जज लोया "आत्महत्या"

हालांकि यह अपने आप में कहना बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि,  "जज लोया की आत्महत्या" ।लेकिन जैसे हालात चल रहे हैं,  आने वाले दिनों में हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट में यह साबित भी हो जाए , या सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला देते हुए ये कह दे  की जज लोया ने आत्महत्या की थी।

अभी कुछ दिनों पहले ही भारत के सर्वोच्च न्यायालय के,  सर्वोच्च जज श्रीमान न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा जी ने एक फैसला सुनाते हुए कहा कि ,  " मुख्य न्यायाधीश,  यानी कि वह खुद अपने आप में एक संस्थान हैं।  और उन पर अविश्वास नहीं जताया जा सकता " । या यूं कहें कि उन पर विश्वास करने का कोई विकल्प हमारे पास नहीं बचेगा।  अगर कुछ ऐसा ही है तो फिर संविधान से महाभियोग वाला क्लॉज आज ही हटा देना चाहिए।
क्योंकि महाभियोग की शुरुआत अविश्वास से ही होती है। और जब खुद भारत के मुख्य न्यायाधीश यही कह रहे हैं कि उन पर अविश्वास नहीं जता सकते , तो फिर ऐसे क्लाज की जरूरत संविधान में नहीं है ।
पिछले तीन ,चार सालों में जिस तरह से स्वतंत्र संस्थाओं ने खास तरीके के इशारे पर काम किया है,   वह अपने आप में एक संदेह उत्पन्न करता है।  चाहे वह नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का जंतर मंतर पर धरना देने से रोक लगाना हो,  या चुनाव आयोग का ईवीएम को लेकर बार-बार किरकिरी कराना हो,  और  न्यायालयों की हाल तो आपको सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों के प्रेस कॉन्फ्रेंस से ही समझ में आ गया होगा । उन जजों ने भी यही कहा कि केसों  के बंटवारे के मामले में मनमानी चल रही है । और जस्टिस चमलेश्वर ने जस्टिस लोया की मौत की केस को जस्टिस अरुण मिश्रा को देने पर भी सवालिया निशान लगाया ।
अब यह पूरा पूरा मामला है क्या आइए एक नजर डाल लेते हैं।

सोहराबुद्दीन शेख के एनकाउंटर के मामले की सुनवाई सीबीआई की अदालत में चल रही थी।  जिसके जस्टिस बृजमोहन लोया  थे । उनकी मौत 1 दिसंबर 2014 को नागपुर में हुई थी ।  और वजह दिल का दौरा पड़ना बताया गया था।  वह अपने किसी रिश्तेदार की शादी में गए हुए थे  । और सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले में सिर्फ एक ही व्यक्ति था,  जिसे ऊपर से लेकर नीचे तक सारी जानकारी थी।  जो एक एक पन्ने को अच्छे से जानता था।  वह थे गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री हरेन पांड्या।   जिनको 2002 में  उनके ही घर के सामने  कुछ लोगों ने गोली मार दिया । जिससे उनकी मौत हो गई ।  शायद उनमे मन में मुख्यमंत्री बनने की इच्छा हुई होगी । खैर इसको लेकर गुजरात सरकार की बहुत किरकिरी भी हुई की  जो राज्य या  जो मुख्यमंत्री अपने गृह मंत्री को नहीं बचा सकता  , वह किसी को  सुरक्षा की भावना कैसे देगा ।
दरअसल यह बात तब ज्यादा तूल पकड़ने लगी जब द कारवां पत्रिका में जज लोया की बहन और पिता ने उनकी मौत की परिस्थितियों पर सवाल उठा दिया।
जज लोया की बहन ने यह कहा कि उनके भाई को सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में कुछ लोगों ने मनचाहा फैसला लेने के लिए 100 करोड़ रुपए का प्रस्ताव दिया । दरअसल यह मामला दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के सबसे ऊंचे व्यक्ति के ऊपर लगे हुए आरोप का था ।  इस लिए जज लोया केस की पूरी बारीकियो को समझना चाहते थे।
यह भी एक हैरान करने वाली बात है की सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले में जो चार्जशीट दाखिल हुई थी वह करीब दस हज़ार पन्नों की थी ।  और जब सीबीआई की विशेष अदालत में यह मामला जस्टिस लोया के पास पहुंचा तो उनके ऊपर उसी समय अपने पक्ष में फैसला सुनाने का दबाव पड़ने लगा । जस्टिस लोया पूरी चार्ज सीट को पढ़कर फिर उसके हिसाब से फैसला देना चाहते थे ।  लेकिन इसके पहले ही उनकी मौत हो गई । और उनकी मौत के बाद यह केस जस्टिस गोसावी के पास पहुंचा।  जिन्होंने एक हैरतअंगेज रिकॉर्ड बनाते हुए दस हज़ार पन्ने की चार्ज सीट को सिर्फ 15 दिन के अंदर पढ़ भी लिया , और उस पर उन्होंने अपना फैसला भी सुना दिया। ये शायद उस परम्परा के शिकार बनना चाहते थे जहाँ पर स्वत्रंत संस्थाओं के लोगो को रिटायर होने के बाद सरकारी पदों पर बतौर सलाहकार या संबिधनिक व्यक्ति के तौर पर नियुक्त कर दिया जाता है।
अभी हाल फिलहाल एक पूर्व जज तो विश्वहिंदू परिषद का अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष भी बन गए । अब जरा सोचिए इन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान किस भावना से प्रेरित होकर फैसले दिए होंगे।

