुलाई 2015 को घर आने के लिए ऑफिस से अपनी कार में निकला था कि तभी रास्ते में तेज़ बारिश में फंस गया। इसके बाद युवक ने कार वहीं छोड़कर ऑटो कर लिया।
मगर वो ऑटो वाला शातिर निकला और आगे जाम है बोलकर-बोलकर, युवक को डेढ़ सालों तक यहां-वहां घूमाता रहा। युवक ने किसी तरह चलते ऑटो से कूदकर अपनी जान बचाई मगर ये देखकर उसके होश फाख्ता हो गए जब उसे पता चला कि ऑटो वाला घूमाता-घूमाता उसे पानीपत ले आया है। मदद मांगने के लिए युवक ने जब बीवी को फोन मिलाया तो पता लगा कि उसकी बीवी को तो खुद एक ऑटो वाला करनाल ले आया है और वो भी तब से घर नहीं पहुंची।
क्या हुआ आपको नवभारत टाइम्स के लिखे हुए इन बातों पर विश्वास नहीं हो रहा है ? या हंसी आ रही है ?
अगर ऐसा हो रहा है तो आप बहुत गलत कर रहे हैं । आपको ऊपर लिखी हुई बातों पर विश्वास होना चाहिए । और आपको उस बातों को मानना चाहिए । क्योंकि अभी तक आप यही करते आए हैं ।
-जब आप जेम्स बॉन्ड फिल्म की एक हीरोइन को सोनिया गांधी बताने पर, सचमुच उन्हें सोनिया गांधी मान लेते हैं
-जब आप एक कलाकार को महात्मा गांधी का ड्रेस पहनकर किसी लड़की के साथ नाचते हुए, फोटो को दिखाकर महात्मा गांधी बताया जाता है , और उसे मान लेते हैं।
-जब आप एक नागिन द्वारा प्रकट होकर मंदिर के पुजारी से उस मैसेज को 100 लोगों को फॉरवर्ड करने पर फायदा होने , खजाना मिलने , और न फारवर्ड करने पर बीमार होने या मर जाने की धमकी वाला SMS सच मान कर सब को फॉरवर्ड कर सकते हैं।
-जब आप किसी भी एक बड़ी हस्ती की फोटो के बगल में लिखे हुए कुछ बातों को उस हस्ती द्वारा कही हुई बातें मान लेते हैं ।
-जब आप 2000की नोट में चिप होने की बात को सच मान लेते हैं ।
-जब आप यह मान लेते हैं कि कैराना से हिंदुओं का पलायन हुआ है ।
-जब आप यह मान लेते हैं की कांग्रेस की स्थापना मुसलमानों ने की और नेहरू जी मुसलमान थे ।
तब आपको ऊपर लिखी हुई बातों को भी मानना चाहिए । ऊपर लिखी हुई बातों को ना मानना का कोई भी हक आपके पास नहीं है।
आपको हर हाल में इन फर्जी खबरों को मानना ही पड़ेगा ।
क्योंकि जब आपने इतनी चीजें कई लोगों के कहने पर मान ली , तो यह बातें भी आपको माननी पड़ेगी ।
हां सबूत के तौर पर मैं उस चीनी पनडुब्बी की फोटो भी दिखा सकता हूं, जो उस व्यक्ति ने खींची थी। या समुद्र में सेल्फी लेते हुए भी उसकी फोटो दिखा सकता हूं।
दरअसल हमारी आपकी और लगभग लगभग पूरे देश की सारी जिंदगी और क्रियाकलाप इन्हीं खबरों से से चल रही है । क्योंकि हमारे पास न तो कुछ भी समझने का विवेक बचा है, ना ही कुछ भी सोचने की शक्ति बची है। आपने अपने कुछ नेताओं को अपने ईस्ट से भी ऊपर उस मुकाम पर रख दिया है , जहां से उनके द्वारा कही गई बातों को आप सिर्फ और सिर्फ सत्य मानेंगे ।
सत्य के सिवा कुछ नहीं मानेंगे । आप सिर्फ उन बातों को एक आदेश और एक सार्वभौमिक सत्य ही मानेंगे । और यह नेता कथित राष्ट्रवादी कथित धर्मवादी इन्हीं सब फर्जी खबरों के माध्यम से आप का जमीर मिटाने के बाद आपके वजूद तक को मिटाने में लग गए हैं । इन्ही सब खबरों के माध्यम से यह नेता आपकी संवेदनशीलता को पूरी तरह से खत्म कर चुके हैं । और आप एक मशीन से ज्यादा इनके लिए अब कुछ नहीं बचे हैं।
यह आपसे सारे काम एक भीड़ के रूप में करवाएंगे। और आप भी मूर्खों की तरह बिना कुछ सोचे समझे उनकी कही हुई बातों पर दौड़ लगा देंगे । कुछ ऐसा ही कमाल है फर्जी खबरों का।और इन फर्जी खबरों का प्रभाव और आतंक इतना ज्यादा है कि सरकारों से लेकर बड़े-बड़े मंत्रालय और सरकारी विभाग तक इनके घेरे में रहते है ।
