तेरी कुरवत

नज़र ए करम कर दे इलाही तेरी रहमत का
मैं बन के  फिरूं जोगी अब तेरी कुरवत का


बाजार ए इश्क़ में लुटाया है खुद को इलाही

अब  कुछ तो नफा दे दे मेरी सब लागत का


मेरे मालिक जो हाथ रख दे तू मेरे दिल पर
हम किस्से सुनाएंगे इस खैरात ए इबारत का

मेरे मौला अब तो हर चेहरा हसीन लगता है
कुछ तो इलाज बता इस दिल ए आफत का

मेरा रोग,मेरी आफत, है ये मेरी ही मुसीबत
उन्हें जिम्मेदार न कहना मेरी इस हालत का

सुर्ख आंखे, खामोश लब, और बेचैन नज़रें
सज़ा तो मिलनी थी बावरें इश्क़ ए हैरत का

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