जज लोया की मौत के बाद इंडियन एक्सप्रेस ने पूरी घटना का दोबारा आकलन किया । इसके लिए उन्होंने अस्पताल के रिकॉर्ड निकालें , चश्मदीदों से नागपुर,  लातूर,  और मुंबई में बातचीत किया।  जज लोया के परिवार वालों से  बात की । इसके अलावा उनके डॉक्टरों से और पुलिस अधिकारियों से बात की गई।  इंडियन एक्सप्रेस की जांच से पता चला कि परिवार से एक अपरिचित शख्स ने बॉडी को उठाया।
उनकी मौत के बाद उनकी बॉडी को लावारिस हालत में छोड़ दिया गया।  तथा उनके शरीर को उनके पैतृक गांव में बिना किसी एस्कॉर्ट के भेजा गया । घटनास्थल पर मौजूद सबूत आपस में मैच नहीं कर रहे थे।  उनकी मौत के समय साथ रहने वाले जस्टिस भूषण  ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया की लोया अपने साथी जज श्रीधर कुलकर्णी श्री राम मधुसूदन के साथ ठहरे हुए थे।  सुबह 4:00 बजे उन्हें कुछ तकलीफ महसूस हुई।  स्थानीय जज विजय कुमार वरदे और उस समय के हाईकोर्ट के नागपुर बेंच के डिप्टी रजिस्ट्रार रुपेश राठी उन्हें सबसे पहले दांडे अस्पताल ले गए । यह अस्पताल उनके गेस्ट हाउस से 3 किलोमीटर की दूरी पर है ।
यह लोग दो कारों से अस्पताल पहुंचे थे । लेकिन अधिकारीक रिपोर्ट में यह बताया गया है कि उनको ऑटो रिक्शा से वहां ले जाया गया । जस्टिस शुक्र के मुताबिक जस्टिस वरदे  उन्हें अपनी कार में बिठाकर खुद कार चलाकर  दांडे अस्पताल ले गए। जज लोया की बहन के मुताबिक अस्पताल में जस्टिस लोया की ईसीजी नहीं की गई । और इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक ईसीजी खराब थी ।जबकि आधिकारिक रिकॉर्ड यह बताते हैं कि उनका ईसीजी अस्पताल में किया गया था।  जिसकी एक कॉपी इंडियन एक्सप्रेस के पास भी थी । उसके बारे हम बाद में बात करेंगे। बहरहाल अस्पताल में उनका इलाज करने के बाद जब वहां से उनको आराम नहीं हुआ तो उन्हें मेडिट्रीना अस्पताल भेजा गया।  जहां के प्रबंधक ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करने से मना कर दिया।