ऐसे ही एक फर्जी खबर की शिकार कोलकाता पुलिस से लेकर राजस्थान का एक IAS तक बना।
ईद के मौके पर लगातार चार दिनों की छुट्टी का जो फ़र्ज़ी नोटिस सोसल साइट पर सार्कुलेट हुई है उस पर करी करवाई करते हुए कोलकाता पुलिस ने एक आइएएस अधिकारी को नोटिस भेजा है।
महानगर में ईद के लिए चार दिनों की सरकारी छुट्टी को लेकर नौ जून को जारी हुई थी ये फर्जी नोटिस जिस पर विवादित ट्वीट करने के मामले में कोलकाता पुलिस ने राजस्थान के एक आइएएस अधिकारी संजय दीक्षित, जो राजस्थान सरकार में अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद पर कार्यरत हैं उन को नोटिस भेजा था।कोलकाता पुलिस के लिए ये जानना बेहद जरुरी है कि एक जिम्मेदार पद पर रहने के बावजूद उन्होंने भी बिना इसकी सच्चाई को जाने उन्होंने इस नोटिस पर 10 जून को अपने ट्वीटर अकाउंट से विवादित ट्वीट कर राज्य की छवि को आखिर खराब करने की क्यों कोशिश की ?
फर्जी खबरों का इतिहास बहुत पुराना है। विश्व युद्धों के दौरान 'कौन जीता- कौन हारा' इसकी मनगढंत खबरें फैलाई जाती थीं।
- 19वीं सदी की सबसे बड़ी फेक न्यूज अमेरिकी अखबार 'द न्यूयॉर्क सन' ने छापी थी। अखबार ने लिखा था कि दो अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा पर गए हैं और उन्हें वहां जीवन मिला है। तब अखबार की खूब चर्चा हुई, लेकिन एक महीने बाद तब बड़ी किरकिरी हुई जब अखबार को खुद ही अपने पाठकों को बताना पड़ा कि यह सीरीज मनगढंत खबरों पर आधारित थी।
- 21वीं सदी में इंटरनेट का चलन बढ़ने के साथ ही फर्जी खबरों की बाढ़ आ गई। ज्यादा से ज्यादा क्लिक हासिल करने के लिए सनसनीखेज और झूठी हैडिंग बनाई जाने लगीं।
- अमेरिका में यह फेक न्यूज इंडस्ट्री तेजी से फैली है। यहां जस्टिन कोलेर जैसे पत्रकार सामने आए, जिन्होंने फेक मीडिया संस्थान बनाकर विज्ञापनों के जरिए 18 लाख रुपए महीने तक कमाए।
- पॉल हॉर्नर जैसे पत्रकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान खूब फर्जी खबरें लिखीं, जो न केवल गूगल न्यूज पर रैंक हुईं, बल्कि फेसबुक पर खूब पढ़ी गईं। हालांकि बाद में हॉर्नर को जेल भी जाना पड़ा।
- अमेरिका में फेक न्यूज का मामला कितना गरमा गया है, अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने बकायदा उस मीडिया संस्थानों की लिस्ट जारी की थी, जिन्होंने चुनाव के दौरान उनके बारे में निराधार खबरें छापी थीं।
- अमेरिका से सबक लेते हुए अब यूरोप के कई देशों ने फेक न्यूज से लड़ने की तैयारी कर ली है। यहां फेक न्यूज की पहचान करने का सिस्टम बनाया जा रहा है।
- मलेशिया की संसद ने विरोध के बावजूद फेक न्यूज पर अधिकतम छह साल जेल की सजा वाला कानून पारित हो चुका है। आलोचकों ने इसे आम चुनाव से पहले विरोध को दबाने वाला कानून बताकर चिंता जताई है। शुरू में सराकर ने फेक न्यू्ज छापने पर अधिकतम 10 साल की सजा और पांच लाख रिंगिट यानी करीब 84.52 लाख रुपए के जुर्माने का प्रस्ताव था। आलोचना के बाद सरकार ने सजा को घटाकर छह साल कर दिया।
फेक खबरें तेजी से फैलती हैं। सामान्य खबरों की तुलना में इनकी हैडिंग की ओर आकर्षित होने वाले पाठकों की संख्या ज्यादा है। अकेले ट्वीटर की बात करें तो महज 0.1 फीसदी ट्विटर अकाउंट्स के जरिए 80 फीसदी फेक न्यूज को फैलाया जाता है।
