वो एक मंजर

वो बस एक मंजर मेरी इन आँखों में अटक जाता है,
जब भी  उसका दुपट्टा उसके सर से  सरक जाता है।

बहुत  कोसिस  करती  है  वो चुपचाप  निकलने की,
पर उसके हाथों का कंगन  अक्सर  खनक  जाता है।

उसकी  नज़रे  जहाँ  जाती है कलियाँ खिल जाती है,
वो हाथ लगाती है और मुरझाया फूल महक जाता है।

इस दिल का मैं क्या करूँ कुछ समझ ही नही आता,
कमबख्त जब उसको देखता है जोर से धड़क जाता है।

सोचता हूँ किसी दिन मैं उससे अपनी बात तो करू,
फिर ना जाने ये दिल किस डर से झिझक जाता है।

कुछ तो बात जरूर है हुज़ूर  आपकी  इन आँखों मे,
जब भी नज़रे मिलती है जाम इनसे छलक जाता है।



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