इंडियन एक्सप्रेस आगे लिखता है कि जज लोया के सीने में दर्द की शिकायत 4:00 बजे थी , लेकिन कार से 3 किलोमीटर दूर अस्पताल पहुंचने में 4:45 बज जाते हैं।  सुबह भोर के वक्त क्या 3 किलोमीटर का फासला तय करने में 45 मिनट का वक्त लगना चाहिए ?  शायद एक पैदल आदमी इससे कम वक्त में ये दूरी तय करले।
इसके अलावा जज लोया के सीने में दर्द कब हुआ इसके भी कई पहलू हैं।  मैगजीन  द कारवां में पत्रकार निरंजन टाकले लिखते हैं कि" रात को  12:30 बजे सीने में दर्द हुआ।  और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह कहा गया है कि यह दर्द सुबह 4:00 बजे हुआ । और सुबह 6:15 बजे मौत हुई।
उधर एनडीटीवी के पत्रकार सुनील से जस्टिस भूषण गवई ने कहा कि "  सुबह 3:30 बजे जस्टिस लोया की तबीयत खराब हुई" ।  जस्टिस मोदक और जस्टिस कुलकर्णी के अनुसार 12:30 बजे रात को ही जस्टिस लोया के सीने में दर्द हुआ।  लेकिन उन्हीं के बयान के अनुसार यह लोग सुबह 5:00 बजे जस्टिस लोया को लेकर हॉस्पिटल पहुंचे।  तो यह लोग आखिर में इतनी देर तक कर क्या रहे थे ? जस्टिस गवई को सुबह 6:00 बजे डिप्टी रजिस्ट्रार ने फोन करके जज लोया की मौत की सूचना दी। जस्टिस लोया की बहन सरिता ने कारवां के पत्रकार निरंजन टाकले को यह बताया कि " सुबह 5:00 बजे ही जज का फोन उनके पास आ गया था कि बृज गोपाल लोया की मौत हो चुकी है।  जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मरने का समय सुबह 6. 15 मिनट बताया गया है  ।
जस्टिस गवई खबर सुनने के बाद हॉस्पिटल गए जहां पर जस्टिस मोदक और जस्टिस कुलकर्णी   और डिप्टी रजिस्ट्रार मौजूद थे। जस्टिस गवाही के अनुसार जब वह हॉस्पिटल में आईसीयू में गए तो लोहा के शरीर पर कहीं खून का निशान नहीं था।  अखबार के पास जो ईसीजी की रिपोर्ट  थी उसमें भी तारीख को लेकर भी बहुत घपला हुआ  । ईसीजी की रिपोर्ट में ऊपर में जस्टिस लोया का नाम जस्टिस बृजगोपाल लोहिया लिखा है । और नीचे की तारीख 30 नवंबर लिखी हुई है , जबकि मौत 1 दिसंबर को हुई।  क्या ईसीजी मशीन से ऐसी चूक हो सकती है ?  अगर ऐसा है तो उस दिन सारी ईसीजी रिपोर्ट में यह तारीख 30 नवंबर ही लिखी जानी चाहिए।  लेकिन ऐसा किसी और रिपोर्ट में नहीं लिखा है। हास्पीटल के डॉक्टरों और कर्मचारियों ने "  क्या चिकित्सा की गई इसका कोई विवरण देने से  ने इनकार कर दिया। , वहीं दांडे हॉस्पिटल के निदेशक पिनाक दांडे ने एक्सप्रेस से बात की है और ब्यौरा दिया. आप देखेंगे कि ज़्यादातर सवाल मौत के बाद की गतिविधियों को लेकर जो सूचनाओं का आदान प्रदान हो रहा है, उसमें कई जगह समानता है, कई जगह अंतर है. कोई भी सवाल इस बात को ठोस रूप से उठता नहीं दिखा कि क्या जज लोया की हत्या की गई होगी. पोस्टमार्टम के वक्त कई बड़े जज मौजूद थे. इसका विवरण कई तरह से सही साबित होता है. हमने यह सवाल किया था कि पोस्टमार्ट का फैसला किसका था, लेकिन इस सवाल का जवाब आपको कानून की प्रक्रिया से ही मिलेगा. अनुराधा बियाणी ने कैरवां को बताया है कि डाक्टर होने के कारण वो जानती हैं कि पोस्टमार्टम के दौरान खून नहीं निकलता और बियाणी ने दोबारा पोस्टमार्टम की मांग की थी लेकिन वहां इकट्ठे लोया के दोस्तों और सहकर्मियों ने उन्हें हतोत्साहित किया कि यह कहते हुए कि मामले को और जटिल बनाने की जरूरत नहीं है. कई अधिकारियों का कहना है कि पोस्टमार्ट के समय खून नहीं निकलता लेकिन हमारे सहयोगी मुकेश सिंह सेंगर ने फॉरेंसिक एक्सपर्ट डॉ. के सी शर्मा से बात की. उन्होंने कहा कि परिवार को सूचित किए बिना भी पोस्टमार्टम हो जाता है. पोस्टमार्ट होने के बाद कई बार कपड़ों में रक्त लग जाता है जिसके कई कारण होते हैं.