- फेक न्यूज के कारण सच्ची खबरों को खोज पाना मुश्किल होता है। इसके लिए कुछ वेबसाइट्स बनाई गई हैं, जहां पता लगाया जा सकता है कि कोई खबर झूठी है या सच्ची।
Alt news के एक आर्टिकल के मुताबिक
"मई 2018 नकली समाचार उद्योग के लिए हास्यजनक रूप से शुरु हुआ, जिसमें कई मीडिया संगठन त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब के पैरोडी खाते के झांसे में आ गए। लेकिन जैसे जैसे महीना आगे बढ़ा, हमने महसूस किया कि झूठी खबर कोई मज़ाक नहीं है। कर्नाटक चुनावों के बारे में झूठी खबरे फैलाना और पत्रकारों को सुनियोजित तरीके से उनके नाम से झूठे बयान फैलाके उन्हें प्रताड़ित करना दो प्रमुख विषय थे। ऑल्ट न्यूज़ आपको मई, 2018 के महीने के दौरान सोशल मीडिया पर साझा की गयी प्रमुख झूठी खबरों का सारांश प्रदान करता है।
पत्रकार रवीश कुमार के झूठे बयान को प्रायोजित तरीके से फैलाये गए। बीजेपी व् दक्षिणपंथी समर्थित सोशल मीडिया ग्रुप्स में रविश कुमार को एक पोस्टर में, 11 वर्षीय गीता (नाम बदला हुआ) के बलात्कार को सहमति से किया यौन संबंध करार देने का आरोप लगाया गया। ये वे शब्द थे जो उन्होंने कभी नहीं कहे थे, उनके स्पष्टीकरण के बावजूद भी उन्हें सोशल मीडिया पर गालियों का सामना करना पड़ा। ऐसी फर्जी खबरें साझा करने वाले फेसबुक पेजों में फ़िर एक बार मोदी सरकार, बीजेपी न्यू इंडिया, We support Narendra Modi, आदि शामिल हैं।
Facebook पर एक पेज है आई सपोर्ट इंडियन आर्मी । अब जहां इंडियन आर्मी की बात हो तब हम सब की देशभक्ति कुछ ज्यादा ही जग जाती है, होनी भी चाहिए । हम देश के वासी हैं और हमें सेना पर गर्व है । लेकिन हमें यह भी ध्यान देना चाहिए कि कोई हमारी इस बात का फायदा नहीं उठा पाए । इसी बात का फायदा उठाया जाता है , उस पर धार्मिक कट्टरता के कई पोस्ट आते हैं । कई बार नेताओं की तारीफों के कसीदे भी पढ़े जाते हैं ।और हर पोस्ट के अंत में यह जरूर लिखा जाता है कि "बिकाऊ मीडिया शेयर नहीं करेगा " ।
इस तरह से सही खबर दिखाने वाले चैनलों और उनके लोगों को देश की नजर में बिकाऊ घोषित कर दिया जाता है । और जो सच में बिकाऊ होते हैं वह इस खबर को पेश करने के लिए टाई पहनकर आकर " एनालिसिस " करने लगते हैं। जिससे कि यह देश की जनता के सामने ईमानदार दिखाई दे । इस तरह कई मीडिया हाउस के मालिक तो चाटुकारिता करके संसद तक भी पहुंच गए । और कुछ जेल जा चुके पत्रकार सत्ता की जी हजूरी करके , फेक न्यूज़ को फैलाकर अपने ऊपर दर्ज तमाम अपराधिक मुक़दमे हटवाने में कामयाब हो जाते हैं।
फेक न्यूज़ चलाने के बाद कई बार पकड़े जाने पर लोग माफी मांग लेते हैं , लेकिन यह माफी उस नुकसान कि 10% भरपाई भी नहीं कर पाती है जो फेक न्यूज़ चलाने से होता है। जैसे कि मैंने पहले भी बताया लोग हमेशा कुछ खुराफाती खोजते रहते हैं , उनको इस बात से कोई मतलब नहीं रहता है कि वह सच है या गलत। इसी चक्कर में फेक न्यूज से प्राप्त जानकारी को बाद में जब सही किया जाता है, तो भी उनके दिमाग में वही पुरानी फेक न्यूज़ चलती रहती है। और उसी को सच मानते हैं । गलती हमारी ही है। और इसी का फायदा कुछ कथित देशभक्त मीडिया चैनल उठा रहे हैं। जो कभी गौरैया के घोसले दिखाते हैं, तो कभी किसी नेता की दिनचर्या को दिखाते हैं , इन्होंने नेताओं को फिल्म के अभिनेताओं की तरह प्रजेंट कर दिया है। जिससे कि लोग इनके फैन बन सके।
कर्नाटक चुनावों में झूठी खबरों में अचानक वृद्धि देखी गई। एक मुस्लिम आईएनसी (INC) उम्मीदवार के शक्ल से एक वीडियो संपादित किया गया। जो “ सत्ता में रहने पर हिंदुओं के रक्त पात” की धमकी दे रहा था। बाद में यह वीडियो फर्जी पाया गया। बीबीसी न्यूज के LOGO के साथ ‘जनता की बात’ वाले मतदाता सर्वेक्षण ने कर्नाटक में BJP के जीत की भविष्यवाणी की, जो खबर बाद में फर्जी साबित हुई।
बेंगलुरु में एक महिला को उत्पीड़ित होते हुए दिखाने वाला वीडियो सामने आया जो मलेशिया की एक महिला का वीडियो था।
कांग्रेस (INC) रैली के एक वीडियो में फर्जी समाचार ब्रिगेड ने पाकिस्तानी ध्वज लहराने का दावा किया था, बाद में ये साफ़ हो गया कि वो कोई पाकिस्तानी ध्वज नहीं था, बल्कि एक हरा रंग का ध्वज था। जो अखिल भारतीय मुस्लिम लीग (IUML) का झंडा है। आईयूएमएल (IUML) केरल में स्थित एक मुस्लिम राजनीतिक दल है।
ऐसी सभी न्यूज़ का एक परिचित पैटर्न था – जो कांग्रेस, इसके नेताओं, मुसलमानों और ईसाइयों को बुरा दिखाने की कोशिश कर रहा था। यह वही विषय है जो बार-बार दिखाया जाता है।
विपक्ष के अलावा, फर्जी खबरों में पीएम मोदी की झूठी प्रशंसा दिखाने की जरूरत महसूस की। वाराणसी में पीएम मोदी रैली का एक पुराना वीडियो कर्नाटक चुनावों से पहले उनके समर्थकों द्वारा उडुपी रैली के रूप में साझा किया गया था। कर्नाटक के चुनावों से पहले इतनी नकली व झूठी ख़बरें थीं कि ऑल्ट न्यूज़ ने विशेष रूप से समर्पित राउंडअप किया था।
कर्नाटक चुनाव में शामिल रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए दावों की पुष्टि करने में तथ्य जांचकर्ता व्यस्त रहे। अपनी खास शैली में उन्होंने कांग्रेस पार्टी पर हमला किया, 1929 की एक घटना में कांग्रेस नेता द्वारा जेल में बंद भगत सिंह से न मिलने का आरोप लगाया था।
आल्ट न्यूज़ ने पाया कि पीएम मोदी का दावा पूरी तरह झूठा था, एक लेख में दिखाया गया कि कैसे पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भगत सिंह के 1929 में उनसे मिलने गए जब अंग्रेजो ने उन्हें जेल में बंद किया हुआ था।
अल्पसंख्यकों के संबंध में डर मनोविज्ञान पैदा करके हिंदुओं को एकजुट करना सोशल मीडिया पर हिंदुत्व समर्थक ग्रुप्स की हमेशा कोशिश रहती है और यही रणनीति मई के महीने में भी थी। यह रमजान का महीना था, फुटबॉल से संबंधित उपद्रव को और मुस्लिमों द्वारा दंगा कराने के रूप में साझा किया गया था। मुसलमानों द्वारा नमाज की वजह से NEET परीक्षाओं में छात्रों के साथ ट्रेन में देरी हो जाने वाली खबर भी फर्जी साबित हुई थी।
देश की बड़ी समस्याओ को दरकिनार करते हुए जिन्ना का एक चित्र पुरे महीने के दौरान बहस का मुख्य केंद्र रहा। जैसा कि हमने अतीत में भी देखा है, इस विवाद ने आज़ादी वाले नारे के झूठे आरोपों का भी रूप लिया है। इस बार ये अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों के खिलाफ था।
मई के महीने में चर्च और ईसाईयों को निशाना बनाने वाली झूठी खबरे भी देखी गयी। तुतीकोरिन दंगों में शामिल तमिलनाडु चर्च के रूप में एक 10 साल पुराने वीडियो को फिर से फैलाया गया था। इक्वाडोर के एक तस्वीर को नेपाल में एक ईसाई को जीवित जलाते हुए बताकर फैलाया गया, कारण उसे हिंदु धर्म के लोगो को धर्म परिवर्तन का दोषी दिखाया जो की पूरी तरह से फर्जी था।
नकली खबरों के एक अन्य उदाहरण में 10 साल के पुराने वीडियो को बीजेपी आरएसएस कैडर के रूप में चर्च पर हमला करते हुए दिखाया जा रहा था जो कि फर्जी था।