एक्सप्रेस और कैरवां में एक और किरदार है. ईश्वर बाहेती. कैरवां में इसे आरएसएस का बताया गया है. एक्सप्रेस में इन्हें जज लोया के मित्र डॉ. बहेती का भाई बताया गया है और जज लोया ईश्वर बाहेती के संपर्क में थे. मगर बाहेती ने एक्सप्रेस और कैरवां से बात नहीं की है. कम से कम उन्हें मीडिया से संपर्क करना चाहिए कि उनके पास जज लोया का फोन कैसे आया, वो मौत के तीन चार दिनों बाद फोन लेकर कैसे परिवार के पास पहुंच गए, क्या यह सही है कि फोन से डेटा उड़ा दिया गया था, एक ही एसएमएस बचा था. सुप्रीम कोर्ट के वकील सुदीप श्रीवास्तव ने कुछ सवाल उठाए हैं.
इस तरह के बहुत सारे सवाल हैं जो आपस में एक दूसरे को ही काट रहे हैं। जैसे कि जज लोया को हार्ट अटैक आने का समय क्या था ?  12:30 बजे या सुबह 4:00 बजे या 3:30 बजे ? 
3 किलोमीटर की सड़क को सुबह 5:00 बजे तय करने में कितना समय लगता है ?  ईसीजी की रिपोर्ट में सिर्फ जस्टिस लोया की ही कॉपी में गलत डेट क्यों लिखी हुई है ?
यह सब एक जांच का विषय है लेकिन माननीय सुप्रीम कोर्ट और हमारे माननीय संस्थानीय जस्टिस दीपक मिश्रा और उनके प्रिय  जस्टिस अरुण मिश्रा को यह सब पॉइंट बेकार और तर्कहीन लगता है । और इसी वजह से उन्होंने इस केस का फैसला बिना जाँच किये सुना दिया ।  साथ ही उन्होंने इस केस में पीआईएल दाखिल करने वाले वकीलों को संदेश दिया है कि खबरदार आगे से अब कोई पीआईएल दाखिल मत करना।
मंगलवार को जज लोया के केस का फैसला आया, और उससे पहले मुख्य न्यायाधीश के घर रविवार को कानून मंत्री करीब ढाई घंटे की मीटिंग करके आगे।
और फैसले के बाद उसी दिन रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में फैसले की कॉपी मीडिया को दिखाई, अब याचिकाकर्ता तहसीन पूनावाला इस बात से हैरान है की कोर्ट के फैसले की कॉपी पहले उनके पास आने की जगह रविशंकर प्रसाद के पास कैसे चली गयी। और अब वह इस मुद्दे को लेकर कोर्ट में जाने की सोच रहे है। खैर ये भी एक मजाक का विषय है कि पूनावाला कोर्ट में कहेंगे क्या ? यही  " मिलार्ड मुझे शक है कि आप किसी से मिले हुए है , फैसले की कॉपी आपने मुझसे पहले किसी और को क्यों दिया ?  कृपया आप खुद की एक जांच करवाइये "

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