उपरोक्त झूठी ख़बरें केवल एक छोटा हिस्सा है जो मई महीने के दौरान खूब प्रसारित किया गया था। पर ऐसे फर्जी ख़बरें सोशल मीडिया पर बहुत है। प्रवृत्तियों पर नजर डालने से ऐसा लगता है कि नकली खबरों का खतरा निकट भविष्य में समाप्त नहीं होने वाला।
बजाए इसके, 2019 के आम चुनावों में, हमें नकली खबरों में तेजी दिखने की संभावना दिखाई दे रही है और इस बार, कांग्रेस समर्थक भी ऐसी ही रणनीति अपनाते दिख रहे हैं। ऐसे हालातों में, सोशल मीडिया यूजर्स को कोई भी आने वाली जानकारी पर विश्वास करने से पहले उसकी जांच करनी चाहिए व् बिना सोचे समझे उसे शेयर करने से बचना चाहिए।"
जीपीएस नोट वाले उदाहरण को लीजिए- आप क्या करेंगे इस खबर के बाद कोई उपकरण आ जाता है, जैसे बटुआ, जो दावा करता है कि इसके कारण आपकी नोट की स्थिति का पता नहीं चलेगा? आप और मैं शायद जानते हैं कि यह हो नहीं सकता. बल्कि इसकी कोई ज़रूरत भी नहीं है. लेकिन इससे जो अव्यवस्था पैदा होती है, उसके लिए कौन जिम्मेदार है? जानकारी ही बचाव है.
अगर कानून बनाने की बात करते हैं तो इससे अभिव्यक्ति की आजादी को खतरा होता है. अगर कोई संस्था खबरों के स्रोत की विश्वसनीयता पर फैसला करता है तो उसे यह भी हक मिल जाता है कि तथ्यों की रिपोर्टिंग सुनिश्चित कर सके। लेकिन हमारी दुनिया कई ध्रुवों वाली है।
ऐसे में आप लोगों को लोगों के खिलाफ, विचारों को विचारों के खिलाफ खड़े करते होते हैं। एक आदर्श दुनिया के लिए नियमन सबसे बेहतर संभावना है लेकिन इससे न केवल सामाजिक शांति के भंग होने का रिस्क होता है बल्कि लोगों के औसत मानसिक स्तर में गिरावट का भी।
फेक न्यूज की समस्या पर वापस आते हैं।न्यूयॉर्क टाइम्स में छपा एक आलेख फर्जी खबरों से पैदा खतरों पर बात करता है। यह सारा खेल पैसों का है। जब तक विषयवस्तु सनसनी बन रही है, जब तक लाखों लोग वेबसाइट्स पर आ रहे हैं, इसके असर अर्थहीन हैं. लेकिन ऐसा नहीं है।
उनका प्रभाव चुनावों, नीतियों, समाज में कानून-व्यवस्था और शांति बनाए रखने पर पड़ेगा। इंटरनेट लोकतांत्रिक जगह है और रहनी भी चाहिए। इस आजादी को नियंत्रित करने की तमाम कोशिशें की जा चुकी हैं।
जरूरत इस बात की है कि सोशल मीडिया पर कोई भी पोस्ट साझा करने से पहले सावधानी बरती जाए और सच्चाई परखी जाए।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव की टीम का हिस्सा रहे शिवम शंकर सिंह ने भाजपा से इस्तीफा दे दिया। और इसके बाद उन्होंने एक खुला खत लिखा। जो खत द वायर में छपा भी। उसमें वह लिखते हैं
'‘मेरे जीवन काल के हिसाब से कहूं तो देश में इस समय राजनीतिक विचार-विमर्श अपने सबसे निचले स्तर पर है।ऐसा भेदभाव है कि आप यकीन नहीं कर पाएंगे।लोग अपने पक्ष को समर्थन देते रहेंगे भले ही उन्हें कितने ही प्रमाण दे दीजिये।
जब यह प्रमाणित भी हो जाए कि वे फेक न्यूज फैला रहे हैं, तब भी किसी तरह का पछतावा देखने को नहीं मिलता। यह एक ऐसा पहलू है जिसके लिए सभी-राजनीतिक दल, वोटर्स, समर्थक सभी समान रूप से जिम्मेदार हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने बेहद असरकारक प्रोपेगेंडा के साथ कुछ विशेष तरह के संदेश फैलाने का काम बखूबी किया है।और यही वह वजह है जिसके चलते मैं पार्टी का समर्थन नहीं कर सकता।
वैसे हमारे सामने बेहद ही महत्वपूर्ण समस्या आ चुकी है , कि हम कैसे यकीन करें कि कौन सी खबर सही है और कौन सी नही है ?
क्योंकि कि आजकल Facebook और Whatsapp यूनिवर्सिटी जैसी विश्वव्यापी संस्थाओं मैं रोजाना हजारों लाखों फर्जी पोर्टल से बहुत सारी न्यूज़ आती है । जिसके पीछे हम बड़े-बड़े मीडिया हाउसेस की खबरों को भूल जाते हैं। वैसे बड़े-बड़े मीडिया हाउस इसकी भी यही हाल है ।
खबरों को तेज दिखाने , और ब्रेकिंग न्यूज़ को सबसे पहले जनता तक पहुंचाने के चक्कर में कुछ मीडिया चैनल भी फेक न्यूज़ को आगे बढ़ा देते हैं ।और एक दो बड़े मीडिया चैनल जिनके मालिक सत्ता की मलाई चाट रहे हैं, वह भी सत्ता के तलवे चाटते हुए उन्हें के हिसाब से गलत खबरें ही दिखा रहे हैं।
लेकिन हम इस बारे में बात शुरू करें उससे पहले मैं सबको यह बताना चाहता हूं कि कोई भी पार्टी सिर्फ बुरी या सिर्फ अच्छी नहीं होती। हर सरकार कुछ न कुछ अच्छा करती है, तो कहीं गलतियां भी होती हैं। यह सरकार भी इससे अलग नहीं है।
फेक न्यूज , या फ़र्ज़ी खबरे सब हमारी और आपकी इंसानियत को धीरे-धीरे दीमक की तरह चाट कर खत्म कर रही है। हमारे और आपके जज्बात धीरे-धीरे खोखले होते जा रहे हैं। हम इन फेक न्यूज़ की खबरों में और इनके इन भरम जाल में इतनी बुरी तरह फंस चुके हैं कि हमारा इनसे निकलना बेहद ही मुश्किल और संघर्षों से भरा हुआ हो सकता है ।
फेक न्यूज़ समाज से लेकर घर मोहल्ले देश और पूरी दुनिया तक को बर्बाद कर सकती है ।फेक न्यूज के चलन का असर यहां तक हो सकता है कि घर के लोग एक दूसरे से बात तक करना बंद कर दें । क्योंकि वह भी फेक न्यूज़ के शिकार होंगे ।
दंगों से लेकर जितनी भी मारकाट या बवाल होते हैं , सब फेक न्यूज़ की ही कारस्तानी होती है । चीजों को सोच समझकर ना देखने और बिना पूरी बात सुने रिएक्ट करना ही फेक न्यूज़ की सबसे बड़ी सफलता है । जब भी ऐसी खबरें आती हैं , जो हमारे स्वार्थ को या हमारी भावनाओं से मेल खाती हैं , तो सही मान लेते हैं ।
हम यह जानने की कोशिश नहीं करते हैं कि उन खबरों के पीछे का सच क्या है ? या वो खबरें कहां से आई हैं ? या किस के माध्यम से आई हैं ? हम बस अपने स्वार्थ के मेल के चलते ऐसी खबरों को आगे बढ़ावा देते रहते हैं ।और कहीं ना कहीं इस तरह हम इंसानियत और मानवता को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि फेक न्यूज़ सारे समाज के लिए एक अभिशाप बन चुका है।
जय हिंद
जय समाजवाद
बृजेश यदुवंशी
Comments
Post a Comment